बुधवार, 11 सितंबर 2024

महिमा विमल चरित्र की [दोहा]

 395/2024

    

 [स्वाद,विषाद,महिमा,विमल,चरित्र]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


               सब में एक

स्वाद मिला जिस जीव को,पावन ब्रह्म स्वरूप।

जग-क्रीड़ा   भाए  नहीं, गिरे  नहीं भव   कूप।।

क्षणिक स्वाद रसना करे,फँसे जीव  रस-जाल।

हो जाए  उदरस्थ  जब, समरस हो सब   हाल।।


योगी  जन  समरस   रहें,  हों  आनंद  विषाद।

सुखी - दुखी  होना  नहीं,  तजें  नहीं  मर्याद।।

सुख  में  सब  नर-नारियाँ,खिलते जैसे  फूल।

हो विषाद अति  दुःख में,ज्यों आनन पर धूल।।


महिमा यश की फैलती, ज्यों दिनकर का तेज।

करता नहीं प्रचार रवि,ध्वनिविस्तारक   भेज।।

अष्ट  सिद्धि  में  एक है,  महिमा तेज   महान।

अणिमा  गरिमा  आदि  का, करते वेद  बखान।।


होता  विमल  चरित्र जो, कहने की क्या  बात!

दूषित   है  यदि  भावना,  करते  ही वे   घात।।

विमल भाव  मिलता नहीं, नेताओं   में   मित्र।

सौ  अवगुण  की  खान हैं, चारु न चित्र चरित्र।।


हो चरित्र यदि  दूध-सा,जतलाने की क्या बात!

मन में   जिनके  मैल   है, करते  ही वे   घात।।

गिरता व्यक्ति चरित्र से,सब कुछ ही   हो  नष्ट।

सौ में से  दस  ही  मिलें,भाव न जिनके  भ्रष्ट।।


                एक में सब

महिमा विमल चरित्र की,प्रसरित करती नाद।

रहता  रहित विषाद से,  पाए षटरस    स्वाद।।


शुभमस्तु!


11.09.2024●4.30आ०मा०

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मेंड़-मेंड़ पर काँस [ गीत ]

 394/2024

            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मेंड़ -मेंड़ पर

काँस झूमते

बुढ़िया जैसे बाल।


लगता बुढ़ा 

गई है वर्षा

बादल भूरे पीत।

शरद आगमन

होने वाला

पवन हुआ है शीत।।


पेड़ नाचते

लहर - लहर कर

फसल दे रहीं ताल।


रहता समय 

नहीं सम प्रति दिन

होता है  बदलाव।

सबके ही दिन

पल -पल बदलें

नहीं लगे सुर्खाव।।


फिर क्यों रे मन!

 करता मन में

तू ये मूढ़ मलाल।


बहता था जल

 जिन दगरों में

उनमें उड़ती धूल।

बहु नव अंकुर

उगे फसल के

हरियल बड़े समूल।।


'शुभम्' सूर्य

जाता अस्ताचल

बदल गया सब हाल।


शुभमस्तु !


10.09.2024●5.30 आ०मा

सोमवार, 9 सितंबर 2024

कैसे होगा असली काम? [ गीत ]

 393/2024

     

    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कैसे होगा

असली काम?

            

कभी पर्व

आए त्योहार,

कभी आ गए

रिश्तेदार,

आँख दिखाए

बिजली रोज,

विविध काम की

नित भरमार।


तनिक नहीं

 मुझको आराम

कैसे होगा

असली काम?


हो जाता

कोई बीमार,

खेती में हैं

खरपतवार,

दवा छिड़कना

बहुत जरूर,

वरना हो

क्यों पैदावार?


वर्षा कभी

कभी है घाम।

कैसे होगा

असली काम?


माँग रहे

बच्चे मोबाइल,

पत्नी है

साड़ी से घायल,

पायल माँग

रहे दो पैर,

जीवन हुआ

सूखकर छुआर।


खाँसी ज्वर है

तेज जुकाम,

कैसे होगा

असली काम?


पैसा मिला

बचा क्या एक?

 टर्राता ज्यों

सर में भेक,

भोजन मिले

नित्य भर पेट,

पड़ा शीश पर

भारी भार।


हुआ   मुझे 

आराम हराम,

कैसे होगा

असली काम?


