222/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
दाना - पानी
यहीं मिले सब
फिर भी नहीं सुहाए भारत।
पौध यहाँ की
शूल बन गई
जाकर पार देश को धोखा
चुभते शूल
उगे डाली पर
चला यहीं गन फेंके खोखा
हवा दवा
पानी भी पीते
आँखों में चुभ जाए भारत।
हुक्का - पानी
बन्द हो गया
त्राहि -त्राहि क्यों तू चिल्लाए
जिससे जन्म
लिया है तूने
उसको ही नित आँख दिखाए
क्रूर जिदें
मन में ठानी हैं
चुटकी में गुम जाए भारत।
जीत यहाँ की
तुझे न भाती
मुख से तू जयहिंद न बोले
लगे पाक
तुझको जब प्यारा
नारे पाक प्रियलता खोले
मतलब नहीं
यहाँ से कोई
फिर क्योंकर चुभ जाए भारत।
शुभमस्तु!
30.04.2025● 2.15प०मा०
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