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सोमवार, 30 जून 2025

शारदा स्तवन

 321/2025

             

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


वागेश्वरी              शारदा      माता।

भारत    स्वच्छ   बने  नित ध्याता।।


घर -आँगन    का     कूड़ा- कचरा।

उसे  फेंक   मत    मानव    इतरा।।

मन   से   भी   यदि   बाहर लाता।

भारत  स्वच्छ   बने   नित  ध्याता।।


मातु      शारदे      इसे      बताओ।

करनी    में      परिवर्तन     लाओ।।

तब   हो   स्वच्छ    देश   ये   भ्राता।

भारत स्वच्छ    बने    नित ध्याता।।


करें      आचरण     पावन    अपने।

शेष    न   रहने      पाएँ     सपने।।

मातु    भारती      सन्मति     दाता।

भारत  स्वच्छ   बने   नित  ध्याता।।


जब   चरित्र    हो    पावन   अपना।

नहीं  पड़े    गिरि   वन   में  तपना।।

भरत   भूमि   का    वास   सुहाता।

भारत  स्वच्छ  बने   नित   ध्याता।।


मात -पिता      की    करें   आरती।

ज्ञानदायिनी      सदा        तारती।।

'शुभम्'  यही   शुचि    वंदन   गाता।

भारत  स्वच्छ  बने    नित  ध्याता।।


शुभमस्तु !


30.06.2025●10.30आ०मा०

                 ●●●

न्याय मिले मिल जाए राहत [बालगीत]

 320 /2025



©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


शाह    चोर    सबकी   यह  चाहत।

न्याय  मिले    मिल    जाए  राहत।।


ढूँढ़ा    बहुत    कहीं   मिल   जाता।

बड़े    प्रेम       से    गले    लगाता।।

जहाँ  मिला   तो    मिलता  आहत।

न्याय  मिले    मिल    जाए  राहत।।


कचहरियां  सब    कच   हर  लेतीं।

नाम  न्याय   का  समय   न   देतीं।।

मिला न    उनमें  सत  का  शरबत।

न्याय   मिले   मिल   जाए   राहत।।


क्या   अधिवक्ता   जज  कर  पाते।

जब    जाते      तारीख      बढ़ाते।।

बदल गया है   अब    अपना   मत।

न्याय  मिले  मिल    जाए    राहत।।


पहले  स्वच्छ    मनुज    को  होना।

पड़े    अदालत   का   क्यों   रोना।।

अपनी -  अपनी    करें    हिफ़ाजत।

न्याय  मिले    मिल    जाए   राहत।।


आओ    सब     नर - नारी   आओ।

सदा    सत्य    को   गले  लगाओ।।

पड़े   न मन   में      कोई      हाजत।

न्याय   मिले   मिल   जाए   राहत।।


शुभमस्तु !


30.06.2025●7.00आ०मा०

                     ●●●

चादर अपनी सभी निहारें [बालगीत]

 319/2025


 

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 चादर    अपनी     सभी     निहारें।

चरित -  चाँदनी     नहीं     उजारें।।


कब    मैली      चादर    हो    जाए।

पता  न   इसका    लगने      पाए।।

देख  न    दौलत    अपनी     कारें।

चादर    अपनी     सभी     निहारें।।


छेड़छाड़      या      चोरी     कामी।

चरित -चदरिया   विशद    इनामी।।

गबन    मिलावट      की   दरकारें।

चादर  अपनी       सभी    निहारें।।


नर  - नारी    तक   इसकी   सीमा।

नहीं    चरित    आजीवन   बीमा।।

बहतीं  हैं   बहु     सघन     फुहारें।

चादर    अपनी     सभी    निहारें।।


नहीं     दूध   का     कोई    धोया।

दुश्चरिता    के   संग    न   सोया।।

दुष्चरित्र      की     सदा     बहारें।

चादर    अपनी     सभी    निहारें।।


आओ     धो लें     मैल    चदरिया।

स्वच्छ रहें  गिरि   घर  या   दरिया।।

अपने मन   की     कालिख   जारें।

चादर     अपनी     सभी    निहारें।।


शुभमस्तु !


