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गुरुवार, 27 मार्च 2025

उत्सव [चौपाई]

 172/2025

                   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


उत्सव धर्मी     भारत    प्यारा।

उर-उछाह  उत्सव   का  गारा।।

जीवन   की    नीरसता  हरता।

उत्सव नित नवीन शुभ करता।।


हर्ष हृदय -  उल्लास   जहाँ   हो।

उत्सव का शुभ   कर्म  वहाँ  हो।।

बालक   वृद्ध   युवा    नर- नारी।

खिल जाती सबकी  उर- क्यारी।।


घोर    निराशा     मिटे   उदासी।

उत्सव  से  मानव    शुभ शासी।।

साल - साल भर   उत्सव  आते।

मिलजुल   कर नर - नारि मनाते।।


रंगों   का    शुभ   उत्सव   होली।

भर लाया   गुलाल   की   झोली।।

कार्तिक   मास    दिवाली   आती।

दीपमालिका     दिये     जलाती।।


भारत     हुआ    स्वतंत्र    हमारा।

उत्सव    वह     स्वाधीन  दुलारा।।

संविधान    का    उत्सव    आता।

शुभ छब्बीस    जनवरी    भाता।।


जन्म-  ब्याह   के   उत्सव   कितने।

नित्य    मनाते     तजते     फ़ितने।।

जीवन  का   हर   दिन   उत्सव हो।

करें वही जो सब शुभ नव-नव हो।।


उत्सव  से    गति    जीवन    लेता।

स्नेहन  जब    मिलता   जन चेता।।

आओ   जीवन  -  शुभता     लाएँ।

हर क्षण उत्सव     नित्य    मनाएँ।।


शुभमस्तु !


24.03.2025●8.45आ०मा०

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सोमवार, 17 मार्च 2025

भारत [चौपाई]

 161/2025

            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जगती   में    भारत  भू  न्यारी।

सब   देशों  में   सबसे  प्यारी।।

उत्तर में    है   अद्रि  हिमाचल।

बहती  जिससे गंगा अविरल।।


त्याग    तपस्या   ध्येय   हमारा।

फहरे    गगन   तिरंगा   प्यारा।।

राम कृष्ण की   धरती    भारत।

करते जो दानव   दल    गारत।।


षड्ऋतुएँ     हैं    आतीं   जातीं।

अपने रँग- रस  नित    बरसातीं।।

गेहूँ    चना     मटर    सब होते।

कृषक यहाँ फल सब्जी  बोते।।


सरयू     यमुना    गंगा   बहतीं।

जीवन दान   बहाकर    रहतीं।।

ऋतु    वसंत     बौरे   अमराई।

कोकिल  की    गूँजे    मधुराई।।


विविध वेश   बहु    भाषा  वाले।

 नर- नारी    सब   बड़े  निराले।।

संस्कृति विविध   सभ्यता धारी।

भारत की  महिमा  है    न्यारी।।


तुलसी    सूर    रहीम   कबीरा।

कवि लेखक सर्जक बहु धीरा।।

वीर      शिवाजी    जीजाबाई।

कवियों ने नित महिमा    गाई।।


विविध    रंग   में   खेलें   होली।

निकले  हुरियारों    की    टोली।।

आता  है  जब    पर्व    दिवाली।

दीपों की बहु  जलें     प्रणाली।।


 भारत    देश    महान    हमारा।

हमें  प्राण से है    अति   प्यारा।।

आन- मान    के   हम रखवाले।

हम     भारत  के  पुत्र    निराले।।


शुभमस्तु !


17.03.2025●9.00आ०मा०

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होली [ चौपाई ]

 146/2025

                

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फागुन     लगा     आम     बौराया।

