बुधवार, 27 मार्च 2019

आजकल की [छन्द :कुण्डलिया]

तेरे   दर   याचक  खड़े,
ओढ़   शेर  की   खाल।
अवसरवादी  खुदगरज,
चलें   हंस   की  चाल।।
चलें     हंस   की  चाल ,
प्रलोभन   धन  के  देते।
लक्ष्मण -  रेखा     पार,
डाल    झोली  में  लेते।।
गली -    गली   में  घूम ,
लगाते   सौ- सौ    फेरे।
धूल   चाटते   देहलीज,
की    दर     पर    तेरे।।


दाना    उसको   डालिए,
जो   हो   योग्य   सुपात्र ।
दान उसी  को है  उचित,
जनहितकारी      मात्र।।
जनहितकारी        मात्र,
सदा जनताहित करता।
स्वार्थी   कपट   कुचाल ,
तिजोरी  अपनी  भरता।।
देखा -परखा बहुत कुछ,
नहीं  अब भी  पहचाना ?
व्यर्थ      जाएगा    यदि ,
गिध्दों  को डाला  दाना।।


कौआ कोयल गिद्ध जी,
आये       तेरे         द्वार।
चुनना  केवल    एक ही,
असमंजस     भरमार।।
असमंजस        भरमार ,
बाज जी   ताक  लगाए।
जाएँ    कोयल      गिद्ध,
सामने  वह   आ  जाए।
लोकतंत्र को बना दिया,
है      काला      हौआ ।
हंस     मोर     चुपचाप , 
चीख़ते  काले  कौआ।।


भाले    बरछी   कैंचियाँ ,
किसको   लूँ    अपनाय।
चाकू  छुरा   कटार   का,
वार    भयंकर    जाय।।
वार    भयंकर     जाय,
सुई सीती  बस  सीती।
नहीं       बहाती    खून,
भरोसे  अपने  जीती।।
तूती    की     आवाज़,
पड़े   हैं जड़िया  ताले।
शोर कर रहे चकाचोंध,
भर    बरछी     भाले।।


मजे  खिलाड़ी दाँव से,
खेल    रहे    हैं    खेल।
आस धोबियापाट की,
दण्ड    रहे   वे    पेल।।
दण्ड    रहे    वे   पेल ,
पटखनी  उनको दे दें।
सेहरा     बाँधे    शीश ,
चक्रव्यू'  पल   में भेदें।।
पाले    बदले   जा रहे,
नहीं   वे   रहे अनाड़ी।
ऊँची  कुरसी  के लिए,
सज रहे मजे खिलाड़ी।।

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता  ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

गीतिका -गुच्छ

चल    जमूरे    साथ  मेरे,
दारुल   शफा   के शहर।
एक मजमा फिर लगा लें,
नेतानगरी     में     ठहर।।
बात  दारू तक नहीं बस,
चूड़ियों    के    ढेर    भी।
क़ानून   की  नाकों  तले,
हो    रहा      अंधेर    भी।

डुगडुगी   बज  ही रही है,
भीड़   भी   घिरने  लगी।
बन्दरिया   बन्दर    नचेंगे,
चेतना    उर   में   जगी।।
पूँछ पकड़े बंदरिया  की,
खींच  कपि  ले जाएगा।
रूठ   जाए जब बंदरिया,
मनुहारकर फुसलाएगा।।

आज      गठबंधन   बुरा ,
बतला  रहा  है  आदमी।
घर   में   गठबंधन  किए ,
इतरा  रहा  है  आदमी।।
बकरिया  संग   ऊँट का ,
संबंध   भी  निभता रहा।
संगठन   की  शक्ति  का ,
साथ क्यों अब चुभ रहा?

छोड़   पत्नी   दूर  जाते ,
क्यों  नहीं  उनकी तरह?
घर  अकेले   का  बसाते ,
क्यों  नहीं  उनकी तरह?
रांड  के   जो  पाँव  छूती,
मिलता उसे आशीष यह।
तू भी  हो  जा  मेरे जैसी ,
माँग   सूनी   शीश  यह।।

पंक   पर  पहन पटकते ,
पर तुम्हें  भय भी   नहीं? 
दाग़   अच्छे   लग रहे हैं ,
इसमें कहीं संशय नहीं।।
योग्य  दागों  के  बनाया ,
तुमने   दामन  आपका।
भाल निज कालिख़ लगाना,
पहचान संबल आपका ।

💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

मंगलवार, 26 मार्च 2019

जमूरा उवाच (व्यंग्य)

  मदारी ने फिर सवाल दागा,
 कैसे मिलता है सोने को सुहागा ? 
जमूरे बता तो यही ,
तेरी समझ से क्या बात है सही?
कहने लगा जमूरा ,
फांक कर मुँह में मुट्ठी
भर बूरा: 
आपने भी क्या सवाल 
किया है उस्ताद!
सोचकर बताता हूँ बिना
कोई विवाद!
अरे! ये भी कोई खास है!
ये अच्छा खासा परिहास है,
नेता जी के पीछे जुड़ी हुई 
पूँछ!
भले ही न हो चेहरे पर मूँछ !
पर पूँछ तो बहुत लाज़मी है!
इसीसे नेता बड़ा आदमी है!
जिसकी जितनी लम्बी पूँछ
उतना बड़ा नेता ,
भाड़े की हो भले पर जयजयकार का सुभीता,
इसीलिए  तो आए दिन झमझमाती   हैं   रैलियां!
जिनमें खनखनाती हैं
नोटों सिक्कों की थैलियां!
वैसे तो ये जनता मात्र 
एक  चमकीला रैपर है,
मूर्खों के लिए अजीब
गिफ्ट हैम्पर है!
जिसे पेकिंग खुलने के बाद
कचरादान में दान कर देते हैं,
मक्खन निकालकर
 नाली को महान कर देते हैं,
कीमत रैपर की नहीं,
अंदर भरे माल की है,
चमकीला मजबूत आकर्षक
होता है रैपर,
'यूज एंड थ्रो' का फार्मूला
बेशक!
 रैपर से ही माल ऊँचे 
दाम पर बिकता है,
हवा से भरा चिप्स- पैकिंग
कितना महँगा चलता है,
जनता - रूपी  रैपर में
हवा ही तो भरनी है!
जिससे उनकी दुकान
खूब- खूब  चलनी है,
रैपर का महत्व 
पैकिंग बिकने तक,
उसके बाद नाली सड़क गली
कचरा और कूड़े  का पथ!
यही तो नेताजी के लिए
सोने में सुहागा है,
लगना तो ज़रूरी बहुत
सुहागे का  टांका है,
उत्प्रेरक जो ठहरा,
काम के बाद 
'गेट आउट' दुल्हेराजा का सेहरा,
दूल्हा दूल्हा है 
सेहरा सेहरा है,
अँधेरे में चमक के बाद
वह अंधा और बहरा है!
रैपर का तेवर 
बस एक इंच गहरा है।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍏 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

