गुरुवार, 31 मई 2018

झूठ का परचम

झूठी छिछली इन शानों  पर
मार    गिराना    आता    है। 
फिर  लहूलुहाती  लाशों पर 
परचम  लहराना  आता  है। 

ढोंगी     बातें     ढोगी आँखें
पर मूर्ख     बनाना आता है। 
सरकारी    धोकेबाजों    का 
परचम   लहराना  आता है।

सच      बोलो     तो    सही 
आवाज    दबाना  आता है। 
भड़काऊ   तालीमों      का 
परचम  लहराना  आता  है।

झूठे     इतिहासों           से ,
वरना     उपहासों         से 
मुद्दे    भटकना    आता  है। 
धर्म-जाति      आडंबर   का 
परचम   लहराना  आता है।

जन    को    जानवर    बना 
दंगे     भड़काना   आता है। 
इन  कत्ल  के ठेकेदारों का 
परचम  लहराना   आता  है

रोयेगा    भी    गाएगा    भी 
तू   ही  तो चुनकर लाता है। 
विरोध   तो  कर ,फिर देख
तू    ही   गद्दार  कहाता है।
पर भक्त हुआ कि बेपरवाह
परचम   फहराता जाता है।

©✍🏻 भारत

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आँखों से संसार है

आँखें    हैं       तो    संसार    है ,
वरना     जग     अन्धकार     है।

चाहो     अगर    न  बुरा  देखना,
निज     आँखों   पर पट्टी रखना।

बनावटी      अंधे   भी    तो    हैं,
जो चाहें    वे    लखते     वो   हैं।

बिन देखे दिख जाता बहुत कुछ,
पाती  आँखें    तरल  नयनसुख।

ज्ञान -चक्षु  जब   खुलते अन्दर,
अंदर - अंदर     लगता    सुंदर।

चर्म -चक्षु     बाहर    ही    देखें,
मर्म हृदय के   नहिं    अवलोके।

कुछ   तो करो  उपेक्षित   दृग से,
खुले    गगन में  रह  लो  खग से।

सब   कुछ  नहीं   देखना   होगा,
तब ही   जीवन   सुखमय होगा।

दृग   मूंदे  से  रात    न    कटती,
तन - आवश्यकता  ना   मिटती।

जिसने  देखा    नहीं  जगत को,
उससे  पूछो  नयन   सुफल को।

अपने  हाथ   नयन की  क्षमता,
नहीं किसी से  दृग  की समता।

पूँछो  जिसके   नयन   नहीं   हैं,
उससे  क्या  दो नयन   सही  हैं।

 मूल्य  नहीं है  कोई   नयन  का,
प्रकृति -दत्त  इस   सत  वर का।

"शुभम"सदा कोई उऋण न होना,
देकर प्रभु  कोई  नयन  न खोना।

💐शुभमस्तु।

✍🏼©डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम"

बन्द करो निज कान

 कान   मूँद    बहरे  बन   जाओ,
नयन खोल और  जीभ चलाओ।

कितना   अच्छा    बहरे   रहना,
ऐच्छिक  सुनना कुछ भी कहना।

सारा    जायजा   चक्षु   से लेना,
पड़े   ज़रूरत     मुँह   से   देना।

बहरा    रहना    बड़े    काम का,
सीमित  सुनना  बिना   दाम का ।

गाली  मिले तो   क्यों  चुप  रहना,
दे प्रतिउत्तर    कुछ   भी   कहना।

बस  मतलब  की ही  बातें सुनना,
अपना  कम्बल  खुद ही   बुनना।

 ध्यान   रखो     गांधी   के  बंदर,
जोर   पड़े   घुस   जाओ   अंदर।

कुछ  भी कह  लो कुछ भी देखो,
पर कानों   से      बुरा  न   देखो।

बन मूरख   नित    चरो   मिठाई,
बहरेपन    की        लगा   दुहाई।

कौन    देखता    बहरे   भी   हो,
सब   समझेंगे    बहरे   ही    हो।

अभिनय  की   महिमा है न्यारी,
नर  भी  बन  जाते     हैं   नारी।

"शुभम" कान का काम निराला,
खुला हो  या  बंद परदा -ताला।

💐शुभमस्तु!

