सोमवार, 26 अगस्त 2019

जब पूछे मुझसे हाल बता [ गीत ]



क्यों न   छिपाए  दर्द   कोई,
क्या कोई हलका करता  है?
जब  पूछे  मुझसे  हाल  बता ,
सब बढ़िया कहना पड़ता है।
किस-किस को सच मैं बतलाऊँ,
बस झूठ  बोलना  पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....

अधरों   पर  लाता  मुस्कानें,
वाणी भी   मीठी  होती   है।
सपने - से  चलते जीवन की,
गति धीमी - धीमी  होती है।।
भीतर   तो  होती  घबराहट,
पर शान्त दिखाना पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....

 किसने  देखे  किसके आँसू,
सुनने का किसको समय यहाँ,
घुट - घुटकर  पीड़ा सहता हूँ,
इंसां  में  ऐसा  हृदय  कहाँ ??
उठता   है    अंतर   में उबाल,
पर   मौन  साधना  पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....

वेदना  हृदय की अगर कहूँ  ,
कुछ मन ही मन में हँसते हैं।
कुछ कहते कर्मों का फ़ल है,
ज़ख्मों  पर  नमक छिड़कते हैं।।
जिसका  होता  जैसा चरित्र,
वैसा  ही  उसको दिखता है।
जब पूछे  मुझसे....

कुछ कहते  पाप किया पहले,
उसका   ही   दंड  भोगता है।
मैं    रोता    अश्क़  लहू  वाले
लोगों   को यही  शोभता  है।।
सबको अपना अपनों का ही,
बस   दर्द   दिखाई  पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....

ये  नहीं  सोचता  व्यक्ति यहाँ,
दिन  सबके- उठते - गिरते हैं।
जब  एड़ी  फटतीं हैं  अपनी,
तब हाय- हाय सब करते हैं।।
दानव  के दिल में दानव को,
सौ  फ़ीसद  रहना पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....

मरहम    तो  सभी  चाहते हैं,
पर नमक लगाते घावों   पर।
इससे सुख उनको मिलता है,
करते न नियंत्रण भावों पर।।
सोचे - समझे बिन जो कहते,
पछताना   उनको  पड़ता है।
जब पूछे मुझसे....

बसती  हैं  खुशियाँ  मिट्टी  में,
सरिता में   दुख भी  बहता है।
जब   पूछेगा  जो  हाल कोई,
सब ठीक 'शुभम' ये कहता है।।
सबके   दिन  आते - जाते   हैं,
सुख दुःख भी सहना पड़ता है।।
जब पूछे मुझसे....

💐 शुभमस्तु  !
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

रविवार, 25 अगस्त 2019

ग़ज़ल



इधर     एक      गाय  वाला ।
उधर   एक     चाय    वाला।।

संसद      में    अँखियाँ   मारे,
सांसद      एक     हाय  वाला।

उसका          भरोसा     झूठा,
नेता       काँय -  काँय  वाला।

अपशब्द        गूँज उठता    है,
वक्त      साँय -  साँय  वाला।

 घपलेबाज      तो   भागेगा ही,
 वो        है   बाय -  बाय वाला।

उनका     वादा   झूठा  - सच्चा
फिस्स      टाँय - टाँय    वाला।

बन्द       ज़ुरूर     ही     होगा,
बजर      धाँय -धाँय      वाला।

शुभमस्तु !
✍रचियता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

सूफ़ियाना ग़ज़ल


    
माता यशोदा  के प्राण  प्यारे आओ,
लेंगे   बलैया  हम  घर हमारे आओ।

तुम्हीं  एक रक्षक हो तुम्हीं हो खिवैया
तुम्ही   एक मेरे हो मम सहारे आओ।

जन्म- दिन है  तुम्हारा  बधावे घर- घर 
संहारक  दानवों  के मम दुआरे आओ।

भृष्टता  का कीड़ा  है आज जन-जन में,
बन   के उद्धारक तुम प्रिय हमारे आओ।

'शुभम'  देह  मानव की कहने ही भर को
देह- बसे   दानव को मार  प्यारे  आओ।

शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🕉 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

कान्हा की कुंडलियां



आधी      काली   रात  में,
प्रकटे   विष्णु      ललाम।
भय  से    काँपीं    देवकी,
नत     वसुदेव     प्रणाम।।
नत      वसुदेव     प्रणाम,
विष्णु  प्रभु  तब यों  बोले।
'धारण         करता    रूप,
नवल शिशु  का 'रस घोले।
'शुभम'    नंद   के     धाम,
साधना    यशुदा     साधी।
यमुना     के     उस     पार,
शेष     है    रजनी  आधी।।'

भादों   की  शुभ   अष्टमी,
नखत     रोहिणी    धन्य।
काली      आधी   रात  में,
प्रकटे      कृष्ण   अनन्य।।
प्रकटे     कृष्ण     अनन्य,
धन्य हैं  पिता   व   माता।
फलते       कर्म      महान,
कर्म    ही  फल  का   दाता।।
यशुदा   'शुभम'    निकेत,   
  अवतरित      होते     माधों।
पावस        पुण्य      प्रसून,
भद्रता        भरता     भादों।।

भोर      हुई     घर नंद  के,
हुआ     बधाई  -      गान।
मैया   यशुदा    ने    जना,
सुंदर       श्याम   सुजान।।
सुंदर     श्याम       सुजान,
धन्य     बाबा     यशु' मैया।
लाड़       लड़ाती      मात,
दाउ       का   नन्हा  भैया।।
गली -  गली       में    धूम,
अति   का   मचता  है शोर।
धन्य    नंद   'शुभ'    धाम,
सुखदायक     है  ब्रज-भोर।।

मेरे     घर     में    आयँगे,
कृष्ण    कन्हैया    श्याम।
जन्म अष्टमी    के दिवस,
यशुदा      के   सुखधाम।।
यशुदा     के     सुखधाम,
नंद  के    कान्हा     प्यारे।
दुख    कर      देंगे     दूर,
बनेंगे       सदा      सहारे।।
'शुभम'      बजाए     शंख,
धूम    होगी   ब्रज    में  रे!
रोहिनि     प्रकट  निशीथ,
बजें      घण्टे    घर   मेरे।।

वंशी   वाले     ने    किया,
पावन    गोकुल      गाँव।
धन्य  हुई    ब्रजरज  सभी,
यहाँ -   वहाँ      हर   ठाँव।।
यहाँ -  वहाँ      हर     ठाँव,
ग्वाल  -   गोपी    हरषाए।
देवी   -    देव        समोद ,
सुमन    अवनी   बरसाए।।
किया      कंस     विध्वंश,
आ गए   प्रभु   अवतन्शी। 
'शुभम'        चराते    गाय ,
बजाते    वन     में   वंशी।।
शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🕉 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

गुरुवार, 22 अगस्त 2019

मखमली चादर के तले [ अतुकान्तिका ]

राष्ट्रवाद की
मखमली चादर,
सजे हुए
जिसके नीचे
ढेर -ढेर गुब्बर।

दिखाए नहीं जाते
उघाड़ कर
वे ढेर-
व्यक्तिवाद,
पत्नीवाद,
पतिवाद,
सन्ततिवाद,
भाई भतीजावाद,
एक शब्द में
कहें तो वंशवाद,
आगे भी हैं
जातिवाद,
धर्मवाद,
मज़हबवाद,
अन्धभक्तवाद,
प्रांतवाद,
क्षेत्रवाद,
भाषावाद।

सबके
अपने -अपने  स्वाद,
अपने -अपने नाद,
पर उनके ऊपर
पड़ी हुईं हैं
आदर्शवाद  की चादरें
समाजवाद ,
देशवाद,
राष्ट्रवाद,
जिनके ऊपर
छिड़की हुई
आदर्शवाद की
खुशबू गुलाब ,
पर भीतर
वही
वंशवाद,
जातिवाद,
धर्म मज़हबवाद,
अंध भक्तवाद की
स्वार्थवाद की यथार्थवादी
निस्सार खाद।

 कौन नहीं है
 यहाँ राष्ट्रवादी ?
कौन चाहता है
देश की बरबादी?
जिनके दिमाग़ में
बढ़ गई है वादी,
कर  रहे  हैं  वही
राष्ट्रवाद की नारेबाज़ी,
क्या वही हैं!
जिन्होंने
ओढ़ रखी है
सियासत की खादी?
कर रहे अपने
अहम की मुनादी!
जैसे उन्हीं को हो
सब जायज़ नाजायज़ की
आजादी !

