लकीर के फ़कीर होने के बहुत सारे लाभ हैं। बस किसी के अंधे भक्त बन जाओ। वह जिधर चले, उसके पीछे-पीछे चलने लगो। बराबर चलते रहो। ज़रूरत ही नहीं यह सोचने-समझने की कि किधर जाना है? क्यों जाना है? किसलिए जाना है? कहाँ तक जाना है? लौटकर आना भी है या नहीं, यदि लौटकर आना है तो कब तक? और नहीं भी लौटना है, तो क्यों नहीं लौटना, ये भी सोचने की जरूरत नहीं है। यदि सोचने-समझने में अपना ही दिमाग खपाना पड़ा, तो पीछे-पीछे चले ही क्यों ? इसीलिए तो कहा है: 'सबते भले वे मूढ़ जन, जिन्हें न व्यापे जगतगति।'
सुअर को तो हम सभी ने देखा ही है! बस सूअर-सोच से जीवन-यापन करो। न देह पर न दिमाग पर, कोई जिम्मा न बोझा। सब उन्हीं के ऊपर छोड़ दो, जिनके पीछे-पीछे चलने का बीड़ा हमने उठाया है। सुअर आराम से पंक-पलंगासीन होकर देश और दुनिया से पराँगमुख होकर हिलोर मारता रहता है। न ऊधो के लेने में न माधो के देने में।इच्छा हुई तो अल्पकाल के लिए बाहर आ गए, थोड़ी देर धूप खाई औऱ पुनः पूर्ववत ध्यानावस्था में लीन। लकीर के फ़कीर के दायित्व भी सीमित होते हैं। कहा गया कि हुक्का भर लाओ। हुक्का भर कर सौंप दिया।बात खत्म। कहा गया कि फलां जगह पर चार आदमी बैठे हैं, उन्हें ये अटैची पहुंचा के आओ। पहुँचा दी। ड्यूटी पूरी। आदेश हुआ कि ये झंडे बैनर आज रात में ही सारे नगर में लगाने, चस्पा करने हैं और विरोधियों के हटाने और नष्ट करने हैं। जो हुकुम मेरे आका, जिन्न की तरह एक रात में काम खत्म। इनको कहते हैं असली भक्त।भक्ति हो तो ऐसी! ये ही लोग असली लकीर के फ़कीर हैं।
दिमाग़ उनका, देह हमारी। इशारा उनका, हमारी कारगुजारी। वे पॉवर हाउस, हम कम्प्यूटर के माउस। उनका तख्ते ताउस, हम कालीन पे बिछे हुए मानुस। बैल के मूत्र की लकीर पर चलने वाले लोग। यही तो फैलाते हैं, सारे संक्रामक रोग।जातिवाद, वंशवाद, क्षेत्रवाद। इन्हीं के फैलाई हुई समाज में गाद।लकीर के फकीरों ने रैली-थैली को भारी -भरकम बनाया। चमचों से चंदा उगवाया। अरे! भई उसके बिना उजाला भी तो नहीं होता!ज्यों -ज्यों चंदा बढ़ता है, त्यों-त्यों प्रकाश सुधरता है। अमावस्या की समस्या से दूर भगता है।
लकीर के फकीरों की निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या का कारण ये है कि नौकरियाँ हैं नहीं, यदि हैं ही तो उनकी पात्रता के लिए चेक,जैक औऱ थोड़ी बहुत योग्यता तो चाहिए ही। ये कोई मंत्री पद तो है नहीं कि हाई स्कूल पास को केंद्रीय शिक्षा मंत्री बना दो। तेल बेचने वाले को पेट्रोलियम मंत्री के राजयोग से सम्मानित कर दो। बिना पैसे बिज़निस हो नहीं सकता। इसलिए सबसे अच्छा है कि लकीर के फ़कीर बनकर रह लिया जाए। हर्रा लगे न फ़िटकरी रंग चोखा ही आए! न दिमाग़ ही पिराये, देह मस्त मोटीआये! सब पूर्ण इच्छाएँ। वी आई पी कहलाएं।मक्खन लगायें, और मक्ख़न ही खाएँ। लक़ीर का फ़कीर बनने के बड़े -बड़े लाभ। मिलते हैं मौके पर बड़े-बड़े स्वाद। घूमो चाहे दिल्ली चाहे प्रयागराज।बस खुजानी है बार-बार एक ही खाज। सबसे बड़ी बात अपने होने पर नाज़। रखो अपने माथे पर उनके चरणों का ताज।लक़ीर के सब फकीरो! एक हो जाओ। बने रहो अंधानुगामी अपनी सँख्या बढ़ाओ।
💐 शुभमस्तु!
