सोमवार, 5 मई 2025

माता -पिता की स्मृति एक महत्त्वपूर्ण धरोहर [आलेख]

 226/2025

 

 ©लेखक 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 मनुष्य का जीवन सृष्टि की सर्वोत्कृष्ट रचना है।ईश्वर के बाद यदि संसार में कोई प्रत्यक्ष और साकार ईश्वर हैं ,तो वह हमारे माता - पिता ही हैं।उनके बिना मनुष्य का न तो कोई अस्तिव है और न महत्त्व ही। उनके ही रक्त से हमारा निर्माण हुआ है। इसलिए हमारे जीवन में यदि सबसे महत्त्वपूर्ण है,तो वे हमारे माता -पिता ही हैं। संसार की जिस संतति ने उन्हें महत्व प्रदान नहीं किया,उसका जीवन पशुओं और कीट आदि से भी बदतर है।

 यह सत्य है कि बिना माता-पिता के हमारा जन्म नहीं हो सकता। हम अपने अस्तिव को साकार नहीं कर सकते। हमें वर्तमान रूप और स्वरूप प्रदान करने का सर्वांश श्रेय हमारे माता पिता का है। माता -पिता की दृष्टि से किसी भी संतति के कई रूप हो सकते हैं। पहले वे जिनके माता -पिता हैं,और जिन्होंने उन्हें पाल पोषकर बड़ा किया है। दूसरे वे जिनके पिता उनके जन्म से पहले ही इस संसार को छोड़कर परलोक गमन कर गए और केवल उनकी माता ने ही उन्हें पाला - पोशा। तीसरे वे जिनकी माता उनके जन्म के तुरंत बाद में स्वर्ग सिधार गईं और उनके पिता अथवा अन्य किसी संबंधी ने उन्हें बड़ा और खड़ा किया। चौथे वे हैं जिनके माता- पिता में कोई भी नहीं है और किसी अन्य के द्वारा ही उनका लालन -पालन हुआ है। सर्वाधिक सौभाग्यशाली वही संतान हैं,जिन्हें अपने माता -पिता को देखने ,उनके हाथों पलते -बढ़ते और उनकी सेवा करते हुए जीवन बिताया है। कभी न कभी तो सबको ही संसार छोड़ना पड़ता है। इसलिए कोई माता -पिता कभी न कभी संतान को छोड़कर संसार से विदा होते ही हैं।

  प्रत्येक संतान ; चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की , उसका अपने माता-पिता के प्रति एक धर्म होता है कि वह आजीवन उनकी सेवा करे। अपने मन ,वचन और कर्म से उनकी आत्मा को कभी कष्ट न दे। वह संतान सबसे बड़ी अभागी है,जिसके माता -पिता की आँखों में उसके कारण कभी एक पल को आँसू भी आए। एक माता अपनी संतान को स्वयं गीले बिस्तर में सोकर रात बिता देती है,किंतु वही बेटा जब बड़ा होकर एक बहू ले आता है ,तो उसे भूल जाता है। उसका अपमान करता है। यही नहीं उसकी बहू भी उसे अपमानित करती है। इस अपमान का सबसे बड़ा दोषी उसका पुत्र ही होता है। कोई पुत्र अपने माता -पिता को वृद्धाश्रम नहीं भेजना चाहता ,किन्तु उसकी पत्नी के दुराग्रह के कारण ही उसे उन्हें वृद्धाश्रम भेजना पड़ता है। यदि आधुनिक पत्नियों में अपने सास -ससुर के प्रति इतना दुर्भाव न होता तो वृद्धाश्रम नहीं होते। उनका एकमात्र कारण अपनी निजता और विलासिता ही है,जो पति के माता -पिता का सम्मान करना नहीं चाहती।