शुभ होली   ने     रँग     बरसाया।।

टेसू   और    गुलाब      खिले     हैं।

तितली    भौंरे     हिले-  मिले   हैं।।


होली     का    है     समा    निराला। 

मन  मादक     मोहित     मतवाला।।

डाली - डाली        कोकिल    बोली।

गाती    फाग      निराली     होली।।


पिचकारी    ले      बालक     आए।

धमाचौकड़ी      कर - कर    धाए।।

भीग  रही    भाभी     की     चोली।

कहते       तुमसे      खेलें    होली।।


डफ -   ढोलक  ने   धूम     मचाई।

नाच     रही    हैं     भाभी     ताई।।

देवर  से      हँस      भाभी   बोली।

खेलेंगीं     हम     तुमसे       होली।।


गेहूँ     चना     मटर     सँग    नाचे।

लहर   पवन   में    भरे     कुलाँचे।।

सेमल  सुमन       लाल    मनभाये।

सजे    डाल पर    सघन    सुहाए।।


घर - घर   गुझिया   पापड़  महके।

पिचकारी  ले     बालक    चहके।।

डिम-डिम  धम-धम   बजते बाजे।

होली     के       खुलते   दरवाजे।।


रंगों   का    शुभ     उत्सव    होली।

जीजा -  साली      करें    ठिठोली।।

पोतें  रँग    गुलाल     मुख    चंदन।

करें होलिका     का     अभिनंदन।।


शुभमस्तु!


10.03.2025● 8.30 आ०मा०

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मंगलवार, 4 मार्च 2025

चैत्र [चौपाई]

 134/2025

                  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चैत्र   शुक्ल  की    पड़वा   आई।

ब्रह्मा जी  ने       सृष्टि    बनाई।।

चैत्र    मास    की   पूनम  भाई।

चित्रा  नखत  लगा    सुखदाई।।


हिंदू  प्रथम    मास    शुभकारी।

गाते     वेद     पुराण     पुरारी।।

वर्ष  प्रतिपदा का  दिन   आया।

 हिंदू      वर्षारंभ       सुभाया।।


चैत्र   मास  ऋतुओं   का  राजा।

कहलाए   मधुमास     सुसाजा।।

नवारम्भ     जो     करना   कोई।

शुभदाकारी  हर     तिथि   होई।।


राम जन्म दिन    शुभ    नवराते।

शुभकारी  सब     लोग   मनाते।।

फागुन       गया   चैत्र     हर्षाया।

हिल- मिल हिंदू  मास    मनाया।।


विष्णु   रूप     मत्स्य    अवतारे।

मनु जी के   सब    कष्ट   निवारे।।

जल  की प्रलय हुई   जब   भारी।

प्रथम  रूप ने     विपदा     टारी।।


जैसा   नाम     काम    मधुमासा।

चैत्र मास  तरु लता     विकासा।।

ऋतुओं  का    राजा  शुभ आया।

तरु लतिका  ने  साज   सजाया।।


वट पीपल   सब     हँसते  झूमें।

भँवरे    कलियों के  मुख   चूमें।।

चैत्र  मास   की    चारु    हवाएँ।

नवल सृजन के    द्वार  सजाएँ।।


शुभमस्तु !


03.03.2025●7.45आ०मा०

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बुधवार, 17 जुलाई 2024

घटाओं की रणभेरी [चौपाई ]

 304/2024

         

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


गया  ग्रीष्म पावस ऋतु आई।

चलती  पछुआ   या  पुरवाई।।

घटाटोप   बादल   नभ  छाए।

चमके बिजली जल बरसाए।।


बूँद - बूँद   कर   बरसे  पानी।

भीगे    चूनर   साड़ी    धानी।।

आई   बाढ़   धरा   पर  भारी।

डूब   रहीं   हैं     कारें   सारी।।


जिधर  दृष्टि   जाती   है  मेरी।

बजे   घटाओं   की  रणभेरी।।

गाँव विटप   वन   डूबे   सारे।

सरिता  के दिखते न किनारे।।


लगता प्रलय  भयंकर  आई।

दुखी हुए सब लोग - लुगाई।।

परेशान    हैं    कारों    वाले।

पड़े   हुए   बचने   के लाले।।


जैसे    कोई     चले    सुनामी।

पवन हुआ जल का अनुगामी।।

पवन दे    रहा  बड़े     झकोरे।

जल में उठते  प्रबल   हिलोरे।।


नगर गाँव  अब  दिखे न कोई।

सागर  में ज्यों प्रकृति  डुबोई।।

दिन में छाया   सघन   अँधेरा।

लगता श्यामल नवल  सवेरा।।


'शुभम्' मौन सब खंभ  खड़े हैं।

बिजली के जो अवनि  गड़े हैं।।

अति सबकी  वर्जित  ही होती।

वर्षा    हो   या   बरसें    मोती।।


शुभमस्तु !