रविवार, 24 मार्च 2019

मदारी और जमूरा (व्यंग्य)

आइए !  आइए!! आइए!!!
खेल   की   शोभा बढाइये!
बहनो ! भाइयो !! भाभियो!!!
लोकतंत्र     की    चाभियो!
तुम्हारी गली में आ गया फिर मदारी!
पोटली अपनी  इस ग्राउंड में
उतारी!
नए -  नए खेल  करतब  भी  दिखलायेगा,
दिखाए बिना खेल नहीं यहाँ से जाएगा,
हँसेगा रोयेगा पर तुमको 
बहलाएगा ,
जरूरत पड़ी तो आहिस्ते -आहिस्ते सहलायेगा।
अरे ओ जमूरे तू किधर है
कहाँ है ,
आया उस्ताद मेरी तशरीफ़
यहाँ है ।
कहिए फरमाइए क्या हुक्म
मेरे आका ,
कसम है तुझे जो इधर -उधर
झाँका !


मदारी बोला :खेल दिखलाएगा ?
हाजिरजवाब हुआ जरूर दिखलाएगा।
कुछ सवाल हैं तुझसे जवाब
देगा ?
क्यों नहीं मेरे आका क्यों नहीं देगा ? 
तो बता : तू नेता की कहेगा  या जनता की ?
-कहूँगा तो हक में बात सिर्फ़
नेता की ! 
-क्यों क्या तुझे जनता से नहीं कोई वास्ता ?
-मेरा तो भला करते हैं नेताजी
हर रास्ता।
जनता से मुझे क्या लेना देना है ?
मुझे तो अपने नेता के चरण-
चुम्बन करना है।
जनता तो भेड़ है किधर भी
चली जाएगी !
जो होगा भुजबली उसकी गोद में लिपट जाएगी।
धनबलियों ने मीडिया तक
खरीद लिया!
सुन सुनकर टी वी पर नेताजी
का मुरीद हुआ !
 अरे उस्ताद ! तुम जनता की
बात करते हो!
ये बे पेंदे के लोटे हैं  जो किधर भी लुढ़कते हैं!

मदारी बोला :तुझे जनता के बीच नहीं रहना है ?
बता इस सवाल पर तुझे क्या
कहना है ?
कहने लगा जमूरा : जनता वही है जो नत है नेता के
 आगे! 
नेता के जबड़े से औऱ कहाँ
भागे?
मैं तो नेताजी का अच्छा खासा चमचा हूँ,
कभी खीर में कभी चासनी
में लिपटा हूँ।
ना ! ना!! ना !!! मुझे भेड़ों
का  साथ  नहीं  भाता !
जनता को तो बस नेताजी
के पीछे लड़ने में मज़ा आता!
वीडियो   बनाते हैं,
झूठी खबरें छपाते हैं,
उनके अंधे भक्त बन
हर हथकंडे अपनाते हैं,
आपस में लड़ते हैं इन्हीं
नेताजी के लिए!
जैसे सड़कों पर कुत्ते एक
टुकड़े के लिए! 
ठीक है जमूरे तेरी जैसी मर्ज़ी,
तेरी बात कभी होती नहीं फ़र्जी।
-ये भी तो बता दे जीत किसकी होगी।
-हारेगी जनता जीत नेताजी की होगी।
जनता तो सदा  नेता के लिए ही होती है।
उसी के लिए हँसती है उसी के लिए रोती है ।
उपभोग की वस्तु है उस्ताद जी ये जनता,
उपभोक्ता है नेता जी एस टी भी नहीं देता! 
इतना भी बता दे जमूरे  यदि नेता न हों तो क्या हो! 
ऐसा ज़ुल्म मत करना उस्ताद चमचे भूखों मर जायेंगे!
सियासत रहेगी जिंदा तो ये भी तर जाएंगे।
सियासत- भक्तों और चमचों की इनसे ही चलती है रोटी,
सचिवालय के भीतर बाहर
फिट करते हैं यही गोटी!
विश्वास न हो तो दारुल शफा 
जाकर मजमा लगाओ!
बगबगे सूट में  उनके दर्शन
कर आओ।
चल ठीक है आज ही
 गोमती में टिकट बुक कराते हैं,
 कल का मजमा दारुल शफा के गेट पर लगाते हैं।

💐शुभमस्तु !
✍लेखक /रचयिता ©
🙉 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

शनिवार, 23 मार्च 2019

बज गई डुगडुगी (दोहे)

डुगडुग बजती डुगडुगी,
टी वी      टी वी     शोर।
मस्त    मदारी   मदभरे,
फिरते     चारों     ओर।।

बंदर  बंदरी   नाच   का ,
लेने      को      आनंद ।
बच्चे     ताली     पीटते ,
मोद  मग्न  लय  छन्द ।।

जनता   बंदर    बंदरिया ,
खड़ी     देखती     खेल।
नारों    से    कैसे     चले ,
लोकतंत्र     की      रेल ।।

