शुक्रवार, 29 मार्च 2024

हिंदी के काँटे [व्यंग्य]

 158/2024

             

©व्यंग्यकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

काँटे केवल पेड़ पर ही नहीं होते।यदि गुलाब के पौधे जैसे काँटे हों तो सहन भी किए जाएं,किंतु जिनका उद्देश्य केवल चुभना और केवल चुभना ही हो तो वे गुदगुदाएंगे नहीं। चुभेंगे ही।आज कवि और कवयित्रियाँ धुआँदार धुँआधार लेखन कर रहे हैं।हिंदी में काव्य और गद्य आदि लेखन की बाढ़ नहीं सुनामी आई हुई है और लोग हैं कि रातों रात कालिदास बन जाने की प्रतियोगिता  में दौड़ लगा रहे हैं।कुछ कछुए/कछुइयाँ खरगोशों से आगे निकल चुके हैं।और बेचारे खरगोश नीम के पेड़ की घनी छाँव में बैठे इत्मिन्नान से आराम फ़रमा रहे हैं कि उन्हें कोई जलदी नहीं। पहुंच ही जाएंगे, अभी कोई देर नहीं हुई है। किंतु वे देखते हैं कि कुछ कछुए और कुछ कछुइयाँ उनसे भी बहुत पहले गले में माला और कंधों पर शॉल सुशोभित किए हुए मुस्करा रहे हैं।

तथाकथित खरगोशों के द्वारा ऐसा कुछ धमाल किया जा रहा है कि ऐसा लिखो कि किसी के पल्ले न पड़े।सामने वाला शब्दकोष लेकर बैठे तब तक साहित्य की गाड़ी कहाँ से कहाँ जा पहुँचेगी। यहाँ कोई किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। बस सबको पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ जाना चाहता है।इसलिए दुरूह और अस्पष्ट लिखना ही वह सर्वश्रेष्ठ साहित्य का मानक मानता है।कुछ लोग तो स्वयं शब्दकोश लेकर ही बैठते हैं ,और उसमें से क्लिष्ट से क्लिष्ट शब्द खोजकर शब्दों के सीमेंट से चिपका देते हैं।उन्हें किसी पाठक से कोई मतलब नहीं है।उनकी दृष्टि में यही सर्वश्रेष्ठ साहित्य है। आज हँसगुल्लों के सम्मेलन कवि सम्मेलन के नाम से ख्याति प्राप्त करते हैं अथवा क्लिष्ट काव्य सृजेताओं के काव्य उच्च कोटि के साहित्य का सम्मान प्राप्त करते हैं।

विचारणीय है कि जब किसी रचना का भाव ही किसी पाठक/श्रोता की पहुँच से बाहर हो ,तो उसका औचित्य ही क्या है।ऐसे ही साहित्य को आजकल  वाहवाही भी खूब मिलती है और मिल भी रही है।कोई भी श्रोता से पूछने तो नहीं जा रहा है कि आप क्या समझे? ताली बजाने या वाह ! वाह!! करने में जाता भी क्या है ! यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो आपको निम्न स्तरीय श्रोता समझ लिए जाने का खतरा है।काँटों को फूल समझिए और सामने वाले को सराहिए। इससे आप प्रबुद्ध वर्ग में आगणित किए जाएँगे।

कंटक प्रेमी साहित्यकारों का प्रायः यही तर्क रहता है कि उनका साहित्य किसी आम ऐरे गैर नत्थू ख़ैरे के लिए नहीं है। बल्कि वह केवल प्रबुद्ध वर्ग के लिए है।यदि आप भी ऐसे ही प्रबुद्घ वर्ग में शामिल होना चाहते हों अथवा पहले से ही उसके समर्थक हों, तो फिर कहना ही क्या ?क्योंकि प्रबुद्ध होना किसी शॉल माला से कम नही।कोई यों ही थोड़े बन जाता है प्रबुद्ध ? किसी भी समाज में मूर्खों की तरह  'प्रबुद्धों' की संख्या भी अँगुलियों के पोरुओं पर गिनने योग्य ही होती है।अर्थात ऐसे लोग कम ही होते हैं। यदि आप सामान्य ही बने रह गए तो फिर आपका महत्त्व ही क्या रहा ! इसलिए कुछ खास बने रहने में ही आप साहित्यिक वर्ग के सितारे बनकर चमक सकते हैं।

फूलों से काँटों की ओर प्रस्थान की साहित्यिक यात्रा का गंतव्य अनिश्चित है।बस आप नेताओं की तरह अपने समर्थक पैदा कर लीजिए।आज का युग  बहुमत का है। बहुमत भले ही मूर्खों का हो ,चलेगा। बहुमत अवश्य होना चाहिए। किन्तु इस कंटक यात्रा में आप अकेले नहीं चल सकते।अकेला सो पिछेला।और पीछे भला कौन रहना चाहता है ! यह 'प्रबुद्धीय' दौड़ ही ऐसी है कि सबको अपने को 'स्पेशल' बनाकर उजाकर करना है।सामान्य से इतर होना ही इस दौड़ का लक्ष्य है।अरे भाई !आप कोई भेड़ के रेवड़ का हिस्सा थोड़े हैं,जो भेड़चाल से चलें !  आप तो उससे सर्वथा भिन्न एक 'विशिष्ट' शल्य पथ के राही हैं।

शुभमस्तु !

29.03.2024●10.15 आ०मा०

बुधवार, 27 मार्च 2024

बुरा नहीं कोई रंग [अतुकांतिका]

 156/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

   


बुरा नहीं कोई रंग

न काला न लाल,

बहता है रग-रग में एक

करे सुमन में कमाल,

काला भी अशुभ नहीं

रहस्य का तमरूप,

बुरी नजर से बचाता है

काम बेमिसाल।


रंग बिना दुनिया क्या

बहुरंगी ये संसार,

सबकी है पहचान अलग

तम या उजियार।


कहीं फूली सरसों पीत

कहीं महकता गुलाब,

यौवन का भी एक रंग

भर देता नई आब,

अपराजिता नीली सेत

कनेर पीली श्वेत

गुलाबी भी बोगनविलिया

सूरजमुखी नेक।


धतूरा भी कमतर क्यों

सेमल या पलाश,

गुलमोहर खिलखिलाए

वह देखो अमलतास।


दुनिया है रंग -रँगीली

करो मत उपहास,

सबको ही  'शुभम् 'मान दो

करना है प्रयास।



शुभमस्तु !


26.03.2024● 4.30प०मा०

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मंगलवार, 26 मार्च 2024

सबका अपना रंग [ गीत ]

 155/2024

           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


तरह - तरह के

रंग जगत के

सबका अपना रंग।


कोई नीला 

लाल गुलाबी 

काला पीला सेत।

हरा बैंजनी

धूसर कोई

कहीं रंग समवेत।।


कोई भी रँग

अपनाएं प्रिय 

हो न रंग में भंग।


रंग न होते

यदि दुनिया में

हो जाता बदहाल।

रंग हमारे

अभिज्ञान हैं

रंगों की ही ताल।।


जिसका कोई 

रंग नहीं है

नहीं किसी के संग।


होली दीवाली

का अपना 

अलग -अलग किरदार।

होली में रँग

बरसे मधुमय

उधर   दियों  का   प्यार।।


एक रंग

बदरंग सभी का

देख न होना दंग।


रंगों में बँट 

बिखर न जाएँ

होली का संदेश।

धर्म जाति 

संस्कृतियाँ जुड़कर

हो महान ये देश।।


रहें सभी मिल

भारतवासी

करें न जन को तंग।


शुभमस्तु !


26.03.2024●8.30आ०मा०

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सोमवार, 25 मार्च 2024

रंगोत्सव होली [ दोहा गीतिका ]

 154/2024

              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फ़ागुन    है   मनभावना, होली  का हुड़दंग।

भँवरे    मंडराने   लगे,   बजा   रहे   हैं   चंग।।


होरी  से  धनिया  कहे,  आ जाओ भरतार।

हम  तुम   होली  खेल  लें, बरसें सारे   रंग।।


भौजी इसका राज क्या,कसी कंचुकी लाल।

लगता यौवन ने किया, इसको इतना तंग।।


कोकिल  बोले  बाग में,    कुहू -कुहू के  बोल।

विरहिन   को  भाता  नहीं,तप उठते हैं   अंग।।


पीली  चादर  ओढ़कर , निकली धरती  आज। 

महुआ  महके   बाग  में,  भरता मधुर   उमंग।।


सेमल  लिए   गुलाल  की,लाल पोटली   एक।

मुस्काता  है  रात -दिन, बहे  प्रेम  रस    गंग।।


पिचकारी   क्यों  मौन हो,बैठे छिपकर   गेह। 

'शुभम्'   कहें   मधुमास  में,घूमें मस्त मलंग।।


शुभमस्तु !


25.03.2024●9.15 आ०मा०


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रंगोत्सव [ सजल ]

 153/2024

                    

समांत : अंग

पदांत : अपदांत

मात्राभार : 24.

मात्रा पतन:शून्य।


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फ़ागुन    है   मनभावना, होली  का हुड़दंग।

भँवरे    मंडराने   लगे,   बजा   रहे   हैं   चंग।।


होरी  से  धनिया  कहे,  आ जाओ भरतार।

हम  तुम   होली  खेल  लें, बरसें सारे   रंग।।


भौजी इसका राज क्या,कसी कंचुकी लाल।

लगता यौवन ने किया, इसको इतना तंग।।


कोकिल  बोले  बाग में,    कुहू -कुहू के  बोल।

विरहिन   को  भाता  नहीं,तप उठते हैं   अंग।।


पीली  चादर  ओढ़कर , निकली धरती  आज। 

महुआ  महके   बाग  में,  भरता मधुर   उमंग।।


सेमल  लिए   गुलाल  की,लाल पोटली   एक।

मुस्काता  है  रात -दिन, बहे  प्रेम  रस    गंग।।


पिचकारी   क्यों  मौन हो,बैठे छिपकर   गेह। 

'शुभम्'   कहें   मधुमास  में,घूमें मस्त मलंग।।


शुभमस्तु !