✍🏼©डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

सबसे अच्छा मौन

सबसे      अच्छा  मौन  भला है,
ये   भी  मित्रो    एक    कला है।

बुरे     किसी    के नहीं   बनोगे ,
सिर  भी    अपना  नहीं  धुनोगे।

चुपचुप   मज़े    उड़ाओगे    तुम,
छुपछुप  गुल भी खिलाओगे तुम।

तुम्हें     कहेगा    श्रेष्ठ     ज़माना,
बैठे - ठाले        नाम     कमाना।

हर्रा  लगे  न    फिटकरी   लगनी,
यश  की    क़ीमत  पूरी  मिलनी।

कोई '  लब्धि  न हो    तो क्या है,
बिन  ख़र्चे  मिल जाए तो क्या है!

सबसे   बढ़िया   गुपचुप   जीना,
बारहों    महीने    चौड़ा    सीना।

पड़े  जोर      सटके    कौने   में,
खाई  बूंदी        छिप     दौने में।

घनी     छाँह  के   बसने   वाले,
मौके   पर   छिप     रहने वाले।

चुप   रहने     के    साठ   बहाने,
सबके    अच्छे   सबहिं    सुहाने।

सदा    दूर       रहें    जिम्मेदारी,
परदे   में     पीटहिं    कर -तारी।

कान   भरें    कौने    ले  जाकर,
दूर    रहें   जब   भेद   उजागर।

ताव  मूँछ    दे    बड़े    सिहाते,
अपनी  पीठ  आप   थपथपाते।

मौन इनकी तलवार और खंजर,
उर्वर   को   भी    कर  दें  बंजर।

इनसे "शुभम" बचते  नित रहना,
बिगड़े बात  तो फिर  मत कहना।

💐शुभमस्तु!

✍🏼रचयिता©डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

बुधवार, 30 मई 2018

आंकड़ों के झाँकड़ों से

आँकड़ों      से   भर  रहे
अखबार    टीवी      सब,
आँकड़ों  के   झाँकड़ों से
सरकार   नहीं     चलती।1

झाँकड़ों     के      शूल   ने
उलझाया    ही         सदा,
हर  शूल   की    डाली   पे
कलिका फूल की खिलती?2

करने  में श्रम   निज हाथ से
पड़ती     कड़ी       मेहनत  ,   
जीभ  की   लफ्फाजियों   से
कोई   बात    नहीं   बनती।3

आँकड़े  सच      हों    अगर
खुश     होने       के    लिए,
झूठे         आँकड़ों        से,
देश की तस्वीर नहीं बनती!4

उँगली  करोगे  कल  में तुम
ये कलयुग     की   चाल  है,
कोई    बात   ऐसी     हो न
तो  अँगुली    नहीं   उठती।5

करके जुगाड़ें काम कब तक
कर          सका         कोई ,
ऐसी   तेरी       फ़ितरत   से
किस्मत  देश    की  बनती?6

मौसेरे    भाई      चोर     हों
तो     दोष       किसको   दें,
जब होगी  मिलीभगत मित्रो
शक  - रार      नहीं  बनती।7

बिन  आग के    धुआँ  कभी,
उठता      नहीं          देखा।
भाषणों  के     अंधडों    से,
कोई  आग   नहीं   बुझती ।8

 आदर्श    की   बातें  बनाना
 बहुत      ही          आसान,
आदर्श    के   मीठे   बताशों
नहि       मधुरिमा     बनती।9

इतनी    भी   मूरख   नहीं है,
देश       की            जनता।
आश्वासनों       वादों       से
"शुभम" खुशियां नहीं मिलतीं।

💐शुभमस्तु!

©डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

आँधियाँ

            ★1★
आँधियाँ         तो       यहाँ
बारहों      मास    चलती हैं,
बना       करके     बवण्डर
बगूले     साथ      चलती हैं ,
हर          एक         मौसम 
आंधियों का कहर  ढाता है,
हवाएँ  क्यों   पहर दर पहर
यूँ      ही       मचलती    हैं।

            ★2★

कभी नेताओं की  आँधी  है
सियासत का    ये बलवा है ,
रेला    रैलियों      का    भी
उजड़ता  चमन   सबका है,
कोई     भूखा     रहे    नंगा
उन्हें   बस  धूल से मतलब,
यहाँ फाके   की    नौबत है 
वहाँ   मेवों  का   हलवा  है।

