029/2025
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आदमी टूटा हुआ है
वर्जनाएँ कौन माने!
आदमी को आदमी में
ढूँढना है अब असंभव,
देह को ही कह रहा है
प्रेम का है आज ये ढव,
आदमी झूठा हुआ है
सर्जनाएँ कौन जाने !
धर्म का सिद्धांत क्या है
जानने की क्या जरूरत,
पाप को ही कर्म माने
बदली हुई है मर्म सूरत,
जिंदगी के अर्थ बदले
संकल्पनाएँ व्यर्थ माने।
पाप धुलते कुंभ में जा
भूलता अब तक नहीं जो,
गिद्ध -सा जो माँस खाए
मान्यता उसकी यही जो,
जीव - हत्या में फँसा है
अल्पनाओं के फसाने।
शुभमस्तु !
22.01.2025●10.45 आ०मा०
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