 यदि कोई संतान यह चाहती है कि वह अपने माता -पिता को कष्ट देकर सुखी और शांतिपूर्ण जीवन जी सकती है;तो यह उसका सबसे बड़ा भ्रम है। अपने माता-पिता की सेवा न करना,उनकी इच्छा को ही आदेश न मानना, उन्हें अपमानित करना , उन्हें मरना- पीटना कुसंतति के उदाहरण हैं।इस कलयुग में तो ऐसे भी समाचार पढ़ने को मिलते हैं कि उसके कुपुत्र ने माता-पिता, किसी एक अथवा पिता की हत्या कर दी। छोटी -छोटी बात पर कुपुत्र माता -पिता को पीटते और मार डालते हैं।भाइयों के बँटवारे को लेकर इस प्रकार की अनेक घटनाएँ सुनने और देखने को मिलती हैं। हमारे माता-पिता हमारी धरोहर हैं,जिसकी रक्षा हमें प्राण पण से करनी है। एक पिता वह वट वृक्ष है,जिसकी सघन छत्रछाया में पुत्र रूपी पौधा पल्लवित और पुष्पित होता है। एक माता वह त्याग की प्रतिमूर्ति है,जिसका कोई अन्य निदर्शन इस धरती पर नहीं है। जिस संतान ने;चाहे वह पुत्र हो या पुत्री ;अपने माता -पिता का अपमान किया,वे आजीवन रौरव नर्क ही भोगते हैं। जन्म जन्मांतर तक उन्हें कोई मुक्ति नहीं है,कोई क्षमा नहीं है। कोई भी संतान कभी भी माता -पिता से उऋण नहीं हो सकती। वही ब्रह्मा हैं, वही विष्णु है और वही महादेव हैं। हमारी माता ही लक्ष्मी,दुर्गा और सरस्वती हैं। जिस संतान ने अपने माता -पिता के प्रति कर्तव्य का पालन नहीं किया, उसका तीर्थ,वृत, उपासना,अर्चना,पूजा ,पाठ आदि सब व्यर्थ है। 

 इसलिए आइए हम सब अपने माता-पिता को अपने श्रेष्ठ कर्मों से अमर बनाएँ ;जिससे हमें जानने और देखने वाले कहें कि यह अमुक माता -पिता की संतान है;जिसने उनका नाम जग प्रसिद्ध किया है। हम संतति ही अपने माता-पिता की अमूल्य धरोहर हैं,जिन्हें अपने सत्कर्मो से उन्हें हिमालय से भी ऊँचा बनाए रखना है। यह कथन सर्वांश में सत्य है :

                                                   सर्व पितृमयी माता

                                                    सर्व देवमय: पिता 


 05.05.2025● 4.00प०मा० 


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सर्व देवमय: पिता [आलेख]



©लेखक

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मनुष्य का जीवन सृष्टि की सर्वोत्कृष्ट रचना है।ईश्वर के बाद यदि संसार में कोई प्रत्यक्ष और साकार ईश्वर हैं  ,तो वह हमारे माता - पिता ही हैं।उनके बिना मनुष्य का न तो कोई अस्तिव है और न महत्त्व ही। उनके ही रक्त से हमारा निर्माण हुआ है। इसलिए हमारे जीवन में यदि सबसे महत्त्वपूर्ण है,तो वे हमारे माता -पिता ही हैं। संसार की जिस संतति ने उन्हें महत्व प्रदान नहीं किया,उसका जीवन पशुओं और कीट आदि से भी बदतर है।


यह सत्य है कि बिना माता-पिता के हमारा जन्म नहीं हो सकता। हम अपने अस्तिव को साकार नहीं कर सकते। हमें वर्तमान रूप और स्वरूप प्रदान करने का सर्वांश श्रेय हमारे माता पिता का है। माता -पिता की दृष्टि से किसी भी संतति के कई रूप हो सकते हैं। पहले वे जिनके माता -पिता हैं,और जिन्होंने उन्हें पाल पोषकर बड़ा किया है। दूसरे वे जिनके पिता उनके जन्म से पहले ही इस संसार को छोड़कर परलोक गमन कर गए और केवल उनकी माता ने ही उन्हें पाला - पोशा। तीसरे वे जिनकी माता उनके जन्म के तुरंत बाद में स्वर्ग सिधार गईं और उनके पिता अथवा अन्य किसी संबंधी ने उन्हें बड़ा और खड़ा किया। चौथे वे हैं जिनके माता- पिता में कोई भी नहीं है और  किसी अन्य के द्वारा ही उनका लालन -पालन हुआ है। सर्वाधिक सौभाग्यशाली वही संतान हैं,जिन्हें अपने माता -पिता को देखने ,उनके हाथों पलते -बढ़ते और उनकी सेवा करते हुए जीवन बिताया है। कभी न कभी तो सबको ही संसार छोड़ना पड़ता है। इसलिए कोई माता -पिता कभी न कभी संतान को छोड़कर संसार से विदा होते ही हैं।