              ★3★

टूटे     गिरे    खम्भे    ध्वस्त
सारी        नीतियाँ     भूपर,
उड़ी   नैतिकता  की  बल्ली
फ़िक्र  उनको नहीं    जूं भर ,
धूल   नारों    की      उड़ाते 
हुए   हैं   कान   सब    बहरे ,
उन्हें  चिन्ता   न  नीचे   की
उड़   रहे    धूल   के  ऊपर।

             ★4★

मँहगाई    की     आँधी   में
प्रगति का    भान   होता है  ,
पेट्रोल   प्याजों   से     यहाँ
सुख - संधान       होता   है,
रसायन   से     बने   खोया
दूध        की           आँधी,
लौकी में रसायन का असर
विज्ञान            देता      है।

                ★5★
नारी  के   लिए  आदर्श  की
बस      बात      होती     है,
हवस  के दानवों  के हाथ में
अबलाएँ       रोती          हैं,
ये तूफान कब  तक   चलेगा 
कोई                  बताएगा ?
गिर   गए   मस्तूल    इंसां के
ये    मानव -जात     होती है।

               ★6★

 गिर   गए    रूख    इंसां  के 
बदले   हैं    रुख    कब    से!
ध्वस्त    नीवें   मकानों    की 
ये घर     रह    गए    कब से!
दिखावे    में    मग्न    मानव
किसी  से    क्या छिपा चेहरा?
इन    आंधियों   के  साथ   में
ओले     गिरे    जब        से।

               ★7★

कभी     तूफान    आते     हैं
कभी   भूकम्प     होता     है,
तकिया लगा  फुरसत     का
मनुज    निष्कम्प    सोता  है,
परिभाषा    ही      बदली   है
किसी की   भाषा    बदली है,
"शुभम"इंसान   अपने    हाथ
कांटे     आप       बोता     है।

शुभमस्तु।
©✍🏼 डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

परशुराम भी धाकड़ भी

पराशुराम  भी    धाकड़  भी,
आलू  भी औऱ    पापड़  भी।
हाथ  में  फरसा    लिए  हुए,
नहीं  मारते       झापड़   भी।।

पिंक सिटी    में     दुर्ग   बड़े,
धाकड़   भाई     वहीं   खड़े।
शायद   उनके     मन     थी,
खाने  हैं    मुझे      दहीबड़े।।

जयगढ़   और  आमेर  किला,
ऊँचे चढ़कर      आन  मिला।
शीशमहल   के     दर्शन   का,
धाकड़  जी से    लाभ मिला।।

हवामहल की   हवा   मस्त है,
किले में खासी बड़ी   गस्त है।
स्वर्ण जटित मंदिर कितने  हैं,
थककर  तन की दशा पस्त है।

 धाकड़ जी ने  ज़ू   दिखलाया,
भालू शेर        देख     गुर्राया।
तू   हमको     जानता    नहीं!
धाकड़    ने कोड़ा  चमकाया।।

राजमन्दिर  की   सैर  निराली,
हेममालिन   नृत्य      दिखाती।
देख  भंगिमा  धाकड़    जी ने ,
मूँछे अपनी    और    तना लीं।।

"शुभम"  पूर्ण अनुरोध आपका
मौसम  है ये   घुटन   ताप का।
जयपुर   सैर   करायेंगे    कब,
काव्य रचा  माँ के  प्रताप का।।

💐शुभमस्तु!
©डॉ. भगवत स्वरूप" शुभम"

अभी और गरम रहने दे

अब  तक था गरम  में  तन,
अभी   और  गरम  रहने दे।
लपटों    में        रहता   था,
कुछ  और   लपट   रहने दे।1

दिन  में  न  चैन   तन    को 
निशि    में   न  नींद   आती।
ठंडा      अच्छा        लगता ,
लू          ठंडी       चलने दे।।2

ठंडा    -      ठंडा        पीना ,
मुझे  अति   प्रिय    लगता है।
तरबूजे        लाल        मीठे,
बड़े   स्वाद    से     खाने दे।।3

लंगड़ा      नीलम      दशहरी,
आमों     का     मौसम      है।
खरबूज    की     रंगत     का,
कुछ  असर    भी    रहने  दे।।4