नहीं जानते वे
राष्ट्रवाद का अर्थ,
इसी के बैनर तले
पूरा करना है
उन्हें  स्वार्थ।

बने बैठे हैं
वे उसी गोबर में
छिपे हुए गुबरैले,
तानकर ऊपर
मख़मल की चादर!
उठाते ही
मखमली चादर!
निकल पड़ता है
वही गोबर,
जिसे खा रहे हैं
वे धो -धोकर,
यही आज
राष्ट्रवाद का
यथार्थ है,
ऊपर से नीचे तक,
गोबर का
साम्राज्य है,
विस्तार है,
उनकी दृष्टि में
इसी में
देशोद्धार है,
यही सब
गुबरैलों का
'महान' विचार है।

अभी तो और भी
ढेर हैं गोबर के,
जो अगोचर हैं
मेरी तेरी दृष्टि से:
गलीवाद,
मोहल्लावाद,
शहरवाद,
ग्रामवाद,
सडक़वाद,
-दबे हैं
मख़मली  चादर के तले।

प्रदूषण को
ढँकना ही जरूरी है,
मखमली चादर के तले!
कहना ही पड़ेगा
चादर -स्वामियों को,
साधुवाद!
साधुवाद !!
साधुवाद !!!

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🔰 डॉ .भगवत स्वरूप 'शुभम'

कान्हा की कुंडलियां

मथुरा  -  कारागार       में,
प्रकटे   विष्णु      ललाम।
भय  से    काँपीं    देवकी,
नत    वसुदेव     प्रणाम।।
नत     वसुदेव     प्रणाम,
विष्णु प्रभु  तब यों  बोले।
'धारण       करता    रूप,
नवल शिशु का 'रस घोले।
'नंदराय      के        धाम,
मुझे  ले    जाओ   सुथरा।
यमुना    के   उस      पार,
गाँव गोकुल नहिं  मथुरा।।'

भादों   की  शुभ   अष्टमी,
नखत     रोहिणी    धन्य।
काली      आधी  रात  में,
प्रकटे     कृष्ण   अनन्य।।
प्रकटे     कृष्ण     अनन्य,
धन्य हैं  पिता,      देवकी।
फलते      कर्म      महान,
नाव निधि  सदा  खेवती।।
यशुदा 'शुभम' निकेत,
अवतरित   होते     माधों।
पावस      पुण्य     प्रसून,
भद्रता   भरता     भादों।।

भोर  हुई    नंदराय   घर,
हुआ   बधाई  -      गान।
मैया  यशुदा    ने    जना,
सुंदर     श्याम   सुजान।।
सुंदर     श्याम     सुजान,
धन्य     बाबा     नंदरैया।
लाड़     लड़ाती     मात,
दाऊ    का  नन्हा  भैया।।
गली -  गली     में    धूम,
अति का   मचता है शोर।
'शुभम' धन्य नंद धाम,
सुखदायक है ब्रज-भोर।।

मेरे     घर     में    आयँगे,
कृष्ण    कन्हैया    श्याम।
जन्म अष्टमी    के दिवस,
यशुदा     के   सुखधाम ।।
यशुदा     के     सुखधाम,
नंद  के    कान्हा     प्यारे।
दुख    कर      देंगे     दूर,
बनेंगे     सदा      सहारे।।
'शुभम' बजाए    शंख,
धूम    होगी   ब्रज   में  रे!
रोहिनि    प्रकट  निशीथ,
बजें    घण्टे    घर   मेरे।।

वंशी   वाले     ने    किया,
पावन    गोकुल      गाँव।
धन्य  हुई    ब्रजरज  सभी,
यहाँ -   वहाँ    हर   ठाँव।।
यहाँ -  वहाँ    हर     ठाँव,
ग्वाल  -  गोपी    हरषाए।
देवी   -  देव        समोद ,
सुमन    अवनी  बरसाए।।
किया      कंस     विध्वंश,
आ गए   प्रभु   अवतन्शी।
'शुभम'   चराते    गाय ,
बजाते    वन     में   वंशी।।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🕉 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

घर-घर जन्मे देवकी -लाल [बाल गीत ]

लड्डू गोपाल मेरे लड्डू गोपाल।
घर-घर  जन्मे देवकी - लाल।।

भादों   महिना   काली  रात।
सूझे    नहीं   हाथ से   हाथ।।
जलते   दीप न  जले मशाल।
घर -घर जन्मे ....

खुले  जेल के    भारी   ताले।
सोए  थे  सब    पहरे   वाले।।
श्रीवसुदेव  ने  लिए  निकाल।
घर -घर जन्मे ....

बड़  उफान भरी जमुना मैया।
छुए चरण सरि किशन कन्हैया।।
शेष   नाग   करें  रक्षा - ढाल।
घर -घर जन्मे ....

नन्द  जसोदा  के घर गोकुल।
थे वसुदेव  बहुत ही व्याकुल।।
यसुदा के   सँग  सोए  लाल।
घर -घर जन्मे ....

लाल   देखकर  माता चौंकी।
नन्द बाबा ने खुशी न रोकी।।
घर -घर मंगल गान खुशाल।
घर -घर जन्मे ....

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🕉 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

सांसों का सबक [ विधा :सायली ]

दरबार
साँसों  का
नासिका के द्वार
आना-जाना
निरंतर।

क्षणिक
विराम  नहीं
विश्राम भी नहीं
अविराम ही
गतिमान।

श्वास
यदि  रुके
जीवन भी रुके
गतिशीलता ही
जीवन।

राजा
बैठा है
सिंहासन पर भीतर
श्वास निरंतर
चलती।

जाती
प्राण वायु
भीतर की ओर
लौटती लेकर
कार्बन।

ऑक्सीजन
बन रही
कार्बन डाई ऑक्साइड
लौटने पर
बदली।

जीवात्मा
आया यहाँ
अलग रूप में
गया अलग
रूप।

परिवर्तन
होना है
जीवन में निरंतर
साँसों का
सबक।

बदलना
ही है
दुनिया में आकर
जाने की
सोच।

असम्भव
है अपरिवर्तन
अनिवार्य उत्थान -पतन
मानव का
जीवन।

श्वास
 आगमित जीवात्मा
प्रश्वास:प्रस्थान किया
लेकर कार्बन
कण।

श्वास
स्वच्छ वायु
प्रश्वास:कर्म भार
भारित अस्वच्छ
वायु।

श्वास
जीवन -प्रतीक
प्रश्वास:प्रस्थान - लीक
देह से
मुक्ति।

जिएं
श्वासवत जीवन
त्यागें श्वासवत  ही
शुद्ध जीवन -
मुक्ति।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