25.03.2024●9.15 आ०मा०


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शुभम् कहें जोगीरा:50 [जोगीरा ]

 152/2024

        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चार  गधे   मिलकर   घूरे पर,चरते सूखी  घास।

तानाशाह  सोचता  मन  में, उड़ा  रहे उपहास।।

जोगीरा सारा रा रा रा


करे  नहीं विश्वास  किसी पर,लगें सभी  षड्यंत्र।

आपस में ये  सभी गधे मिल,पढ़ें विरोधी    मंत्र।।

जोगीरा सारा रा रा रा


एकछत्र   साम्राज्य    चाहता,वन में खूनी     शेर।

सबके  प्रति  शंका  ही उपजे,खाता क्यों वह बेर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


अन्य  जीव  को   तड़पाने  में, लेता वह   आनंद।

बुनता  वह प्रायः  रहता  है, उलटे-पुलटे   फंद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शांति  एक  पल  नहीं  सुहाती, तानाशाही   सोच।

देख  दुखी  जनता को अपनी,जन्म न  लेती  लोच।।

जोगीरा सारा रा रा रा


धृतराष्ट्रों    की अंधी   आँखें,देखें महा   विनाश।

देश रसातल  में वह जाता,मिटता पूर्ण   प्रकाश।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा चेतन,करना उसका काम।

भला सुखद हो जीव मात्र का,रक्षक हैं  श्रीराम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


24.03.2024●6.45आ०मा०

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शुभम कहें जोगीरा :49 [जोगीरा ]

 151/2024

     


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जंगल में   चुनाव  का  डंका, बजने लगा  अबाध।

कोई  भी ले  टिकट लड़ सके ,किए भले अपराध।।

जोगीरा सारा रा रा रा


एक नहीं  दो चार सीट से,लड़ने की है  छूट।

जैसे भी  हो  सीट जीतना,करो भले ही  लूट।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जिसके  आगे- पीछे  चलते,गुंडे यदि दस  बीस।

बड़ा    वही    कहलाए  नेता, रहे  नहीं    उन्नीस।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बंदर गधा और  हाथी   ने,  पर्चा  भरा   निशंक।

शेर सिंह   के  आगे    चीता, करे नहीं  आतंक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


नामांकन  हो  रहे  धड़ाधड़,चूहा बिल्ली  साथ।

मौन खड़े खरगोश बराबर,गिद्ध झुकाए माथ।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


हेंचू - हेंचू  गर्दभ बोला,  पालन कर  आचार।

रहें  संहिता  की   सीमा  में, तब हो बेड़ा पार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें  जोगीरा जंगल, बदलेगा अब  राज।

कागा  नहीं   चुगेगा   मोती, हंसराज आगाज।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


23.03.2024●9.15प०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा :48 [जोगीरा ]

 150/2024

     


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


डिप्टी   साब  गए  विद्यालय,पूछा एक   सवाल।

नेता की परिभाषा क्या है,बतलाओ सब  हाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बच्चे बोले  विगत  जन्म में,होता गिरगिट   रूप।

मानव देह मिले जब उसको,पिए सियासत-सूप।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मोह   न करता कभी एक से,बदले पाला  रोज।

कुर्सी में ही प्राण बसाता,चमके मुख पर  ओज।।

जोगीरा सारा रा रा रा


आगे- पीछे    गुर्गा   उसके, रहते  हैं दो -  चार।

तेल  लगाते  बाँस  चढ़ाते,करें उसी अनुसार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


नेता  का  विश्वास  न  करना,मार धड़े    मैदान।

अपनी  शेर  रखे  सब  बातें,गाए जनगण गान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बेपेंदी  का  लोटा समझो,कब लुढ़के किस   ओर।

बाप न उसका एक कभी हो,लेता जिया हिलोर।।


'शुभम्' कहें जोगीरा औघड़,है सामान्य  न जीव।

दर्शन  भी  उसके  दुर्लभ   हैं,   घूरे  में    है  नीव।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !

23.03.2024●8.00प०मा०

शुभम् कहें जोगीरा:47 [जोगीरा ]

 149/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


घूरे  के  भी  दिन   फिरते हैं, बारह वर्षों  बाद।

बड़ी  कृपा  की जो नेताजी,आई है अब  याद।।

जोगीरा सारा रा रा रा रा


घूरे   से तो  अच्छे  हो  तुम, सफल गिरगिटानंद।

गर्दभ-विचरण  हो घूरे  पर, पढ़ो सियासत-छंद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मरा आँख  का पानी सारा,फिर भी माँगो  वोट।

लंबी - चौड़ी  बातें  करते,दिखलाते हो    नोट।।

जोगीरा सारा रा रा रा


देना  ही  तो गधा हमें दो,लाकर केवल  एक।

बूढ़ा  गधा  हमारा  है  ये,काम न करता नेक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


लौटे  बिना  साथ में लाए, एक गधा   भी    नेक।

बोले  मिलता  एक  लाख  में,किया हाट में चैक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


गधा बराबर    मोल न मेरा,समझा है क्या   मूढ़?

जाओ  अपनी  राह  यहाँ  से,यहाँ न बसते कूढ़।।


'शुभम्' कहें जोगीरा  फसली,नेता खिसके  द्वार।

मत भी   एक  खरीद  न पाए ,  बंद हुए   उद्गार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


23.03.2024●7.00आ०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:46 [जोगीरा ]

 148/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


एक  नहीं    बहुतेरे  रँग  हैं,होली के इस    साल।

कुछ गुजिया कुछ रँग गुलाल हैं, मतमंगे   बेहाल ।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


किसका  रंग  जमे होली में,कौन जा रहा  जेल।

किसके  बाँट  बटखरे  किससे, कर बैठेंगे  मेल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


दिन में झंडा  एक  रंग का,सुबह और   ही  रंग।

बेपेंदी   के   लोटे  लुढ़कें,  चलें और के    संग।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जोड़ - तोड़ का खेल सियासत, जानकार का खेल।

कुर्सी  देवी   की चाहत है,मेल  या  कि    फीमेल।। 

जोगीरा सारा रा रा


घुटे  हुए  तिकड़म  से  अपनी,बना सकें शुभ गैल।

सिद्ध   कर रहे  पैसा  दौलत, है  हाथों का    मैल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


नहीं सियासत सबके वश की, खिलंदड़ों की जीत।

तिकड़म  से  ही  हो  पाती है,कुर्सी अपनी   मीत।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें  जोगीरा देशी,करना मत    विश्वास।

नेता होता  नहीं  बाप  का,करता नहीं   उजास।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


23.03.2024●5.45प०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:45 [जोगीरा ]

 147/2024

        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अब तो  निकल पड़े नेताजी,अपने मन में ठान।

बने हुए   मतमंगे   सपने , पाले   भर मुस्कान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


पीछे     पूँछ  सोहती  लंबी, बड़ी बुलेरो    कार।

एक नहीं दस बीस दौड़तीं,करतीं धुआँ  धुँआर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


रुका  एक  बरगद  के  नीचे,  कार-काफिला   घेर।

निकल पड़े  कुछ  टोपीधारी, किए बिना कुछ देर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


टोपी रख  बाबा  की  पदरज, माँग रहे  आशीष।

आड़े हाथ  लिया  बाबा ने,  मुखर दिखाई  रीष।।

जोगीरा सारा रा रा रा


अब  आए  हो  पाँच  साल में,फैलाए निज हाथ।

सड़कें कच्ची मिले न बिजली,दिया न हमको साथ।

जोगीरा सारा रा रा रा


संसद से कब फुर्सत मिलती,जो आते  तुम गाँव।

मतलब  पड़ा  चले आए तुम,अब छूते   हो पाँव??

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें  जोगीरा नेता,बोल न पाया  बोल।

जूते जैसा  पड़ा  चाँद  पर,लगा  हुआ   भूडोल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


23.03.2024●5.15प०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:44 [जोगीरा ]

 146/2023

         

 

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बिना  अनरसे  गुझिया  पापड़,क्या होली त्यौहार।

साली  जीजाजी से बोली,कर   लो आ   ज्यौनार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जीजा कहें शहद भर वाणी,गुझिया का  है चाव।

किंतु अकेले में  शुभ  गुझिया ,देती है   सदभाव।।

जोगीरा सारा रा रा रा


पकड़े गए संग  गुझिया  के, पड़ें शीश बेभाव।

सहलाते हम फिरें रात-दिन,पड़ना मँहगा चाव।।

जोगीरा सारा रा रा रा


इतना  साहस तो  अपना  ही,जीजू रखते आप।

कैसे कायर   हो  जीजाजी,हम दोनों की   माप।।

जोगीरा सारा रा रा रा


धनिया के पौधे  पर हमको,नहीं चढ़ाओ   आप।

बस हमको इतना डर लगता,हो न हाथ से पाप।।

जोगीरा सारा रा रा रा


उठा    हाथ  में रंग  गुलाबी,सँग में लाल  गुलाल।

पोत दिया जीजा जी के मुख,करती बड़ा धमाल।।


'शुभम्' कहें जोगीरा होली,पिचकारी की धार।

साली ने जीजा पर मारी,   मर्यादा अनुसार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


23.03.2024●4.30प०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:43 [जोगीरा ]

 145/2024

          


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आड़ खोजकर चतुर आदमी,करता कर्म  'महान'।

शोध   करें  तो  मिलें  हजारों, देखा सकल जहान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कौन श्रेष्ठ है कौन  निम्नतम,नहीं मापना    ठीक।

जब जैसी भी जुगत  भिड़े वह,सबसे उत्तम नीक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


आड़ धर्म  की जिसके नीचे,झुक जाते जन श्रेष्ठ।

कहते लोग श्रेष्ठतम होती,अन्य सभी में   ज्येष्ठ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


धर्म  नाम  है इतना पावन,गोबर भी हो  शुद्ध।

गंगाजल  की  अंजुलि भर से,बुद्धू होते बुद्ध।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


ना ना ना ना धर्म - कर्म में, सोचें बुरी न   बात।

भाव  नकारों  के  मत  लाएँ,हो जाए अपघात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


धर्म  भीरुता  मंत्र  अनौखा, डरता जन - जन  धीर।

सोचा  यदि   विपरीत  दिशा में,होंगे फल   गंभीर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा बिदको, मत हे धीर  सुजान।

आड़  ढूँढ़  लो  तुम भी कोई, बच पाएँ तब प्रान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


23.03.2024●7.00आ०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:42 [जोगीरा ]

 144/2024

           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्


भ्रष्टाचार     जहाँ  रग - रग   में, सुधरे कैसे   देश।

नित्य  तरीके  नए  खोजते, बदल -बदल कर वेश।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जिसकी  पूँछ  उठाई  निकला,वह मादा  अवतार।

है    कोई   जो  कहे शान  से, दूध धुला   मैं  यार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


तरह-तरह की जुगत भिड़ाते,विविध रंग   पर्याय।

सुविधा शुल्क कहीं वह होता,कहीं ऊपरी आय।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बिना  कमीशन काम  न होता,बनें भवन या    रोड।

फिक्स इशारों में सब करते,बदल-बदल कर मोड।।

जोगीरा सारा रा रा रा


रिश्वत  शब्द  शब्दकोशों की,बढ़ा रहा है शान।

रिश्वत  मैं  लेता  या  देता, कहने  में अपमान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


रीढ़   भ्रष्टता  से  परिपूरित,   नेता हो   या दास।

रक्त छानना  हुआ असंभव,तन- मन में है वास।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


'शुभम्' कहें जोगीरा जन-जन,गूँज रही   है    टेक।

क्रय-विक्रय  कचहरी  सभी   में,  हैं उत्कोची नेक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


23.03.2024● 6.15आ०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:41 [जोगीरा ]

 143/2024

        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


संकर बीज  आदमी  संकर,संकर सुसमाचार।

संकर  कृषि वरदान रोग की,बढ़ती पैदावार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


पैसे  की  खातिर फुड़वा ले,मानुस अपनी  आँख।

संकर  वर्ण संकरी  जिंसें, उड़े बिना ही  पाँख।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शंकर नहीं  हिमालय  वासी, पालें नंदी   भूत।

खेत-खेत दूकान सुसज्जित,संकर ही आहूत।।

जोगीरा सारा रा रा रा


संकर धनिया हलदी  मिर्चें, संकर दूध  पनीर।

गाय भैंस की नहीं जरूरत,कैमीकल की   भीर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मरने  पर  रोने  वाले भी ,मिल जाते अब  नित्य।

सब कुछ रेडीमेड मिलेगा,सिद्ध करें औचित्य।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शिक्षक छात्र  विश्वविद्यालय,संकर का बाजार।

सजा हुआ है कुछ भी ले लो,संकर की भरमार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा संकर,संकर अब अनिवार्य।

बिना पढ़े  संकर  डिग्री  भी,बन जाएं   आचार्य।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


22.03.2024●9.45प०मा०

शुभम् कहें जोगीरा:40 [जोगीरा ]

 142/2024

          

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


नाते   के   ताने   दुश्मन  हैं, कर देखें प्रतिलोम।

ताने देने  में  अति  कुशला,नारी  का हर    रोम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


पति को  पत्नी  नहीं बख्सती,तानों की  बौछार।

करती ही  प्रायः  रहती है,पति पर तीखे   वार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


घायल होता  हृदय पुरुष का,सहता वह  मजबूर।

खानी   है  हाथों  की रोटी,रह न सके  मगरूर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बात यही घर - घर की सच्ची,जा देखो  घर  बीच।

इस  घर  में  या  उस घर में जा,यही मिलेगी कीच।।

जोगीरा सारा रा रा रा


नहीं  जीभ  पर जिसे नियंत्रण,कहती चुभती बात।

सहन हो न हो ताना उसका,लगे किसी को घात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


आगा  पीछा  नहीं  सोचना, तिरिया तप्त  चरित्र।

बदल सके जब नहीं  विधाता,छिड़को चाहे इत्र ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें  जोगीरा तिरिया,मानें या मत मान।

नारी का ताना कु-अस्त्र है,लो जितना भी तान।।


शुभमस्तु !