09.07.2024●8.30आ०मा०

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बुधवार, 19 जून 2024

त्याग [ चौपाई ]

 273/2024

              

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मथुरा     के     कान्हा   अवतारी।

त्याग  बने    ब्रज    में    संसारी।।

गोकुल   को अपना   पथ   साधा।

पथ  में  मिलीं  बहुत विधि  बाधा।।


मात   यशोदा     को    अपनाया।

ग्वाल बाल    से    नेह   लगाया।।

गोकुल  कब तक  उनका   होता।

त्याग  गए   वन   सबको   रोता।।


मथुरा   पुनः   पुकार   रही   थी।

त्याग वृत्ति  उर धार   बही   थी।।

कंस असुर   सबको   ललकारा।

गोकुल त्यागा    किया  किनारा।।


मिली  राह  में    कुबड़ी   दासी।

त्यागा  कूबड़    भरी    उबासी।।

जन से मोह न    करना   जाना।

त्याग  पंथ    जिनका  पैमाना।।


कब तक बन मथुरा   के   वासी।

रहे कृष्ण कब   त्याग   उदासी।।

पुरी    द्वारिका   जलधि   बसाई।

त्याग भाव    की     छाई   काई।।


जब ब्रज   में   अपनाई   राधा।

त्याग उन्हें भी निज पथ साधा।।

त्याग त्याग बस त्याग कमाया।

अवतारी   जब भू   पर  आया।।


'शुभम्' त्याग की विकट कहानी।

अति अनहोनी जग   ने   जानी।।

त्याग भाव  का   पाठ   पढ़ाया।

अवतारी कान्हा  जब    आया।।


शुभमस्तु !


17.06.2024●2.45प०मा०

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बुधवार, 31 जनवरी 2024

सेवक ● [ चौपाई ]

 41/2024

              

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● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सेवक    वही    करे    जो   सेवा।

मिले   बाद    में    उसको   मेवा।।

जन सेवक  बन   नाम     कमाते।

नारों  से  जन     खूब     रिझाते।।


स्वार्थ  बिना   सेवा    जो  करता।

निर्धन  -  उदर  अन्न   से  भरता।।

सेवक  वह    साँचा     कहलाता।

दुनिया  भर  में     नाम  कमाता।।


सदा     राम   की    सेवा  करते।

पल को   राम न उन्हें   बिसरते।।

सीता   खोज  लौट   हनु   आए।

समाचार  शुभ   उन्हें     सुनाए।।


सेवक-धर्म  कठिन  अति  होता।

सदा  जागता  कभी  न   सोता।।

नेता   जो     सेवक     कहलाते।

जन - जन को   झूठा   बहलाते।।


मन में कपट न   जिसके   होता।

सेवक  पद  वह  सही   सँजोता।।

लखन भरत-से   जिनके   भ्राता।

वही  राम कण-कण  बस जाता।।


रँगे    वेश   जो     सेवक    बनते।

धनुष  सदृश  जनता    में    तनते।।

अखबारों     में     नाम    छपाते।

छायाचित्रों       में        मुस्काते।।


'शुभम्' न   सेवक   पीट   ढिंढोरा।

कहे न   मैं     हूँ     सेवक   तोरा।।

कर्मों   से    वह    देह     सजाता।

जन सेवक जग   में    कहलाता।।


●शुभमस्तु !


29.01.2024●11.30आ०मा०

शनिवार, 13 जनवरी 2024

प्रेम ● [चौपाई ]

 014/2024

                

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सकल   सृष्टि  में   प्रेम  पसारा।

बहती   जहाँ  सृजन  की  धारा।।

जीव, जंतु,   पशु,   पक्षी  न्यारे।

बने  प्रेम   के   रस     से   सारे।।


पति -पत्नी जग   के   नर-नारी।

सुमनित करते जग की क्यारी।।

प्रेम  धरा  का    अमृत    प्यारा।

बहती  ज्यों   गंगाजल    धारा।।


बढ़ती घृणा  नित्य  क्यों जाती?

प्रेम अंश  को   यहाँ   नसाती।।

प्रेम -  दान   से     प्रेम   बढ़ेगा।

मानवता  के   शिखर   चढ़ेगा।।


इजरायल हमास   क्यों  लड़ते?