सोमवार, 19 अगस्त 2019

भिन्नता की भीति

 भिन्नता की भीति 
               [ दोहे ]


दो  आँखों   के   बीच में,
बनी        एक     दीवार।
नाक  जिसे  कहते सभी,
साँसों    का  दरबार।।1।

आँख लड़े नहिं आँख से,
हो    न    सके   तकरार।
ऊँची   लम्बी    नाक  ये,
निर्मित  की  करतार।।2।

मान -प्रतिष्ठा   की  बनी,
शुभ  प्रतीक  यह  नाक।
हर   उपाय   रक्षा    करे,
होवे  बाल  न  बाँक।।3।

सूपनखा  की नाक जब,
लक्ष्मण   ने    दी   काट।
हरी  गईं   माँ    जानकी,
लंकाकाण्ड  विराट।।4।

भीति भिन्नता  की बनी,
सदा  - सदा   से  नाक।
रक्षा    करने   नाक की,
जूझे  भारत  पाक।।5।

बाल नाक के नाक की,
रक्षा - सूत्र      सशक्त।
इसीलिए प्रियजन वही,
जो  हो ऐसा  भक्त।।6।

मात-पिता के  नाक की,
रक्षक      है       संतान।
यदि  कुपूत - काँटा उगे,
मिट  जाता सम्मान।।7।

नाक   कटा  घी  चाटते,
डालें     नाक     नकेल।
ऐसे   जन  नर - देह  में,
नाकों    पीते   तेल।।8।

नाक   घुसाते  आप  ही,
अनवांछित  जो   लोग।
नाक  रगड़ते  एक दिन,
अहंकार    का  रोग।।9।

मक्खी जिनकी नाक पर,
बैठ     न    पाती     एक।
'शुभम' सुजन वे चतुर हैं,
रखते सदा विवेक ।।10।

दम    करते  हैं  नाक  में,
पहले     घर -   परिवार।
सिकुड़ी रहती नाक-भौं,
दुखी   रहे  संसार।।11।

नाक   फुलाने  से   नहीं,
चलता   जग - व्यवहार।
चाम   न  कोई    पूजता,
पूज्य कर्म का द्वार।।12।

 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

रविवार, 18 अगस्त 2019

आँख [ व्यंग्य ]


                       दुनिया में 'आँख' का कमाल ही कमाल है। इनका आना भी खराब , और जाना तो और भी ज़्यादा खराब।आ जाए तो मुश्किल और चली जाएँ तो सारी दुनिया में अँधेरा हीअँधेरा।बस बीच की स्थिति ही सुखद है । न इनका आना अच्छा न जाना अच्छा। है न कमाल की बात ? ये  अगर हैं तो सारा  ज हान है, वरना  दुनिया वीरान है। अगर ये लड़ जाएँ , तो पता नहीं कि कितने ग़ज़ब ढाएं ? कितनों के घर उजड़ जाएँ , कितनों के बस भी जाएँ !  ये लड़ती हैं ,तो पता नहीं दिलों को कितनी खुशी होती है ! वे दो से   एक होने की ओर कदम बढ़ा देते हैं। और एक समय ऐसा आता है कि वे आगे बढ़ते - बढ़ते दो से एक ही हो जाते हैं या एक होने के लिए अपनी बाहें फैला देते हैं। और दूसरी ओर उनके लड़ने का एक हस्र और होता है कि घर वालों में महाभारत का सूत्रपात करने के लिए अक्षौहिणी सेना के घुड़सवारों और पैदल सेना की शंखध्वनि गूँजने लगती है।

                  आँखें चार भी होती हैं। अब आँख लड़ जाने और चार होने में रासायनिक क्रिया के परिणामस्वरूप जिस रस का उन्मेष होता हो, उसका गन्तव्य एक ही होता है। चार होने पर आँखों   की ताकत भी चार गुनी हो जाती है। लेकिन उनकी दूर देखने की क्षमता में  कमी अवश्य आ जाती है। अपने इर्द - गिर्द ही देख पाते हैं। फिर उन्हें अपने माता -पिता ,भाई-बहन भी ओझल होने लगते हैं। जब आँख खुलती है , तब तक काफ़ी देर हो चुकी होती है।

                 न सही बिछौना, पर आँखें बिछाई भी जाती हैं। जिन पर बाकायदे लोग बिठा लिए जाते हैं और लोग हैं कि वे आँखों पर शौक से आराम फ़रमाते हुए नज़र आते हैं। आँख इतनी मज़बूत और टिकाऊ अस्त्र है कि मारी भी जाती है। मजे की बात ये भी है कि जब आँख मारी जाती है , तो कहीं कोई खटका नहीं  होता । हर एक आदमी ये खेल नहीं खेल सकता।इस मारने  - मूरने के काम को हर एक अंजाम नहीं दे सकता। जिसको आँख मारी गई है,  उसे उसकी टक्कर झेल पाने की क्षमता से युक्त होना चाहिए।दोनों ओर से जब ये खेल शुरू हो जाए तो फिर तो कहने ही क्या !

               आँखों ही आँखों में प्यार करने के किस्से आपने बहुत सुने होंगे। ये आँख -मिचौली भी खेल सकती हैं। इस खेल में आदमी आदमी को अदृश्य हो जाता है। इस आदमी नामक प्राणी के के बहुत से ऐसे कर्म भी हैं कि ये चुरा ली भी जाती हैं। कुछ लोग अक्सर आँखें चुराते हुए अपने रास्ते ही बदल लेते हैं।  आँखें निकालने वाले लोग विवेक से काम नहीं लेते।जब पकड़े जाते हैं तो उनकी आँखें नीची हो जाती हैं।ये एक ओर इतनी रस भरी हैं , कि इनमें सरसों तक फूलने लगती है। सावन के अंधे को कहते हैं कि हरा ही हरा दिखाई देता है।

                 कुछ लोगों का काम ही यह होता है कि वे दूसरों की आँखों में धूल झोंकने में माहिर होते हैं। ऐसे लोगों की आँखों मे या तो पानी होता ही नहीं और यदि होता भी है ,तो मर जाता है। ऐसे लोग दुनिया की आँखों में काँटा बनकर चुभने लगते हैं। आँखों में पानी होना बहुत ज़रूरी माना गया है। चाहे शरीर में और कहीं पानी हो या न हो, पर आँखों मे तो जरूर ही होना चाहिए। क्योंकि कहा जाता है की आँख का पानी मर भी जा सकता है। अब यदि ये पानी ही मर गया तो फ़िर शेष क्या रह गया ! आँखों में पानी का अकाल नहीं पड़ना चाहिए।

                  प्रत्येक माँ को अपना काना बेटा भी आँखों का तारा होता है। लेकिन उसका वही तारा किसी किसी - किसी के लिए किसी राहु-केतु से कम नहीं होता। हर एक माँ अपनी औलाद को सर - आँखों पर बिठाती है। जब इंसान की आँखों में चर्बी छा जाती है तो उसका विवेक ही नष्ट हो जाता है। जब घर पर अपना ही कोई प्रियजन आता है तो आँखें ठण्डी हो जाती हैं। आँखें आदमी को कहाँ से कहाँ पहुंचा सकती हैं। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं कि अपने बुढ़ापे का भी ख़्याल नहीं करते और गाहे बगाहे मौका मिलने पर अपनी आँखें सेंकने  में  भी गुरेज नहीं करते। जब उन्हें कोई अपनी हरकत पर रोकने टोकने लगता है तो आँखें नीली- पीली करते हैं, यद्यपि वे समाज में आँखें उठाकर देखने के क़ाबिल नहीं रह जाते, क्योंकि वे सबकी आँखों से उतर चुके होते हैं।