मीठे     दाने     डालकर ,
ललचाते     खग    कीर।
जिसने फांसे अधिकतम,
वही      विजेता    वीर।।

मित्र   तमाशा  मत बनो ,
लो      दर्शन -  आनन्द।
जगहांसी  का शौक़ जो,
कूद   पड़ो   मत -द्वंद्व ।।

मन्त्र  बिना क्या तन्त्र है,
तंत्र    बिना   क्या  यंत्र।
देश  यन्त्र  है लोक का ,
मानव    हुआ   स्वतंत्र।।

तुम बंदर    तुम बंदरिया,
बँधे    कपट   की   डोर।
दुम जिसकी भी उठ गई,
कहलाता     वह    चोर।।

कसकर दुम चिपका खड़ा,
नज़र  आ गया  काश!
जनता  में  होगी हँसी,
होगा        पर्दाफाश।।

जोर ज़ुल्म अपराध ही ,
जिनकी   ऊँची    शान।
टिकट उन्हें पहले मिले,
जहाँ  नोट    की खान।।

बलात्कार    दुष्कर्म  के ,
डिग्रीधारक          धीर।
ताल    ठोंक    मैदान में,
खड़े    बहुत    रणवीर।।

सीमाओं    को  पार कर,
संपत्ति    जिनके    पास।
पहला हक है टिकट पर,
वे   क्यों     रहें   उदास।।

💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

जबर मारे और रोने भी न दे (व्यंग्य)

   राजनीतिक शब्दावली में जनता को जनार्दन कहा जाता है। यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी मूर्ख को पोदीने के पेड़ पर चढ़ा दिया जाए। इसका तात्पर्य समझाने बताने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि आप तो बहुत बड़े समझदार हैं ही।इसी प्रकार देश के राजनेता कहते हैं ,जनता जनार्दन है। जनार्दन अर्थात भगवान। ऐसा इसलिए कि उसके वोट से सरकारें बनती बिगड़ती हैं। बस इतनी सी बात के लिए तो जनता ईश्वर है , भगवान है, परमात्मा है , नियन्ता है। लेकिन सरकारें बनने के बाद उसका भगवानत्व उससे छीन लिया जाता है।उसे उसके भगवानत्व से हीन किया जाता है। फिर वह जनार्दन नहीं रह जाती। कही जरूर जाती है। पर कहने और करने में भगवान और भिखारी का अंतर है। जनता का यह तत्व नेता में स्थानांतरित हो जाता है।
   इतना ही नहीं आगे चलकर तो यह लोकोक्ति शत प्रतिशत कसौटी पर खरी उतरने लगती है कि " जबर मारे औऱ रोने भी न दे "। सरकार सत्ता और नेताओं के प्रति कुछ भी लिखने और बोलने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। वही बोलो जो सत्ता चाहे, वही लिखो जो सताने वाला चाहे, वही वीडियो और डालो जो उनके वोट बैंक के ए टी एम को खाली न कर दे। उनके वोट बैंक के वीडियो को गोबर पर क्रीम लगाकर पेश करो। कीचड़ की बदबू को सुंदर -सुंदर लाल महकते फूलों से ढांक दो। बस फूल ही फूल दिखने चाहिए। कीचड़ नज़र न आ जाए। इसलिए विरोधियों के विषय में कुछ भी कहो, पर उनको प्रकाशित न करो। यदि किसी ने हिमाकत की , तो उसे अमुक -अमुक धारा में कैद में डाल दिया जाएगा।जुबान पर ताला लगा के रखो। ऐसा वैसा बोला कि हथकड़ियाँ तैयार। क़ानून की भाषा में इसको तानाशाही कहा जाता है। जनता की जीभ पर सेलोटेप चिपका कर वही कहलवाना जो वे चाहते हैं,इसी को कहते हैं जबर मारे और रोने भी न दे।
वे ज़ुल्म भी करते हैं
 तो शिकवा नहीं होता, 
हम आह भी भरते हैं तो 
हो जाते हैं बदनाम। 
   कभी -कभी यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि क्या इसी प्रजातंत्र कहा गया है? क्या जनता को तानाशाही की भट्टी में झोंकना शासकों का अनिवार्य धर्म है? क्या इसीलिए जनता को जनार्दन कहा गया है? विष्णु भगवान पर भी जो ताना शाही का चाबुक चला दे , वह कोई महा भगवान ही हो सकता है। चित भी मेरी पट भी मेरी , अंटा मेरे बाप का। इसी को कहते हैं। टीवी चैनल और अख़बार तो बिक गए ,अब जनता को भी खरीदने की फूल प्रूफ तैयारी है। जनता तो मुर्गी का चूजा है , दबा लो पंजे में । जाएगी तो जाएगी कहाँ! यदि दब गई तो ठीक , नहीं तो गर्दन मरोड़कर नाश्ते के काम आ ही जाएगी। बेचारी जो ठहरी। जनता जनार्दन नहीं, उनका जर्दा तन है।वोटवर्धन है। पुरानी कहावत ग़लत नहीं हो सकती : जबर मारे ,और रोने भी न दे। आज के संदर्भों में सोलहों आने सच है । चालीस सेरा सच है।

💐शुभमस्तु !
🤡 लेखक ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'!

गुरुवार, 21 मार्च 2019

आज होली हम खेलेंगे [गीत]

तुम्हारे संग आज होली हम खेलेंगे।
तुम्हारे नाज़-नख़रे सभी हम
झेलेंगे।।

मुलायम गौर चिकने गाल हैं तुम्हारे।
नागिन से लहराते बाल हैं तुम्हारे।।
आँखों में शर्बत होठों पर लाली।
चितवन तुम्हारी बड़ी ही निराली।।
भाँग भरी गोली भी हम झेलेंगे।
तुम्हारे संग आज ....


