292/2023
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छंद- विधान:
1.यह एक वर्णिक छंद है।
2.चार लघु(IIII)+6 भगण ($II)+गुरु($)=23 वर्ण।
3.चार समतुकांत चरण।
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● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
पनघट पै धरि गागर आवति,
श्याम सखी वन कुंज-गली।
ब्रजजन बाट जु देखि रहे घर,
आवति लौटि न मंजु लली??
सब तिय सों बतराय कहें अब,
गैलनु आवति देखि कहीं?
सकुचति बोल कहे सजनी रुकि,
कुंज -गली भुज स्याम गही।।
-2-
उलझत केशनु की लट श्यामल,
देखत ही सकुचाइ गई।
जसुमति रीझि निहारि जटा सिर,
आपन हीयनु मोदमई।।
कर गहि मोरपखा गुहती नव,
पीत झगा पहिराइ रही।
कटि कछनी खुसि बंसरिया,
लवनी निज हाथ खवाइ दही।।
-3-
इत उत क्यों झुकि झाँकि रहे कछु,
खोइ गयौ बतलाउ सखे।
तनि हमको जतलाइ दियौ,
वृषभानु लली कहुँ आइ दिखे।।
कछु वस्तु लई दुबकाइ अमोलक,
कान्ह सखी बतलाइ दियौ।
कत यह बात कहें खुलि कें सखि,
अँचरा में गुम मेर हियौ।।
-4-
जसुमति सों नंदलाल कहें सुनि,
गेंद छिपाइ लई अँचरा।
मुँह बिदकाइ नकारति राधिक,
छूअत जोर करै पचरा।।
तुम अब देउ निकारि सहेजहि,
छीनन आवत है हमकूँ।
अब तकरार बढ़े न कहूँ अति,
मातु बताइ रहे तुमकूँ।।
-5-
जब-जब खोजत राधहिं माधव,
पावत आपन ध्यावन में।
वन-वन भूलत ऊलत डोलत,
ध्यावत पावनता मन में।।
छिन-छिन को नहिं भूल कहूँ सखि,
मो मन से नहिं जाउ कहूँ।
अनुदिन रात न चैन परै अब,
एक घड़ी विलगाव सहूँ।।
● शुभमस्तु !
06.07.2023◆6.00प०मा०