22.03.2024● 9.15प०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:39 [जोगीरा ]

 141/2024

        

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


दुनिया  आगे बहुत बढ़ गई,करना पड़े न काम।

मिले बिना पैसे में सब कुछ,लगे न ठंडी  घाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


देह    बहाए    नहीं   पसीना,  भोज मलाईदार।

तनिक न हाथ पाँव भी झूलें,कृपा करें करतार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सबक  सीखता मधुमक्खी से,नहीं आज  इंसान।

छप्पर  फ़टे और  मिल जाए,कर दे कोई   दान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


अपना    उल्लू  सीधा  करना,प्रायः यही     उसूल।

जैसे भी हो सिद्ध काम निज,कभी न जाते   भूल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


परजीवी  बन   लहू   चूसना,  इसमें परमानंद।

लेबल  बने  हुए  पर अपना, चिपकाना  निर्द्वंद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


यहाँ न कोई अपना शुभदा,सब मतलब  के यार।

पैसे   बिना  न पूछे  कोई, हो  विद्वान    हजार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा संप्रति, सब चूल्हों  की एक।

माटी  सदृश  वही  मिलेगी, सोचो यह   सविवेक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


22.03.2024● 8.45प०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:38 [जोगीरा ]

 140/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


टाँग  फ़टे  में  जिन्हें फाँसने,का होता   है  शौक।

करनी देख न अचरज करना,और न जाना चौंक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जिन्हें  सताने  में ही जन को,मिलता परमानंद।

दुखी देखकर हर्षित  होते, दुखपालक  आसंद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मानव  के  तन  में ही निर्मित,गीदड़ गर्दभ  शेर।

चूहा बिल्ली कछुआ मिलते,सब कर्मों का फेर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


संस्कार  मरते  न  जीव के, मरती केवल  देह।

योनि- योनि में हुए  अंतरित,तदवत बदले   गेह।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


फेर बड़ा है सूक्ष्म जीव का,कुल चौरासी  लाख।

यात्रा-पथ पर चलता रहता,बनती मिटती  साख।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सबसे अहं   कर्म  पथ तेरा, उसे न जाना  भूल।

सीढ़ी दर  सीढ़ी  चढ़ता जा,या मिल जाए   धूल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'  कहें  जोगीरा  तेरे, क्षमा न तुझको  लेश।

आती है जब  मीच एक  दिन,उठा घसीटे   केश।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


22.03.2024●4.45प०मा०

                    ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:37 [जोगीरा ]

 139/2024

       

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


देखी  झाँक न ग्रीवा  अपनी,कैसा चरित महान।

अँगुली  तान  दूसरों पर ही, इंगित किए निशान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


वसनों  के  नीचे  ढँक   लेते, अपने सारे  दोष।

दिखलाते  औरों की गलती,ऑंखों में भर रोष।।

जोगीरा सारा रा रा रा


दूध    दही    के   दरिया   बहते,नेता  करें   नहान।

धुली न अब तक मन की कालिख,कारागार प्रमान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सदा  पटखनी देने की ही, विकृत जिनकी सोच।

कैसे करें  सशक्त  राष्ट्र  को, नित्य बनाते  पोच।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जिनके    बलबूते  पर जीता, मेरा देश    महान।

देशभक्ति  उनमें न  लेश भर,साँसत में हैं जान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


दलबंदी  का  दलदल  काला,  मामा वे   मारीच ।

कपड़ों  के  नीचे  आरक्षित,रहती जब तक मीच।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'  कहें   जोगीरा  दर्पण,देखें नेता  झाँक।

भरी  मिलेंगीं  दुर्गंधें  ही,   केवल काली   पाँक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


22.03.2024●7.15आ०मा०

                   ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:36 [जोगीरा ]

 138/2024

          


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


ख्यात जलाने  का  व्यसनी है,मेरा भारत   देश।

जलता कोई बिना आग  के,रहित शीश के केश।।

जोगीरा सारा रा रा


एक  पड़ौसी निकट पड़ौसी, से जल होता खाक।

लपट न कहीं धुआँ ही उठता,ऊँची करता नाक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जलता नहीं  जलाया जाता,रावण भी प्रतिवर्ष।

लोग चीखते ताली  पीटें,  सहज मनाते   हर्ष।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बुआ   होलिका  अंक उठाए, भ्राता- सुत  प्रह्लाद।

फ़ागुन के पूनम को आती,ज्वलन दिवस की याद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


करके   भीड़     इकट्ठी  भारी,उसे जलाते     लोग।

पता न जिनको इस करतब का,किंतु रूढ़ि का रोग।

जोगीरा सारा रा रा रा


पुतिन  जलाए   यूक्रेनों   को,   कैसा अत्याचार।

इजराइल हमास की ज्वाला,जलती है  हर  वार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'  कहें जोगीरा ज्वाला,शीतल कहीं  ज्वलंत।

नाम अन्य का  मिटा  रहे हैं, कभी  न होंग      संत।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


21.03.2024● 10.30प०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:35 [जोगीरा ]

 137/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


'सम्मानों ' की   रेवड़ियाँ  हैं,  ले   लो रचनाकार।

बाँट रहे  हैं  अति सम्मानित,चिह्न सहित उपहार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शॉल नारियल साथ मिलेगा,गले फूल  का  हार।

नाम  छपेगा  अखबारों  में,नर हो या हो   नार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


छंदबद्ध  या मुक्त छंद हो,या कविता अतुकांत।

पूरा - पूरा मान  मिलेगा, मन में रहें न   भ्रांत।।

जोगीरा सारा रा रा रा


अवसर किसे तुम्हें जो परखे,स्वर्ण कसौटी  मीत।

इतनी केवल गाँठ बाँध लो,तुम्हें मिलेगी   जीत।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बड़े - बड़े  भाषा   विज्ञानी, बन  जाते   खरगोश।

कछुआ  आए  प्रथम दौड़ में,सजग रखे जो होश।।

जोगीरा सारा रा रा रा


थोड़ा  तेल    लगाना  सीखो,  थोड़े मक्खनबाज।

क्या कारण  जो नहीं सजेगा,शीश तुम्हारे  ताज।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा कविवर,पड़े न कैसे   घास!

तुम्हें  सीखना  होगा प्यारे,खाना बिना    उपास।।

जोगीरा  सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


21.03.2024 ●8.45प०मा०

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गुरुवार, 21 मार्च 2024

शुभम् कहें जोगीरा:34 [जोगीरा ]

 136/2024

        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


किसका दिल कितना काला है,अंदर की ये बात।

अपना उल्लू  सीधा  करने,  करे बड़े अपघात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


दर्पण होता दिल मानव का,दिखलाता सत् चित्र।

पैसा ही माँ बाप मनुज का,तृण भर नहीं पवित्र।।

जोगीरा सारा रा रा रा


धोखे  से ही  पैदा होता,धोखा ही माँ बाप।

धोखे  से  ही देह छोड़ता,यही उसे अभिशाप।।

जोगीरा सारा रा रा रा


नर मुख की बाहरी बनावट,हो सकती  है  झूठ।

कब  कैसा  वह रंग दिखाए,बंद न कहती मूठ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


आजीवन नारी का आँचल,नर का साया   एक।

बतला दे किसको न चाहिए,अपने सहित विवेक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा जन-जन, मन से  है  बीमार।

अंधकार  ही प्रिय निवास है,वही मात्र  परिवार।।

जोगीरा सारा रा रा रा

               

शुभमस्तु !

21.03.2024●3.15प०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:33 [जोगीरा ]

 135/2024

        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बद  अच्छा  बदनाम  बुरा  है,  जैसे महिषी गाय।

महिषी  रानी  भैंस  हो गई,गौ मानव की   माय।।

जोगीरा सारा रा रा रा


अहसानों का जो न चुकाए,बदला वह नर हीन।

दूध भैंस का पी आजीवन,बनता मनुज प्रवीन।।

जोगीरा सारा रा रा रा


गैया   को  मैया   की  पदवी, रही उपेक्षित  भैंस।

बकरी भेड़ ऊँटनी का भी,पिया दूध हो   फैंस।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कहा  गाय  को माता जी तो,पिता  तुम्हारा  साँड़।

महिषी माता को क्यों  भूला,शीघ्र बता दे भाँड़।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


तन  समाजवादी  का झंडा,विडंबना के   बोझ।

तू लकीर का बस फकीर है,भरने का बस ओझ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


भेदभाव  की  रीति  तुम्हारी,नीति न कोई    एक।

जिसकी लाठी भैंस उसी की,जाग्रत नहीं  विवेक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें  जोगीरा  साँचे, साँचे में भर  बात।

दूध  भैंस का पी आजीवन,कहे गाय को  मात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


21.03.2024●2.15प०मा०

शुभम् कहें जोगीरा :32 [जोगीरा ]

 134/2024

       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


विफल वफादारी  में  मानव,जब हो गया  अमित्र।

दिखा तभी  यह श्वान हमारा, सबसे शुद्ध  चरित्र।।

जोगीरा सारा रा रा रा


स्वागत अभिनंदन लिखते थे,पट्ट लगा  निज द्वार।

'रहें श्वान से सावधान'  अब,आवें निज   अनुसार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


श्वानों  का  जब  मोल  बढ़ा  तो,पूछे नर को  कौन।

श्वान   कार डनलप  में रहते, संविधान   है   मौन।।

जोगीरा सारा रा रा रा


लगा समर्थन करने अपना,भाग्यवाद का  रूल।

जिसका जैसा भाग्य लिखा है,वैसा बना उसूल।।

जोगीरा  सारा रा रा रा


दूध  मलाई   रबड़ी    खाएँ,  नाटे तगड़े   श्वान।

मानव के शिशु तरस रहे हैं,नहीं दुग्ध का पान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


श्वान आदमी   को   टहलाता, या इसके   विपरीत।

सुबह सड़क पर देख सको तो,देखो जग की नीत।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'  कहें जोगीरा  कूकर, का बढ़िया  विश्वास।