क्यों न प्रेम का   पर्वत   चढ़ते??

खून खराबा   उचित   नहीं   है।

किसी ग्रंथ  में  नहीं   सही   है।।


कहाँ  पुतिन का  प्रेम  गया  है?

मरी हृदय  की   पूर्ण   दया है।।

प्रेम -   रीति  भारत   से सीखे।

पाक अंध को   प्रेम   न दीखे।।


राधाकृष्ण   प्रेम    के     राही।

बृज भर ने   गाथा  अवगाही।।

गोपी श्याम    प्रेम    से  भारी।

गूँजी कुंज गली   वन  क्यारी।।


प्रेम - वंशिका    कृष्ण  बजाई।

दौड़ी - दौड़ी    गोपी      धाई।।

नंद   यशोदा   देवकि     मैया।

दाऊ कृष्ण  प्रेम  रस    छैया।।


'शुभम्' प्रेम की   धार   बहाएँ।

घर -घर में  नित स्वर्ग  बसाएँ।।

बैर  छोड़  भारत   को  भर  दें।

प्रेम सुधा आप्लावित   कर  दें।।


● शुभमस्तु !


08.01.2024● 11.30 आ०मा०

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शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

श्री गणेश ● [ चौपाई ]

 003/2024

        

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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नए  वर्ष  की  शुभ  अगुआई।

विगत वर्ष  की  हुई   विदाई।।

श्री  गणेश की शुभता कर लें।

सँवर  न पाए  और  सँवर लें।।


करते  श्री गणेश   का  वंदन।

लगा  भाल पर टीका  चंदन।।

श्री गणेश जी विघ्न  विनासें।

भक्त गणों की  महकें  साँसें।।


करें काम तो विघ्न  न आएँ।

श्री गणेश हर  संकट  ढाएँ।।

श्री गणेश शिव गौरी   ढोटा।।

बूँदी - मोदक   खाते  मोटा।।


श्री  गणेश  जब  कोई  करना।

तनिक नहीं  विघ्नों से  डरना।।

भाव हृदय का शुभ ही रखना।

शुभ फल रसानंद ही चखना।।


श्री गणेश ने  यही  सिखाया।।

मात-पिता को श्रेष्ठ   बताया।।

परिक्रमा   कर   पहले  आए ।

धरती माँ  के  सम   बतलाए।।


सबसे    पहले     पूजे   जाते।

श्री गणेश सब दुःख   नसाते।।

जो न मान्यता   उनको   देता।

कदम -कदम पर संकट लेता।।


'शुभम्' नाम  है  श्री गणेश का।

नाम  न रहता शेष   क्लेश का।।

श्री  गणेश  का   दें   जयकारा।

लंबोदर    शुभ   लाभ   हमारा।। 


●शुभमस्तु !


01.01.2024●2.15प०मा०

सोमवार, 18 दिसंबर 2023

रजाई ● [ चौपाई ]

 543/2023

               

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● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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हुई  शरद   की सुखद  विदाई।

ऊपर    आई   गरम    रजाई।।

रंग - बिरंगे      कंबल     आए।

बढ़ा  शीत  वे     बड़े    सुहाए।।


कंबल तो बस कम बल होता।

तान रजाई जन - जन सोता।।

बालक - बूढ़े सब   नर- नारी।

ओढ़    रजाई     सोते  भारी।।


लाद   रजाई     सोता    कोई।

लगती   जैसे    ऊनी     लोई।।

है कपास   की  महिमा  न्यारी।

बनती  गरम    रजाई    प्यारी।।


धुन - धुन  रुई    तंतुवय भरता।

निर्मित  एक   रजाई    करता।।

बालक    लात   चलाते   भारी।

रुई  तोड़    कर   देते    ख्वारी।।


रुई   खोल   में   सिलवा  लेते।

टूटे    नहीं     बचा   यों    देते।।

एक   आवरण    सुंदर    प्यारा।

चढ़े   रजाई   पर    भी   न्यारा।।


गर्म    चाय    के    संग   रजाई।

लगती   है    सबको   सुखदाई।।

मूँगफली     जाड़े     की    मेवा।

तिल  की गज़क करे अति सेवा।।


छोड़     रजाई      बाहर    जाएँ।

मन  करता  उसका सुख  पाएँ।।

पर   बाहर  जाना    ही   पड़ता।

दैनिक काज   राह   में   अड़ता।।


●शूभमस्तु !


