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सोमवार, 28 अप्रैल 2025

पहलगाम कश्मीर में [ दोहा ]

 217/2025

       

[ पहलगाम,आतंक,हमला,हत्या,सरकार]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                  सब में एक


पहलगाम    कश्मीर   में, निर्दोषों का    खून।

 बहा   रहे    हैं  म्लेच्छ   क्यों, माँगें होतीं  सून।।

पहलगाम  की  वादियाँ, रँगीं  रक्त से  आज।

हमें  आज  आतंक की,सकल मिटानी खाज।।


जान गए आतंक का,क्या मज़हब क्या धर्म।

हत्यारे   कब  जानते,    पाषाणी    है    मर्म।।

आतंकी  आतंक का,  आया अंतिम   काल।

गीदड़ मरने को हुआ, बिल  में पड़ा निढाल।।


मानवता   मरने   लगी,  दानवता का   खेल।

मानव पर  हमला  हुआ,उर का नेह धकेल।।

हमला   है  निर्दोष  पर,नहीं क्षमा का  दान।

मिलना   है  आतंक  को, रहे न छप्पर  छान।।


हत्या  कर  बिल  में  घुसे, कायर क्रूर  कपूत।

सैन्य दलों को मिल रहे,जिनके सबल सबूत।।

जाति  धर्म  को  पूछकर, करते हत्या  नीच।

मानवता  जिनकी मरी,भरी मगज में कीच।।


भाव   भरा  प्रतिशोध  का,जागरूक  सरकार।

खोज-खोज  रिपु  मारती,करके कुलिश प्रहार।।

भौंचक्की    सरकार  है,  भौंचक्के  हैं   लोग।

देश विभाजन जब हुआ, तब  से   है  ये  रोग।।


                   एक में सब

हमला   कर हत्या करें, पहलगाम   में  क्रूर।

जान   गई सरकार   ये, यह आतंक   सुदूर।।


शुभमस्तु!


27.04.2025●7.15आ०मा०

बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

त्रिवेणी में डुबकी [ दोहा ]

 062/2025

              


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


डुबकी  लगा प्रयाग  जा,तीर्थ  त्रिवेणी  घाट।

मेला  मानव  कुंभ  का, लगता  बड़ा विराट।।

गंगा  यमुना  सरस्वती, का   संगम पहचान।

डुबकी   वहाँ  लगाइए, मिटे  पाप की  खान।।


गंगा  जैसी    पावनी,  नदी   जगत  में   एक।

नहीं  मित्रवर   जाइए,  डुबकी   लगा  अनेक।।

बारह   वर्षों   बाद   ये ,   आया  कुंभ   महान।

डुबकी  से  तर  जायगी,अघ ओघों की खान।।


साधु - संत  ज्ञानी  बड़े,ध्यानी शिव के भक्त।

डुबकी ले- ले मग्न   हैं, हर - हर में अनुरक्त।।

नग्न  देह  नागा   चले,  कुछ   हैं  संत  अघोर।

डुबकी   में  अनुरक्त  हैं, भ्रमण करें चहुँ ओर।।


नेता अभिनेता  सभी,  धनिक खिलाड़ी   मीत।

आम  खास सब जा रहे,डुबकी लगा  सप्रीत।।

चोर  गबनकर्ता    चले,  करें  मिलावट   नित्य।

डुबकी से   हलके   करें,  पाप  यही औचित्य।।


डुबकी  से जो पाप भी, धुल  जाते यदि मित्र।

पुलिस  न  रखें   अदालतें, बदलें बुरे  चरित्र।।

जज   अधिवक्ता  व्यर्थ  ही,रखे हुए  सरकार।

डुबकी   से  अपराध  जो,बहें  देह के    पार।।


गंगाजल में   शक्ति   है,धोने   की यदि    पाप।

तो  डुबकी  पर्याप्त  है, मिटें  जगत जन  ताप।।


शुभमस्तु !


04.02.2025● 9.00 प०मा०

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बुधवार, 4 दिसंबर 2024

रंग शुभद हेमंत [दोहा]

549/2024

             

[हठधर्मी,हेमंत,त्याग,साधना,समाज]

                     सब में एक

देश न व्यक्ति समाज को,हठधर्मी शुभ नेक।

होता   हितकारी   नहीं, सोया  हुआ विवेक।।

करना   प्रथम   विचार  ये, ऐ हठधर्मी   मूढ़।

सत्य  नहीं  जो  सोचते,   मेष   पृष्ठ  आरूढ़।।


ऋतु  आई   हेमंत  की,सुखद शीत  विस्तार।

धूप गुनगुनी  भा  रही,तन-मन बढ़ा निखार।।

रंग   शुभद  हेमंत  है,  विकसे गेंदा    फूल।

तितली  उड़ें   पराग ले, ओढ़े   पीत दुकूल।।


त्याग दिया  घर -बार  भी, बुद्ध बने  सिद्धार्थ।

क्यों मानव को  दुःख है, करे मनुज परमार्थ।।

त्याग भाव में  व्यक्ति का, निवसित  परमानंद।

संग्राही    क्या    जानता,रसमयता का   छंद??


मानव   जीवन साधना, करने का  सुविवेक।

जन - जन  को  होता नहीं,करे कर्म की  टेक।।

रहे   साधना  लीन  जो, करे  प्राप्त    गंतव्य।

देवोपम  नर  है  वही, बने  मनुज वह दिव्य।।


करता  है  शुभ  कर्म जो, दे  सम्मान समाज।

बिना कर्म मिलता नहीं,मान न कल या आज।।

सुदृढ़  श्रेष्ठ  समाज  का, साहित्यिक  सम्बंध।

उच्च  शिखर आसीन कर,बिखरे सुमन सुगंध।।

                 एक में सब

हठधर्मी   से जो रहे,   त्याग साधना    हीन।

पल्लव   है हेमंत का,वह समाज  अति  दीन।।


शुभमस्तु !


04.12.2024●5.30आ०मा०

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किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...