शीतल    जल        जीवन   है,
इस तन   मन     की    खातिर।
 दो  नयन     के     पानी     को ,
इतना    मत       मरने     दे।।5

मत    आँधी       तूफ़ाँ      ला,
वैसे    ही       बहुत      आँधी।
किसी  धर्म    की    आँधी को,
इतना   मत      बहने       दे।।6

वैसे   भी        बहुत     गरमी,
सियासत    ने     बढ़ा    दी है।
तू   अपनी      गरमी        को,
थोड़ा   तो    नरम      कर दे।।7

किसी  शजर    की   छाया  में,
शांती     भी     सुकूँ    अच्छा।
कोई   चैन     से     जी    पाए,
कोई   शजर  न      कटने दे।।8

द्रुम    वर्षा        के     कारण,
ऑक्सीजन  -    स्रोत     बड़े।
उनकी        हरीतिमा        से,
आँखें    तर         करने   दे।।9

वर्षा          सकुचाई           है,
दो       जेठ   खड़े     दर   पर।
दो   जेठों    के     खातिर   ही,
घूँघट   तो        करने    दे।।10

"शुभम" गरमी   तो तपस्या है,
तप  का   फल     सुंदर    हो।
तपकर    धरती     माँ     की,
हर   प्यास     भी   बुझने दे।।11

💐शुभमस्तु!
©डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

मंगलवार, 29 मई 2018

अभी और भरम रहने दे

अब तक  था  भरम में मन,
अभी और   भरम   रहने दे।
अंधियारों    में   जीता   था,
कुछ    अंधियारा  रहने दे।।1

दिन में    भी   हमारी  आँखें ,
कुछ  देख    न     पाती   हैं  ।
अंधियारा        सुकूँ      देता ,
यहाँ     अँधियारा  भरने दे।।2

पीछे   -    पीछे        चलना
मेरी  आदत   में  शामिल है।
मेरी    पीछे     चलने    की ,
आदत    तो     रहने    दे।।3

कोई   बरगद     की    छाया ,
निर्भीक        बनाती       है।
किसी   सघन   शजर   नीचे,
कुछ   पल  तो   बसने     दे।।4

हम    उड़ते        पंक्षी     हैं  ,
निर्भर    उन      पर    रहना।
उनके   कण      दानों     पर,
कुछ  दिन   और    चरने  दे।।5

'गर    होती       इतनी    भी,
भेजे   में    अक्ल     अपनी ।
उनकी       'सद्बुद्धि'       से ,
जीवन    तो     चलने     दे।।6

जीवन   भर          भेड़    रहे ,
भेड़ों     में        रहे       जिये ।
"शुभं"   शेर        बनें      कैसे ,
हमें     भेड़     ही     रहने   दे।।7

शुभमस्तु!
©✍डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

अभी तो वक़्त है बहुत

अभी      तो     वक़्त   है   बहुत
इतनी     बेक़रारी       क्यूँ      है
आयेंगी     आँधियाँ     भी    कई
तूफ़ान  की     इन्तज़ारी   क्यूँ है!

अभी   तो  महज़ एक सन्नाटा है
हवा     बन्द -   बंद   -   सी     है
संभालो   अपने   जिस्म के कपड़े
ये हवाओं   पे   सवारी     क्यूँ  है!

अपने तम्बुओंकी रस्सियां कस लो
कमर   भी       कसकर      रहना 
तूफान           भी           आएगा 
कीचड़    में  ईंट    मारी    क्यूँ है!

खिड़कियां   दरवाज़े   भी   अपने
बन्द               रखने           होंगे
मगर   हर      दर    पे   लटकती 
परदेदारी              क्यूँ          है!

छोटे     -     छोटे   ये     दरख़्त  
बगूलों   में      उड़   ही    जाने हैं 
मगर      बड़े         पेड़ों        की
अभी     से      ख़्वारी   क्यूँ    है!

ये      झूमती        लताएं      तो
लिपट ही जाएँगीं मजबूत तने से
उलझती    हुई        झाड़ियों की
यूँ      तरफ़दारी       क्यूँ       है!

आई   भी   नहीं है   अभी    तो
बरसात "शुभम" खेत जंगल में
कूदने    लगे      हैं        मेढक
जुगनुओं की चमकदारी क्यूँ है!!