18.12.2023●9.00आ०मा०

सोमवार, 4 दिसंबर 2023

खेत ● [ चौपाई ]

 519/2023

              

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● © शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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समझें     खेत    देश   को  नेता।

फसल  काट निज घर भर लेता।।

पिछड़ी   या   गरीब   हो  जनता।

काम  वहीं   नेता   का    बनता।।


जितनी   बाड़     लगाते    भारी।

खेत  न बचता फसल   न सारी।।

घुसा    खेत    में   नेता     खाता।

आश्वासन     दे- दे     ललचाता।।


जब   चुनाव   की   आती  बारी।

आश्वासन    की    दौड़ें    लारी।।

जाकर     खेत      रेवड़ी    बाँटे।

वही   बाद    में     मारे     चाँटे।।


बँटती  सुरा    खेत  में    जाता।

नोटों    की     गड्डी    बँटवाता।।

भोला    मतदाता    लुट  जाए।

नेता     की    बातों  में    आए।।


माली   बन  कर  खेत   रखाएँ ।

मीठे  बनकर    उन्हें     रिझाएँ।।

 भाषण  से  क्या पकती  खेती?

उड़ती  है   गलियों    में    रेती।।


सभी  खेत के  मालिक  बनना।

एक  नहीं  नेता  की    सुनना।।

तभी  खेत अपना   यह   होगा।

वरन   लुटेगा  तन    से   चोगा।।


'शुभम्'   पढ़ाएँ संतति  अपनी।

खेत और खेती   हो   जितनी।।

स्वावलब    ही    एक    सहारा।

प्रगति  मिले    शिक्षा  के  द्वारा।।


●शुभमस्तु !


04.12.2023●9.00आ०मा०

सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

दुर्गा माँ ● [ चौपाई ]

 454/2023

           

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● © शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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 दुर्गा   माँ   मम  द्वार  पधारें।

बरसे कृपा   भक्त   को  तारें।। 

शारदीय  अति  पावन  वेला।

लगा भक्तगण का जन मेला।


माँ  दुर्गा  की    सिंह  सवारी।

सुमनों से खिलती वन क्यारी।

सद सुगंध की  ले कर माला।

द्वार खड़ा तव भक्त निराला।।


महिषासुर     निशुंभ   संहारे।

शुम्भ आदि दानव   भी मारे।।

देवलोक को निर्भय   करतीं।

दुर्गा माँ किससे कब डरतीं।।


रौद्र रूप तुम  दया मूर्ति माँ।

किससे दूँ माँ  की मैं उपमा।।

पर्वत     पुत्री    ब्रह्मचारिणी।

धन की देवी सौख्यकारिणी।।


मातु    शारदा  ज्ञानदायिनी।

अघ संहारक शम्भु कामिनी।।

कार्तिकेय  की  प्यारी माता।

शुभम् चरण युग शीश नवाता।।


दुर्गा  माँ    के    शुभ  नवराते। 

मंगल गान सभी  मिल गाते।।

नौ रूपों    में   आतीं   माता।

तव हर रूप भक्त को  भाता।।


माता का   दरबार   सजा  है।

कहते बनती  नहीं   धजा है।।

शतशः 'शुभम्'नमन करता है।

सत पथ को ही आचरता है।।


●शुभमस्तु !


16.10.2023◆ 2.45प०मा०

सोमवार, 18 सितंबर 2023

सखा ● [ चौपाई ]

 407/2023

   

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●©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सखा वही जिसके सँग खा लें।

भेदभाव कण भर क्यों पालें??