30.06.2025●6.30 आ०मा०

                 ●●●

कौन बिना खाए पहचाना [बालगीत]

 318/2025


    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कौन      बिना     खाए    पहचाना!

पहले    पड़ता    ही    है     खाना।।


हाथ    नहीं     अपने    से    खाता।

शुभचिंतक   ही अन्य     खिलाता।।

धोखे     का      अज्ञात      नपाना।

कौन    बिना    खाए      पहचाना!!


नित्य    बड़े        धोखे    होते    हैं।

खा    लेते    तब    ही    रोते    हैं।।

धोखे     का     है   अजब   तराना।

कौन   बिना     खाए     पहचाना।।


जानबूझ       क्यों    धोखा    खाए।

जब -  जब    खाए  तब  पछताए।।

चखना     एक    न    चाहे    दाना।

कौन    बिना      खाए    पहचाना।।


नहीं   किसी    को   इसे  खिलाना।

अपना   हो   या   अन्य     बिराना।।

कभी  किसी  को   मत  उकसाना।

कौन    बिना    खाए     पहचाना।।


आओ     भारत    स्वच्छ    बनाएँ।

सोने -  सा      इसको    चमकाएं।।

अपने     ही     परिश्रम   का पाना।

कौन   बिना      खाए     पहचाना।।


शुभमस्तु !


30.06.2025●6.00आ०मा०

                   ●●●

बूँद -बूँद की एक कहानी [बालगीत]

 317/ 2025

     

  


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बूँद   -  बूँद    की     एक    कहानी।

कड़वी     है    पर     पड़े   बतानी।।


भ्रष्ट     आचरण   जो     कहलाया।

रग - रग में   मानव    की    छाया।।

कौन    नहीं     नर -  नारी   कानी।

बूँद - बूँद    की    एक      कहानी।।


बाबू     या        अधिकारी     नेता।

कौन    नहीं    है    रिश्वत     लेता।।

लिखी   हुई    है     सुनो    जुबानी।

बूँद -बूँद    की       एक    कहानी।।


करे    मिलावट       मूँछ      उठाए।

बिना  न    इसके   काम    चलाए।।

ऊपर   की     इनकम    है    लानी।

बूँद -    बूँद     की  एक    कहानी।।


जिसे  न   अवसर    मिलता  कोई।

श्वेत    वही   बस    चादर     धोई।।

बिना न    इसके      बचती   नानी।

बूँद -  बूँद    की    एक     कहानी।।


आओ   स्वच्छ   देश   को   करना।

नहीं    भ्रष्टता    के    रँग   भरना।।

काटें    वही      मूँछ     जो    तानी।

बूँद - बूँद   की     एक     कहानी।।


शुभमस्तु !


30.06.2025●5.15आ०मा०

                  ●●●

धर समाज सेवा का धंधा [बालगीत]

 316/ 2025


    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


धर      समाज   सेवा    का    धंधा।

निपट    हुआ   है    मानव   अंधा।।


खाक  सड़क  की    झेल    रहे   थे।

मूषक     दण्डें       पेल    रहे    थे।।

करते      अरबों     का     अनुबंधा।

धर  समाज   सेवा     का      धंधा।।


हर्रा      नहीं       फिटकरी     कोई।

फिर    भी     तान    चादरें    सोई।।

मिला    पुरुष    का     सुदृढ़    कंधा।

धर    समाज     सेवा    का    धंधा।।


किसी  एक  रँग    में   घुस    जाएँ।

रात   -   रात   में   लाख    कमाएँ।।

कहता     कौन      खेल     दुर्गन्धा।

धर   समाज   सेवा     का     धंधा।।


करते   क्या     हैं   एक   न   जाने।

भरे     रहें     नित - नित    पैमाने।।

किसके    गले    डाल   दें     फंदा।

धर  समाज    सेवा    का    धंधा।।


सावधान      इनसे      है     रहना।

पड़े अन्यथा  क्या    कुछ   सहना।।

खेल     खेलते     कितना     गंदा।

धर    समाज  सेवा    का    धंधा।।


शुभमस्तु!