बनता एक

बिगड़ते चार,

जाल काम का

ऐसा  भार,

आता एक

खर्च दस बीस,

तन मन पर

है गहन प्रहार।


यों ही प्रतिदिन

सुबहो-शाम,

कैसे होगा

असली काम?


शुभमस्तु !


09.09.2024●1.45प०मा०

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एक विधा के नाम अनेक [गीतिका

392/2024

   

©शब्दकार 

डॉ०भगवत स्वरूप'शुभम्'



एक    विधा   के  नाम   अनेक।

लोग   काटते    अपने    केक।।


वही गीतिका     सजल   विधा,

ऊँचा   करते     नाम     अनेक।


कोई   हिंदी     ग़ज़ल    पुकारे,

टर्राते    सरवर     ज्यों     भेक।


विविध     गीतिका   के   पर्याय,

किंचित  अंतर   का   अविवेक।


अलग   शैलियाँ    भाषा   भाव,

थोड़ी    भिन्न     बनी    है  टेक।


कॉमा     हटा   संलग्न   विराम,

सजल  नाम    ही    मानें  एक।


'शुभम्'   लिखें अपना  इतिहास,

उचित   नहीं    इतना   अतिरेक।


शुभमस्तु !


09.09.2024●12.45प०मा०

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सावन के घन [ गीतिका ]

 391/2024

              


सावन   के  घन   काले - काले।

छाए   नभ  में     बड़े    निराले।।


सभी       मनाएँ       रक्षाबंधन,

घर -  घर  में हों   नए   उजाले।


भगिनी    बाँधे   राखी   कर  में,

रक्षक     भ्राता      भोले -भाले।


श्रवण-  चित्र   पुजते हैं घर -घर,

परम्परा   से        पुजने    वाले।


हरी  भुजरियाँ    बहन  बाँटतीं,

हर्ष  मुदित  मन  पर्व   मना ले।


लातीं   बहन    मिठाई    घृतवर,

सावन  सरसे      कजरी  गा ले।


'शुभम्' झरें   झर- झर -झर  बूँदें,

कलकल  सरिता छल छल नाले।


शुभमस्तु !


09.09.2024●9.15 आ०मा०

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सभी मनाएँ रक्षाबंधन [ सजल ]

 390/2024

       

समांत      : आले

पदांत       : अपदांत

मात्राभार   :16.

मात्रा पतन :शून्य


सावन   के  घन   काले - काले।

छाए   नभ  में    बड़े    निराले।।


सभी       मनाएँ       रक्षाबंधन।

घर -  घर  में हों   नए   उजाले।।


भागिनी  बाँधे   राखी   कर  में।

रक्षक     भ्राता    भोले -भाले।।


श्रवण चित्र  पुजते हैं   घर -घर।

परम्परा   से      पुजने    वाले।।


हरी  भुजरियाँ    बहन  बाँटतीं।

हर्ष  मुदित मन  पर्व   मना ले।।


लातीं   बहन    मिठाई    घृतवर।

सावन  सरसे     कजरी  गा ले।।


'शुभम्' झरें   झर- झर -झर  बूँदें।

कलकल  सरिता छल छल नाले।।


शुभमस्तु !


09.09.2024●9.15 आ०मा०

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कठिन राह में रुके नही [ गीतिका ]

 389/2024

       


विपदाओं    ने     ढाले  हैं।

वे जन  बड़े    निराले   हैं।।


कठिन  राह  में  रुके   नहीं,

यद्यपि   पग में    छाले   हैं।


कारा  में    भी   रोक    नहीं,

पहरे  भी    दृढ़   ताले    हैं।


वासुदेव    जी    प्रकट   हुए,

नित   जग   के  रखवाले हैं।


बजी   बधाई     गोकुल   में,

कृष्ण  वर्ण    के    काले  हैं।


ब्रजबाला  सँग   रास    रचा,

भरे    प्रेम    के    प्याले   हैं।


'शुभम्' विनत प्रभु चरणों  में,

कृपा    दृष्टि     ने   पाले    हैं।


शुभमस्तु !


09.09.2024●3.00आ०मा०

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किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...