प्रत्येक संतान ; चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की , उसका अपने माता-पिता के प्रति एक धर्म होता है कि वह आजीवन उनकी सेवा करे।  अपने मन ,वचन और कर्म से उनकी  आत्मा को कभी कष्ट न दे। वह संतान सबसे बड़ी अभागी है,जिसके माता -पिता की आँखों में उसके कारण  कभी एक पल को आँसू भी आए। एक माता अपनी संतान को स्वयं गीले बिस्तर में सोकर रात बिता देती है,किंतु वही बेटा जब बड़ा होकर एक बहू ले आता है ,तो उसे भूल जाता है। उसका अपमान करता है। यही नहीं उसकी बहू भी उसे अपमानित करती है। इस अपमान का सबसे बड़ा दोषी उसका पुत्र ही होता है। कोई पुत्र अपने माता -पिता को वृद्धाश्रम नहीं भेजना चाहता ,किन्तु उसकी पत्नी के दुराग्रह के कारण ही उसे उन्हें वृद्धाश्रम भेजना पड़ता है। यदि आधुनिक पत्नियों में अपने सास -ससुर के प्रति इतना दुर्भाव न होता तो वृद्धाश्रम नहीं होते। उनका एकमात्र कारण अपनी निजता और विलासिता  ही है,जो पति के माता -पिता का सम्मान करना नहीं चाहती।


यदि कोई संतान यह चाहती है कि वह अपने माता -पिता को कष्ट देकर सुखी और शांतिपूर्ण जीवन जी सकती है;तो यह उसका सबसे बड़ा भ्रम है। अपने  माता-पिता की सेवा न करना,उनकी इच्छा को ही आदेश न मानना, उन्हें अपमानित करना , उन्हें मरना- पीटना कुसंतति के उदाहरण हैं।इस कलयुग में तो ऐसे भी समाचार पढ़ने को मिलते हैं कि उसके कुपुत्र ने माता-पिता, किसी एक अथवा पिता की हत्या कर दी। छोटी -छोटी बात पर कुपुत्र  माता -पिता को पीटते और मार डालते हैं।भाइयों के बँटवारे को लेकर इस प्रकार की अनेक घटनाएँ सुनने और देखने को मिलती हैं। हमारे माता-पिता हमारी धरोहर हैं,जिसकी रक्षा हमें प्राण पण से करनी है। एक पिता वह वट वृक्ष है,जिसकी सघन छत्रछाया में पुत्र रूपी पौधा पल्लवित और  पुष्पित होता है। एक माता वह त्याग की प्रतिमूर्ति है,जिसका कोई

अन्य निदर्शन इस धरती पर नहीं है। जिस संतान ने;चाहे वह पुत्र हो या पुत्री ;अपने माता -पिता का अपमान किया,वे आजीवन रौरव नर्क ही भोगते हैं। जन्म जन्मांतर तक उन्हें कोई मुक्ति नहीं है,कोई क्षमा नहीं है। कोई भी संतान कभी भी माता -पिता से उऋण नहीं हो सकती। वही ब्रह्मा हैं, वही विष्णु है  और वही महादेव हैं। हमारी माता ही लक्ष्मी,दुर्गा और सरस्वती हैं। जिस संतान ने अपने माता -पिता के प्रति कर्तव्य का पालन नहीं किया, उसका तीर्थ,वृत, उपासना,अर्चना,पूजा ,पाठ आदि सब व्यर्थ है।

इसलिए आइए हम सब अपने माता-पिता को अपने श्रेष्ठ कर्मों से अमर बनाएँ ;जिससे हमें जानने और देखने वाले कहें कि यह अमुक माता -पिता की संतान है;जिसने उनका नाम जग प्रसिद्ध किया है। हम संतति ही अपने माता-पिता की अमूल्य धरोहर हैं,जिन्हें अपने सत्कर्मो से उन्हें हिमालय से भी ऊँचा बनाए रखना है। यह कथन सर्वांश में सत्य है :

                                                      "सर्व   पितृमयी   माता"

                                                       "सर्व   देवमय:     पिता"

05.05.2025● 4.00प०मा०

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बेशर्मी की सीमा [दोहा गीतिका]

 225/ 2025 

                

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बेशर्मी       की    तोड़ता,  सीमा पाकिस्तान।