शुभमस्तु!
©✍डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

कोई हमसे सीखे !

शेखी बघारना  कोई  हमसे सीखे
भूसे मेंलठ मारनाकोई हमसे सीखे

अपनी प्रशंसा में हम बड़ेमाहिर हैं,
मियाँ मिट्ठू बनना कोई हमसे सीखे।

हमारी  ही नींव पर देश जन्मा है,
इतिहास को सुधारना हमसे सीखे

बातें बनाने के हम बड़े  डॉक्टर हैं,
बातों बातों में रिझाना हमसे सीखे

भले ही कढ़ाई हमारी लकड़ी की,
कढ़ाई में खिचड़ी बनाना हमसे सीखें।

मौन  रहने  से देश    नहीं  चलता,
लफ्फाजियों सेचलाना हमसे सीखे

मज़हबी मुद्दे भी उठाना जरूरी है
मजहब के वास्ते चलाना हमसे सीखे

यही तो रीति है पुरानी इस  कल्चर की
छीन कर खाने की कोई हमसे सीखे।

किए थे अलाउद्दीन ने हमले अनगिन
कुछ उनसे भी सीखना हमसे सीखे।

हम तो चिल्ला चिल्ला के कहते हैं
तिल को ताड़ बनाना हमसे सीखे।

हमारी तलवारों   से हवा डरती है,
जुबां से हवा बनाना हमसे सीखे।

क्या लगा रखा है महंगा  महंगा
महंगाई से विकास लाना हमसे सीखे।

विश्वगुरु का दर्जा हमें प्राप्त "शुभम"
पूर्वजों को गरियाना हमसे सीखे।

हम नहीं सुधरेंगे   कसम खाई है,
"शुभम" गाड़ना पनारा भी हमसे सीखे।

शुभमस्तु!
© ✍डॉ.भगवत स्वरूप"शुभम"

ताक -झाँक

ताक-झाँक     होने    लगी,
शौचालय        के      छेद।
परदे    में   कुछ    ना   रहे,
गोपनीय     कोई      भेद।।1

ले कर  में    आधार  निज,
पंजीकरण          कराओ ।
शौचालय  तब   ही   खुले,
जब सिमसिम चिल्लाओ।।2

बैडरूम   की  अलग  चिप,
पर    एक    ही     आधार।
सीसी टीवी     से      जुड़ा,
रहे     कार्ड      आधार।।3

लखनऊ    दिल्ली  बैठकर,
देख      सके       सरकार।
फ़ोटो   ना      देना     पड़े,
बार-बार      हर       बार।।4

बनी  किचन    में दाल   है,
या बनता   शाही     पनीर।
खुशबू      लेते       दूर  से,
अधिकारी       रण धीर।।5

नाले नाली      किचन   की,
सबका    चिप       निर्माण-
होने  अब   लग     जाएगा,
होगा     जन  -   कल्याण।।6

क्या  खाया निज   उदर में,
उसकी     आख्या     पूर्ण।
चिप   से  ही मिल  जाएगी,
ज्यों    गर्भान्तर      भ्रूण।।7

भरी    तिजोरी    नोट   से,
इसकी  चिप   नहि   कोय।
नेताजी    की     मौज   है,
सब    रहस्यमय      होय।।8

शिक्षक   और   गरीब   पर,
सख्त   -  सख्त      कानून।
आम   आदमी   पिस   रहा,
नेता   मौज     में      दून।।9

हर  घर  के   हर  द्वार पर,
चिप    चिपकानी     मित्र।
झोपड़पट्टी  में  भी   मिलें,
दर्शित करने  हर चित्र।।10

नेता जी     ईमानदार   सब,
जनता जी            बेईमान।
खाल   खींचने    के    लिए,
हर    उपाय    का   ध्यान।।11

महंगाई    की      मार   में,
जाति  धर्म     घुस    जांय।
फूट   डाल    लूटें      प्रजा ,
मुखौटे       में     शरमाईं।।12

ताक -झाँक   कर    लूटना,
मॉर्डन विधि    की    खोज।
नई साइंस   ने     दी  बता ,
बिगड़े       चाहें        रोज़।।13

डाल    अंगुलियाँ    छेद  में,
छोड़ा        करते       रोज।
"शुभम"नियम नित   बदलते,
क्या  कर ले    जन -  फौज?

