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बुधवार, 18 सितंबर 2024

बारंबार विचारिए [सजल]

 429/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


समांत     : आर

पदांत      : अपदांत

मात्राभार  :24.

मात्रा पतन : शून्य


परहिताय   जीना   जिसे,जीवन वह उपहार।

परजीवी  जो  जीव  हैं, उनके विविध प्रकार।।


मनुज  देह सब  कुछ  नहीं,उसमें भी  हैं  ढोर।

कर्म   धर्म   कारण  सदा,करना प्रथम  विचार।।


जब तक  जीवन डोर से,बँधा  हुआ नर जीव।

नश्वर  तन का मोल क्या,जुड़ा हुआ है   तार।।


पर सम्पति  पर  दृष्टि  है, पर नारी की  चाह।

बना   लिया   है   व्यक्ति ने,  जीवन कारागार।।


गली - गली में  श्वान  भी, बन जाते हैं   शेर।

पूज्य  सदा  विद्वान  ही, सभी खुले हैं   द्वार।।


हाथी   जाते  राह   में,  श्वान  भौंकते   खूब।

करें   वही करणीय  जो,पड़े   देह पर   मार ।।


बारंबार   विचारिए,   जब  करना  हो    काम।

'शुभम्' न धोखा हो कभी,रवि हो या शनिवार।।


शुभमस्तु !


16.09.2024● 2.00 प०मा०

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सोमवार, 26 अगस्त 2024

पर्व रक्षाबंधन [ सजल ]

 367/2024

              

समांत       :अन

पदांत        :  अपदांत

मात्राभार   :16

मात्रा पतन : शून्य


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


हरा  भरा   आया    शुभ   सावन।

पर्व        सुपावन       रक्षाबंधन।।


प्रमुदित  भगिनि   बाँधती   राखी।

भ्राता का  हर्षित  है   तन -  मन।।


थाल   सजा   मिष्ठान्न    खिलाती।

पायल बजती  पद में  छन - छन।।


लगा   भाल  पर    रोली  - टीका।

मुक्तावत    चमकें    अक्षत   कन।।


पाँव  छुएँ     भगिनी    के   भैया।

भैया   देता   अमर   वचन   धन।।


सनातनी    हिन्दू    के घर -   घर ।

आता  पर्व   मनोहर    प्रति  सन्।।


'शुभम्'   भगिनि  नारी   को मानें।

हो न   देश में    कहीं    दनुजपन।।


शुभमस्तु !


26.08.2024●8.30आ०मा०

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सोमवार, 29 अप्रैल 2024

चाय की चाह [सजल ]

 191/2024

                 

समांत    : आह

पदांत     : अपदांत

मात्राभार : 24.

मात्रा पतन :शून्य।


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


ऋतु  है तप्त निदाघ की,नहीं चाय की चाह।

शीतलता  की कामना, भरती हृदय उछाह।।


चाय-चाय की टेर से, बिगड़ा जिनका स्वाद।

आया   प्याला  चाय  का,नहीं कह रहे वाह।।


स्वाद  सदा  रहते  नहीं, सबके  एक समान।

देती   तब  आनंद  जो, देती   है  अब  दाह।।


सुलग रहे  चूल्हे  बड़े, छोटों की क्या पूछ ?

रंग  न  आया   चाय में,बदली मनुज पनाह।।


नेता   ले-ले   केतली,  दौड़   रहे  हर ओर।

इधर देखते  क्यों  नहीं,क्या हम करें गुनाह ??


हित अनहित अपना सभी,जानें चतुर सुजान।

चाय  वही  उत्तम भली, दिखलाए नव  राह।।


शुभम्' जगा है देश अब,ठगना क्या  आसान?

बासी   ठंडी   चाय    की, भाए नहीं सलाह।।


शुभमस्तु !