हँस -हँस  कर बेहाल है,देखो सकल जहान।।


पहलगाम  हमला   किया, मर्यादा कर  भंग,

उसे  नहीं चिंता  कभी,खींच  रहा जग कान।


निर्दोषों   की  जान    के,आतंकी क्यों   शत्रु,

उदरों  में  भोजन   नहीं,  नहीं   घरों पर छान।


जाति -धर्म    को   पूछ कर, फैलाया  आतंक,

लिए   कटोरा   हाथ  में,  कहता स्वयं   महान।


खंड -खंड    भारत   हुआ,बने  एक के  तीन,

चाहत    भरी    खटास  से,ताने तीर कमान।


थू- थू   छी-छी  हो   रही, जग  में चारों ओर,

कानों   से  बहरा  हुआ, माँगें जीवन  - दान।


'शुभम्'  भभकियाँ  दे रहा, काँप  रहे  हैं  पैर,

नाल    ठुकाए  मेंढकी, भले निकलती   जान।


शुभमस्तु !


05.05.2025●5.30आ०मा०

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पहलगाम हमला किया [सजल]

 224/ 2025

      

समांत        :आन

पदांत         : अपदांत

मात्राभार     :24

मात्रा पतन   : शून्य।


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बेशर्मी       की    तोड़ता,  सीमा पाकिस्तान।

हँस -हँस  कर बेहाल है,देखो सकल जहान।।


पहलगाम  हमला   किया, मर्यादा कर  भंग।

उसे  नहीं चिंता  कभी,खींच  रहा जग कान।।


निर्दोषों   की  जान    के,आतंकी क्यों   शत्रु।

उदरों  में  भोजन   नहीं,  नहीं   घरों पर छान।।


जाति -धर्म    को   पूछ कर, फैलाया  आतंक।

लिए   कटोरा   हाथ  में,  कहता स्वयं   महान।।


खंड -खंड    भारत   हुआ,बने  एक के  तीन।

चाहत    भरी    खटास  से,ताने तीर कमान।।


थू- थू   छी-छी  हो   रही, जग  में चारों ओर।

कानों   से  बहरा  हुआ, माँगें जीवन  - दान।।


'शुभम्'  भभकियाँ  दे रहा, काँप  रहे  हैं  पैर।

नाल    ठुकाए  मेंढकी, भले निकलती   जान।।


शुभमस्तु !


05.05.2025●5.30आ०मा०

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शुक्रवार, 2 मई 2025

तवा गरम है! [अतुकांतिका]

 223/2025

           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


तवा गरम है

चलो सेंक लें

अपनी -अपनी रोटी,

लगते हाथ 

बहुत कम मौके

उन्हें भुनाएँ आओ,

घड़ियाली दो आँसू

भरकर हमदर्दी दिखलाओ

पहले वोट 

देश है पीछे

यही सोच है अपनी,

दल बंदी के

दलदल में जा

कुर्सी की माला जपनी।


नेता हैं हम

नहीं सुधारक

हमें देश से क्या लेना,

पहलगाम के  

घाव उभारें

क्या  शासन क्या सेना,

राजनीति

अपनी चमकाएं

खण्ड- खण्ड में बाँटें,

इतिहासों को गरियाएँ

सरकारों को डाँटे।


हवा और ही 

इधर बह रही

खिचड़ी अलग पकाएँ,

जिनके पति 

परलोक सिधारे

उनको गले लगाएँ,

किसी बुरे में

भला ढूंढ़ना

हमें खूब है आता,

सद्गुण में भी

दाग खोजना

नहीं हमें शर्माता।


शुभमस्तु !


01.05.2025●10.30 आ.मा.

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फिर भी नहीं सुहाए भारत [नवगीत]

 222/2025

   

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


दाना - पानी 

यहीं मिले सब

फिर भी नहीं सुहाए भारत।


पौध यहाँ की

शूल बन गई

जाकर पार देश को धोखा

चुभते शूल

उगे डाली पर

चला यहीं गन फेंके खोखा

हवा दवा 

पानी भी पीते

आँखों में चुभ जाए भारत।


हुक्का - पानी

बन्द हो गया

त्राहि -त्राहि क्यों तू चिल्लाए

जिससे जन्म

लिया है तूने

उसको ही नित आँख दिखाए

क्रूर जिदें 

मन में ठानी हैं

चुटकी में गुम जाए भारत।


जीत यहाँ की

तुझे न भाती

मुख से तू जयहिंद न बोले

लगे पाक 

तुझको जब प्यारा

नारे पाक प्रियलता खोले

मतलब नहीं

यहाँ से कोई

फिर क्योंकर चुभ जाए भारत।


शुभमस्तु!


30.04.2025● 2.15प०मा०

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किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...