बुधवार, 29 मार्च 2023

कस्तूरी -सी तुम 🍑 [ दोहा ]

 138/2023

 

[कस्तूरी,टेसू,दादरा,चकोरी,चौपाल]

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✍️ शब्दकार ©

🍑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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     ⛲ सब में एक ⛲

उगे न कस्तूरी वहाँ, जहाँ उगे  यव  धान।

पता  न नर  सारंग को, नहीं स्रोत- संज्ञान।।

कस्तूरी-  सी तुम बसी, मेरे उर   के   बीच।

आनंदित प्रतिपल करे,दिखे न चक्षु -नगीच।।


लाल-लाल टेसू खिले,सुमन  हजारों  भव्य।

लगी वनों में आग-सी,छटा छिटकती नव्य।।

रदपुट  में   मुस्कान है,ज्यों टेसू  के  फूल।

बाले ! कैसे  त्याग  वन,राह गए  हैं   भूल।।


'शुभम्' दादरा- ताल में,भाव प्रमुख शृंगार।

गति ठुमरी से तीव्र है, गा न कहरवा यार।।

बोल  दादरा  ताल के,   शास्त्रीय   संगीत।

जो  जाने संज्ञान ले ,सहज न सबको मीत।।


बनी चकोरी घूमती,देख शरद का सोम।

मैं अवनी  की पक्षिणी,नीला ऊँचा   व्योम।।  

कंद चकोरी का बड़ा,बहु उपयोगी  मीत।

शोभित नीले फूल हैं,कर्कट भी   भयभीत।।


चौके से चौपाल तक,जिनकी परिधि ससीम

नेता  चौकी  के  रहें, क्यों चौराहा -  भीम??

पंचों ने चौपाल पर,किया नहीं  सत  न्याय।

जाति-पक्ष-अन्याय से,मरी धर्म  की  गाय।।


   ⛲ एक में सब ⛲

फूल चकोरी बैंजनी,

                          टेसू लगा  गुलाल।

कस्तूरी मृग  दादरा,

                           गाता वन - चौपाल।।


🪴शुभमस्तु !


28.03.2023◆11.30 प.मा.

फिर से बौराए आम!🌳 [ अतुकान्तिका ]

 137/2023


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✍️शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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चैत्र मास की सुवास,

प्रसरित दिनकर उजास,

बँधाती प्रिय आगमन आस,

देखकर पुनि मधुमास,

फिर - फिर बौरा उठे आम।


पिक की कुहू- कुहू टेर,

लिया विरहिणी को घेर,

क्यों हुई उन्हें देर ,

डर लगे निशि - अंधेर,

तंग करे मुझे अति काम।


हाय कैसा यह दौर,

गुँथे आपस में बौर,

देख उठे उर - हिलोर,

उठे हूक - सी अँजोर,

रतियाँ कटे जपि - जपि राम।


वृद्ध, पीपल ,वट ,नीम,

कुसुमित पल्लवित असीम,

खाल शुष्क कांत अमलीन,

लाल ओंठ हसित पात हीन,

हुआ अब शीत का विराम।


भौंरे तितली अपार,

हुए मद में सवार,

भरे अंग- अंग खुमार,

नित परागण प्रसार,

दिनांत सज्जित प्रात-शाम।


🪴शुभमस्तु !


28.03.2023◆3.15प.मा.


सोमवार, 27 मार्च 2023

अकड़ 🪁 [ चौपाई ]

 136/2023


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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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दम्भ, अकड़,  घमंड  की समता।

जो अकड़े  नर  क्यों अब झुकता??

अकड़े     सूख    गई   जो शाखा।

ईंधन      बना      उठाकर  राखा।।


शव   बन  गया  अकड़ क्या होना?

उसको   पड़ा   प्राण    निज खोना।।

शव    की   अंतिम   क्रिया  जलाना।

भू    में    दफना     सरित  बहाना।।


मानव  -  अकड़   न  सहता कोई।

लिपि  अंकित   ललाट  सब सोई।।

सरस   विनत    मानव  जो होता।

सुखद  शांति  के   बीज न बोता??


जब  तक    रस्सी   में  बल होते।

अकड़   न   जाती  नर   वे  रोते।।

अकड़    बुद्धि   हर   लेती  सारी।

मुरझाती     नर    की   हर क्यारी।।


जहाँ   धरा    में    तीत  न थोड़ी।

जोती   जाती     और    न गोड़ी।।

ढेले      पड़े    अकड़  दिखलाते।

चलने   में  पग    में   चुभ जाते।।


अकड़   छोड़    सतीत  बन जाएँ।

तब        सादर     मानव कहलाएँ।।

'शुभम्'      कहे   मानो ,मत मानो।

नर - जीवन      विनीत   ही जानो।।


🪴शुभमस्तु !


27.03.2023◆4.00प.मा.