शुभमस्तु!
©✍डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

बिना परमिशन

विद  परमिशन  बात न कोई,
कितना भी   लो    ऊँचे बोल।
नाचो  कूदो  धमाल   मचाओ,
वॉल्यूम  पूरा  लो तुम खोल।।

पर 'गर अनुमति ली न गई तो,
कहलाओ   तुम   पक्के   चोर,
कथा  भागवत   हो  न सकेगी
पड़ जाएगा पुलिस   का झोर।।

जायज है   अनुमति   ले लेना
चाहे   कितना      बुरा    करो,
निज पड़ौस  के कान फाड़ दो,
कानून  से    भी   डरा   करो।।

इन फरमानों  का  अनुपालन
हर आम आदमी को  करना,
नेता जी  या   अधिकारी  को
कानून   करतल   में  रखना।

अनुमति से कनफोड़ू म्यूजिक
जायज बन    सज   जाता है,
चोरी -चोरी  ध्वनि जो  बजाई
नियम -भंग    हो   जाता   है।

इतना   खर्चा     वहाँ   करोगे,
यहाँ  भी   थोड़ा   बनता    है।
अनुमति का तो   अर्थ यही है,
यह    सुविधा   हित अच्छा है।।

निर्भय "शुभम" बजाओ घण्टा
लाउडस्पीकर    ऑन    करो।
मरे   कोई   बीमार   शोर   से
निकट  स्कूल  में शोर  करो।।

शुभमस्तु!
©✍डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

सोमवार, 28 मई 2018

इतनी भी न तानो

इतनी  भी  न   तानो अधिक
डोरी          टूट       जाएगी,
मत    लो    परीक्षा  सब्र  की
हद          रूठ        जाएगी।

कीमत  नहीं तेरी    नज़र  में
कोई     आदमी     की    भी
ईंट - पत्थर          की       ये
 मंज़िल      छूट      जाएगी।

अपने    अहं   में    आदमी को
आदमी             तो        मान
तेरे     अहं       की         झूठी
कहानी        टूट         जाएगी।

सभ्य          शिष्टाचार       तो
सबसे        अपेक्षित          है
इंसान   पशु         में       भेद
क्या        मूरत        बताएगी?


कुछ  न लाया ले जाएगा कुछ
सब     धरा           का      है,
ये    हस्ती   जो    कमाई    है
धरा    पर        छूट    जाएगी।

चार    दिन   की   चाँदनी    है
फिर           अँधेरा            है
रौशन    आज      की    पूनम
न   ऐसे        दम      दमायेगी।

न  इतरा     तू    न     इठला   तू
ये   दुनिया     एक      मेला    है ,
"शुभम"    किस      मोड़      पर
 फिर भेंट अपनी हो  ही  जाएगी।

चाँदी की चम्मच  मुंह  में ले  के
सब   आते      न    दुनिया   में
कर्म बिन   चम्मच  न  मुँह   में
कुछ                     खिलाएगी।

इस   कूप     की    मुंडेर   पर
जो         स्वर         निकालोगे,
वही         ध्वनि         लौटकर
तुम्हारे       पास        आएगी।

💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

नेता: एक वर्गीकरण

नेताओं को कुछ वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है। नेताओं के
कुछ प्रमुख वर्ग निम्नवत हैं:----

1.दल भक्त नेता : यह नेता का वह प्रथम वर्ग है , जिसमें नेता एक ही दल में रहकर अपना जीवन
सफल करने में विश्वास करता है।वह चाहे  विधायक या मंत्री बने या न बने ,पर स्तम्भ की तरह
एक ही दल को समर्पित भाव से अपना स्वीकार कर लेता है।
जीना भी यहीं ,मरना भी यहीं।