            आँखों का अपना पूरा एक संसार है। पूरी सृष्टि है। इनके बिना दुनिया ही नहीं। इसलिए प्रकृति की इस अनमोल नियामत को सँभाल कर रखिए। कहीं ऐसा न हो कि कहीं आप दूसरों की तो क्या अपनी ही आँखों से न गिर जाएँ। दूसरों की आँख से गिर कर आप आसानी से उठकर खड़े हों या न हों , पर अपनी ही आँख से गिरकर कभी उठ नहीं पाएंगे।इसलिए आँख वालो ! इन आँखों को संभालो। इसलिए देख के चलो :आगे भी नहीं पीछे भी, ऊपर ही नहीं नीचे भी। चारों ओर इधर भी और उधर  भी देख के चलना है।  वरना  जीवन भर के लिए आँखों से गिरना है। वास्तव में आँख तो आँख ही हैं।
शुभमस्तु!
 ✍ लेखक ©
 ☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम';

          

बुधवार, 14 अगस्त 2019

आज़ादी का दिन [ गीत ]

आज़ादी का दिनआया है,
फर-फर ध्वज फहराएगा।
लाल  किले  की  प्राचीरों पर,
चढ़   लय   से    लहराएगा।।

सबल  तिरंगे    ने गौरव  से,
सबका   मान    बढ़ाया   है।
स्वाधीनता  की लंबी  सांसों-
को   सुचारु    करवाया  है।।
हर   भारतवासी   सचेत हो,
जन गण मन फिर गायेगा।
आज़ादी का दिन...

यों  ही  नहीं  मिली आज़ादी,
बलिदानों   को   याद   करो।
शुद्ध   पवन  में  साँस ले रहे,
जिनकी  ख़ातिर ध्यान धरो।।
देशप्रेम  का  रंग   केसरिया,
श्वेत     हरित    गहराएगा।।
आज़ादी का दिन ...

शिक्षा  को  अधिकार बनाएँ,
ऊँच - नीच   को   नष्ट  करें।
वर्णभेद   को  सभी  भगाएँ,
भारत   माँ   के    कष्ट  हरें।।
राष्ट्र - एकता  अखंडता का ,
मंत्र     हमें  मिल   जाएगा।।
आज़ादी का दिन ...

जो   भारत भू   पर   रहते हैं ,
हम    सब    हिंदुस्तानी    हैं।
ओछी औ'  संकीर्ण  सोच ने,
बरवादी     की    ठानी   है।।
लड़ते  यों  ही   रहे  परस्पर,
फ़िर    ग़ुलाम  हो   जाएगा।
आज़ादी का दिन ...

मुख नयनों का जो महत्त्व हो,
नहीं    न्यून   कर  पैरों    का।
दुहरा  तुम  व्यवहार   करोगे,
उचित यही क्या ! गैरों -सा।।
सबका ही  सहयोग  सराहो,
अस्तित्व तेरा  बच पायेगा।
आज़ादी का दिन ...

कौन   नहीं   है शूद्र यहाँ पर,
देह   कहाँ     धुलवाते    हो?
चढ़ता   है  जब  रक्त  देह में ,
जाति    पूछ   चढ़वाते  हो ??
बैठ   चौक  पर  बने  चौधरी,
चौक  तेरा    मिट    जाएगा।
आज़ादी का दिन....

कोरी     बातें    झूठे    नख़रे,
चौपालों     के   पंच     बने !
राष्ट्रवाद  के    ढोल    पीटते,
सड़े   काठ   के  मंच    तने।।
'शुभम' वर्ण का भेदभाव ही,
 खण्ड - खण्ड कर  जाएगा।
आज़ादी का दिन...

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

कविता की महिमा [कुण्डलिया]

कविता   की   महिमा  नहीं,
समझ   सके    सब    लोग।
मालपुआ   चमचम    मधुर,
समझे      छप्पन     भोग।।
समझे       छप्पन      भोग,
नाचती      षोडशि   बाला।
कर     में     लेकर     जाम,
दे   रही     मादक   हाला।।
 नहीं       पतुरिया     नाच,
गगन  ज्यों   चमके सविता।
कवि -  मंडल     के    बीच ,
'शुभम' नित  होती कविता।।

कविता कवि -  उर से रिसे,
ज्यों      गोमुख   से   गंग ।
लय  गति    छंदों    में  बहे,
शब्द    अर्थ     के    संग।।
शब्द    अर्थ      के     संग,
प्रवाहित      लहराती    है।
मैदानों         के        मध्य ,
नदी    ज्यों    बल  खाती  है।।
सुधी        जनों    की   वीचि,
मानसिक  दुख     की हरिता।
'शुभम'      अमंगल     क्षीण ,
करे    मुद    मंगल  कविता।।

कविता    का    वरदान  है ,
किया      मातु      उद्धार ।
गिरने       से   रक्षा    करे ,
जीवन  -    पर   उपकार।।
जीवन  -      पर उपकार ,
धन्य  माँ पल -पल करती।
उर  का   तमस -  विकार,
एक  ही  क्षण    में हरती।।
हंसवाहिनी              धीर,
ज्ञान-धन की नित भरिता।
'शुभम'   हृदय   में    वास,
करो  माँ   वाणी  कविता।।

कविता     रस -  वर्षा  करे,
सुहृद   करें        अभिषेक।
पाहन     तो    पाहन   रहे,
उसमें     कहाँ    विवेक ??
उसमें     कहाँ       विवेक,
भावपूरित     नर  -  नारी।
भाव       सदा    ही  नेक ,
जगत- हित ममता  भारी।।
अंधकार      के        बीच ,
चमकता अम्बर   सविता ।
'शुभम'    सृजन    संसार ,
सदा   हितकारी  कविता।।

कविता   कहती  रुक नहीं,
बढ़    चल    आगे    और।
बारह      मास     वसंत है ,
महक     उठेगा       बौर।।
महक     उठेगा        बौर,
आम  पर   कोयल   बोले ।
पिक     मयूर     की   धूम,
प्रकृति  में  मधुरस  घोले।।
 निशि  में     चमके   सोम ,
दिवस में उज्ज्वल सविता।
'शुभम  ' अनवरत      नेह-
धार  बन   गंगा - कविता।।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🕉 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

हलो व्हाट्सएपिआओ! बनाम भैंस के आगे बीन बजाई [ दोहा ]

गूँगे    ही    बहुसंख्य   जन,
पढ़कर     रहते        मौन।
इनके  मुँह    लड्डू    रखा ,
हम     इनके   हैं  कौन??2।

लिखना   भी    आता  नहीं ,
हैं      एम.ए.          उत्तीर्ण।
उर  में  तुच्छ     विचार   हैं,
भाव     भरे     संकीर्ण।।2।

क्यों   उँगली   को   कष्ट  दें,
चढ़ें         प्रशंसा      फूल ?
व्हाट्सएप   संन्देश      पढ़,
जाओ    उसको     भूल ।।3।

सब    कोरी     बकवास  है ,
दृढ़  कर      लो     विश्वास।
व्हाट्सएप    तो    है  मगर,
पर    आती   है  बास।।4।।

गूँगे     ने   गुड़  खा   लिया ,
मुँह   में      नहीं     ज़बान।
फिर   बोलो    कैसे     कहें,
है     संन्देश      महान!!5।

अहंकार     इतना     बढ़ा,
हुए   फूलकर         बॉल।
मज़ा    लूटने   को मिला,
मोबाइल    का  हॉल।।6।