रंगों से भरी है मेरी पिचकारी।
छोड़ेगी लम्बी लाल रंग की धारी।।
लगे जो कमर पर कमर झुक जाए।
पनघट पर पनिहारिन देख रुक जाए।।
अंडे भी तुम्हारे हम से लेंगे।।
तुम्हारे संग आज....


मैसम है गुलाबी तन-मन गुलाबी।
मैं तेरा देवर तू मेरी भाबी।।
ऊपर से नीचे तक रंग में डुबाएंगे ।
मादक  अदाओं से तुमको लुभाएंगे।।
गुझिया तुम खिला दो हम पापड़ बेलेंगे।
तुम्हारे संग आज ...


रंगों से भरे हैं ये फूले गुब्बारे।
नयनों से झरते हैं रंगों के फुव्वारे।।
लाल हरी चोली भी गीली कुछ बोली।
अँगिया भी चिपक रही हरी लाल नीली।।
गुब्बारे का बदला पिचकारी से ले लेंगे।
तुम्हारे संग आज ....


चंदन अबीर रंग उड़ता गुलाल है।
मन में तरंगों की ताल का सवाल है।।
नृत्यलीन मंडली  ढप ढोल मंजीरा है।
होली में फ़ाग  गाया जा रहा कबीरा है।
रंगों के साथ 'शुभम' कीचड़ न  पेलेंगे।
तुम्हारे संग आज ..........।।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

कीचड़ माई की जय (व्यंग्य)

   सपूतों की माताएँ सदा से उस सम्मान की अधिकारिणी मानी जाती रही हैं, जिन्होंने अपनी कोख से सपूत को जना होता है। ऐसा नहीं कि पिता सम्मान का अधिकारी न हो, किन्तु ये संसार प्रत्यक्ष को कुछ ज़्यादा ही महत्त्व प्रदान करता है। पिता तो पर्दे की चीज़ है। भले ही जन्म के बाद पिता का ही नाम अधिक चलता है। ये अलग बात है कि आज पिता के साथ साथ माता का नाम लिखने का फैशन शुरू हो गया है। माता पर्दे में ही रहती है। वह पर्दानशीं जो ठहरी ! जब वह भी पर्दे से बाहर आने लगी , तो पिता के नाम के साथ अपना नाम भी लिखाने लगी। केवल इन्होंने ही नहीं , सपूत के जनन में इनका ही नहीं , मेरा भी नौ महीने का योगदान है। इनके बिना गर्भ धारण नहीं हो सकता था ,ये ठीक है। लेकिन मेरे नौ महीने के कठिन तप का भी तो नाम प्रकशित होना ही चाहिए।पिता ने सोचा ,चलो तुम भी लिखा लो अपना नाम। बेटा तो मेरा ही कहेगी दुनिया। हाँ, तुम्हारे मैके वाले जरूर तुम्हारा ही बेटा कहेंगे। कोई बात नहीं ,तुम्हारी ख़ातिर ये भी सहेंगे।
   इसीलिए तो कहता हूँ कि कीचड़ मैया की जय। जिस कीचड़ मैया ने कमल जैसा पूत ही नहीं , सुपूत जना, जिसके नाम से इन्सान इतना तना कि एक दल ही बन गया घना। अब किस- किस को करोगे मना कि ये तो कीचड़ मैया ने जना , इसलिए इससे रखो एक दूरी बना। पर जिसका पूत पूत से सुपूत हो जाए ,लक्ष्मी का आसन कहलाए , देवों के सिर चढ़कर इतराए, उसकी माता के किछड़पन को कौन याद रख पाए। पर कमल की मैया कितनी सोभाग्यशालिनी है कि उसके सुपूत का सर्वोच्च सम्मान है। किसी भी फूल को न इतना मान है, न इतनी ऊँची शान है । कीचड़ से जन्म लेकर भी जल तक से निर्लिप्त। ऊपर आया कि लुढ़काया। पर पूर्वजों ने कहा है कि माँ पर पूत पिता पर घोड़ा, बहुत नहीं तो थोड़ा-थोड़ा इस कथन के आधार पर तो जब तक माँ में अच्छे लक्षण नहीं होंगे, तब तक वे महान गुण संतति में आ ही नहीं सकते। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि निश्चय ही कीचड़ मैया पूजनीय, वंदनीय , सम्माननीय और अभिनंदनीय है।उसने अवश्य कोई ऐसी गुप्त तपस्या की है, जिससे उसे कमल जैसा सुपूत मिला । थोड़ा बहुत अनुमान तो लगाया ही जा सकता है।इसके लिए कीचड़ के जन्म के विषय में जानना आवश्यक होगा।
   आपके घर की सफाई, घी, डालडा, तेल की खवाई, माखन, क्रीम की चिकनाई, फ़ल, सब्जी, दाल  रोटी ,दूध-मलाई, घर की नाली में जन्मी कीचड़ माई। ताल- तलैया, तक गहरे में पहुँचाई, जहाँ कमल से कीचड़ की कोख हरियाई। पंक- पिता के सानिंध्य में कमल जैसे सुपूत को जनमाई। इसलिए धन्य कमल की माई। जानो सब बहना भाई।। इसलिए तो बोलता हूँ कि
कीचड़  माई की  जय!
कमल - जननी की जय!!
कमल - नयन की जय!!!
कमल -  चरण  की जय!
कमल - वरण  की जय!!
कमल -शरण की जय!!!
कमल -वदन  की जय!!!
कमल - गुणन  की  जय!
कमल - सुजन की जय!!