29.04.2024●7.15आ०मा०

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सोमवार, 15 अप्रैल 2024

आया अब ऋतुराज [ सजल ]

 174/2024

        

सामांत : ईर

पदांत  :अपदांत

मात्राभार :24

मात्रा पतन:शून्य


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


शरद  शिशिर  हेमंत  भी, विदा हुईं धर  धीर।

आया अब ऋतुराज है,बहता  सुखद समीर।।


पंच तत्त्व से सृष्टि  का,निर्मित कण-कण नित्य,

क्षिति नभ पावक वायु सह,सबमें शीतल नीर।


अमराई   में  बोलता, कोकिल मधुरिम    बोल,

करे  प्रतीक्षा आम  की, लाल चोंच का   कीर।


गङ्गा - यमुना  में   बहे, अविरल  निर्मल  धार,

नर - नारी   बढ़ने   लगे,  करें  नहान सुतीर।


अवगाहन  जल  में करें, नर - नारी जन  बाल,

नहा  रहीं  वे  लाज  वश,सुरसरि धार  सचीर।


जो  आया  जाता  वही, नियम यही अनिवार्य,

नर - नारी जो भी  यहाँ,निर्धन या कि अमीर।


'शुभम्' धरा पर फूँक कर,कदम रखें सब लोग,

अपने  को   समझें   नहीं,  कोई हलधर   वीर।


शुभमस्तु !


15.04.2024 ●7.00आ०मा०

बुधवार, 3 अप्रैल 2024

रंगोत्सव होली [सजल]

 159/2024

           

समांत :इयाँ

पदांत : अपदांत

मात्राभार :20

मात्रा पतन: शून्य। 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


रंग  के  संग  में    खेलतीं   होलियाँ।

नृत्यरत कसमसाती हैं  हमजोलियाँ।


रात  आधी  हुई  बाग  महका  बड़ा,

पेड़  महुआ  करे  खूब  बरजोरियाँ।


टेसू   गुल  की  छाई   हुई  लालिमा,

मोर  के   संग में   नाचती  मोरियाँ।


चैत्र  लगते  तपन  देह  में अति बढ़ी,

भानु की चढ़ गईं भाल की त्यौरियाँ।


रंग   की   मार  की  तीव्र  बौछार है,

अंग आँचल  छिपाए  फिरें  गोरियाँ।


ये  पाटल उठा   सिर  प्रमन   झूमते,

गोप ग्वाले  कसे   झूमते   कोलियाँ।


रंग  उत्सव - समा   सराबोर  रंग से,

'शुभम्'क्यों चुभेंगीं शब्द की गोलियाँ!


शुभमस्तु !


01.04.2024●8.30 आ०मा०

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

ऋतुराज आ रहा ● [ सजल ]

 067/2024

            

 समांत : अर

पदांत  : अपदांत

मात्रभार : 16.

मात्रा पतन : शून्य।


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


हवा  बह   रही    शुभद   सुभगतर।

गूँज  उठा  विटपों     में    मर -मर।।


पड़ती     है       पदचाप      सुनाई,

प्रिय  ऋतुराज  आ   रहा   घर -घर।


खेत   बाग   वन   सुमन  खिले बहु,

झूम  रहे    तितली   दल    मधुकर।


पीपल    निम्ब      शिंशुपा    झरते,

अवनी  पर   होता    नित   पतझर।


अमराई     में       कूके    कोकिल,

जपते  भक्त    शिवालय  हर -  हर।


सुमन     सुनिर्मित    कामदेव   का,

धनुष  तना   है   चलता   सर - सर।


'शुभम्'  हँस   रहा     बूढ़ा    पीपल,

लाल  अधर   स्मितियाँ     भर - भर।


●शुभमस्तु !


19.02.2024● 7.00 आ०मा०

बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

सुदृढ़ता का नाम ● [ सजल ]

 057/2024

      

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● समांत : इला

● पदांत  : है।

● मात्राभार :16.

● मात्रा पतन:शून्य

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●© शब्दकार 

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सुदृढ़ता    का    नाम   किला  है।

जगती  पर   वह   हमें   मिला  है।।


कभी  मोम - सी    कोमलता  भी,

तूफानों     में    नहीं    हिला    है।


छूने  में    पाटल    भी     लज्जित,

भीतर   से   काठिन्य  -  शिला   है।


सह  ले  वह      भूकंप    सुनामी,

नहीं   किंतु   वह   सहे   गिला  है।


भीतर  कभी    झाँक   कर  देखो,

गाँव  नहीं     संभ्रांत   जिला    है।


महायुद्ध   का    कारण     भी   है,

पुरुषों  में    बहुमूल्य    तिला    है।


'शुभम्' न चलता काम जगत का,

समझो -  समझो  वह महिला  है।


●शुभमस्तु !