2.दलदल भक्त नेता :दल दल नेता राजनीति के दलदल में पड़कर कई प्रकार के दलदलों की महक
का आनन्द प्राप्त करता हुआ एक परिपक्व नेता  बनने में  विश्वास करता है। इसलिए यदि सुबह वह
एक दल में है तो दोपहर को लंच किसी और दल में  करता है और शाम का डिनर नाश्ते वाले दल
के साथ भी हो सकता है और किसी  तीसरे के साथ भी कैंडल लाइट  डिनर  का आनन्द हल्के
हल्के अंधकार में ले सकता है।बहुत सारे दलों का  अनुभवी यह  नेता  बार बार पालियाँ बदल
कर राजनीतिक कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी बन जाता है । इसको जहां भी मलाई मिलती है, ऊँची
कुर्सी मिलती है, बस उसी के साथ हाथ मिला लेता है , कभी कभी गले  भी मिल जाते हैं। ये नेता
अवसरवादी नेता भी कहे जातेहैं।
" जैसी बहे बयार तबहिं तैसौ रुख कीजे"-- में विश्वास करने वाले ये नेता बिकाऊ नेता भीकह दिए जाते हैं , क्योंकि इनकी अपनी कीमत समय  समय पर घटती बढ़ती रहती है।ये बस मलाई में विश्वास करते हैं।

3. नेता -भक्त  नेता:- नेता भक्त नेता का अपना कोई निजी व्यक्तित्व नहीं होता। वह तो जिस नेता या नेत्री का भक्त होता है, बस उसी की पीछे-पीछे चलने में ही अपने  जीवन की सार्थकता मानता है। इसको "भेड़ -भक्त नेता " भी  परिभाषित किया जाता है। ये दल का नही व्यक्ति का वफ़ादार होता है। उसके गले में उसका ऊपर वाला जो पट्टा लटका देता है, उसी  के अनुरूप ये गाता - बजाता है। बस पीछे पीछे  चलकर अनुगमन करना ही
इसका उद्देश्य है। नारे लगाना, बेनर चमकाना, बेनर बांधना, जिंदाबाद , मुर्दाबाद करना -ये सब, इसी प्रकार के नेता का काम  होता है।

4. लोटा भक्त नेता : जिधर का पलड़ा भारी , उधर नेताजी की सवारी। इसमें कोई पेंदा नहीं होता, कब किधर  लुढ़क जाए, कोई पता नहीं। ये न किसी दल का, न दलदल का , न भेड़ भक्ति में आसक्ति, केवल अपने स्वतंत्र चिंतन के बल पर स्वविवेक से स्वतंत्र  निर्णय लेता है। इसीलिए इसे धक्के  भी कुछ ज्यादा ही खाने पड़ते हैं।
        अरे भई! इसमें सोचने की क्या बात! अपना अपना सिद्धान्त है। नेताओं से अधिक सिद्धान्तवादी भला हो भी कौन सकता है। इसीलिए  लोकतंत्र को प्रणाम  किया जाता है।

 नेता -वर्गीकरण का यह शोधपत्र
यहीं विराम  लेता है।
   शेष फिर कभी।
💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ.भगवत स्वरूप"शुभम"

रविवार, 27 मई 2018

ये अंदर की बात है

बैड रूम      के     सेल्फ़ी भी
अब         मांगें          जाएँगे,
शौचालय      के मांग     लिए,
अब  और भी  आगे    जाएँगे।।

स्वच्छ भारत अभियान चला है,
सब   जगह   स्वच्छता लानी है।
बैड रूम    की    चादर    भैये ,
धुली   स्वच्छ      बिछवानी है।।

टीचर    ठेकेदार     सभी   का,
शौचालय   भी   स्वच्छ   रखे।
करे रिपोर्ट निज अधिकारी को,
मक्खी मच्छर   कहीं   दिखे।।

शयन कक्ष      पहले   सबसे ,
उसको   आदर्श    बनाना है।
इसीलिए दस   बजे रात  को,
सेल्फ़ी    चित्र   बनाना    है।

शासन    को    भेजेंगे   सीडी ,
सरकारी     अधिकारी    को।
बी एस ए को खुश करने को,
नर हों  या  फिर   नारी  को।।

बैड रूम वह मार्ग प्रगति का,
जिससे प्रोन्नति   भी मिलती।
उसकी  सेल्फ़ी पेश ही करनी
ऊपर  की    मंजिल  चढ़तीं।।

ये अंदर की   बात   है  मित्रों,
पर     सरकार        पारदर्शी ।
तुरंत   सेल्फ़ी   लेनी    होगी,
मत      विचार      अदूरदर्शी।।