व्यसन नहीं पाला है उसने, दारू गुटका   खास।।

जोगीरा सारा रा रा


21.03.2024●12.00मध्याह्न

शुभम् कहें जोगीरा:31 [जोगीरा ]

 133/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


तन रँगने  में क्या है गोरी,रँग ले मन को  आज।

तन तो धुल जाए पानी में,कर मन को रँग नाज।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मन  रँगना  सिखलाए होली,वर्ष वर्ष की    बात।

रँगरसिया  का  नाम जगत में,जगती की सौगात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


रँगता  कोई  राम भजन  में,कोई तिय   भुजबंध।

कोई धन की बाँध  पोटली,बना हुआ नित अंध।।

जोगीरा सारा रा रा रा


देश भक्त सीमा पर शोभित,रक्षक माँ का  लाल।

चमकाए शुभ नाम पिता का,माँ को करे निहाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कोई बन  कर  जौंक चूसता,सोना चाँदी  धान्य।

कहता मैं नेता तुम सबका,करो  मुझे ही मान्य।।

जोगीरा सारा रा रा


कृषक  बहाता श्रमज पसीना,फिर भी भूखा पेट।

अन्न शाक  फल दूध दे  रहा, करें बहुत   से  हेट।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा रंगीं, होली  तो है  नित्य।

रँग  जा  बंदे  प्रेम  रंग में, सिद्ध करे औचित्य।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


21.03.2024●11.30आ०मा०

                   ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:30 [जोगीरा ]

 132/2024

         

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


गुलमोहर ने अमलतास के,कानों में की  बात।

पीली  लाल  चादरें लेकर, दें मधु की सौगात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


ऋतुओं का राजा कुसुमाकर,छाया है  चहुँ  ओर।

स्वागत  में  गाते  हैं  भँवरे, दिन भर संध्या  भोर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


अरहर रह-रह कटि मटकाती,चना नाचते  जी  भर।

नीले फूल मटर के रिमझिम,जपते रहते हर- हर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सरसों  के  फूलों  से  चूसे, मधुमक्खी रस खूब।

तितली उड़ती फिरे मगन मन,हरी बिछलती दूब।।

जोगीरा सारा रा रा रा


टेसू का तो कहना ही क्या,उदित वनों  के  भाग।

सघन लालिमा की पिचकारी,छेड़ रही शुभ राग।।

जोगीरा सारा रा रा रा


आधी रात महकते महुआ,गमक उठा वन गाँव।

कसर  न  कोई  शेष रहेगी,लगा रहे निज  दाँव।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा कुसुमित,सरसों लिए पराग।

ओढ़े  पीली  हरी  चुनरिया ,  लगा न कोई दाग।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


21.03.2024●9.30आ०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:29 [जोगीरा ]

 131/2024

          


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आस्तीन  में  पाल  लिए   हैं,जो जहरीले  साँप।

जहर उगलने  लगे रात-दिन,हमीं लगे  हैं  काँप।।

जोगीरा सारा रा रा रा


दूध पिलाते भर-भर लोटे,समझ लिया अधिकार।

प्रेम भाव से पाला जी भर,हमको ही दें    मार??

जोगीरा सारा रा रा रा


जितना   जहर  नहीं नागों में,नंगों में वह    देख।

भाव बदलने  लगे  हृदय के,कहते हैं अभिलेख।।

जोगीरा सारा रा रा रा


होता  उचित   श्वान  ही पालें,भैंस दुधारू   गाय।

सिर केऊपर निकला पानी,क्या अब शेष उपाय??

जोगीरा सारा रा रा रा


हृदयहीन   के  लिए  नहीं  हैं,दया प्रेम   सद्भाव।

अपना पालित   घात  लगाकर, देता गहरे  घाव।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मानव तन में  हिंस्र नाग ये, लिया आज  पहचान।

अब तो इनसे उचित दूरियाँ,रखना सकल जहान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'  कहें जोगीरा असली,कर्कट रोग   विनाश।

अब तो है अनिवार्य सदा को,दें न दुग्ध का प्राश।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !

21.03.2024 ●8.15आ०मा०

शुभम् कहें जोगीरा:28 [जोगीरा ]

 130/2024

           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बाबापंती  नेताओं  की  ,  बढ़ीं  देश में    खान।

बचपन में ही मुकुलित होते,शीघ्र बने पहचान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बापू  राम रहीम  बहुत से, राधे   माँ के   नाम।

लाल सुर्खियों में  छाए हैं, छवि निखारता काम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


संतति  पढ़ती  लिखी  नहीं जो,बने गेरुआ संत।

कामतंत्र  में  हो  पारंगत,  करे  धर्म का  अंत।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बन  जाते  कुछ  नेता  करके, छल बल  अत्याचार।

तेल  लगाकर  बड़भइयों  को, कोरे लट्ठ     गँवार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


राम  पाल  नारायण  साईं,   जैसे बहु  प्रतिदर्श।

बना  रहे  हैं  लीक नेह की,कर - कर के  संघर्ष।।

जोगीरा सारा रा रा रा


चारा  क्या  वे देश  खा  रहे, सड़कें पुल  मीनार।

दूध  धुले   वे   रहें सदा ही,देशभक्ति के    द्वार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'    कहें   जोगीरा  देशी, नेता संत   जमीर।

जन्म-जन्म तक अमर रहेगा,सुन लें  आज बधीर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


20.03.2024●8.30प०मा०

शुभम् कहें जोगीरा:27 [ जोगीरा ]

 129/2024

       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अलग-अलग भगवान सभी के,खास और जन आम

द्वार  अलग  हैं  दर्शन के हित, देवालय  या   धाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


वी आइ पी को पश्च द्वार से, हो शुभ दर्शन श्रेष्ठ।

रँगे  पुजारी  पंडे  धन ले, उन्हें  बनाते    ज्येष्ठ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


लोकतंत्र  में सभी  बराबर, कहने भर  की  बात।

जातिवाद को   धर्म  बढ़ाए,देखें जात   अजात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


नेता अभिनेता अभिनेत्री,मनुज नहीं सामान्य।

इनके हैं भगवान अलग ही,करें देव को धन्य।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बेचारे   भगवान   हमारे,   हैं    गरीब लाचार।

करें  प्रतीक्षा बड़े दान  की,पिछले मंदिर -द्वार।।

जोगीरा  सारा रा रा रा


निर्धन और अमीर यहाँ  के,अलग -अलग दो जात।

भाव  पूछता  कौन  यहाँ पर,सब पैसे  की  बात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा भाविल, देवालय का द्वार।

बने एक ही सबके हित में,तब हो जन उद्धार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


20.03.2024●6.15प०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:26 [जोगीरा ]

 128/2024

        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मंदिर    के अंदर  जा    पहुँचे, जूते रखे   उतार।

खड़े   सामने  इष्टदेव  के,ध्यान लगा है   द्वार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मंदिर  गए देव - पूजन  को,पदत्राण में  ध्यान।

ऐसे  भक्त  हजारों  लाखों, देवालय की  शान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


पूजा करके  तिलक  सजाया, किया घण्ट का नाद।

ले  न  उपानह   कोई   मेरे, सदा रहा यह     याद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जूता - भक्ति  न जाना  कोई,  करता नमन  प्रणाम।

मन में मनन उपानह-चिंतन,क्यों दें आशिष   राम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


आडंबर  भक्तों   का  ऐसा, मंदिर में हर    ओर।

जूता-भजन भक्त जन करते,नित जाते शुभ भोर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सत्य  कहें  तो  बुरा  मानते, पोंगा पंडित  आज।

सच कुनैन-सा कड़वा लगता,खुलते असली राज।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा सच के,जूता ही भगवान।

कृपा  राम की  कैसे  होवे,भावे जिन्हें अपान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


20.03.2024● 5.00प०मा०

                    ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:25 [जोगीरा ]

 127/2024

          


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


घंटे    सबको  एक  बराबर, मिले  हुए  चौबीस।

किंतु इन्हें तो अधिक चाहिए,होते यदि चौंतीस।।

जोगीरा  सारा  रा रा रा 


गाड़ी  ऐसे  तेज चलाते, समय न इनके पास।

भले  साँड़  से जा टकराएँ,हो जाए उपहास।।

जोगीरा सारा रा रा रा


करें  प्रतीक्षा  प्रिय घरवाले,उन्हें न चिंता  लेश।

पड़े  हुए  हैं  वे  खाई में,बिखरे सिर के   केश।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कभी कान पर जूं न रेंगती,कितना खींचो कान।

आँख बंद कर  बाइक रौंदें,दिखलाते हैं   शान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कोई - कोई  बिना  सुरा के, रहें  नशे में   चूर।

बिना दाम का  करें  तमाशा,बने हुए मगरूर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


हैलमेट   के  बिना    दौड़ती, बाइक अंधाधुंध।

लहुलुहान होकर जब गिरते,कीचड़ नाले गुंध।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम् ' कहें जोगीरा  हीरो, तोड़ें अपनी   टाँग।

नहीं बड़ों की  एक मानते,पिए बिना ही   भाँग।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


शुभमस्तु !

20.032.024●3.00प०मा०

अमलतास बौरा गया [ दोहा ]

 126/2024

             

[अमलतास,गुलमोहर,सेमल,महूक,मधुप]

                   सब में एक

अमलतास   बौरा  गया, गर्मी  हुई   जवान।

पगड़ी  पीली बाँध कर, आया कृषक महान।।

अमलतास से  कर  रही, पुरवाई परिहास।

दूल्हे  जैसा  सज  गया, किसे न आए  रास।।


गुलमोहर के तरु तले, तितर-बितर  हो  फूल।

पहनाने  भू  को  लगे,  अपना   लाल  दुकूल।।

आँचल में भर लो सखी, गुलमोहर  के  फूल।

अरुण  वर्ण  है प्रेम  का, हर्षित विटप  समूल।।


यह  जग सेमल  फूल है,रस विहीन  निस्सार।

दिन  दस के   व्यवहार में,कर मत इसे  दुलार।।

आँखों  में प्रियकर  लगे,ज्यों सेमल का फूल।

लाल  रंग में भ्रमित हो ,भूल न निहित  उसूल।।


फागुन  आया  झूमकर,मुकुलित सुमन  महूक।

मादक  मलयानिल  बहे,भूल न करना    चूक।।

ऋतु   वसंत   सरसा रही, हैं महूक  रसलीन।

भँवरे   झूमें  मत्त  मद,  मधु  पी  होते   पीन।।


पाटल  खिलते   बाग  में,मधुप करें  गुंजार।

रसलोभी   मनुहार     से, लूट  रहे रसधार।।

एकनिष्ठता  प्रेम  की, नहीं मधुप के   पास।

छोड़   नहीं  जाए  कभी, रखें न ऐसी  आस।।


                  एक में सब

अमलतास सेमल खिले,गुलमोहर भी लाल।

मादक  मधुप  महूक  पर,ठोक रहे  हैं   ताल।।


शुभमस्तु !