समर्पण 🏕️ [ दोहा ]

 135/2023

     

  

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जहाँ समर्पण भाव है,वहीं भक्ति का रूप।

तदाकार   लेता   सदा,   होता मूर्त  अनूप।।

नम्र समर्पण भाव से,प्रभु के दर जो भक्त।

पाते  हैं   उद्धार  वे,  पाद-पदम्   अनुरक्त।।


नारी  ने  सर्वांग  से, किया समर्पण    गात।

जान हितैषी कंत को,करता 'शुभम्' प्रभात।।

सहज समर्पण भाव से,पति का जीता प्रेम।

देवधाम वह घर बने,सदा कुशल सह क्षेम।।


शिष्य चाहता ज्ञान का,उज्ज्वल'शुभं'प्रभात।

करे समर्पण भाव से,गुरु को धी,मन,गात।।

'शुभम्' समर्पण भाव में,मिट जाता अज्ञान।

सेवाभावी शिष्य का,तनता विशद वितान।।


सीमा पर  प्रहरी  खड़ा,लिए समर्पण  भाव।

दारा,घर, संतति   तजे, भरे देश के   घाव।।

सेवा हित निज राष्ट्र की,भेजा हृदय निकाल।

धन्य समर्पण तात का,जननी हुई निहाल।।


जनसेवा में जो करे,सहज समर्पण  मीत।

प्रभु उसको सामर्थ्य दें,सदा मिले नित जीत।

स्वार्थ भरी यदि सोच हो,झूठा शोषक गिद्ध।

झूठ  समर्पण   बाहरी, चोर  लुटेरा   सिद्ध।।


🪴शुभमस्तु !


27.03.2023◆11.45आ.मा.

श्री रामावतार 🛕 [ चौपाई ]

 134/2023


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✍️ शब्दकार ©

🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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चैत्र     शुक्ल     नवमी   बुधवारा।

लिया     राम     अवनी अवतारा।।

त्रेतायुग       की       कथा पावनी।

राजा      दशरथ     दुःख -  दाहनी।।

 

पुरी     अयोध्या     धाम- कहानी।

नित    नवीन     होती  न पुरानी।।

पापी   बढ़े     दनुज   अति भारी।

आए      विष्णु      रूप अवतारी।।


लखन     शत्रुघ्न भरत सँग आए।

त्रय   जननी     के    भाग सुहाए।। 

जनक  -   सुता   भू  - जाई सीता।

बनी     राम    की   शुभ परिणीता।। 


समय-चक्र   विधि   का   था लेखा।

जाना     नहीं    किसी    ने  देखा।।

सीता - हरण    मरण    रावण का।

लिखा नियति ने था तृण-तृण  का।।


हैं    आराध्य राम       प्रिय    मेरे।

हरते     पल      में     दुःख  घनेरे।।

'शुभम्'   राम-सिय    महिमा गाता।

सत्कर्मों      की      लगन दिलाता।।


🪴 शुभमस्तु !

 

27.03.2023◆ 10.15 आ.मा.

नहीं किसी के साथ अनय हो 🚩 [ गीतिका ]

 133/2023


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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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नहीं    किसी      के   साथ   अनय   हो।

मानव,       मानव     से     निर्भय   हो।।


चोरी       कर       अपना      घर     भरते,

चोरों    के      घर     क्यों    संचय     हो?


हो     गीतों        में     ताल ,  छंद ,   स्वर,

सँग     प्रवाह   के    सुमधुर   लय      हो।


रत           हों      मानवीय      कर्मों      में,

शांतिपूर्ण           जीवन    सुखमय       हो।


मनसा           वाचा          और      कर्मणा ,

अघ    -   ओघों      का    नहीं    उदय   हो।


यदि        जीवन      हो     सदा   संयमित,

दीर्घ      स्वस्थ    मानव    की  वय      हो।


'शुभम्'      कर्म       ही    साथ     निभाते,

जन्म     -    जन्म  वह फल अक्षय     हो।


🪴शुभमस्तु !


26.03.2023◆10.45पतनम मार्तण्डस्य।

मानव से मानव निर्भय हो 🌳 [ सजल ]

 132/2023


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●समांत : अय ।

●पदांत :  हो।

●मात्राभार : 16.

●मात्रा पतन :शून्य।

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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नहीं    किसी      के   साथ   अनय   हो।

मानव,       मानव     से     निर्भय   हो।।


चोरी       कर       अपना      घर     भरते,

चोरों    के      घर     क्यों    संचय     हो?


हो     गीतों        में     ताल ,  छंद ,   स्वर,

सँग     प्रवाह   के    सुमधुर   लय      हो।


रत           हों      मानवीय      कर्मों      में,

शांतिपूर्ण           जीवन    सुखमय       हो।


मनसा           वाचा          और      कर्मणा ,

अघ    -   ओघों      का    नहीं    उदय   हो।


यदि        जीवन      हो     सदा   संयमित,

दीर्घ      स्वस्थ    मानव    की  वय      हो।


'शुभम्'      कर्म       ही    साथ     निभाते,

जन्म     -    जन्म  वह फल अक्षय     हो।


🪴शुभमस्तु !


26.03.2023◆10.45पतनम मार्तण्डस्य।


किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...