मुँह  पर  चिपका   टेप है,
पट्टी       पूरे          हाथ।
घायल अँगुली   हैं   सभी,
कलम न  देती  साथ।।7।

नाच -  कूद   सब  देखते,
फिल्में     सब      रंगीन।
लिखने    में   नानी  मरे,
व्हाट्सएपिया    दीन।।8।

मोबाइल     का   शौक है,
नाकों       चढ़ा    नकार।
मालिक  अपने   एप   के,
लड़ने     को   तैयार।।9।

उचित   यही  है  लो विदा,
मुँह    रखना    यदि    बंद।
गूँगे   लूले    व्यर्थ      सब ,
भावे   जिन्हें  न छन्द।।10।

निष्कासन     करना    पड़े,
जिन्हें     न    आवे     चेत।
कलम  गहो  मुँह खोल लो,
सदा 'शुभम ' निज हेत।।11।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🚦  डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

त्याग [ दोहे ]

संग्रह  में    हर  नर   लगा,
करे    त्याग    की    बात।
जैसे   भी    मुझको   मिले,
सदा    लीन   अपघात।।1।

त्याग   तपस्या  है  'शुभम,
सदा     ग़बन     में   लीन।
रिश्वत  से   नर   घर   भरे,
लगी    टकटकी  मीन।।2।

दस    पैसे  का   त्यागकर,
कहता       दिया    हज़ार।
गली -  गली   गाता  फिरे,
ख़बर  छपी  अख़बार।।3।।

करते    हैं    जो त्याग जन,
कहते    एक    न       बार।
टी. वी.  पर   आते    नहीं,
छपें    नहीं   अख़बार।।4।।

कविता लिखकर  त्याग पर,
त्याग     नहीं     है      मित्र।
बहुत  बड़ा   दिल    चाहिए,
छपें  न    जिनके   चित्र।।5।

त्याग - त्याग   सब  ही कहें,
त्याग   न       जानें     एक।
नगर       ढिंढोरा      पीटते,
जिनमें    नहीं    विवेक।।6।

गाल    बजाते    त्याग   के ,
नहीं    त्याग  का      ज्ञान।
शब्दों   में    क्या  त्याग  है ,
कर  लो मन में   ध्यान।।7।।

रक्षा     करने    वचन   की,
त्याग     किया    प्रभु राम।
प्रिय  राधा  का  त्याग कर,
गए     मधुपुरी   श्याम।।8।

मर्यादा  -    रक्षक        बने ,
किया     सिया   का त्याग।
रघुकुल     वंशी    राम  का ,
यह   कैसा   अनुराग ??9।

गोकुल   तज  मथुरा  तजी,
गए         द्वारका      धाम।
पीछे   मुड़      देखा   नहीं,
त्यागवीर   घनश्याम।।10।

गांधी    और   सुभाष  का ,
त्याग         रहेगा     याद।
अमर    शहीदों    ने किया,
सदियों  तक  आबाद।।11।

सीमा      पर    जो   जूझते,
उनका      त्याग      महान।
पत्नी     बच्चे      त्यागकर ,
होम   रहे     हैं    प्रान।।12।

मुनिजन  त्यागी   जैन सब,
असन    वसन  का  त्याग।
कठिन  तपस्या    है   यही,
त्यागा सुख  - संभाग।।13।

त्याग    सुखों  की  वासना,
कृषि  में  लगा     किसान।
अन्नदान    जग   को   करे,
ये  भी सत  बलिदान।।14।

त्यागी   जीवन    जो   तपे,
गाता      कभी    न   गीत।
त्याग    तपस्या    एक  ही,
जन-जन का वह मीत।।15।

💐 शुभमस्तु! 
✍रचयिता ©
 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

भोलेनाथ [ चौपाई ]

जय भोले जय जय शिवशंकर।
वांछित प्रभु आपका कृपाकर।।

मस्तक    दूज   चन्द्रमा सोहे।
पड़े  दृष्टि सुर जन मन मोहे।।

शीश    विराजे  पावन   गंगा।
कर त्रिशूल डमरू ध्वनि संगा।।

मातु   उमा  वामांग  विराजें।
गिरि कैलाश बाघम्बर साजें।।

श्रीगणेश के मात पिता तुम।
वंदन  करते  हैं   भोले हम।।

मैं    प्राणी   मूरख  अज्ञानी।
कृपा करो प्रभु औढर दानी।।

नमः शिवाय का जप हम करते।
नाम लिया संकट सब हरते।।

दुःख   दारिद्र  दूर कर त्राता।
भोले शिव त्रिपुरारि कहाता।।

अक्षय अमल अघोर अनन्ता।
वंदहिं सुर नर मुनि सब संता।

अर्कनयन अवार्य अविनाशी।
ओंकारेश्वर घट - घट वासी।।

औषधेश    कामारि  कपाली।
जपत निरन्तर 'शुभम'कुचाली

भोलेनाथ   महेश   पशुपती।
'शुभम'कृपा कर याचक सुगती।।

💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

रविवार, 11 अगस्त 2019

सावन मास वसंत [ दोहे ]

एक     तीर      ऐसे  चला ,
दो -   दो    लगे    निशान।
पूरी    आज़ादी       मिली,
आन  मान औ'   शान।।1।

एक    तीर    में  पाक का ,
छूट    गया    सब     धीर।
नापाकी     करतूत     की,
मिटी जलन उर  पीर।।2।

एक    देश   में   एक    ही,
चलता     नियम   विधान।
ध्वज  प्रधान  सब एक ही,
जन-जन  एक समान।।3।

दो    हज़ार    उन्नीस   का,
सावन     मास      महान।
नागपंचमी     को    मिला ,
सबको   एक  वितान।।4।

नेत्र    तीसरा    खुल  गया ,
काली       धारा      अन्त।
केशर    क्यारी   में  खिला ,
सावन    मास    वसंत।।5।

जिन्हें    न  भावे   देशहित,
आस्तीन      के       साँप।
जूता     मारें    जनक   में,
कहें  और   को   बाप।।6।

घुट -  घुटकर    जीता रहा ,
धरा  -     स्वर्ग     कश्मीर।
तीन सौ सत्तर  जब  मिटी,
सरकी   स्वच्छ  समीर।।7।

रक्षक -  सैनिक   पर  करें ,
पत्थर      फेंक      प्रहार।
एक  वार    में    हो  गया ,
सबका       उपसंहार।।8।

पानी     का    पानी  हुआ ,
हुआ     दूध    का     दूध।
पाक    टापता   रह   गया,
मिला   मूल   मय  सूद।।9।

गलित   सियासत    के हुए ,
सारे         परदे       फाश।
जाहिर      नंगापन    हुआ ,
'शुभम' विकट उपहास।10।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

तिरंगा हमारा [ बाल गीत ]

तिरंगा हमारा ! तिरंगा हमारा!
हमें   जान  से भी लगता है प्यारा।।

ऊँचे  से  ऊँचा  ध्वज ये रहेगा।
अपनी   ज़ुबानी  कहानी कहेगा।।
जुनूँ ,जोश,जज़्बे को देता सहारा।।
तिरंगा हमारा !....

कभी  शान  इसकी  जाने न देंगे।
सदा   मान  इसका  ऊँचा रखेंगे।।
अबीरों    में  लहराए  प्यारा -दुलारा।
तिरंगा हमारा !...


झुके हैं न  झंडे  को झुकने ही देंगे।
नापाक    मनसूबे     सारे  मिटेंगे।
बुरी   हर  नज़र  का करेगा किनारा।
तिरंगा हमारा !....