20.03.2024● 7.45आ०मा०

                    ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:24 [ जोगीरा ]

 125/2024

           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूपण'शुभम्'


ऊपर  की  यदि  हो  न कमाई, यही बड़ा  अन्याय।

नेता अधिकारी  करते  सब, यही अन्य  है  आय।।

जोगीरा सारा रा रा रा


श्रेष्ठ   नौकरी  वही  कहाए, जहाँ मिले  उत्कोच।

मासिक  वेतन  बचा  रहेगा, आता है तब लोच।।

जोगीरा सारा रा रा रा


झूठ  बोलना छल  बल करना,कलयुग के हैं मंत्र।

इनके बिना न चलता जीवन,बना रहे जनतंत्र।।

जोगीरा सा रा रा रा


सुरा  सुंदरी   अंडा  सामिष,भोजन ही  आहार।

इनके बिना न जीवन नर का,खुले स्वर्ग के द्वार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सत्य   धर्म    ईमान  सदा  से, मरते भूखे   नित्य।

कलयुग में अस्तित्व नहीं है,तनिक नहीं औचित्य।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कचहरियाँ सब कच हर लेतीं,मत जाना उस ओर।

ईंट - ईंट   धन  चूस  रही   है, कहती लाओ   मोर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'   कहें   जोगीरा  सच्चे, भ्रष्टाचार   महान।

बिन लिए उत्कोच मनुज का,होता शुभ न विहान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !

19.03.2024●7.30प०मा०

                     ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:23 [जोगीरा ]

 124/2024

           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सुरा   सुरों का  साथ निकट का,लगें दंपती  नेक।

सुर से सुरा विलग  हो कैसे,सोचें सहित विवेक ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बड़ी    मुँहलगी सुरा  सुरों की, कैसे छोड़ें  मीत।

सुरा सुरापति  की  मनभाई, कौन सकेगा जीत।।

जोगीरा सारा रा रा रा


नाली  नालों  की  हैं  शोभा,  सुरा सँवारे   लोग।

परम् हंस कहलाते वे जन,विलग जगत के रोग।।

जोगीरा सारा रा रा रा


होली  में  बहु  धूम मचावें,सुरा गले के  बीच।

समदृष्टा हो जाते  पल  में,कलाकंद या  कीच।।

जोगीरा सारा रा रा रा


हर  नारी को  एक भाव से, रहते सदा  निहार।

चुम्बन चरण  करें  श्रद्धा  से, एक सदृश दें प्यार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


धन को समझें मैल हाथ का,खूब उड़ाते  नित्य।

साथ न लाए ले न जा सकें,सिद्ध करें औचित्य।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


'शुभम्' कहें जोगीरा मादक,धन्य सुरा जो  लीन।

जग - विपदाएँ   उन्हें  व्यापें, रहें नहीं  ग़मगीन।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !.

19.03.2024 ●4.30प०मा०

                      ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:22 [जोगीरा ]

 123/2024

           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जैसे  स्वामी  दुहता  गायें,  भैंस बकरियाँ  भेड़।

वैसे  मानव  दुहता धरती,माता की कर   रेड़।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सोना    चाँदी  धरे गर्भ में,कोयला भरी    खदान।

खोद-खोद पोली नित करता,छोड़े नहीं निशान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


आते   हैं    भूकंप  सुनामी,    होता महाविनाश।

नहीं  हाथ में कुछ भी रहता,रहता मनुज  हताश।।

जोगीरा सा रा रा रा


सागर  में  भी ट्रेन  चलाई,बिछा पटरियाँ     खूब।

अपनी  पीठ  आप  ही  थपके, विज्ञानी  महबूब।।

जोगीरा सारा रा रा रा


आसमान   में  चंद्रयान  का,डंका बजा   जरूर।

उस अनंत का शोध बाल भर,मत हो तू मगरूर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जिसका खाता अन्न उसी का,करता मनुज  हराम।

छलनी किया धरा का  सीना,मिले न तुझे  इनाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा धरती,मत विवेक को भूल।

जिस भू माँ ने अंक उठाया,उसे मिला मत धूल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !

19.03.2024●3.30प०मा०

                ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:21 [जोगीरा ]

 122/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सूखा  पानी  मनुज  आँख का,हया नहीं है शेष।

देखा  देखी  वृक्ष   काटता,बना  हुआ   है मेष।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कंकरीट   के  जंगल   बोए,मेघ  गए उड़    दूर।

दोहन जल का अन आवश्यक,करता है भरपूर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सब मरसीबल चले धड़ाधड़,भैंस नहाएँ  नित्य।

नहीं जानता बिना मूल्य के,पानी का औचित्य।।

जोगीरा सारा रा रा रा


पेड़  लगाना  नहीं  चाहता,हरियाली को  मार।

वर्षा की  चाहत  में  रोए,भला करें करतार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


रासायनिक  खाद  डालकर, उत्पादन  के  नाम।

कर्कट रोग बो रहा  प्रतिदिन, उधर कमाता दाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जल का स्तर नित जाए नीचे,सूख गए  हैं  पंप।

कूप रसातल  में जा पहुँचे,तन में होता  कंप।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'  कहें  जोगीरा  पानी,पानी हित  संग्राम।

विश्व युद्ध का  रूप  बनेगा,बचे न मानुस नाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !

19.03.2024●2.00प०मा०

शुभम् कहें जोगीरा:20 [ जोगीरा ]

 121/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


धोती कुर्ता साड़ी ब्लाउज,   विदा हो गए  आज।

फटी जींस लघु  टॉप  सोहते, नव पीढ़ी का साज।।

जोगीरा सारा रा रा रा


थिगली  जड़े पेंट लोअर  में, फैशन है  आबाद।

पता न लगता लड़का लड़की,हुई नई   ईजाद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जितने  नंगे  देह   दिखाऊ, उचित वही  हैं  वस्त्र।

रॉब गाँठने का जन-जन में,सुलभ आज का अस्त्र।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शादी  बारातों   में  देखो,  धागा बाँधे पीठ।

ठिठुर रही  निर्वसना जैसी,नारी लगे न दीठ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


काया दर्शन  करना है  तो,जाओ ब्याह- बरात।

नए  नमूने  नर - नारी  के, फैशन की बरसात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कहता कौन लाज नारी का,आभूषण अनमोल।

गली सड़क बाजारों में जा,देखो तुम अनतोल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें  जोगीरा फैशन,नित्य बदलता  चाल।

नहीं बहन माता वह बाला,लगती नर को माल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


19.03.2024●11.00आ०मा०

                    ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:19 [जोगीरा ]

 120/2024

       

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


भैंस-भोज की कहूँ कहाँ तक,बदली है युग-रीति।

नियम -धरम भूले नर -नारी,रही न कोई नीति।।

जोगीरा सारा रा रा रा


खड़े-खड़े ही करते भोजन,स्वयं परोसें  आप।

जूठे  हाथों  जूठाहारी, काम  न  कोई  पाप।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कोई  आओ  खाओ  जाओ,लिखवा जाओ दाम।

खाओ चाहे  मत  ही  खाओ, पर लिखवाना आम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


भर-भर थाली व्यंजन  लेते ,आपा बड़ा  असीम।

कोई  दस  रसगुल्ला  खाए ,तन के बड़े लहीम।।

जोगीरा  सारा रा रा रा


ब्रेकफास्ट  के  बाद सजा है,भोजन संग  अचार।

फल  सलाद  भी नहीं छोड़ना,जूस दूध आहार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जगमग- जगमग करें रोशनी,डी जे धूम- धड़ाम।

बिना स्लीव  स्वेटर के  नाचें, बाला नई ललाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा दावत,मान नहीं सम्मान।

पश्चिम  का  ये  रोग  बुफे  अब,मेरा देश महान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


19.03.2024●10.15आ०मा०

                  ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:18 [जोगीरा ]

 119/2024


        


©शब्दकार

डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'


काका पीते चिलम  तँबाकू,खों-खों करते  रोज।

काकी  उन्हें  टोकती भारी,पकड़ें कसके नोज।।

जोगीरा सारा रा रा रा


घर से बाहर बीड़ी धूकें, मिल यारों के   साथ।

भट्टे की चिमनी-सी चलती,लाल धूम से हाथ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


काका  देते तर्क अनौखे, माने  एक न   बात।

यहाँ तँबाकू बीड़ी पीलें,वहाँ न मिलनी तात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बनी   हुई  हैं   सारी  चीजें, दूध  और   बादाम।

उन्हें न खाते पीते हो तुम, मानुस बड़े  निकाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


देती    स्वाद  मुई  बजमारी, अति मुँहलगी  हराम।

माँग - माँग कर पी  जाते हो,दिन भर संध्या  शाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


उचित नहीं व्यसनों में फँसना,बिगड़े सारी  देह।

धन दौलत की बरबादी हो,संग नसाए   गेह।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा  बीड़ी,धूमपान बेकार।

बरवादी ही  बरवादी  है,जीते जी तन  क्षार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


19.03.2024●7.15आ०मा०

                   ●●●

बैठा दुखी किसान [ गीत ]

 118/2024

           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पकी फसल पर

ओले गिरते

बैठा  दुखी किसान।


हाथ जोड़कर

प्रभु से करता

हृदय-वेदना व्यक्त।

हाय विधाता

क्या कर डाला

उर दुख से संसिक्त।।


कैसे हो अब

ब्याह सुता का

करना कन्यादान।


बिछी पड़ी है

फसल जमीं पर

एक न दाना शेष।

कौन कर्ज दे

मुझ गरीब को

धरूँ भिखारी वेष।।


कैसे क्यों मैं

मुख दिखलाऊँ

कैसे करूँ निदान।


मुझ गरीब का

यही सहारा

खेती - पाती आज।

कर पाते हैं

हम किसान सब

खेती से हर काज।।


छप्पर फाड़ न

हमको मिलता

बचनी कैसे जान।


शुभमस्तु !


19.03.2024● 6.30आ०मा०

शुभम् कहें जोगीरा:17 [जोगीरा ]

 117/2024

       

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


यमुना तट पर चली ग्वालिनी,मिले राह में श्याम।

सिर कटि टेक नीर घट दो-दो,चलती चाल ललाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बोले श्याम चलें हम खेलें,रँग गुलाल का खेल।

सास लड़ेगी हमसे लाला,डाले नाक नकेल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जमुना  से जल भर लो पहले,फिर देखें तरकीब।

कैसे   खेलें  हम सब  होली,जो भी लिखा नसीब।।

जोगीरा सारा रा रा रा


घट सिर रखे कहाँ भटकेंगीं,उचित न लाल उपाय।

कौन  बहाना  करें  सास से, बँधी अभी सब गाय।।

जोगीरा सारा रा रा रा


गाय  ले  चलें  गोचारण  को, वहीं खेलना  खेल।

होली  की  होली  भी  होले,वहाँ न सास -नकेल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बड़ी बुद्धि के स्वामी लाला, कितनी बुद्धि  महीन।

पल भर में हल तुम्हीं ढूँढ़ते, धी में नित्य  नवीन।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा कान्हा, नंदलाल प्रणवीर।

जहाँ  चाह में  राह  बनाते,कालीदह को   चीर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


18.03.2024 ●9.45प०मा०

सोमवार, 18 मार्च 2024

शुभम् कहें जोगीरा:16 [जोगीरा ]

 116/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


खोया भरी मुलायम गुजिया,मधुर अनरसे सेक।

होली  के व्यंजन  सहेजती,भौजी घर   में नेक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


रंग  भरी  आई   है   होली,  बने  करकरे   पापड़।

कुरर- कुरर  करते हैं  जब वे,पड़े बिना ही झापड़।।

जोगीरा सारा रा रा रा


गोरे  गोल कपोल  मखमली, लगता लाल गुलाल।

हुड़दंगी  होली  में  कोई , करता  नहीं    सवाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


गरम कचौड़ी नरम मगौड़ी, दिखला रही  बहार।

रसगुल्ले  रस  भरे  लुढ़कते, भरते प्रेम   दुलार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


देवर  तोड़    नहीं  मर्यादा,  होली  का   त्यौहार।

रहना है कल भी समाज में,बिगड़े क्यों व्यौहार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


काजल बिंदिया तुम्हें  लगाऊँ,पहना लहँगा चूनर।

देवर  तुम्हें  सजाऊँ  ऐसे, रंग  लगाऊँ  जीभर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा होली, ब्रजबाला सँग बाल।

होली खेलें वनिताओं से,मल-मल रंग गुलाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा

                   

शुभमस्तु !