30.06.2025●4.45 आ०मा०

                   ●●●

पाप -पुण्य हर एक जानता [ बालगीत ]

 315/2025




© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पाप  - पुण्य     हर   एक   जानता।

पर  अपनी     ही    साँच  मानता।।


भला - बुरा     हर      कोई     जाने।

अनजाने     के        करे     बहाने।।

यारों    के    संग     बैठ     छानता।

पाप  -  पुण्य    हर   एक  जानता।।


परदे     के      पीछे     की   करनी।

पड़ती  है    प्रत्यक्ष      में    भरनी।।

अपनी    मूँछें        दिखा    तानता।

पाप  -  पुण्य   हर   एक   जानता।।


मात  - पिता    को    नित्य  सताए।

सेवा   भाव    न   मन    में   लाए।।

बढ़चढ़   कर   वह   बात   भानता।

पाप  -पुण्य    हर   एक   जानता।।


करे     भागवत     कहे      बढ़ाई।

पानी     मिला     खीर    बढ़वाई।।

स्वयं     पाप    में    हाथ   सानता।

पाप -  पुण्य  हर   एक    जानता।।


आत्मप्रशंसा       में    मन    लाए।

करे      बुराई      जीव      सताए।।

बैठी     मन     में   सदा    श्वानता।

पाप - पुण्य    हर   एक   जानता।।


शुभमस्तु !


30.06.2025●4.00आ०मा०

                     ●●●

रविवार, 29 जून 2025

करें मिलावट सेठ कहाएँ [ बालगीत ]

 314/ 2025

      

    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


करें      मिलावट      सेठ    कहाएँ।

पुत्र   फलें      और     दूध   नहाएँ।।


दुहें      दूध       पानी   की    धारा।

दूध      बताएँ      शुद्ध      हमारा।।

भैंस  एक     की     चार    गिनाएँ।

करें  मिलावट        सेठ    कहाएँ।।


धनिया   लीद    मिलाता   बनिया।

लाल मिर्च में  रँग    की   कनियाँ।।

बहु    मंजिला    भवन     बनवाएं।

करें    मिलावट      सेठ     कहाएँ।।


नेताओं      को     चढ़े      पुजापा।

तोंद   देखकर     हाथी      काँपा।।

बैठासन    पर       माल     उड़ाएं।

करें  मिलावट      सेठ      कहाएँ।।


इन्हें   स्वच्छता   से     क्या   लेना।

भरें       तिजोरी       अंडे    सेना।।

सर्विस  वाले    मुँह     की    खाएँ।

करें   मिलावट     सेठ     कहाएँ।।


इन पर    रोकटोक   क्या    करना।

नहीं    आयकर    भी    है भरना।।

सपने  में     भी    कब    पछताएं।

करें      मिलावट     सेठ    कहाएँ।।


शुभमस्तु !


29.06.2025●4.00प०मा०

                   ●●●

अंधों का विश्वास न अंधा [बालगीत]

 313 /2025


       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अंधों     का     विश्वास    न   अंधा।

खुली    आँख  वालों   का    धंधा।।


ठगे     जा        रहे        भोलेभाले।

देख -  देख   करतब      मत वाले।।

है    मजबूत     इन्हीं    का    कंधा।

अंधों    का    विश्वास     न  अंधा।।


मजबूरी  क्या     कुछ  न   कराए।

ठगे    जा   रहे      निजी   पराए।।

फँसा    गले   में     जीवन   बंधा।

अंधों  का  विश्वास   न      अंधा।।


तंत्र  -  मंत्र     का    झूठ    बहाना।

माला -   माल  ढोंगपन       नाना।।

बचा  न    इनसे      कोई    जिंदा।

अंधों  का     विश्वास   न    अंधा।।


रँगे   वसन     ले     कंठी    माला।

धन दौलत का    नित    घोटाला।।

माथे  तिलक  बड़ा -  सा    बिंदा।

अंधों  का   विश्वास    न    अंधा।।


आओ    इनकी     करें    सफाई।

बनें न    मूरख      लोग - लुगाई।।

बड़ा  कठिन   है    इनका    फंदा।

अंधों    का    विश्वास   न  अंधा।।


शुभमस्तु !