✍लेखक ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
सुअर को तो हम सभी ने देखा ही है! बस सूअर-सोच से जीवन-यापन करो। न देह पर न दिमाग पर, कोई जिम्मा न बोझा। सब उन्हीं के ऊपर छोड़ दो, जिनके पीछे-पीछे चलने का बीड़ा हमने उठाया है। सुअर आराम से पंक-पलंगासीन होकर देश और दुनिया से पराँगमुख होकर हिलोर मारता रहता है। न ऊधो के लेने में न माधो के देने में।इच्छा हुई तो अल्पकाल के लिए बाहर आ गए, थोड़ी देर धूप खाई औऱ पुनः पूर्ववत ध्यानावस्था में लीन। लकीर के फ़कीर के दायित्व भी सीमित होते हैं। कहा गया कि हुक्का भर लाओ। हुक्का भर कर सौंप दिया।बात खत्म। कहा गया कि फलां जगह पर चार आदमी बैठे हैं, उन्हें ये अटैची पहुंचा के आओ। पहुँचा दी। ड्यूटी पूरी। आदेश हुआ कि ये झंडे बैनर आज रात में ही सारे नगर में लगाने, चस्पा करने हैं और विरोधियों के हटाने और नष्ट करने हैं। जो हुकुम मेरे आका, जिन्न की तरह एक रात में काम खत्म। इनको कहते हैं असली भक्त।भक्ति हो तो ऐसी! ये ही लोग असली लकीर के फ़कीर हैं।
दिमाग़ उनका, देह हमारी। इशारा उनका, हमारी कारगुजारी। वे पॉवर हाउस, हम कम्प्यूटर के माउस। उनका तख्ते ताउस, हम कालीन पे बिछे हुए मानुस। बैल के मूत्र की लकीर पर चलने वाले लोग। यही तो फैलाते हैं, सारे संक्रामक रोग।जातिवाद, वंशवाद, क्षेत्रवाद। इन्हीं के फैलाई हुई समाज में गाद।लकीर के फकीरों ने रैली-थैली को भारी -भरकम बनाया। चमचों से चंदा उगवाया। अरे! भई उसके बिना उजाला भी तो नहीं होता!ज्यों -ज्यों चंदा बढ़ता है, त्यों-त्यों प्रकाश सुधरता है। अमावस्या की समस्या से दूर भगता है।
लकीर के फकीरों की निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या का कारण ये है कि नौकरियाँ हैं नहीं, यदि हैं ही तो उनकी पात्रता के लिए चेक,जैक औऱ थोड़ी बहुत योग्यता तो चाहिए ही। ये कोई मंत्री पद तो है नहीं कि हाई स्कूल पास को केंद्रीय शिक्षा मंत्री बना दो। तेल बेचने वाले को पेट्रोलियम मंत्री के राजयोग से सम्मानित कर दो। बिना पैसे बिज़निस हो नहीं सकता। इसलिए सबसे अच्छा है कि लकीर के फ़कीर बनकर रह लिया जाए। हर्रा लगे न फ़िटकरी रंग चोखा ही आए! न दिमाग़ ही पिराये, देह मस्त मोटीआये! सब पूर्ण इच्छाएँ। वी आई पी कहलाएं।मक्खन लगायें, और मक्ख़न ही खाएँ। लक़ीर का फ़कीर बनने के बड़े -बड़े लाभ। मिलते हैं मौके पर बड़े-बड़े स्वाद। घूमो चाहे दिल्ली चाहे प्रयागराज।बस खुजानी है बार-बार एक ही खाज। सबसे बड़ी बात अपने होने पर नाज़। रखो अपने माथे पर उनके चरणों का ताज।लक़ीर के सब फकीरो! एक हो जाओ। बने रहो अंधानुगामी अपनी सँख्या बढ़ाओ।
💐 शुभमस्तु!
✍लेखक ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'