12.02.2024● 8.15आ०मा०

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बुधवार, 31 जनवरी 2024

सत्तासन की दौड़ ● [ सजल ]

 039/2024

 

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● समांत :आल

● पदांत :अपदान्त

● मात्राभार :24

●मात्रा पतन :शून्य

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● शब्दकार

●  डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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भारत  माता  का   करें,हम सब ऊँचा     भाल।

कलयुग  की  विकरालता,का फैला  है  जाल।।


कथनी  मीठी   खाँड़-सी,करनी विष  की  बेल,

भाषण  की  नित  माधुरी,पलटे पल-पल चाल।


सत्तासन     की    दौड़   में,  दौड़ें आँखें     मूँद,

उन्हें   न  चिंता   देश   की,कौवा  बने   मराल।


पले    सपोले   रात -   दिन,  चूस  रहे   हैं   देश,

जागरूक  हम   सब   रहें, गले न उनकी  दाल।


नहीं  चाहते   देश  का,  करना पूर्ण     विकास,

गेह   भरा  हो  स्वर्ण से,  लाल  सेव - से    गाल।


काम   कभी   होता   नहीं, लिए बिना  उत्कोच,

भ्रष्ट   आचरण   मंत्र   है, सत  चरित्र  की  ढाल।


'शुभम्' दिखाने   के  लिए , दाँत और  ही  मीत,

खाने   वाले   और  हैं,  दिखे   न जिनका  बाल।


●शुभमस्तु !


29.01.2024 ●9.30 आ०मा०

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सोमवार, 18 दिसंबर 2023

राजनीति की ऊल ● [ सजल ]

 541/2023

 

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● समांत : ऊल

● पदांत : अपदांत।

●मात्राभार :24.

● मात्रा पतन : शून्य।

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●© शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप'शुभम्'

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छाई  चारों   ओर  है,   राजनीति  की   ऊल।

किंतु नहीं होती कभी,सबके हित अनुकूल।।


मुख से  कहते  है बुरी,राजनीति सब   लोग,

फिर भी  गोदी  में भरें,ज्यों गुलाब के  फूल।


राजनीति  के  संग  से, धर्म धूसरित   नित्य,

धर्मवीर  जो  भी  बने,  ओढ़ा   वही   दुकूल।


शिक्षालय  की  सीख  में, राजनीति  का  मैल,

रँगता  अपने  रंग  में,  उड़े    ज्ञान  की    धूल।


राजनीति   का   रंग  है,  जातिवाद भी   एक,

मानवता  के   बाग   में, उगने   लगे   बबूल।


राजनीति   को   चाहिए, नीति   न शिक्षाचार,

खूँटी  पर    टाँगे  हुए,  सत्पथ   श्रेष्ठ   उसूल।


दंभ,द्वेष, छल ,छद्म   का, राजनीति  है  कोष,

उलटे   ही   सब  काम हों,चुभें बाद  में  शूल।


राजनीति  चाहे  नहीं, करना देश -   विकास,

यदि  विकास  ही हो  गया,जाएँगे जन भूल।


'शुभम्'  भुलावे  में रखो,  उलझाकर   अन्यत्र,

राजनीति   का   मंत्र है, उलझें जन   आमूल।


●शुभमस्तु !

18.12.2023●7.45आ०मा०

सोमवार, 20 नवंबर 2023

कभी न करना ● [ सजल ]

 494/2023

           


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● समांत : ईन ।

●पदांत  : अपदांत।

● मात्राभार :15.

●मात्रा पतन : शून्य।

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● ©शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कभी  न  करना  हृदय  मलीन।

नहीं     बनेगा   जीवन    दीन।।


जीवन  में  वे     दुःखी     सदा।

भरते   उदर  किसी   से  छीन।।


निज  कर्मों  पर  कर   विश्वास।

ईश - भक्ति    में  रहना  लीन।।


दुर्बल  को    खाता    बलवान।

ज्यों  छोटी  को  तगड़ी   मीन।।


निष्ठावान    कर्म    में     नित्य।

सदा  बजाते  सुख   की  बीन।।


भारत   माँ  की   अपनी  शान।

हमें  न बनना    पाकी    चीन।।


'शुभम्'   मातरम   वंदे     गीत।

गाए  जनगण   रँग    में   तीन।।


●शुभमस्तु !