29.06.2025●3.00प०मा०

                  ●●●

मुझे पता है धर्म कहाँ है [बालगीत]

 312/ 2025


   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मुझे      पता   है   धर्म    कहाँ   हैं।

जहाँ  ढोंग    है     धर्म   वहाँ    है।।


धर्म      धुरंधर          हैं       बहुतेरे।

बने    हुए      हैं    जाल      घनेरे।।

होती    नहीं     वहाँ     सुबहा    है।

मुझे    पता   है     धर्म   कहाँ   है।।


छापा     तिलक      त्रिशूल   धारते।

परदे      में     रह    मीन     मारते।।

नारी    जिनका    सकल  जहाँ   है।

मुझे     पता    है    धर्म   कहाँ  है।।


देवालय     में     पाँव       पुजाए।

वहीं     धर्म   का  मठ बन  जाए।।

उपदेशक     दरबार      वहाँ    है।

मुझे    पता   है  धर्म     कहाँ  है।।


कहता    रखो    कनक   से   दूरी।

मुझे     खिलाओ   हलुआ     पूरी।।

जातिवाद    का   खोट    वहाँ  है।

मुझे पता    है  धर्म     कहाँ     है।।


नारी    को   मत  साथ    लगाओ।

हो    संभव  तो    हमें    बताओ।।

नारी-  तन   में   नरक    रहा    है।

मुझे  पता  है     धर्म     कहाँ  है।।


करें    धर्म   की    सभी   सफाई।

ऊँचनीच   की    तज    प्रभुताई।।

छाछ    तुम्हारा    दूध     वहाँ   है।  

मुझे  पता     है   धर्म     कहाँ  है।।


शुभमस्तु !


29.06.2025●2.30प०मा०

                 ●●●

इतना भी बालक मत जानें [बालगीत]

 311 /2025




©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्


इतना    भी     बालक   मत   जानें।

राजनीति    हम      भी    पहचानें।।


राजनीति     में        नेता      होते।

अश्व   छोड़कर     चढ़ते     खोते।।

उन्हें    न   अपना    नायक   मानें।

इतना  भी  बालक    मत    जानें।।


थाने  में    रिकार्ड     मिल   जाता।

कल  का   वह   नेता   कहलाता।।

अलग     तोड़ते     अपनी    तानें।

इतना  भी   बालक   मत    जानें।।


नेताओं     की       करें     सफाई।

सुखी    रहें    तब  लोग -  लुगाई।।

इन्हें    स्वच्छ   करने   की    ठानें।

इतना  भी  बालक     मत  जानें।।


इनसे     कोई     कर्म   न      छूटे।

नेता   ही   जनगण      को    लूटे।।

बैठें     एक      संग      रम   छानें।

इतना  भी   बालक    मत    जानें।।


राजनीति     जब    स्वच्छ  रहेगी।

तभी  त्रिपथगा     सहज   बहेगी।।

नेता    हैं    सब    कोल    खदानें।

इतना भी    बालक    मत   जानें।।


शुभमस्तु !