जहाँ  भेद की बाड़ लगाई।

मर जाती   है  वहीं सखाई।।


'स' से संगम  और 'खा' खाना।

बनता 'सखा' शब्द जो जाना।।

जाति न ऊँच -नीच का अंतर।

वही सखा मिलता  है दूभर।।


दुख - सुख का  होता नित संगी।

रक्षा   करते   ज्यों बजरंगी।।

अंतरंगता      ऐसी    प्यारी।

दुनिया  बन जाती है न्यारी।।


और न कोई    इतना   भाता।

जितना अपना सखा सुहाता।।

अवसर   आए  मौत   बचाए।

कभी -कभी निज प्राण गँवाए।।


सखा श्याम के ब्रज के ग्वाला।

सँग -सँग रहते संग निवाला।।

गाय   चराते    वन   में   सारे।

नाच  -  कूदते    संगी  प्यारे।।


माखन चोरी के नित साथी।

बनते घोड़े    चढ़ते    हाथी।।

मटकी एक सभी सँग खाते।

छूत न किंचित मन में लाते।।


अब के सखा  न ऐसे   कोई।

साथ न खाते  एक    रसोई।।

संग कृष्ण के सखा सुदामा।

राजा के   सँग फटता जामा।।


सखा-आगमन से सुख माना।

धो -धो चरण अमिय प्रभु जाना।।

मिले न ऐसी   कहीं    मिताई।

एक लवण तो   एक मिठाई।।


'शुभम्' सखा-संसार निराला।

बड़भागी को मिले उजाला।।

हितचिंतक   होते     वे अपने।

आज न ऐसे रिश्ते    टिकने।।


सखा मिलें ज्यों  रँग में  पानी।

है अतीत की अलग कहानी।।

परिवारों को    मिले सघनता।

सखा सखा के उर की सुनता।।


●शुभमस्तु !


उत्तम सृजन आदरणीय श्री 🌹🙏


18.09.2023◆5.15प०मा०

सोमवार, 14 अगस्त 2023

भारत ● [ चौपाई ]

 355/2023

             

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●© शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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मेरा   भारत   जग  में  न्यारा।

बहे  जहाँ  सुरसरि की धारा।।

गीता  के    संदेश    सुपावन।

हर मानव के हित में भावन।।


माधव , गर्मी,  पावस  आतीं।

शरद,शिशिर तब रँग बरसातीं।।

छठवीं   ऋतु  है   हेमंत सदा।

भारत वासी   भूलें   न कदा।।


उत्तर दिशि में हिमगिरि विशाल।

भारत का करता उच्च भाल।।

दक्षिण में सागर   पद पखार।

भारत माँ की   रक्षा -दिवार।।


तुलसी,   गंगा,  पीपल, गायें।

गायत्री ,  गीता     हैं    माएँ।।

भारत  में  पूजी    जाती    हैं।

उर  की कलिका मुस्काती हैं।।


 बहुभाषी    देश   हमारा  ये।

ब्रजभाषा  की    रसधारा ये।।

हैं खड़ी ,तमिल या गुजराती।

मैथिली, अवध की रसमाती।।


विजयादशमी शुभ दीवाली।

रक्षाबंधन, होली  -   ताली।।

भारत में उत्सव का  खुमार।

भरता जन-जन में नव बहार।।


कुछ   पाले   यहाँ  सपोले हैं।

कहने को   केवल   भोले हैं।।

कम नहीं  नेवले    यहाँ  बसे।

वे जान समझ लें कहाँ फँसे।।


हम शांति अहिंसा के पूजक।

मर्यादा     के   हैं    संपूरक।।

है  राम  कृष्ण की धरा यही।

संतों  से पावन   सदा  मही।।


बनकर भारत  के हम त्राता।

कर त्याग  समर्पण हे भ्राता।।

खंडित   होने   से   इसे बचा।

सब 'शुभम्' बचें इतिहास रचा।।


●शुभमस्तु !


14.08.2023◆11.00आ०मा०

सोमवार, 13 मार्च 2023

गुरु द्रोण- जन्मकथा🎯 [ चौपाई ]

 115/2023

 

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✍️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'  

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परी    घृताची    आई    गंगा।

गात सुघर शोभित अधनंगा।।

पा  एकांत  स्नान  की  जागी।

इच्छा, उर में  बन  अनुरागी।।


लगी  नहाने तट  पर  जाकर।

भरद्वाज ऋषि चौंकें मन भर।।

देख घृताची   को  मन मोहा।

क्षण में   ऊपर  से अवरोहा।।


मन्मथ ने मन को मथ डाला।

दूषित होती  वह  मृगछाला।।

ऋषि का वीर्य स्खलित होता।

जागा काम  रहा  जो  सोता।।


रखा   द्रोण   में वीर्य  सहेजा।

वृथा  नहीं कर   रेज़ा - रेज़ा।।

जन्मे फिर गुरु द्रोण उसी से।

भरद्वाज पितु  की  करनी से।।


थे गुरु द्रोण सु-प्रतिभाशाली।

निज कौशल से विद्या पा ली।।

धनुर्बाण   के   वे   गुरु ज्ञानी।

और नहीं   कोई   था  सानी।।


कौरव - पांडव  के गुरु नामी।

सभी द्रोण को कहें  नमामी।।

अर्जुन प्रियकर शिष्य तुम्हारा।

मार बाण   निकले जलधारा।।


🪴शुभमस्तु !