18.03.2024●5.00प०मा०

                    ●●●

शुभम् कहें जोगीरा :15 [जोगीरा ]

 115/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चौरासी लख यौनि घूमती,जीव बहुरिया नेक।

आई जग में रँग रस पा ले,रहे न बनके  भेक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सदा  काम रस में ही भूली, फूली - फूली     घूम।

रँग ले तन मन रँग गुलाल से,भँवरे का मुख चूम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


अपने - अपने रस के लोभी,सभी मीच के भोग।

पल न एक भी अधिक मिलेगा,खा जाएगा रोग।।

जोगीरा सारा रा रा रा


नर  मादा  का  भेद न  जानें,एक जीव  का  रूप।

भले  बुरे  जो कर्म करे जन,फटके उसको सूप।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जाति-पाँति में जीवन खोया,लघु महान का बोध।

परदे में  दुष्कर्म  करे  तो, करे  न उनका  शोध।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मिट्ठू  मिया बड़े ही बनते ,बन सबके  सिरमौर।

सदा  तर्जनी  की  औरों पर,  जीता रणथंभौर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'  कहें  जोगीरा साँचे,खुले एक   दिन   पोल।

करनी कथनी अलग मिलीं सब,बात-बात में झोल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


18.03.2024●1.30प०मा०

                  ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:14 [जोगीरा ]

 114/2024

     


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


करते  बारह  मास प्यार जो,निज पत्नी  से  प्यार।

वेलंटाइन  की  नहीं   रही, उन्हें न कुछ दरकार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सिर पर चढ़ती गदह पचीसी ,घासलेटि  औलाद।

क्या न   करें  नीचे  गिरते वे, देह बनी   फौलाद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


रोज प्रपोज पुनः  चॉकलेटी, टेडी  डे के   बाद।

प्रॉमिस हग डे किस डे आते,फिर वेलन का नाद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शब्दों में  अब  प्यार - बाँसुरी,बजे फरवरी  मास।

घर में नहीं  सड़क गलियों में,प्रेम ले रहा  श्वास।।

जोगीरा सारा रा रा रा


धनिकों  के  नव प्रेम - चोंचले,मारुत भरा  गुबार।

पल में  फूले  पल  में  फूटे, मिलता नहीं  उधार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


एक नहीं दस - दस पी जाते,रस का प्याला  एक।

धन्य - धन्य  हैं  वे  बालाएँ, वितरण की ली टेक।।

जोगीरा सारा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा प्रेमिल,बदल गया  युग  आज।

प्रेम  बिके  पैसे की खातिर,कामकला की खाज।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


18.03.2024●12.00मध्याह्न

                   ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:13 [जोगीरा ]

 113/2024

       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


झाँझ झूमती ढोलक ढम-ढम, कर्र- कर्र  करताल।

मृदुल मँजीरा मत्त मगन मन,मृदु मतवाली   चाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


हारमोनियम  हार  न माने,ढप का ढब-ढब बोल।

तबला तड़के ही उठ तड़के,सारंगी रस    घोल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


ढपली हुड़का के अपने रँग,कोई लिए    सितार।

नशा भाँग का चढ़ा नाचता,बजता मंजु  गिटार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


झनक-झनक झन पायल बजती,ब्रज बाला के पाँव।

नाच देखकर मगन मुदित जन,हर्ष लीन   ब्रजगाँव।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बरसाने  की  लठामार   यह, होली का   हुड़दंग।

देख -देख  दृग  नहीं  अघाते, बरस रहे  बहुरंग।।

जोगीरा सारा रा रा रा


जीजा जी से  खेले  होली, साली अति   हुरियार।

कटि  से  कसी करें बरजोरी,चूनर तारम  तार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'  कहें जोगीरा  होली,खेलें राधा    श्याम।

गोपी फिरें  खोजती  कान्हा,धन्य- धन्य ब्रजधाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !

18.03.2024●10.30आ०मा०

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शुभम् कहें जोगीरा:12 [जोगीरा ]

 112/2024


        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


महुआ  महके  बाग-बाग  में,वन में टेसू  लाल।

सेमल दल विहीन  मतवाले,सजते करें कमाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कमसिन कचनारों की कलियाँ,कोमल कांत अडोल।

कुसुमाकर की  सेज सजाती,रहीं मधुर  रस   घोल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


पाटल  लाल गुलाबी पीले,महक रहे चहुँ ओर।

ओट मेंड़   की  नृत्य   लीन हैं,रंग  बिरंगे  मोर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


गेंदा गमक - गमक क्यारी में,करते हैं आहूत।

रंग -बिरंगी तितली आओ,रस है यहाँ प्रभूत।।

जोगीरा सारा रा रा रा


भ्रमर  दलों  ने  डेरा  डाला, फुलवारी   के   पास।

खुली आँख  रस  पीने  दौड़े,  देखा भोर - उजास।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कुहू-कुहू करती नित कोकिल,अमराई के बीच।

विरहिन के उर पीर जगाती,घर के बड़े नगीच।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें  जोगीरा माधव,फ़ागुन मत्त  बहार।

कामदेव  के  रँग  में   डूबे, खुले कली   के द्वार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


18.03.2024●8.45आ०मा०

                    ●●●

फ़ागुन में वन -बाग में [दोहा गीतिका]

 111/2024

      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फ़ागुन     में  वन   बाग में, शीतल बहे   बयार।

कली-कली  मुकुलित  हुई,छाने लगा  खुमार।।


पीपल  शीशम  नीम  के,  पीले पल्लव   नित्य,

धरती  पर  गिरने  लगे, अब   होता पतझार।।


अमराई    में   कूकती,  कोकिल  मीठे   बोल,

विरहिन  की पीड़ा  जगी, जाग उठा है   प्यार।


मधुपाई    अलि  झूमते, फुलवारी  के   पास,

चंचल  तितली  नाचती,पीती  मधु रस  धार।।


कोंपल लाल गुलाल - सी,लगती तरु मुस्कान,

बूढ़े  बरगद    शिंशुपा ,   कभी   न  मानें   हार।


ढप  ढोलक  बजने   लगे, मचल रही है   चंग,

मस्त  मँजीरा    मोद    में,   मतवाली खटतार।


'शुभम्'  होलिका  आ गई, ब्रज  में बढ़ी  उमंग,

ले   पिचकारी   झूमते ,  ग्वाल बाल हर   द्वार।


शुभमस्तु !


18.03.2024● 7.15 आ०मा०

                     ●●●

शुभम् होलिका आ गई [ सजल ]

 110/2024

    

●समांत  : आर

●पदांत   : अपदांत

● मात्राभार : 24.

●मात्रा पतन : शून्य।


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फ़ागुन     में  वन   बाग में, शीतल बहे   बयार।

कली-कली  मुकुलित  हुई,छाने लगा  खुमार।।


पीपल  शीशम  नीम  के,  पीले पल्लव   नित्य,

धरती  पर  गिरने  लगे, अब   होता पतझार।।


अमराई    में   कूकती,  कोकिल  मीठे   बोल,

विरहिन  की पीड़ा  जगी, जाग उठा है   प्यार।


मधुपाई    अलि  झूमते, फुलवारी  के   पास,

चंचल  तितली  नाचती,पीती  मधु रस  धार।।


कोंपल लाल गुलाल - सी,लगती तरु मुस्कान,

बूढ़े  बरगद    शिंशुपा ,   कभी   न  मानें   हार।


ढप  ढोलक  बजने   लगे, मचल रही है   चंग,

मस्त  मँजीरा    मोद    में,   मतवाली खटतार।


'शुभम्'  होलिका  आ गई, ब्रज  में बढ़ी  उमंग,

ले   पिचकारी   झूमते ,  ग्वाल बाल हर   द्वार।


शुभमस्तु !


18.03.2024● 7.15 आ०मा०

शुभम् नमन माँ के चरणों मे [जोगीरा ]

 109/2024


  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


शब्द-साधना करता माते,भगवत शुभम् स्वरूप।

लोकगीत होली का पावन,जोगीरा शुभ   यूप।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मात  शारदे   वीणावादिनि, कर  दो नव    गुंजार।

शब्द-शब्द में रँग भर दो माँ,करता 'शुभम्' गुहार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


रँग रस की तुम देने वाली,करता नमन प्रणाम।

बिना तुम्हारे एक शब्द का,आता एक न नाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


स्वर की रानी ज्ञानदायिनी,सरगम की तुम प्राण।

कवि क्या है प्राणी भी कोई,पा न सका है त्राण।।

जोगीरा सारा रा रा रा


उर का आसन सजा हुआ है,मातु तुम्हारे  कारण।

रुके न अविरत चले लेखनी,शंका करें निवारण।।

जोगीरा सारा रा रा रा


हास्य व्यंग्य का पुट भी थोड़ा,होली में अनुकूल।

ज्यों अबीर  चंदन  का  संगम,बनता एक उसूल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा माते,वंदन नमन  हजार।

करता है माँ के चरणों में,होली छंद विहार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


17.03.2024●9.30प०मा०

जोगीरा की ज्योति जगाओ [जोगीरा ]

 108/2024


   


  ©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जोगीरा की ज्योति जगाओ,प्रथम पूज्य  गणनाथ।

नमन चरण युग में करता है,'शुभम्' तुम्हें निज माथ।

जोगीरा सारा रा रा रा


होली है मधुमास वसंती,रिद्धि सिद्धि के   साथ।

हे गणेश जी उर में आओ,कवि को करें सनाथ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


व्यास - निवेदन पर लिख डाला,महाग्रंथ तुम एक।

वर्णाका में गति लाओ मम,जागे सुप्त     विवेक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


पहने  बैठे  हो  प्रभु  धोती, लिया देह  को    ढाँक।

और वसन भी यदि पहनो तो, डालें हम रँग पांक।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


लगती तुम्हें न ठंडी गरमी,सहन शील   तुम   खूब।

मोदक प्रिय हे नाथ गजानन,अति प्रिय तुमको दूब।।

जोगीरा सारा रा रा रा


होली  का  अवसर विघ्नेश्वर, पिचकारी  में  रंग।

भरे    हुए    बैठे   हैं  चंदन,  घोल रखी   है   भंग।।

जोगीरा सारा रा रा 


'शुभम्' कहें जोगीरा शिवसुत,भरके शुंड  विशाल।

रचनाओं को पावन कर दो,जागे ज्योतित ज्वाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा

                 

शुभमस्तु !