 शुभमस्तु !
✍लेखक ©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

रंग रँगीले दोहे

श्याम   रंग  में  मत रंगो,
यह  अचरज  की  बात।
पहले ही  तुम  श्याम थे,
जैसे      काली      रात।।

जिनके  चेहरे  श्याम  हैं,
दामन     काले    स्याह।
होली  में  उनकी गज़ब,
कैसी    अद्भुत     चाह।।

मन  हैं  काले पंक - से
तन पर  मले    गुलाल।
माथे  पर चंदन -महक,
नेताजी    का     हाल।।

धवल  वसन तन शोभते,
चटख    होलिका     रंग।
मन हैं जिनके  दुग्ध सम ,
'शुभम'  न    होना  दंग।।

होली  तब    अच्छी लगे,
मन    हो  निर्मल    नीर।
कीचड़ पर कीचड़ लगी,
जैसे     कौआ      कीर।।

करतलकालिख पोतकर,
चेहरे     रहे        बिगाड़।
बैठे   नाव     चुनाव  की,
कर  होली    की आड़ ।।

केसरिया     नीले     हरे,
होली    के   रंग    लाल।
पिचकारी  ले - ले  खड़े,
जनता  की   कर  ढाल।।

असली   होली खेल लो,
फ़सली    का  इंतज़ार।।
किसका रंग किस पर चढ़े,
यह     जाने    करतार।।

विदा हुआ फ़ागुन 'शुभम',
चेतो   पहला   मास।
चैत्र मंजु  मधुमास है,
ऋतुराजा  का  वास।।

होली की ज्वाला जले,
जलें    वैर       विद्वेष ।
मानव-उर की कीचड़ें,
कण भर   रहें न शेष।।

साँवरिया ब्रजभूमि का,
लिए   गोपियाँ    साथ।
होली   खेले    झूमकर ,
'शुभम'   नवाए   माथ।।

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
🎊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

बुधवार, 20 मार्च 2019

मैं आया! आया!!आया!!! [गीत]

मच्छर   ने   गीत  सुनाया -
मैं आया! आया!! आया!!!
मौसम  मनमोहक  मादक,
मनभाया    साया    छाया।।

होर्डिंग   बैनर     वर्जित   हैं,
परचे  भी    नहीं     छपाए।
परिजन  चमचे  सँग  लेकर,
हम    खून    चूसने    आए।।
शोभित   नालियाँ     अँधेरा,
मच्छर महिमा  दल-बल से।
कानों     में   गीत   सुनाते,
चूसते नहीं    छल - बल से।
लगता    है   अपना   भैया ,
चरखा  चुनाव  का  लाया।
मच्छर ने गीत ....


धीरे  -   धीरे      गर्मी    भी ,
अनुकूल       हमारे     होगी।
परिवार     बढ़ेगा     अपना ,
और  मलेरिया      के  रोगी।
रैली     अपनी     निकलेगी,
भाड़े   पर  मच्छर    लेकर।
बाइक   न    कार    चलेंगी,
जायें       संदेशा      देकर।।
अपना  तो    धर्म  यही   है,
जिसे  खून  चूसना   आया।
इस धरती  पर  वह  प्राणी,
मच्छर   प्यारा   कहलाया।
मच्छर  ने गीत....


तन  तो    अपना  काला  है,
पर काला   धन   नहीं मेरा।
जो बहता   मानव-  तन में,
वह   लाल  रक्त   है  मेरा ।।
मैं    भारतीय    हूँ    सच्चा,
उड़ता न   यान में    ऊपर।
जाता न कभी मैं स्विस भी,
रहता।   हूँ।   केवल भूपर।
झूठे     भाषण  दे     देकर,
अख़बार  न कभी छपाया।
मच्छर ने गीत .....


मीठे       आश्वासन   देकर,
ठगता न किसी  को मच्छर।
डिग्री  से    रहित   अनाड़ी,
भैंस   सदृश    हर   अच्छर।
दंशन  का    मुझे    भरोसा,
पंखों  की   शक्ति  निरंतर।
बल भरती   रहती   तन में,
यह  मानव -मच्छर अंतर।।
छोटा - सा    पेट   हमारा ,
छोटी -सी   अपनी काया।।
मच्छर ने गीत ..........   ।।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

गुरुवार, 14 मार्च 2019

ऊँट आया पहाड़ के नीचे [अतुकान्तिका ]

अब ऊँट आया है
पहाड़ के नीचे,
अहंकार ने 
इसके मरुथल सींचे,
अपने कूबड़ को
रहा है भींचे,
पड़ गया है
अब तो कोई
उसके पीछे।

विवेक की आँखों पर
 पड़ा हुआ पर्दा,
हो गया था 
इकट्ठा बहुत ज़्यादा गर्दा,
हटना ही था,
हटाना ही था।
बकरे की अम्मा
कब तक खैर मनायेगी,
कटने के लिए जन्मा
कटना ही था।

उठाए हुए ऊँची 
नाक अब बची ही कहाँ?
कर रहा है थू! थू!!
सारा  जहाँ',
अपनी औक़ात से
बाहर जो जाएगा,
इसी तरह 
अपनी ही
 जग हंसाई  कराएगा,
न सही प्रत्यक्ष
झुकाए हुए अपनी गर्दन
पहाड़ से नज़र
 नहीं मिलाएगा।

 सहलाने वाले
चिकने -चुपड़े नागों से
होशियार 
सदा रहना है,
इनकी सरसराहट भरी
बातों में नहीं
रीझना है।
ये सपोले ही 
आस्तीन के
 काले विषधर हैं,
मौके की तलाश में
अभी बिल में 
जा छुपे उधर हैं,
नज़र रखनी है
चौकसी भी पूरी,
बनाये रखनी है बराबर
एक निश्चित दूरी,
कितना भी दूध
 पिलाओ इनको,
न कभी अपने हुए हैं
न कभी अपना
समझना इनको।

खुल ही गई है
अब पूरी तरह
पोल इनकी,
ऊँट के गले की
आदत नहीं
जाएगी कभी इनकी।

न रहेंगे ये ऊँट
न सपोले नाग सभी,
मिटा के रहेगा
पहाड़ कुचल के
रख देगा तभी।

💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

नेता हमारा सौभाग्य हैं [व्यंग्य]