29.06.2025●12.15 प०मा०

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अग्नि अनल हैं देव हमारे [बालगीत]

 310/2025


    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अग्नि      अनल   हैं   देव     हमारे।

करते     सबकी     शुद्धि    सुधारे।।


बहुत   उग्र       है    तेज    तुम्हारा।

नहीं   किसी  से    जाय    सँवारा।।

स्वयं     नियंत्रण     करें     सदा  रे।

अग्नि  अनल    हैं    देव    हमारे।।


पंच     तत्त्व  में    एक   तुम्हीं   हो।

दृष्ट  कहीं    अदृश्य     कहीं    हो।।

लघु   माचिस  में  रूप    छिपा  रे।

अग्नि    अनल   हैं    देव    हमारे।।


भोजन   भी     तो    तुम्हीं   पचाते।

बड़वानल   में      रूप     दिखाते।।

जड़- चेतन    के    अटल    सहारे।

अग्नि  अनल    हैं    देव     हमारे।।


तुम्हीं      हवन     पूजा   में   रहते।

पावक    और    हुताशन    कहते।।

जाता  क्रोध   न   कभी     सँभारे।

अग्नि    अनल    हैं    देव  हमारे।।


अंतिम   समय   मनुज   का आता।

करो  राख  तन   श्वास    विलाता।।

शरण     तुम्हारी     देह    मृदा   रे।

अग्नि    अनल    हैं   देव    हमारे।।


शुभमस्तु !


29.06.2025●11.45आ०मा०

                     ●●●

नील गगन काला कर डाला [ बालगीत ]

 309 /2025



©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


धूम      रसायन     से    भर  डाला।

नील   गगन   काला   कर   काला।।


औंधा  है     ज्यों     बड़ा    कटोरा।

नहीं  समझना      ओढ़ा     बोरा।।

सहज स्वच्छ   हो   गगन  निराला।

नील  गगन    काला   कर   डाला।।


बादल   सघन     नीर   भर    लाते।

धरती     का      शृंगार      सजाते।।

लगा      नहीं    अंबर    में     ताला। 

नील   गगन    काला   कर   डाला।।


पेटरॉल       डीजल      जलता   है।

जीव - जंतुओं    को    खलता  है।।

फैला     रहा    रोग    का    जाला।

नील  गगन   काला    कर   डाला।।


वर्षा   भी   अब    कम   होती   है।

प्रकृति   सुंदरी    नित    रोती   है।।

विष    वमनों    से   पड़ता  पाला।

नील  गगन   काला   कर   डाला।।


आओ     नीला      गगन   बचाएँ।

अन आवश्यक      नहीं    जलाएँ।।

गगन  नहीं   विषधर   का   नाला।

नील  गगन   काला   कर   डाला।।


शुभमस्तु !


29.06.2025●10.00आ०मा०

                  ●●●

कपड़े भी पहचान हमारी [ बालगीत ]

 308 /2025


        

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कपड़े     भी      पहचान     हमारी।

कौन    विवाहित   कौन    कुमारी।।


कपड़ों     में     चरित्र   की   छाया।

सजती  - धजती है   नित    काया।।

धन्य - धन्य   तन -  सज्जा    सारी।

कपड़े    भी      पहचान    हमारी।।


शूकर    श्वान   न     कपड़े    पहनें।

पहनें    नर - नारी     माँ      बहनें।।

लगतीं    हैं    वे    कितनी    प्यारी।

कपड़े    भी      पहचान    हमारी।।


पुलिस     डॉक्टर     नर्स    सुवेशा।

दीर्घ  नारि   के   सघनित    केशा।।

निर्धारित    हैं        सोच - विचारी।

कपड़े     भी    पहचान     हमारी।।


साधु  - संत   के   वसन    सजीले।

चीवर     लाल     गेरुआ      पीले।।

सकल     साधना      की    तैयारी।

कपड़े    भी    पहचान     हमारी।।


पहनें    वही     वसन   जो    भाए।

पहन वसन    क्यों    जन  इतराए।।

स्वच्छ    धुले     की     चर्चा   न्यारी। 

कपड़े     भी     पहचान     हमारी।।


शुभमस्तु !