17.03.2024●8.45प०मा०

                 ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:11 [जोगीरा ]

 107/2024

        

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


नेता नहीं चाहते  शिक्षा, करना देश -विकास।

मतदाता को मूढ़  मानते ,नित्य करें उपहास।।

जोगीरा सारा रा रा रा


नेताओं  का काम   चूसना, फसली चौसा आम।

आश्वासन  से  मोहित जनता,कभी दिखाते राम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मतमंगे बन चंदा खाते ,चुम्बन चरण प्रणाम।

बिकते नेता लाख करोड़ों,दूजा गिरे धड़ाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


स्वयं  विदेशों में पढ़वाते,संतति अपनी नेक।

निर्धन रहें  देश  के  वासी , टर्राते ज्यों   भेक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


काला अक्षर भैंस बराबर, अंडर  हैं डी.एम.।

जो चाहें वह हुकुम बजावें, बड़े-बड़े बी.एम.।।

जोगीरा सारा रा रा रा


साठ साल में  चढ़े  जवानी,यह भीतर  की  बात।

करती  हैं  रंगीन   रजनियाँ, मधुबालाएँ    सात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें  जोगीरा नेता,बीस पंसेरी    धान।

नेताओं  ने बना  दिया  है, भारत  देश   महान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


17.03.2024● 4.45प०मा०

                   ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:10 [जोगीरा ]

 106/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


स्वेद  बहाए  करें   किसानी, धीरज धरे    किसान।

बची सड़ी  सब्जी ही  खाते,शुद्ध न मिले पिसान।। 

जोगीरा सारा रा रा रा


कहने को  मालिक किसान है,मोल लगाएँ  और।

दाता कहते जिसे अन्न का,मिले न भरसक कौर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सड़े  टमाटर  काने  बैंगन, खाने  को लाचार।

नमक  प्याज से रोटी खाता,होरी का परिवार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


खूँटी    टँगी   दोहनी   रोए,   बुझी गोरसी   द्वार।

बिना छाछ गृह- बालक रोएँ,गाँवों को धिक्कार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


देखी आधी  रात न दिन भी,स्वेद बहाती  देह। 

बिजली कड़के मेघ बरसते,छोड़ चले  वे  गेह।।

जोगीरा सारा रा रा रा


धारासार  बरसता पानी,ओढ़े वह निज  शीश।

बोरी  फ़टी  एक   मटमैली, भला करें   जगदीश।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें  जोगीरा  कृषि  के,मेरा देश  महान।

नेताओं की मौज बारहों,मास कनक की  खान।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


17.03.2024● 1.15प०मा०

                 ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:9 [जोगीरा ]

 105/2024

       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सब कुछ हमको दिया ईश ने,अमृत जहर शराब।

हाथ किसी के अमृत आया,कोई हुआ खराब।।

जोगीरा सारा रा रा रा


अस्सी  फ़ीसद  का वह कर्ता,बचा तुम्हारा  बीस।

बनते हो तुम  सौ  के स्वामी,गिनो एक को तीस।।

जोगीरा सारा रा रा रा


आजीवन 'मैं' 'मैं'  में बीता,आया खाली  हाथ।

हाथ पसारे चले गए सब,तिनका गया न साथ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


ममता  से   संतति को पाला,सेवा मिली न लेश।

निकले पंख उड़ी वन चिड़िया,पहन रँगीले   वेश।।

जोगीरा सारा रा रा रा


माटी से ही  सब जग उपजा,रोटी सब्जी  दाल।

सोना  चाँदी दूध  फूल  फल,माटी करे  कमाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


किया  गर्भ में   प्रभु  से  वादा,जपूँ तुम्हारा  नाम।

भूला  बाहर जाकर हरि को, रटा रात दिन   काम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्'  कहें   जोगीरा  साँचे, मन में करो   विचार।

बिता न दे यों जीवन सारा, अभी खुले सब द्वार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


17.03.2024● 11.00आ०मा०

शुभम् कहें जोगीरा:8 [जोगीरा ]

 104/2024

            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


रात-रात भर कविजन करते,काव्य समागम नाम।

हा हा  ही ही  भरे  चुटकुले, भरे लिफाफे दाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कविता  से साहित्य विदा है,कवि हैं मात्र हँसोड़।

तुकबंदी   अश्लील  करें   वे,  देते शब्द   मरोड़।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कवयित्री   कम  नहीं  किसी से, रूपगर्विता  देह।

परफ़्यूमी  परिपुष्ट  परी-सी, पति से नहीं  सनेह।।

जोगीरा सारा रा रा रा


क्लिष्ट काव्य के प्रेत विचरते,कवि सम्मेलन  बीच।

शब्दकोश  लेकर  ही   बैठें,तब हों अर्थ    नगीच।।

जोगीरा सारा रा रा रा


तेल तालियों का पड़ना भी,हर कवि  को अनिवार्य।

गाड़ी  बढ़ती  नहीं इंच भर, वाह वाह सिर  धार्य।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कुछ कवि कारा समझ रहे हैं,छंद ज्ञान को बोझ।

वे  उड़ते  उन्मुक्त   गगन  में, थामे ग्रीवा   ओझ।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें  जोगीरा कवि का, कविता करें भदेश।

छंद  और  तुक  गए भाड़  में,बदला है   परिवेश।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !

17.03.2024 ●10.00आ०मा०

                 ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:7 [जोगीरा ]

 03/2024

      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कीचड़  की  होली  के दिन वे,अब आते  हैं  याद।

गंगा  जैसे  मन  थे  उनके, अब  है उनमें   गाद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


गली - गली में सीटी बजती,चले प्यार  की बाढ़।

पहले  भी था प्यार दूध -सा,अब सपरेटा   गाढ़।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मात -पिता को आँख  दिखावें, संतति  हिस्सेदार।

सास-ससुर  लगते  अति  प्यारे,बढ़ी घरों  में  रार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


भाई का  दुश्मन  है  भाई, बीच  खड़ी  दीवार।

कर्ता  दुखी  हुआ ऊपर का,मान गया  है हार।।

जोगीरा सारा रा रा रा


नारी  की आरी बन  नारी, रखती माँग  दहेज।

पुत्रवधू  को  ताने  मारे, खबर सनसनीख़ेज़।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सहने  की  क्षमता  न बची  है,बढ़ते रोज फ़साद।

खून  तुच्छ  बातों  में  होते,कोलाहल का नाद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम् ' कहें जोगीरा समझे,कलयुग चले  कुचाल।

स्वार्थ शहद - सा मीठा लगता,होता नित्य  बवाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


16.03.2024●9.00प०मा०

                 ●●●

शुभम् कहें जोगीरा:6 [जोगीरा]

 102/2024

          


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


भारत   देश  महान  हमारा,शुद्ध एक ही   चीज।

बिजली में है नहीं मिलावट,शुद्ध न मिलते बीज।।

जोगीरा सारा रा रा रा


धनीराम  धनिए   में  डालें,मात्र गधे की लीद।

रंग  मिले  हल्दी  मिर्चों   में, मिट्टी हुई पलीद।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बहन  दूध  वाली दोहन में,नियमित डालें नीर।

नकली  खोया  बेचें  पापा, ठोक  रहे तकदीर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुद्ध न कोई दल के नेता,अति कुर्सी का मोह।

बेपेंदी  के  लोटा लुढ़कें, एक साल में   गोह।।

जोगीरा सारा रा रा रा


धंधालय  शिक्षालय अब तो,नम्बर वन   हंड्रेड।

पूछो  तो  नजरें   झुक  जाएँ,रंगत होती  फेड।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बाप स्वयं ही नकल करावें,शिक्षक भी  लें  पाल।

एक  यही  मंशा है  मन  में, मिले ब्याह में   माल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीराअसली,फसली की भी बात।

देश   रसातल   में   ही  जाए,ऊँची नीची  जात।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


16.03.2024●7.45प०मा०

शनिवार, 16 मार्च 2024

शुभम् कहें जोगीरा :5 [जोगीरा]

 101/2024

    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


उड़े  गुलाल  अबीर गली में, सारे ब्रज में   धूम।

खिली कली पर भँवरे आए,झूम-झूम लें चूम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बोली ग्वालिन कहाँ तुम्हारी,पिचकारी घनश्याम।

होली आई रँग बरसाओ,भर भर के अविराम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बोले   श्याम नहीं घबराओ,खेलेंगे हम   होली।

बचें न लहँगा चूनर गोपी,बाहर भीतर चोली।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मुखड़ा   अपना  धोकर  आना,  तैयारी  है  पूरी।

काजल बिंदिया  सभी सजाऊँ,चाह न रहे अधूरी।।

जोगीरा सारा रा रा रा


श्याम  महावर  तुम्हें  लगाऊँ, लहँगा चूनर पीत।

नारी बन  कैसे  लगते  हो,  जानें हम विपरीत।।

जोगीरा सारा रा रा रा


मैया से शिकवा मत करना,मत खिशियाना लाल।

होली  तो  होली  है  प्यारे,करना नहीं  मलाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्' कहें जोगीरा ब्रज के,लिया श्याम को घेर।

कौली भर रँग दिया कान्ह मुख,करती लेश न देर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


16.03.2024●10.15आ०मा०

शुभम् कहें जोगीरा:4 [जोगीरा]

 100/2024

       

             

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


गोविंदी का  लहँगा  खोया,घनी झाड़ के  बीच।

चेतराम  को  गई  बुलाने, टाँग  गईं  फँस   कीच।।

जोगीरा सारा रा रा रा


चेतराम   को  चिंता भारी , कैसे लाऊँ   खोज।

चिलबिल्ली   है  ये  गोविंदी, ताने देगी    रोज।।

जोगीरा सारा रा रा रा


चेतराम चल  पड़े  तुरत  ही, लेकर अपनी  टार्च।

बजे  अभी थे बारह दिन के,करें खेत में   मार्च।।

जोगीरा सारा रा रा रा


हँसने   लगे   देखकर  बच्चे,चेतराम के     ढंग।

 भर-भर कर  मारी पिचकारी,करते रंग-बिरंग।।

जोगीरा सारा रा रा रा


गोविंदी ने   डाँटे  बच्चे, हँसती  जाती    आप।

जाओ तुम भी लहँगा  ढूंढो,करो नहीं आलाप।।

जोगीरा सारा रा रा रा


तब तक आया काला कूकर,लहँगा ले मुख बीच।

खिंचता  जाए  लाल चीथड़ा,पोखर वाली  कीच।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम्   कहें  जोगीरा होली,चेतराम की   नाक।

बची न एक सूत भी बाकी,सिमट गई निज धाक।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !

15.03.2024●4.45प०मा०

शुभम् कहें जोगीरा:3 [ जोगीरा छंद]

 99/2024

         

© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कुर्सी कुर्सी कुर्सी कुर्सी,आते  हमको  ख्वाब।

सबसे बढ़िया हम हैं नेता,  देना वोट ज़नाब।।

जोगीरा सारा रा रा रा


पढ़ना-लिखना व्यर्थ तुम्हारा,सीख सियासत रोज।

डिग्री  ले  नौकर  बन जाते,रहे न  मुख पर   ओज।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बिना पढ़े  सरकार   चलाते,बनते  जो   डी एम।

नेताओं के हुकुम  बजाते,   बड़े - बड़े  बी एम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


पाँच साल  में एक  बार ही,पड़े माँगना    वोट।

ताव  मूँछ  पर  देकर  बैठो, भरें तिजोरी   नोट।।

जोगीरा सारा रा रा रा


साठ साल  में चढ़े   जवानी, खाएँ फल  बादाम।

आँखों में  हर वक्त खुमारी,रहे नहीं अब  आम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


देव   तुल्य  होते  नेताजी,  दुर्लभ दर्शन    भोर।

चढ़ा  पुजापा  द्वारपाल  को, करो न बाहर शोर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम् कहें जोगीरा  बेढब,सत्य- सत्य  सब बात।

हत्या  सत्य  तथ्य की होती,लोकतंत्र की     मात।।

जोगीरा  सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


15.03.2024●2.15 प०मा०

                    ●●●

शुभम् कहें जोगीरा :2 [ जोगीरा छंद ]

 98/2024

     


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मंडी  में   ये  ठंडी  क्यों  है, पूछ रहा है   आम।

'तू तो  बौराया  फिरता है,तुझे न कोई  काम'??