   हमारा और हमारे देश का यह परम सौभाग्य है कि यहाँ नेता हैं। नेता हैं इसलिए देश आगे जा रहा है।' नेता ' शब्द का शाब्दिक अर्थ भी तो यही है ' आगे ले जाने वाला'। देश को आगे ले जाना है ,यह तो वे अच्छी तरह जानते हैं, किन्तु कहाँ ले जाना है ? कितना आगे ले जाना है ? किस ओर आगे ले जाना है ? ऊपर की ओर या नीचे की ओर? उजाले की ओर या जाले की ओर? अंधकार की ओर या प्रकाश की ओर? इसका अभी उन्हें ज्ञान नहीं है ।बस आगे ले जाना है। सो वे आगे ले जाने में जुट गए हैं। आगे ले जाते ले जाते यदि ज़्यादा आगे निकल गए तो भी खतरा है। क्योंकि यदि चालक वाहन चलाते -चलाते दिल्ली जाते समय दिल्ली से आगे निकल जाए तो लौटना ही पड़ेगा। वक़्त भी ज़्यादा बर्वाद , ईंधन भी ज़्यादा जलेगा।अंततः लौटना तो पड़ेगा ही। यदि आगे आगे चलने की होड़ में इतना भी आगे चले गए कि थल से सागर में ही गोते खाते लगे, तो भी मुसीबत। इसलिए देश को ज़्यादा आगे ले जाना भी ख़तरे से खाली नहीं है। अरे माननीयो ! देश को आगे तो ले जाइए पर सोच -समझ कर ही आगे बढ़िए। 
   देश को आगे ले जाना, पर इतना मत भूल जाना कि यहाँ की जनता ,जिसमें आप अपने को शामिल नहीं करते , पर हैं तो आप भी शामिल। क्योंकि आप पहले जनता हैं , फिर नेता । जनता ही नेता की जन्मदाता है , जन्मदात्री भी है। जनता नहीं , तो नेता भी नहीं। इसलिए मानो या न मानो पहले आप जनता , बाद में आप नेता बनता। ये अलग बात है कि आप जनता की नहीं सुनता। जनता की नहीं मानता। क्योकि आप इस देश के सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणी हैं। बुद्धिमान होने के लिए एम .ए., पी एच. डी.की डिग्रियाँ हासिल करना जरूरी नहीं है। इसके लिए बुद्धि चाहिए बुद्धि। पढ़ने लिखने का बुद्धि से कोई सम्बन्ध नहीं है।तमाम एम.ए पास निरे मूर्ख मिल जाएंगे। और तमाम अँगूठा छापने वाले नेता आई ए एस को भी आदेशित करते हुए मंत्री बनकर डाँटते -फटकारते , उनकी सी आर लिखवाते , सजा के रूप में ट्रांसफर करते , धमकियाते, गरियाते, जुटियाते मिल जाएंगे। ऐसे देश के कर्णधारों पर देश को गर्व है कि वे देश को आगे ले जाने के लिए शिक्षा , शिक्षक और शिक्षालयों को कोई महत्व न देकर सिर्फ़ औऱ सिर्फ़ अपनी बुध्दिमता को ही सलाम करते हैं। जब वे करते हैं तो हमें अर्थात देशवासियों को उन्हें सलाम करना मज़बूरी हो जाती है। अरे भई! देश को आगे जो ले जाना है। 
   आए दिन टी वी चैनल, नेताओं के भाषण , अख़बार सभी चिल्ला चिल्लाकर आंकड़े पेश कर रहे हैं कि देश कितना आगे बढ़ गया है। कितने शौचालय बने , भले ही कागज पर बने, पीली ईंटों और बालू से चिने, पर बने तो सही। कुछ प्रधानों की प्रधानता से बने , कुछ सचिवों की महानता से सने -पर बने। जो खांड खुंदेगा वही खांड खायेगा भी , सो ये नेता प्रधान जी नाली , खड़ंजा, शौचालय , निर्माण में 45 परसेंट खांड खा रहे हैं , तो आपकी जेब से क्या जा रहा है। सरकार का है सरकार के नेता- प्रधान , प्रधान - नेता , अधिकारी -नेता , अधकृत नेता , खा रहे हैं। तो जनता को क्यों आपत्ति हो? वे सभी मिल कर देश को आगे ले जा रहे हैं। यही तो माननीय नेताओं का कर्म है , धर्म है। सौभाग्य है देश का कि हमें ऐसे देश को आगे ले जाने वाले नेता मिले हैं। 
देश के नेता जिंदाबाद! 
जिन्दाबाद , जिन्दाबाद!!

शुभमस्तु!
✍ लेखक©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

मच्छर - उवाच [अतुकांतिक ]

भू भुवन के वासी इंसान,
हम भी हैं 
अपने माँ-बाप की संतान,
किन्तु हमारी रगों में
बहता है 
तुम्हारा ही रक्त ,
इसीलिए तो हैं
हम आप इंसानों के भक्त,
मिश्रित ही सही
कभी तुम्हारा 
कभी उनका
रक्त हम पीते हैं,
तुम्हारे ही रक्त से
तो हम जीते हैं,
हमारा और तुम्हारा 
है बहुत ही निकट का रिश्ता,
तुम्हीं तो हो
हमारे लिए फ़रिश्ता,
तुम्हारे ही भाई -बहन हैं हम
बहुत ही आभार तुम्हारा,
जो हम जीवन धारण करते हैं
उसका तुम ही हो सहारा,
और उधर तुम
हमारे संहार के लिए,
बनाते हो टनों मनों
कॉइल , ऑल आउट,
गुड नाइट, अगरबत्तियां,
जिनसे उजड़ जाती हैं
हमारी बस्तियां,
बड़ी -बडीं हस्तियाँ।

हमारे विध्वंश के लिए
न जाने क्या - क्या बनाते हो,
लगाते हो बिस्तरों पर
मच्छरदानियाँ,
फिर भी हमें
नहीं रोक पाते हो।