13.03.2023◆12.45प.मा.

मंगलवार, 10 जनवरी 2023

दुनिया 🌈 [ चौपाई ]

 17/2023

           

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✍️ शब्दकार ©

🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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रंग      -   रँगीली        दुनिया   सारी।

तरह -   तरह   की     खिलती क्यारी।।

वेला         खिलें        महकती  जूही।

कहीं      धतूरा           उगता   यूँ  ही।।


सुख  -    दुख  सबके   अपने - अपने।

देख     रही       दुनिया    बहु सपने।।

अलग     सभी       की  अपनी   राहें।

स्वार्थ -   पूर्ति    अपनी   सब     चाहें।।


संत         सु - धर्मी        पर उपकारी।

होते                  सबके     पीड़ाहारी।।

दानव          दया   न     ममता   जानें।

परपीड़ा       में       ही     सुख    मानें।।


नहीं           कुसंगति       कोई    पाए।

आजीवन       नर        क्यों पछताए।।

सदा         सुसंगति    हम   सब   पावें।

कर्ता    की      नित      महिमा   गावें।।


दुनिया    की         बातों       में    आता।

जीवन      भर       वह     नर  पछताता।।

अपनी         राहें            आप     बनाएँ।

श्रम      का    स्वेद       सदा   महकाएँ।।


दुनिया       की      हर     चाल   निराली।

गिरता         देख          बजाए   ताली।।

कौन       हितैषी      जान    न      पाएँ।

आस्तीन      के         साँप    न   लाएँ।।


'शुभम्'      आँख     दो  अपनी   खोलें।

तब      ही      वचन   किसी   से बोलें।।

दुनिया       जान       न    कोई    पाया।

सीमा      त्याग       इतर    जो    धाया।।


🪴शुभमस्तु !


09.01.2023◆7.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।

सोमवार, 21 नवंबर 2022

वासना 🌹🌹 [ चौपाई ]

 488/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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शुभंकरी   मनु  श्रद्धा  प्यारी।

पावनता   में   दुर्लभ   नारी।।

दो से नयन  चार  जब   होते।

नेह -  नदी   में  लगते   गोते।।


नहीं  आज सतयुग  उतराया।

कलयुग ने निज रंग दिखाया।

पंक-वासना  में जा   लिथड़ी।

श्रद्धा-तन की चिथड़ी टुकड़ी।


आफ़ताब   ऊबा   तब   डूबा।

किया कलंकित दिल्ली सूबा ।

हुई    वासना  उर   से   भारी।

खटकी   अंकशायिनी   नारी।


प्रेम   वासनामय     है   अंधा।

 भूला   निज   वादे   का   कंधा।।

चूम  देह-दृग  प्यार जिया था।

उसी  देह पर वार किया था।।


नशा वासना  का   जब ठंडा।

क्रोध  द्रोह  का  थामा डंडा।।

हने प्राण की   बोटी  -  बोटी।

पैंतीसों अति  छोटी -  छोटी।।


अंधकार  'सहजीवन'    तेरा।

स्थिर  होता    नहीं   बसेरा।।

कीचड़ तल वासना  सजाए।

दो पल पावन  प्यार न भाए।।


पशुओं से  भी  नीचे   मानव।

नर  देही  में   बनता   दानव।।

मात्र वासना  का नर  कीड़ा।

नहीं नयन उर में  लघु व्रीड़ा।।


'शुभम्' बुद्धि विकृत जो करता।

दहक  वासनानल  में मरता।।

साथ  नहीं विवेक  का छोड़ें।

दुष्य पंक   से नाता    जोड़ें।।


*दुष्य=बुराई नाशक।


🪴शुभमस्तु!


21.11.2022◆ 12.30 पतनम मार्तण्डस्य।



किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...