हमारा है  जो  वह  हमारा रहेगा।
हकीकत   हमारी  जमाना  कहेगा।।
देगा   न  दुश्मन  को  कोई सहारा।
तिरंगा हमारा !....

हमें गर्व  है शुभ  प्रतीकों का इसके।
शौर्य,शांति,समृद्धि तिरंगे से 
रिसते।।
अहर्निश न रुकता नील -चक्र तारा।
तिरंगा हमारा !....

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

आज़ादी [ गीत ]

मिला रहे हैं धनिये में लीद,
क्या    यही    आज़ादी  है?
सो    रहे   हैं चैन  की नींद ,
क्या   यही  आज़ादी   है ??

आदमीआदमी का पी रहा है खून।
रोटी नहीं मयस्सर किसी किसी को दो जून।।
लूटो और खाओ की अनकही
मुनादी है।
मिला रहे हैं .....

पिला रहे हैं दूध यूरिया का क्या ग़म है!
सब्जियाँ फ़ल भी यहाँ ज़हर से नम हैं।।
सूख रही है इधर चमड़ी उधर
वादी है ।
मिला रहे हैं....

रिश्वती रिश्वत देकर के छूट जाते हैं ।
नौकरी तो है, मगर जेबों से लूट खाते हैं।।
आम आदमी की हर ओर ही
बर्वादी है।
मिला रहे हैं ...

पॉलीथिन बंद करो, कम्पनी चलेगी ही।
दुकानदारों को लूटने की ,
नीति न टलेगी ही।।
खिलाने वाले रहें आबाद, बढ़े
आबादी है। 
मिला रहे हैं .....

दिन दहाड़े लुट रहा है  आदमी ।
लूट के बाद में जाँच भी
है लाज़मी।।
अपनों की कैद का हर शख़्स 
आदी है।
मिला रहे हैं .....

चले गए जो फिरंगी वे विदेशी हैं।
खसोटते हैं दिनरात  ये तो स्वदेशी हैं??
खद्दर पहनने वाले तो सभी
आज गांधी हैं।
मिला रहे हैं ....

हर मोड़ पर ठग चोर मिलेंगे सारे।
किससे शिक़ायत किससे कहोगे प्यारे!!
हर तीसरा चेहरा 'शुभम' अपराधी है।
मिला रहे हैं ... 

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
✳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

ग़ज़ल

कहते हैं कि तू ज़र्रे-ज़र्रे में रहता है।
सदियों से जमाना यही कहता है।।

लगता है कि मेरे रगो-रेशे में तू है,
तू जो कहलवाता है वही कहता है।

मेरा  वजूद  ही   तू   है  तुझसे मैं,
मेरी रूह का इत्मीनान यही कहता है।

ताजिंदगी   तेरा - मेरा     साथ रहे,
जो  भी कहता है  यही कहता है।

दुनिया  के फलसफ़ों  ने टुकड़े किए तेरे,
मगर तू एक है 'शुभम' यही कहता है।।

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌺 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

सब जानते हैं! [ व्यंग्य ]

   'ज्यों - ज्यों दवा की मर्ज़ बढ़ता गया।' ये कहावत यों ही नहीं बनी। आज सारे देश में जहाँ - जहाँ गड्ढे हैं , उनके विषय में कौन नहीं जानता? गड्ढे किसने किए , ये भी किसी से छिपा हुआ नहीं है।ये गड्ढे भरे कैसे जाएंगे , यह भी सब जानते ही हैं। पर यदि ये सारे गड्ढे भर दिए गए तो फिर भविष्य गड्ढा मुक्त हो जाएगा और देश समस्या रहित हो जाएगा। काश ! यदि ऐसा हो गया तो इतने नेताओं , विधायकों, सांसदों , मंत्रियों,विभागों, अधिकारियों कर्मचारियों , कचहरियों, अदालतों का क्या होगा ? इसलिए गड्ढे बने रहने में ही कुशल -खैर है, अन्यथा गड्ढा -पूरकों और गड्ढों का पुराना बैर है। इसीलिए यहाँ देर भी है , और बाकायदे अंधेर भी है। यदि अँधेरा होगा , तभी तो उजाले की ज़रूरत महसूस होगी। अँधेरे का महत्त्व उन मोहल्ले वालों को पता होता है, जहाँ की बिजली चार -छः दिन से नहीं आ रही होती। लेकिन जब एक झटके में आती है , तो मोहल्ले में हल्ला मच जाता है : 'आ गई ! आ गई!!' फिर किसी को यह पूछने -बताने की आवश्यकता नहीं होती कि क्या आ गई! क्योंकि सब जानते हैं कि उन्हें किस का इंतज़ार था, और क्या आ गई ? इसीलिए मोहल्ले का नाम मोहल्ला पड़ गया , कि हर मूँ से यही हल्ला ( मूँ + हल्ला) बोला गया कि आ गई ई ई ......
   समस्याओं का समाधान देश की प्रगति के लिए कोई हल नहीं है। समस्याओं के बने रहने से कुर्सी बनी रहती है। लोकतंत्र में वैसे ही कुर्सी आसानी से नहीं मिलती , उस पर भी देश , समाज , नगर , गांव को समस्या मुक्त कर दो , तो फिर क्या घुइयाँ छीलोगे ? या झख मारोगे? यदि ऐसा हो भी जाए तो न तो बाज़ार में इतनी घुइयाँ ही हैं , जो सारे नेताओं , अधिकारियों और कर्मचारियों के हिस्से में छीलने को मिल जाएं? औऱ न ही नदियों में इतनी झख (मछलियाँ ) ही हैं , जो काँटा लेकर उन्हें जाल में फंसाते फ़िरो ? इसलिए जैसा है , वैसा ही रहने देने में खैर-खुशी है। ऊपर वाले /वाली भी खुश और नीचे वाले भी खुश कि जाँच चल रही है। जांचोपरांत भले मिलें ढाक के तीन पत्ते ही। जो सब पहले से जानते ही हैं। पर जाँच तो होना जरूरी है तो होगी ही। औऱ जब जाँच होगी तो रिजल्ट भी देगी। जो सबको पहले से ही पता है कि रिजल्ट क्या आने वाला है।
   इसलिए मैंने पहले ही कहा न कि यहाँ हर आम औऱ ख़ास को पहले से ही मालूम रहता है कि क्या है , क्या होगा, क्या होने वाला है ! इसलिए यथा स्थिति बनाए रखना , सबसे सुखद व्यवस्था है।जैसे पुलिस को पहले से से मालूम रहता है कि कौन बाइक चोर है ? कौन ककड़ी चोर है? कौन मोबाइल चोर है , कौन गिरहकट और कौन राहजनी का उस्ताद है? इसी प्रकार यदि एक ही पंचवर्षीय योजना में देश की सभी तरह की समस्याओं से यदि निज़ात दिला दी गई तो आगे नेताओं के लिए कोई काम नहीं रह जायेगा! फिर आगे चुनाव क्यों कराए जाएंगे! जब चुनाव नहीं होंगे तो समस्याएं कैसे पैदा की जा सकेंगीं! जब ये होगा तभी तो परेशान जनता रोती -धोती उनके दरबार में जी -हुजूरी करेगी ! उनकी पूंछ बढ़ेगी, ओहदा बढ़ेगा । जिसकी जितनी लम्बी पूंछ ,उतना बड़ा नेता। जनता भी यह बखूबी जानती है कि नेता केवल लेता ही लेता , कुछ भी देता तो सिर्फ आश्वासन देता। बाकी माला लेता , पैसा लेता नहीं तो एक ग्राम प्रधान पाँच। साल में हजार पति से करोड़पति कैसे बनता ! बड़े -बड़े घड़ियालों का तो अनुमान लगाना ही मुश्किल होगा। यहाँ पाँच साल में चोइया मछली भी मगरमच्छ बन जाती है। ये सब जानते हैं।
   बेचारे ठेकेदार, पंचायत सेकेट्री , प्रधान ग्राम विकास कराते हैं , तो 60 % ही तो खाते हैं। बाकी 40 % लगाकर बालू की गली - सड़क बनवाकर ऊपर वालों को भी तो खुश करते हैं। तभी तो ऑफिस में ए सी की शीतल हवा और स्प्राइट नमकीन के साथ के जाँच की फाइनल रिपोर्ट लगवा देते हैं। अरे! भाई कितनी जिम्मे दारी का काम है ! बाप रे बॉप!! बड़ी गोहों का अंदाज लगाना अपने वश की बात नहीं । ये ऐसा अचार है, जिसकी खटाई नीचे से ऊपर की ओर बढ़ती , बढ़ती और बढ़ती ही चली जाती है। ये सब जानते हैं। पर भाईजान ! सिर्फ जानने से क्या होता है ? आम के पास चुसने के अलावा औऱ कोई काम हैं ? जानते रहो। जानकर क्या कर लोगे ? तुम्हारे हाथ में है ही क्या? जो उखाड़ लोगे जानकर। ऐसी हजारों जानकारियों से देश के अख़बार भरे पड़े रहते हैं कि कौन अधिकारी रंगे हाथों पकड़ा गया ? पर किसने पकड़ा ? उसी तरह के एक अन्य 'ईमानदार' अधिकारी ने , जो इतना तेज कि अभी तक पकड़ा ही नहीं जा सका! देश को ऐसे ही अमलकारों की जरूरत है। सब जानते हैं ,तो जानते रहो। जनरल नॉलेज के लिए अच्छा है। जानना भी चाहिए। जब सारे कुओं में भाँग पड़ी हो , तो तो तो क्या हो जाएगा? कुछ भी नहीं होने वाला उल्टे ज़्यादा जान लोगे तो किसी कानूनी एक्ट में औऱ धर लिए जाओगे कि कैसे जाना? किससे जाना ? कब जाना? क्यों जाना ? इसलिए न जानने में ही कुशल है। ज़्यादा जानना भी खतरे से ख़ाली नहीं है।