चोरी से नहीं,
पहले तुम्हारे कान में
सुनाते हैं संगीत मधुर,
उसके बाद चुपके से
चूस ही लेते हैं,
तुम्हारा लाल लोहू सुघर।

अवसरवादी हैं हम पूरे
माननीय नेताजी की तरह,
अपना काम कर ही लेते हैं
समस्त आवरणों को भेदकर,
इतने भी दुस्साहसी हैं हम,
कि मरने से नहीं डरते हैं,
अपने विश्वास की रक्षा 
इसी दर्शन से करते हैं,
कि आत्मा अमर है
पुनर्जन्म होना ही है,
अगले जन्म में
योनि परिवर्तन करके
सांसद विधायक मंत्री जी
बनना ही है,
काम तो बस वही 
इस मच्छर -योनि का,
तुम्हारे रक्त से अपना 
और अपनों का 
उदर भरना ही है।

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

शनिवार, 9 मार्च 2019

झूठ का पुलिंदा [व्यंग्य]

आज के युग में :
झूठ   बराबर    तप नहीं,
साँच       बराबर   पाप।
सत्तासन      पावे    वही,
सौ     झूठों     का  बाप।।
सौ      झूठों     का  बाप,
झूठ  चुन -चुन कर बोले।
मुख    का  कमल  खुले,
झूठ    के    दागे   गोले।।
नेता   बनना   हो  अगर,
गलत    कहने  भी  छूट।
अधिकाधिक बोलो सदा,
झूठ   झूठ     बस   झूठ।।

   बहनो और भाइयो ! आप इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि आदमी को समय। के अनुसार चलना चाहिए। पहले के विद्वान लोग इस बात को ठोक ठोक कर कह भी गए हैं कि :
'जैसी बहे बयार तबहिं तैसौ रुख कीजै। ये कल युग है ।
अर्थात आज का काम कल पर टालने का युग। क्या बाबू क्या अधिकारी, क्या नेता क्या सत्ताधारी, क्या प्राइवेट क्या सरकारी , क्या पंचायत क्या दरबारी-सभी कल की कला से निष्णात स्नातक हैं। कुछ लोगों ने तो इसमें परास्नातक क्या पी एच डी की उपाधि हासिल कर रखी है। टेलर मास्टर सिले हुए कपड़े देने का वादा दो चार दिन नहीं, दो चार हफ़्ते तक टाल देता है। कल दे देंगे , कल दे देंगे कल जरूर दे देंगे -कहता हुआ सभी को कल की कला से आभायमान करता रहता है। इसी प्रकार बाबू किसी के भी काबू से बाहर है, कल का वादा करके महीने निकाल देना उसके बाएँ हाथ का खेल है।
   देश का नेता देश के जनता जनार्दन की सारी अक्लबन्दी का ठेकेदार अकेला ही है। उसकी मान्यता ये है जितनी अक्ल भगवान ने इस पृथ्वी लोक पर बांटी है , उसका 80 फ़ीसदी हिस्सा तो उसका और उसके पूज्य पिताजी का है ही। बाकी बची 20 फ़ीसदी। उसमें से 10 फ़ीसदी बाबू और अधिकारियों के पास है। बाक़ी 10 फीसदी जनता जनार्दन की है। जिसकी लाठी में दम हो वह उतनी ले लेता है। अक्ल के पीछे लट्ठ लेकर चलने का यह सुनहरा युग है।सो लोग उसके पीछे पीछे लट्ठ लेकर चल पड़े हैं। उनकी तो 80 फ़ीसदी सुरक्षित ही है। जब उसमें झूठ का मक्खन औऱ ग़लत तथ्यों की मिसरी मिश्रित कर दी जाती है , तो जो रसायन तैयार होता है , उसे जनता को बांट दिया जाता है। चूंकि झूठ औऱ ग़लत का प्रसाद केवल आम जनता में वितरित करने के लिए होता है, इसलिए उसको 100 फ़ीसदी सच और ईश्वरीय वाणी मानकर उस पर बिना किसी विरोध, बिना किसी स्पीड ब्रेकर , बिना किसी हिचकिचाहट के सहर्ष शिरोधार्य कर लिया जाता है। कोई जाँच आयोग नहीं बिठाया जाता। अरे भई! क्या देश के इतने बड़े नेता कोई झूठ बोलेंगे? ये मानते हुए जनता उसे हज़म कर जाती है। उनकी नज़र में जनता तो भेड़ ठहरी, नितांत मूर्ख औऱ अज्ञान की पर्याय। धन्य है भई ! झठ हो तो ऐसा कि कोई उँगली तो क्या ज़ुबान नहीं खोल सकता। खोलेगा कैसे , वे खोलने देंगे तब न ! अर्थात पूरी तानाशाही। बोलने की स्वतंत्रता के मानव -अधिकार का शायद संशोधन कर लिया गया होगा। हमारी इच्छा औऱ आदेश के विरुद्ध कोई कुछ भी नहीं बोल सकता। जो कुछ भी बोलेंगे, हम ही बोलेंगे। हमारा हर वचन पत्थर की लकीर है। जानते नहीं राजा ईश्वर का अवतार होता है। जनता ने समर्थन किया । आप बिलकुल सोलहों आने सच फ़रमाते हैं, -राजा ईश्वर का अवतार होता है। इसलिए उसे कुछ भी बोलने का पूरा अधिकार होता है।बहनो और भाइयो ! आप इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि आदमी को समय। के अनुसार चलना चाहिए। पहले के विद्वान लोग इस बात को ठोक ठोक कर कह भी गए हैं कि : 'जैसी बहे बयार तबहिं तैसौ रुख कीजै। ये कल युग है । अर्थात आज का काम कल पर टालने का युग। क्या बाबू क्या अधिकारी, क्या नेता क्या सत्ताधारी, क्या प्राइवेट क्या सरकारी , क्या पंचायत क्या दरबारी-सभी कल की कला से निष्णात स्नातक हैं। कुछ लोगों ने तो इसमें परास्नातक क्या पी एच डी की उपाधि हासिल कर रखी है। टेलर मास्टर सिले हुए कपड़े देने का वादा दो चार दिन नहीं, दो चार हफ़्ते तक टाल देता है। कल दे देंगे , कल दे देंगे कल जरूर दे देंगे -कहता हुआ सभी को कल की कला से आभायमान करता रहता है। इसी प्रकार बाबू किसी के भी काबू से बाहर है, कल का वादा करके महीने निकाल देना उसके बाएँ हाथ का खेल है। देश का नेता देश के जनता जनार्दन की सारी अक्लबन्दी का ठेकेदार अकेला ही है। उसकी मान्यता ये है जितनी अक्ल भगवान ने इस पृथ्वी लोक पर बांटी है , उसका 80 फ़ीसदी हिस्सा तो उसका और उसके पूज्य पिताजी का है ही। बाकी बची 20 फ़ीसदी। उसमें से 10 फ़ीसदी बाबू और अधिकारियों के पास है। बाक़ी 10 फीसदी जनता जनार्दन की है। जिसकी लाठी में दम हो वह उतनी ले लेता है। अक्ल के पीछे लट्ठ लेकर चलने का यह सुनहरा युग है।सो लोग उसके पीछे पीछे लट्ठ लेकर चल पड़े हैं। उनकी तो 80 फ़ीसदी सुरक्षित ही है। जब उसमें झूठ का मक्खन औऱ ग़लत तथ्यों की मिसरी मिश्रित कर दी जाती है , तो जो रसायन तैयार होता है , उसे जनता को बांट दिया जाता है। चूंकि झूठ औऱ ग़लत का प्रसाद केवल आम जनता में वितरित करने के लिए होता है, इसलिए उसको 100 फ़ीसदी सच और ईश्वरीय वाणी मानकर उस पर बिना किसी विरोध, बिना किसी स्पीड ब्रेकर , बिना किसी हिचकिचाहट के सहर्ष शिरोधार्य कर लिया जाता है। कोई जाँच आयोग नहीं बिठाया जाता। अरे भई! क्या देश के इतने बड़े नेता कोई झूठ बोलेंगे? ये मानते हुए जनता उसे हज़म कर जाती है। उनकी नज़र में जनता तो भेड़ ठहरी, नितांत मूर्ख औऱ अज्ञान की पर्याय। धन्य है भई ! झठ हो तो ऐसा कि कोई उँगली तो क्या ज़ुबान नहीं खोल सकता। खोलेगा कैसे , वे खोलने देंगे तब न ! अर्थात पूरी तानाशाही। बोलने की स्वतंत्रता के मानव -अधिकार का शायद संशोधन कर लिया गया होगा। हमारी इच्छा औऱ आदेश के विरुद्ध कोई कुछ भी नहीं बोल सकता। जो कुछ भी बोलेंगे, हम ही बोलेंगे। हमारा हर वचन पत्थर की लकीर है। जानते नहीं राजा ईश्वर का अवतार होता है। जनता ने समर्थन किया । आप बिलकुल सोलहों आने सच फ़रमाते हैं, -राजा ईश्वर का अवतार होता है। इसलिए उसे कुछ भी बोलने का पूरा अधिकार होता है।