20.11.2023◆7.30आ०मा०

मंगलवार, 11 अप्रैल 2023

कृषक पर छान नहीं🪭 [ सजल ]

 160/2023


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●समांत : आन।

●पदांत :   नहीं।

●मात्राभार :22.

●मात्रा पतन:शून्य।

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जाना मत उस द्वार,जहाँ सम्मान   नहीं।

स्वार्थ भरा संसार, किसे संज्ञान    नहीं!!


कर्मवीर    को  देश, करेगा   याद     सदा,

कर्महीन   का नाम, कहीं पहचान    नहीं।


बदल - बदल कर वेश, देश जो  ठगते  हैं ,

पग - पग पर बदनाम,कहीं गुणगान नहीं।


करते   झूठी    बात,   द्वार  पर   मतमंगे ,

बदल मुखौटे नित्य,मनुज अनजान नहीं।


सुन कोकिल की कूक,जगी विरहिन पीड़ा,

रस  लेता अलि चूस,सुमन को भान नहीं।


कर  महलों  में  वास,आम को  भूला   है,

क्या न तुझे अनुमान,कृषक पर  छान नहीं।


जनसेवा   का नाम, ख़ाक से लाख   हुआ,

'शुभम्' तुम्हारा  काम, कहीं संधान  नहीं।


🪴शुभमस्तु !


10.04.2023◆6.00आ०मा०

मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

प्रेम न मिला उधार! 🩷 [ सजल ]

 143/2023

 

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●समांत : आर ।

●पदांत :  बड़ा ।

● मात्राभार :  22 ।

●मात्रा पतन : शून्य।

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✍️शब्दकार ©

🩷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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प्रेम न  मिला  उधार,दीन संसार  बड़ा।

सभी चाहते  जीत, गले में हार   बड़ा।।


करनी  में  हैं खोट, नहीं संज्ञान  लिया,

राहें सकल असूझ,कहाँ उपकार  बड़ा?


नहीं   मानता   दोष, लिप्त दुष्कर्मों   में,

सदा सुफल की चाह, वचन-उद्गार  बड़ा।


मिले बिना श्रम माल, तिजोरी कमरे भर,

देश -  प्रेम  का हाल,ज्वलित अंगार बड़ा।


नहीं  चरित का मान, कनक ऊपर   छाया,

सहे    राष्ट्र  आघात, संत से जार    बड़ा।


बगुला भगत महान, टकटकी मछली पर,

पूज्य  प्राप्त    सम्मान, भले गद्दार  बड़ा।


कैसे  हो    कल्याण,   दुखी भारतमाता,

हुआ'शुभम्'को भान,यहाँ व्यभिचार बड़ा।


🪴शुभमस्तु !


02.04.2023◆11.00प.मा.

बुधवार, 21 दिसंबर 2022

श्रम से स्वेद-सिक्त जो रहता 🌳 [ सजल ]

 535/2022


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● समांत: आरे ।

●पदांत : अपदांत।

●मात्राभार :16.

●मात्रा पतन: शून्य।

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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निज    भविष्य    जो    मनुज सँवारे।

चमका    है     वह       बनकर  तारे।।


श्रम     से     स्वेद -सिक्त    जो रहता,

परिजन         उसने       सदा  उबारे।


परिजीवी        निर्भर      औरों    पर,

बैठा        रहता           हिम्मत  हारे।


करनी         में        विश्वास  जगाए,

वह        अजेय         जयकार  उचारे।


सीमा      पर        साहस    से  लड़ता,

अनगिनती       वह    अरि   को   मारे।


कूप      खोद       पीता      जो  पानी,

नहीं         बताता      जलकण  खारे।


'शुभम्'     काम    से   जी न   चुराए,

सिर    पर   मुकुट     विजय का  धारे।


🪴 शुभमस्तु!


19.12.2022◆6.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

सोमवार, 5 दिसंबर 2022

मन में जहाँ उजाले होते 🔰 [ सजल ]

 509/2022


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★समांत : आले ।

★पदांत  : होते ।

★मात्राभार  :16.