💐शुभमस्तु !
✍लेखक ©
🚩  डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पराक्रम [ अतुकान्तिका ]

शक्ति शौर्य और पराक्रम
इनका भी है
अपना कोई क्रम,
पर
साहस बिना
शक्ति ?
शर्म ही शर्म ।

जीवन एक संघर्ष
माँगता 
प्रतिपल उत्कर्ष,
सह रुदन 
अथवा सह हर्ष,
अहर्निश वर्षों वर्ष,
वांछित है साहस
शक्ति के संग,
 वरना
नहीं आएगा
जीवन में रङ्ग,
परिस्थतियों से जूझना,
तमस में 
प्रकाश सूझना ,
एक पराक्रम ही  तो है।

युध्द के मोर्चे पर
जूझना
शक्ति और साहस के संग
आवश्यकता है
समय की,
कायर नहीं होना
दुश्मन को
नहीं दिखाना पीठ,
तभी है
 सब कुछ ठीक,
यही है 
हर योद्धा को सीख।

जीवन के
मोर्चे पर सभी
पराक्रमी सिद्ध
सफल नहीं होते,
आत्मरक्षा
व्यक्ति - रक्षा
परिवार - रक्षा
समाज - रक्षा
चरित्र - रक्षा 
धन - रक्षा 
दायित्व - रक्षा 
देश -रक्षा ,
मोर्चे ही मोर्चे,
आवश्यकता है सर्वत्र
शक्ति शौर्य और
पराक्रम की।

सभी के लिए
खुले हैं 
अधिकांश मोर्चे,
अपने अस्तित्व के लिए,
जहाँ पराक्रम 
दिखाना ही है,
चरित्र -रक्षा
दुरूह ,
बाहर से कुछ
अंदर पनपते व्यूह,
सहज नहीं है,
देह के प्रति 
अंधासक्ति ही
चरित्र नहीं,
चोरी , ग़बन, राहजन,
रिश्वत,ठगी , अपहरण,
जनता का शोषण,
धोखा ,पर नारी
या  परपुरुष गमन,
सभी हैं चरित्र- हनन।

पर देश -रक्षा
एक अलग ही दायित्व,
अलग ही महत्व,
दुश्मन से बचाना,
शून्य से नीचे तापक्रम,
अडिग ड्यूटी पर,
न भोजन न शयन,
मात्र ड्यूटी का निर्वहन,
चौकन्ना प्रतिक्षण,
आत्मरक्षा में 
गोलियों का ध्वनन,
न फिक्र घर की,
न बच्चों की घरनी की,
बस एक ही लगन
रक्षा जन्मभूमि की
धरनी की।

यही हैं पराक्रमी सच्चे
देश के नागरिक 
सच्चे देशभक्त ,
जो देशरक्षा के
 वास्ते अनुरक्त,
तन से ही नहीं
मन से  भी सशक्त,
सही अर्थों में
 जीवनमुक्त देशभक्त।
न गेरुआ में अनुरक्त,
न मोहताज दिखावे के,
न तिलक छाप 
न कंठी माला ,
देह पर नहीं 
रेशमी दुशाला,
 तूफानों  ने जिन्हें
साँचे में ढाला।
वहीं उनकी
दिवाली है
दशहरा रक्षाबंधन होली है,
मातृभूमि की माटी ही
ललाट पर उनके
'शुभम'चंदन रोली है।

💐  शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
👮 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

भारतमाता [ गीत ]

दुनिया  देख  रही भौंचक्की,
भारतमाता      तेरी     ओर।
आज  गर्व  से मस्तक  ऊँचा,
तना  हुआ  है   ऊपर  और।।

कितना  रक्त   बहा वीरों का,
माता    तेरे      आँगन     में।
उसी  शहादत का हर जज़्बा,
 भरा हुआ  है जन -जन में।।
तीन सौ सत्तर नहीं रही अब,
दुनिया  में  भारत सिरमौर।
आज गर्व से ....

पाक जिसे अपना  कहता है,
भारत माँ   का     हिस्सा है।
धोखे से जो किया अधिकृत,
बहुत    पुराना    किस्सा  है।।
बकरे की अम्मा कितने दिन,
खैर   मनाएगी   अब  और!
आज गर्व से ....

सही     अर्थ  में  तेरी   बेड़ी,
तोड़   सके   अब कारा  से।
पैंतीस - ए   से मुक्त  हो गए,
तीन   सौ    सत्तर  धारा से।।
जिन आमों पर आम नहीं थे,
महकेंगे     वसंत   में   बौर।
आज गर्व से ....

उग्रवाद    की   काली   छाया,
घुट  - घुट कर  विष पीना था।
सैनिक शीश झुकाकर चलता,
ये    भी  कोई    जीना  था ??
पत्थरबाज      दौड़ते    पीछे ,
सैनिक-दल से  खाये   खौर।
आज गर्व से....

सत्तर    साल   गर्भ  में पाला,
क्या   ऐसा   भी    होता  है?
कितना  सहा  एक   माता ने,
आँसू  -  आँसू     रोता    है।।
तेरा  क्या  था पाक   बता  दे,
गले   न   उतरे    तेरा  कौर?
आज  गर्व से ....