जोगीरा सारा रा रा रा


आलू  ही आलू  के   बोरे , लदे  पड़े हर  ओर।

लाल - लाल  कुछ भूरे  गोरे,मचा रहे हैं  शोर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


गोरी  गोभी  बैंगन जी  से, करती नमन  प्रणाम।

बोली 'बहुत  भले  लगते हो, आना मेरे   धाम'।।

जोगीरा सारा रा रा रा


बैंगनजी    शरमाए    थोड़े,    बोले 'आलू    साथ।

अनुमति हो तो उसको  लाऊँ,डाल गले  में हाथ'।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'देखो   समझो  सुनो  हमारी', बोली गोभी   गोल।

'बात  निजी  करनी  है तुमसे,आलू को मत  घोल'।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'अपनी  जोड़ी  खूब  बनेगी, जैसे राधे  श्याम।

गोभी - बैंगन  बनें  दंपती, घर-घर में हो  नाम'।।

जोगीरा सारा रा रा रा


'शुभम् कहें  जोगीरा  अनुपम,गोभी खेले  फाग।

बैंगन  वादा  पूरा  करने ,  रहे रात भर   जाग।।


शुभमस्तु !


15.03.2024●12.15 प०मा०

                   ●●●

शुभम् कहें जोगीरा :1 [जोगीरा छंद]

 97/2024

             

 ©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फूल-फूल अलि दल मँडराते,मधुरस की है चाह।

आया  है ऋतुराज  बाग में,उर में भरे उछाह।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


तितली  पहन शाटिका पीली,नीली भूरी लाल।

नाच रही है फूल -फूल पर,देती कत्थक ताल।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


कोयल  कूके   कुहू-कुहू   कर, अमराई  के  बीच।

विरहिन के मन हूक पिया की,पिया न आज नगीच।

जोगीरा सारा रा रा रा


पाटल   महके   गेंदा  चहके, ठोक जाफरी ताल।

बुला रहा  मधुमाखी  आओ, कर लें  रंग  धमाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


सरसों की  सुगंध  रस भीनी,नाचे भर  हिलकोर।

ओढ़ चुनरिया पीली - पीली,करे खेत   में   रोर।।

जोगीरा सारा रा रा रा


अरहर  रह-रह  कटि  मटकाए, मटर चना के खेत।

पुरबाई   में  मत्त   मद  भरे, नृत्य  करें   समवेत।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कुसुमाकर   के  रंग  निराले, हर्षित बाला   बाल।

बूढ़ा बरगद लाल अधर से,हँसता साँझ सकाल।।

जोगीरा सारा रा रा रा


कपड़े  नए  पहन कर आए,शीशम पीपल नीम।

'शुभम्' कहें जोगीरा मीठे, भरते भाव असीम।।

जोगीरा सारा रा रा रा


शुभमस्तु !


15.03.2024● 11.30 आ०मा०

होली का हुड़दंग ( जोगीरा छंद)

 96/2024


              


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फागुन आया मन भरमाया,होली का हुड़दंग।

फूल-फूल भँवरा मँडराया,लगा बरसने रंग।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


होरी से धनियां यों बोली,आ जाओ भरतार।

खेलेंगे  हम तुम अब होली,रंग भरा त्यौहार।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


कसी-कसी क्यों लगती चोली,ए भौजी दो बोल।

कोयल बोल रही मधु बोली,बजते हैं ढप ढोल।

जोगीरा सारा रा रा रा 


बरसाने से चलीं राधिका,कहाँ छिपे घनश्याम।

वन कुंजों में ढूँढ रही हैं,हुई सुबह से शाम।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


रास रचावें कृष्ण कन्हैया,पूनम की है रात।

संग राधिका गोपी नाचें,हुई साँझ से प्रात।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


रँग गुलाल मुख से लिपटाए,आए जसुदा लाल।

खींच-खींच मारी पिचकारी,गोप नाच दे ताल।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


आज  दिवस  होली का मैया,कैसे खेलें  रंग।

वन में जाना गाय चराने,नियम न करना भंग।।

जोगीरा सारा रा रा रा 


शुभमस्तु !


14.03.2024●4.00प०मा०

                 ●●●

ऋतु आई मधुमास की [ दोहा ]

 095/2024

             

[मंजरियाँ,बौर,आम्र,कचनार,कनक]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                   सब में एक

तुलसी -बिरवा में खिलीं, मंजरियाँ पुरजोर।

आँगन  में  महका  करें, भरती गेह हिलोर।।

मंजरियाँ नव  आम  की,करतीं हैं आहूत।

हे अलि दल रस चूस लो,हमसे मधुर प्रभूत।।


ऋतु  आई  मधुमास की,बौर लदे हर  डाल।

अमराई  में  झूमते, अलि  दल  बने बिहाल।।

कली - कली मुकुलित हुई,आम रहे हैं बौर।

वासन्ती  ऋतु  आ गई,मंजु मधुप मद दौर।।


आम्र - कुंज में श्याम ने,झूला डाला एक।

राधा  के  सँग  झूलते,कुंज बिहारी नेक।।

आम्र - मंजरी शाख पर,गूँज रहे पिक-बोल।

माधव   हरषाए  मगन, कानों में रस घोल।।


कलिका नव कचनार की,कोमल कांत अपार।

हे कामिनि! नित  चंचले, उर से कांत   उदार।।

चलो   सखी   बाहर  चलें,फूल रहे कचनार।

 फाग  दिशाएँ   गा रहीं, मचल  उठा है   मार।।


कनक भवन  में राम का,रम्यक सुखद निवास।

नमन करें नित भक्त जन,मान हृदय के   पास।।

मत  मद  में   नर चूर हो,रहें कनक  से  दूर।

सदा   सादगी   ही  भली, करे अहं को   चूर।।


                   एक में सब

कनक आम्र कचनार सँग,महके मंजुल बौर।

मंजरियाँ मन भावतीं,गुंजित शाख सुभौंर।।


शुभमस्तु !


13.03.2024●7.45 आ०मा०

माधव मंगल मोद [मत्तगयंद सवैया ]

 94/2024

         

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                           -1-

फागुन मास  धमाल करै अब,

                              भूतल पै पतझार भयौ  है।

शीत विलाय गयौ कितकूँ झरि,

                             पीपल शीशम गात नयौ  है।।

होठ  गुलाल भए तरु के बहु,

                             पाटल पै अलि गूँजि रह्यौ है।

पीत पराग झरै धरणी नित,

                              पूरब में रवि तेज उग्यौ है।।


                         -2-

फूलि रही  सरसों  सब खेतनु,

                            कोकिल कूकि रही अमराई।

झूलि  रहे अलि  डारनु  पै बहु,

                               नारिनु गात चढ़ी गरमाई।।

काम उछाल भरै मन में अति,

                               देखति पीव गई शरमाई।

ढोलक थाप परै कर की जब,

                                हूल उसास भरै भरमाई।।


                         -3-

रंग -गुलाल धरे कर में निज,

                                गेहनु से निकसी ब्रजबाला।

जौ कहुँ  श्याम मिलें पथ में अब,

                            लाल करें मुख डारि दुशाला।।

औचक भेंट भई मग में जब,

                           लागि गयौ तिय सोचनु  ताला।

बाँहनु में  भरि  चूमि  लई इत,

                             आइ गए उत तें ब्रजग्वाला।।


                         -4-

माधव मंगल मोद भरे नित,

                              फागुन चैत विशाख सुहाने।

हैं ऋतुराज छहों ऋतु के वह,

                               संवत के लगि आदि मुहाने।।

देह  धरे तरु - बेल  चराचर,

                              चीर नए  अलि गावत गाने।

कोकिल  कूकि रही अमुआ तरु,

                                 पूछति तीय रही मधु माने।।


                         -5-

ले ढप-ढोल चले ब्रज-बालक,

                           खेलन को रँग से मिलि होली।

हाथनु रंग - गुलाल  भरे   युव,

                         भाभिनु सों करते जु ठिठोली।।

घूमत -झूमत नाचि रहे जब,

                           फेंकि गुबार रँगी तिय -चोली।

काजर आँजि दयौ दृग भाभिनु,

                            पोति महावरि पैरनु कोली।।


*कोली=सँकरी गली।


शुभमस्तु !


12.03.2024●1.00प०मा०

               ●●●

नहीं निकलने पाओ [ गीत ]

 93/2024

       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पलकों में तुम

छिपे हुए हो

नहीं निकलने पाओ।


जब से देखा

तुमको मोहन

चैन  नहीं मैं पाती।

अंतरतम में

लुका छिपा कर

मन ही मन शरमाती।।


मुझे अँदेशा

भारी प्रियतम

निकल न बाहर जाओ।


एक झलक ही 

देखा मैंने 

तब  से द्वार खड़ी मैं।

गृह कपाट जब

 खटके किंचित

खिड़की ओट अड़ी मैं।।


आकर छू लो

तन-मन मेरा

प्रणय - मेघ बरसाओ।


तुम्हें चाहकर

शेष न कोई

चाह एक भी मन में।

नख से शिख तक

तुम्हीं समाए

तिरछे  मेरे  तन  में।।


गीत एक ही

गूँज रहा है

मेरे संग मिल गाओ।


शुभमस्तु !


12.03.2024●10.00आ०मा०

दिशा [ चौपाई ]

 92/2024

                

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


दिशा  - दिशा  की  बात    निराली।

वन    मैदान     कहीं      हरियाली।।

पूरब    पश्चिम      दक्षिण    सागर।

उत्तर  दिशि   मम   देश    उजागर।।


उत्तर  दिशा     हिमालय     अपना।

रक्षक   स्वर्ण   शृंग   नित   तपना।।

बहतीं    जिससे     सुरसरि    धारा।

यमुनोत्री     का     वहीं    किनारा।।


चार  धाम     हैं     दिशा -  दिशा में।

लगतीं     मोहक     सुबहें     शामें।।

पूर्व    दिशा     से     सूरज   उगता।

पश्चिम   में  वह   जाकर   छिपता।।


पूरब  से      जन    पश्चिम     जाते।

रोजी - रोटी         सभी     कमाते।।

उत्तर   से     दक्षिण    जन    जाएं।

उन्नति   के   अवसर    जब   पाएँ।।


उगती  पौध   किसी    भी   क्यारी।

महके  अन्य     दिशा    फुलवारी।।

दिशा -   दिशा   मधुमक्खी  जातीं।

छत्ते  पर     रस    ले   जा   पातीं।।


प्रगति   न   देता    एक    ठिकाना।

दिशा - दिशा   में    पड़ता   जाना।।

जहाँ   बसें     वह   देश     हमारा।

उसी  दिशा    में  मिले    किनारा।।


'शुभम् '   न    खूँटा     गाड़े    बैठें।

अपने  मन     में   तनें    न    ऐंठें ।।

दिशा   कौन सी   शुभ   बन जाए।

अवसर   उचित अगर   मिल पाए।।


शुभमस्तु !


11.03.2024●10.45आ०मा०

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...