29.06.2025● 9.15 आ०मा०

                 ●●●

गाल बजाना गाली होता [बालगीत]

 307/2025


   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


गाल       बजाना      गाली    होता।

मुख -  वाणी  का   दूषण     बोता।।


मुख  को   अपने    स्वच्छ    बनाएँ।

दें   न    गालियाँ     गाली     खाएँ।।

गाली     देने        वाला        रोता।

मुख -वाणी     का    दूषण   बोता।।


माँ    बहनों      को   गाली    छूती।

श्लील   कहें     मारें    मत    जूती।।

अपमानित     हो     खाए     गोता।

मुख -वाणी    का  दूषण      बोता।।


शुभ    बोलें    शुभ    ही  बुलवाएं।

कटु    वाणी    से   सहज  बचाएँ।।

काटें    बात     न   बनें      सरौता।

मुख -वाणी     का    दूषण  बोता।।


तेज     बोलना     लगती      गाली।

गोली -  सी   लगती  कर -  ताली।।

मोर   नहीं     पिक     मुर्गा   तोता।

मुख -  वाणी   का   दूषण   बोता।।


आओ  जीभ   स्वच्छ   हम कर लें।

शुभ   उच्चारें     कहीं    विचर  लें।।

खुलता   तब   मुख  - अमृत सोता।

मुख -वाणी   का      दूषण   बोता।।


शुभमस्तु !


29.06.2025●8.30आ०मा०

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पों-पों पीं-पीं करती लारी [ बालगीत ]

 306/2025



©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पों - पों   पीं - पीं     करती   लारी।

ट्रक    कारों   के     वाहन   भारी।।


नहीं        चैन    से      रहने    देते।

कान      फोड़ते    वाहन      जेते।।

शोर     प्रदूषण     की     बीमारी।

पों - पों  पीं - पीं  करती     लारी।।


मानक   हो   ध्वनि- विस्तारण का।

बनें   निवारक  अति    वादन  का।।

बने    नहीं    जन    की    लाचारी।

पों - पों   पीं- पीं      करती  लारी।।


कानों     की     अपनी    सीमा  है।

नहीं अवधि  का  ध्वनि - बीमा  है।।

कानों  को   ध्वनि   लगती   खारी।

पों-पों     पीं-पीं     करती    लारी।।


ध्वनिज - स्वच्छता    को  अपनाएँ।

सेहत  सजा   सहज    सुख पाएँ।।

करें    जागरण      होश     सँवारी।

पों -पों    पीं - पीं    करती   लारी।।


सभी    स्वार्थ     में   खोए   इतने।

परहित    के    मिलते   हैं  सपने।।

ध्वनि    से   गिरते   महल अटारी।

पों - पों पीं - पीं     करती    लारी।।


शुभमस्तु !


29.06.2025●8.00आ०मा०

विद्यालय भविष्य -निर्माता [बालगीत]

 305 /2025


  


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


विद्यालय       भविष्य   -   निर्माता।

मुझको  बहुत - बहुत   ही   भाता।।


विद्यालय     के    गुरुजन    अपने।

करते     हैं   पूरित   मम    सपने।।

बिना   किसी     नागा    मैं  जाता।

विद्यालय        भविष्य -  निर्माता।।


हम     विद्यालय     स्वच्छ  बनाएँ।

रोपें      पौध        लताएँ     छाएँ।।

सुंदर      बनता     और     सुहाता।

विद्यालय       भविष्य  -  निर्माता।।


नहीं       करें        दीवारें      मैली।

पॉलीथिन  की   रखें    न    थैली।।

टिफ़िन बॉक्स में   भोजन   लाता।

विद्यालय       भविष्य  - निर्माता।।


तोड़ें     फूल     न    तोड़ें     डाली।

शोभा   सुरभित    रहे     निराली।।

बैठ      घास   पर    हर्ष     मनाता।

विद्यालय      भविष्य  -  निर्माता।।


मिलजुल कर   हम    इसे   बचाएँ।

रक्षा  में     सब      हाथ     बँटाएँ।।

सदा     स्वच्छ    परिवेश   सुहाता।

विद्यालय       भविष्य  -  निर्माता।।


शुभमस्तु !