★मात्रा पतन :शून्य ।

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✍️ शब्दकार ©

🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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मन      में     जहाँ      उजाले   होते।

नहीं     कभी       वे      काले   होते।।


स्वेद    बहाते      तन -  मन  से जन,

उनके       पग      में      छाले  होते।


निर्मल     मन  -  धारक   नर  - नारी,

भ्रम     न    उरों      में    पाले  होते।


विषम      परिस्थिति      झेल  रहे हैं,

सुदृढ़ता           में          ढाले    होते।


मन      के    धनी       महादानी    हैं,

बंद         न       उनके      ताले  होते।


सुमन       बरसते      हैं     रसना  से,

शब्द       न      उनके    भाले   होते।


'शुभम्'       कर्मरत     रहने    वाले,

कभी        न       बैठे  -  ठाले   होते ।


🪴शुभमस्तु !


05.12.2022◆6.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

सोमवार, 14 नवंबर 2022

प्रभु की प्रभुताई 🦚 [ सजल ]

 474/2022

 

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●समांत : आई ।

●पदांत : अपदांत ।

●मात्राभार : 16.

●मात्रा पतन :शून्य।

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✍️ शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कण   -  कण     में    प्रभु   की   कविताई।

छंद,     शब्द ,     लय      में     बँध   छाई।।


कर्म         किया       करता    जन     जैसा,

वैसी              उसको        मिले     कमाई।


पंच        तत्त्व         से      जगत    बनाया,

समझ       मूढ़        प्रभु    की      प्रभुताई।


सूरज,           सोम,      सितारे,         सोहें,

सरिता        ने       शुभ     महिमा      गाई।


अंबर            के        मेघों       से     बरसे,

अमृत     -  सा     जल      करे      सिंचाई।


आने    -  जाने       का      क्रम    अविरल,

कहीं           आगमन       कहीं     विदाई।


'शुभम्'        सूत्र       जीवन    जीने     का,

करना           सबकी         सदा     भलाई।


🪴शुभमस्तु !


14.11.2022◆6.15 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

सोमवार, 29 अगस्त 2022

नर, निधि में मिलती नदिया है! 🪂 [ सजल ]

 346/2022

 

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●समांत:इया।

●पदांत: है।

●मात्राभार:16.

●मात्रा पतन:शून्य।

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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मानें       तो       दुनिया   बगिया     है।

जिसने      जीवन     सुखद जिया   है।।


जीवन       का        आनंद     न   जाने।

आँसू    जन    को       सदा  दिया   है।।


मानव     को   सुख     शांति  तभी   है।

किसी   फटे     को    कभी सिया    है।।


दुख     देकर      किसने   सुख   पाया।

सुखी    वही      जो     अश्रु   पिया   है।।


बचा    न      कोई      निज   कर्मों    से।

फल    वैसा        जो    कर्म किया    है।।


स्वर्ग         उसी      घर    में   होता    है।

सन्नारी           सर्वांग        तिया       है।।


'शुभम्'    भाव    मन      के पावन  रख।

नर ,  निधि      में     मिलती  नदिया   है।।


🪴 शुभमस्तु !


२९.०८.२०२२◆६.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।


सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

सजल 🌴

  

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समांत :आरों ।

पदांत  :    में।

मात्रा भार:22

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सुना   गया    है     बने  कान दीवारों  में।

सोच-समझ  कर बोल वचन तू  यारों में।।


शंकित - सा रहता  है उर  का हर कोना,

मिलती नहीं  शांति अब कुंज बहारों में।


धरती  पर  तो   खूब  प्रदूषण फैलाया,

दूषित करने  निकला मनुज सितारों में।


भले न हो उद्धार देश का तृण भर भी,

लगा हुआ तन, मन, धन सारा नारों में।


अपनी - अपनी  पीठ थपथपाते  नेता,

मन है   उनका   भरी  तिजोरी हारों में।


वहीं शेष ईमान न अवसर जिसे मिला,

होगा  कोई   मानव   एक हजारों    में।


'शुभम' चीरता धार  नदी  की विरला  ही,

मृतक  देह  तो नित ही बहतीं धारों   में।


🪴 शुभमस्तु !


०४.१९.२०२१◆११.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...