सदा  दुराज  दुःसह   होता है,
पूछो     हर     कश्मीरी    से।
संगीनों   के    साये     में जो,
रहते     थे   उस    धीरी से।।
मंदिर  में  अब   शंख  बजेंगे,
निडर 'शुभम' फेरेंगे चौंर।
आज गर्व से ....

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

मंगलवार, 6 अगस्त 2019

कश्मीर [ कुंडलिया ]

बदला   है  इतिहास   अब,
बदल      गया      भूगोल।
तीन   सौ   सत्तर  हट गई,
हुआ       पाक    भूडोल।।
हुआ        पाक     भूडोल,
शाह   का    साहस    भारी।
मोदीजी        का     वरद,
अमितजी    विरुद   सँभारी।।
'शुभम'    देश     आज़ाद,
 हुई    अब    नारी   सबला।
मिटा      शीश    का    दाग़,
समा    है    बदला - बदला।।

सोमवार    तिथि   पञ्चमी,
पावन   सावन         मास।
पाँच   अगस्'  तारीख  भी,
रचा     नया      इतिहास।।
रचा     नया       इतिहास,
तिरंगा    ही        फहरेगा।
सेना      का        उपहास,
न   सैनिक   अब दहलेगा।।
'शुभम'  शंभु   आशीष,
शुभ   हों   सब सातों  वार।
संविधान         है       एक ,
सुखद    होगा    सोमवार।।

काँटा     काँटे     से     हटे,
नहीं        जोड़कर    हाथ।
विनय न   माने   धूर्त   रिपु,
उचित    नहीं     है   साथ।।
उचित    नहीं     है   साथ,
मानता  है    बस      जूता।
शठ    का   यही   इलाज़,
नहीं    विनती  में    बूता।।
'शुभम' गए    वे    दिवस,
गाल     मम     मारो  चांटा।
छोटा        काँटा        चुभे ,
बड़ा  कर   ले लो     काँटा।।

खून    खौलने   तब  लगा,
जब     देखा       उपहास।
सुरक्षा   हित   सैनिक गए,
उन         पर    अट्टाहास।।
उन        पर     अट्टाहास,
गए     पत्थर      बरसाए।
भागे       गीदड़     सभी,
बहुत  मन -  मन हरषाये।।
घाटी          थर्रा      उठी,
सेना    बनि     गीला  चून।   .
'शुभम'   दशा  ये   देख,
खौलता    सबका   खून।।

संविधान     है    एक   ही,
एकल    अमिट    निशान।
सुखी  रहें    कश्मीर   जन,
नागर      गाँव    किसान।।
नागर     गाँव      किसान,
एक    ही   ध्वजा  तिरंगा।
रावी       झेलम       सिंधु ,
बनें       कश्मीरी     गंगा।।
'शुभम' पूर्ण    आज़ाद,
एक  ही  विधि -विधान है।
हुआ        राष्ट्र     विस्तार,
एक   अब   संविधान   है।।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

घर का कूड़ेदान तुम्हारा [ बालगीत ]

घर  का   कूड़ेदान  तुम्हारा।
स्वच्छ  देश हो  सुंदर नारा।।

कूड़ा -  कचरा  मुझमें  डालो।
निज घर-आँगन स्वच्छ बना लो।
मकड़ी - जाले  छिलके  पत्ते।
रद्दी   कागज़   कपड़े - लत्ते।।
दान करो   मुझमें वह  सारा।
घर का कूड़ेदान ....

जूते   झाड़   घुसो  घर अंदर।
वस्तु सजाकर रख दो सुंदर।।
चीजें इधर - उधर मत फेंको।
विधिवत रखो सफ़ाई देखो।।
घर मंदिर -  सा  लगे हमारा।
घर का कूड़ेदान ....

दो   रँग   के  दो    कूड़ेदान।
सूखा   गीला   करें   प्रदान।।
सुविधा   इससे  बहुत रहेगी।
दुःखी न घरनी कष्ट  सहेगी।।
मिल जाएगा  बहुत सहारा।
घर का कूड़ेदान ....

रहते    हैं  भगवान  वहाँ  पर।
स्वच्छ शुद्ध हो जिसका भी घर।
रहने     में    आनंद   मिलेगा।
देख अतिथि का वदन खिलेगा।।
छोटा   या  घर बड़ा  तुम्हारा।
घर का कूड़ेदान....

जहाँ    गंदगी    हो   बीमारी।
सुई    घुसाना   हो   लाचारी।।
स्वच्छ सदन हो 'शुभम' तुम्हारा।
बीमारी  सब   करें  किनारा।
बारह  मास   बहार हजारा।।
घर का कूड़ेदान ....

💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
👌 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

नागपंचमी [ गीत ]

नागपंचमी   आज  मन गई
साँपों  का मुख तोड़ दिया।

 पूजा  करते   थे  साँपों  की,
रोज़ - रोज़ का डर था भारी।
वर्षों   से  हम   सोच  रहे थे,
कब   से   थी लम्बी तैयारी।।
आस्तीन  के  साँपों का डर,
अब  तो  हमने  छोड़ दिया।
नागपंचमी आज ....

धारा तीन सौ सत्तर कितनी,
हमें    सताती    रहती   थी।
आतंकी   की काली  छाया ,
हमको   डंसती  रहती थी।।
आस्तीन के उस भुजंग का,
फन   जूते  से  रौंद   दिया।
नागपंचमी आज ....

छिपा हमारे ही बिल में वह,
घात   लगाता   रहता  था।
'ये   कश्मीर  हमारा प्यारा',
उसको  अपना कहता था।।
एक कलम से झटका देकर,
काला  नाग झिंझोड़ दिया।
नागपंचमी आज...

माह अगस्त पाँच को  मित्रो,
गया   एक   इतिहास  लिखा।
मोदी  और   अमित शाह ने,
कहा  सत्य वह आज दिखा।।
पका हुआ था फोड़ा कब से
साहस करके  फोड़   दिया।
नागपंचमी  आज ....

अमन    चैन  की वंशी कर ले,
अब  हम      सभी   बजायेंगे।
कांटा    निकल  गया  पैरों से,
सारे       स्वप्न       सजायेंगे।। 
 केशर  की क्यारी का उपवन,
'शुभम'  गेह से जोड़ लिया।
नागपंचमी आज ....

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'


सवाल सकुचाये -से [ विधा :सायली ]

 एक
 'धर्मपत्नी' गई
'धर्मपति' के  साथ
 मेले   में
 अकेली।

 एक
पत्नी  गई
पति  के  साथ
ससुराल में
 दुकेली।

जब
'धर्मपत्नी'  है
'धर्मपति'  क्यों नहीं!
पति  ही
क्यों ?

अपनी
पत्नी अपनी
अपनी अन्य रक्षिता
'धर्मपत्नी ' है
सुना?

ये
कौन  है ?
'धर्मसाला' है अपना
' धर्मपत्नी'  का
भैया।

और
ये कौन?
साला है, भाई-
पत्नी का
मेरी।

भाई
'धर्मपत्नी 'का
साला  नहीं  होगा
'धर्मसाला' ही
कहलायेगा।

रक्षिता
'धर्मपत्नी' है
भाँवर  नहीं  पड़ती
'धर्मपत्नी' के
साथ।

पत्नी
रक्षिता नहीं
माँग  में   सिंदूर
जो   भरा
है।

परिभाषा
बदल  दीजिए
'धर्मपत्नी की अब
मात्र पत्नी
कहिए।

सवाल
सकुचाये-से
उठे   हैं  'शुभम'
पत्नी के
हितार्थ।

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता©
💞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...