29.06.2025●6.45आ०मा०

जग की शोभा पेड़-लताएँ [बालगीत]

 304/2025


    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जग     की    शोभा    पेड़ - लताएँ।

अधिकाधिक  हम     पेड़    उगाएँ।।


जहाँ    पेड़    हों    शांति     समाए।

छाया     मिले    अतिथि   ठहराए।।

रहते      खग   पशु      भैंसें    गायें।

जग   की     शोभा   पेड़  - लताएँ।।


न    हो   अकाल    न   सूखा  कोई।

धरा     नहाए     सजल    भिगोई।।

देख   छाँव   मन   खो - खो   जाए।

जग  की    शोभा    पेड़ -  लताएँ।।


डाल  -   डाल    पर     बैंठे    पक्षी।

वही     हमारे     नित    अभिरक्षी।।

मधुर - मधुर फल  हम  सब  खाएँ।

जग     की    शोभा    पेड़- लताएँ।।


जहाँ     पेड़     हों    वर्षा     होती।

झड़ें    मेघ    से    जल  के  मोती।।

लगती       हैं   मनहर    कविताएँ।

जग  की    शोभा     पेड़ - लताएँ।।


चलो     सड़क   पर      पौधे   रोपें।

बातों   की   हम    चला   न  तोपें।।

धरती    को   तरु     से     हरियाएँ।

जग  की   शोभा     पेड़ -   लताएँ।।


शुभमस्तु !


29.06.2025●6.00आ०मा०

शयन कक्ष को क्यों छितराया? [बालगीत]

 303/ 2025




©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अतिथि  कक्ष  को   खूब   सजाया।

शयन कक्ष   को   क्यों  छितराया??


चित्र     कलेंडर      खूब     सजाए।

सोफा     सेट     सजा    लगवाए।।

अतिथि  कक्ष  सबको    ही  भाया।

शयन कक्ष   को   क्यों छितराया ??


शयन   कक्ष   में     कपड़े    बिखरे।

मुड़े-तुड़े        या       मैले    सुथरे।।

कहीं    सफाई       कहीं     सफाया।

शयन कक्ष   को   क्यों  छितराया??


पूरे   घर      की      महिमा    जानें।

एक   समान   सभी     को    मानें।।

समझें      उनको     नहीं   पराया।

शयन  कक्ष  को क्यों   छितराया??


खूँटी     पर    सब   कपड़े    टाँगें।

कोई   नहीं    किसी     से   माँगें।।

अलमारी     में     उन्हें     सजाया।

शयन  कक्ष  को क्यों  छितराया??


आगंतुक     आए     क्या     सोचे।

बाल     शीश    के   अपने   नोंचे।।

रहे   स्वच्छता    का    ही    साया।

शयन कक्ष   को   क्यों छितराया??


शुभमस्तु !


29.06.2025●5.45 आ०मा०

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आओ छत की ओर निहारें [बालगीत]

 302 /2025


  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आओ    छत   की    ओर    निहारें।

घर   आँगन    की   तरह    सँवारें।।


छत  पर   भरें   न   कूड़-  कबाड़ा।

रुके  न जल  का   कभी   पनाड़ा।।

गमलों  में    कुछ  पेड़    सजा  लें।

आओ  छत  की   ओर     निहारें।।


जब   घूमने     छतों    पर     जाएँ।

आँख  तृप्त   हों    लख   शोभाएँ।।

हरियाली       की       फूटें     धारें।

आओ    छत   की   ओर    निहारें।।


प्राण    वायु   के     पेड़    सजाएँ।

मनीप्लांट      की   बेल    लगाएँ।।

पथरचटा      घीग्वार         उभारें।

आओ   छत  की   ओर   निहारें।।


रोड़े    ईंट    न     कचरा    भरना।

छत  से  दूर सभी    को   करना।।

ऐसे   घर     को     प्रभु     उद्धारें।

आओ  छत   की    ओर   निहारें।।


छत    भी    होतीं    घर का हिस्सा।

अलग नहीं   है    उनका   किस्सा।।

नित्य      नियम   से  छतें   बुहारें ।

आओ   छत     की  ओर  निहारें।।


शुभमस्तु !


28.06.2025●7.15प०मा०

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किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...