💐शुभमस्तु!
✍लेखक ©
 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम

बदला! नक्शा बदला [छन्द :कुंडलिया]

बदला     लेकर    ही रहे,
भारत     माँ   के    शूर।।
बारह  दिन  में  ही किया,
दर्प    पाक     का    चूर।।
दर्प    पाक      का   चूर,
विमाँ    बारह    ही  धाए।
ब्रह्म       मुहूरत      भोर,
शत्रु   दोज़ख  पहुंचाए।।
नहीं   एक      दो    चार ,
तीन सौ  पर था हमला।
अमर शहीदों की तेरहवीं,
नक्शा               बदला।।

सघन  प्रतीक्षा  में  खड़ीं,
हूरें          कर      शृंगार।
कब  आवेंगीं    रूह   वे,
इस   ज़न्नत     के  द्वार।।
इस  ज़न्नत    के    द्वार,
सातवें   आसमान   में।
हिन्द  देश के बम तीरों,
के          कमान      में।।
बारह दिन से जल रही,
उर -उर आरत  अगन।
कब पूरा  प्रतिशोध हो,
मिटे   प्रतीक्षा  सघन।।

हाथ  कटोरा  चल  दिया,
भिक्षा      को    इमरान।
रह    लेंगे   भूखे    भले,
अणुबम  का  अरमान।।
अणुबम    का   अरमान,
 भले  नंगे   तन   रहना।
आतंकों     की      छाँव,
विश्व की ज़िल्लत सहना।।
कर्ज़ा    लेकर  जी रहा,
लिया चीन     का साथ।
चीनी   कड़वी    हो गई ,
दिया पाक को हाथ को हाथ।।

घूरे     में     दाबे     रखा,
दुम  को    बारह  साल।।
जब मिराज   बारह उड़े,
दिखा   पाक को काल।।
दिखा  पाक   को काल,
भेड़िया  - सा    गुर्राया ।
पुलवामा  की एक लपट ,
ने       ही     झुलसाया।।
लगता है  अब   पाक के,
हो   गए  हैं    दिन    पूरे।
सीधी     हुई    न     पूँछ,
गड़ी बहु   भीतर   घूरे।।

हो   सचेत  जागृत  रहो,
मेरे      भारत        देश।
लगा    मुखौटे  आएगा,
बदल - बदल  कर वेश।।
बदल -  बदल   कर वेश,
प्रवंचक  दुश्मन  कायर।
घुसकर     करता    वार ,
कभी   आतंकी  फायर।।
नहीं  पात्र    विश्वास का,
न उर में   कभी खेद हो।
जागरूक     हों     सदा,
'शुभम' प्रतिक्षण सचेत हो।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...