पहले तुम्हें बताया सब कुछ,
किचन भी स्वच्छ बना लेना।
एक  दिन भोजन बनता कैसे
सेल्फ़ी   से    दिखला   देना।।

घर की  नाली  मोरी    सबके,
कुछ- कुछ पोज   बना रखना ।
जाने  कब ऑर्डर  मिल जाए,
झूठ   बहाना    नहीं   चलना।

"शुभम"चलो युग के अनुरूपित
स्वच्छ करो निज घर और देश।
नए जमाने   की   बात  नई है,
छोटा है   पर   वृहत   संन्देश।।

💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

शिक्षक का शौचालय

निज  शौचालय   बैठकर ,
सेल्फ़ी  ले       लो  मित्र।
वरना वेतन  रुक जाएगा,
जल्दी      भेजो    चित्र।।1

बनवाया    तुमने    नहीं,
यदि     शौचालय    गेह।
शिक्षक   की ये   नौकरी,
होता        है     सन्देह।।2

अधिकारी की   नज़र में ,
शिक्षक      झूठा    चोर।
घर  शौचालय  के बिना,
शौच   करे   किस  ठौर।।3

ऊपर   से   नीचे  तलक,
की  सेल्फ़ी   ही    होय।
पहुँचे   ज्यों   स्कूल   में,
देंय      सफ़ाई     रोय।।4

सीडी  बनवा  कर  सभी,
टीचर     लाओ     शीध्र।
बी एस ए    डी एम सब,
को    पहुंचाओ   शीघ्र।।5

अधीनस्थ    को    डाँटते,
'फीसर        "ईमानदार"।
जाते    होंगे      खेत   में,
मत झूठी  सेल्फ़ी डाल।।6

बी ई ओ   भी   क्या  करे,
सिर  पर    दंड    प्रहार।
ऊपर    जाएंगे    आँकड़े,
खुले   वेतन    के    द्वार।।7

एक   के   ऊपर  एक  है,
सबके       ऊपर     एक।
ए सी   में     बैठा   हुआ ,
क्यों      मजबूरी     देख?8

बिना परिस्थिति  देख वह,
करे     आदेश      प्रसार।
ऊपर   वालों  की   सभी,
झेले     शिक्षक     मार।।9

वेतन की   धमकी   मिली,
निज शौचालय अनिवार्य।
जो आज्ञा कह कर  चला,
"शुभम" गृह    सिर धार।।

शुभमस्तु!
©✍डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
(सीतापुर की एक वर्तमान घटना से प्रेरित। )

दुनिया रैनबसेरा है

ये     दुनिया     रैनबसेरा      है,
कुछ   तेरा  है   ना      मेरा   है।

एक  आता  है   एक   जाता  है,
बिस्तर   समेट  उठ   जाता   है।

खुशी    कहीं     पर   रोदन   है,
ये प्रकृति     का   संशोधन    है।

नित  उजला   कहीं    अँधेरा  है,
 कहीं  संध्या  कहीं     सवेरा  है।1
ये जीवन....

बागों   में    कलियाँ      मुस्काती,
अम्बर   में   चिड़ियाँ     मंडराती।

बिजली   गिरती     तूफ़ाँ    आते,
मानव पशु खग  कितने ढह जाते।

आने     जाने     का      घेरा   है,
कहीं  आबादी  कहीं  खेरा    है।2
ये दुनिया ...

 कोई  बिछा   रहा   अपनी चादर,
कोई   देश    बचाने     न्योंछावर।

कोई   भूखा  ही   सो   रहा  यहाँ,
कोई धनमद   में   जी   रहा यहाँ।

कहीं   ऐश     कहीं     अँधेरा   है,
नित  कालचक्र   का   फेरा   है।3
ये दुनिया....

कोई  रात - रात   भर   जगता है,
कोई   सोकर  कभी न  अघता है।

खाकर  गोली   भी      नींद   नहीं,
आकंठ    तृप्त     संजीद     नहीं।

बस   आने -जाने     का  फेरा है,
कोई बिना  कर्म   वो   कमेरा है।4

कोई    केवल सपने    रहा  देख ,
कोई बना कूप   की    मूढ़   मेष।

कहीं  हाथ का तकिया मिला चैन,
कटती न कहीं  मखमल  पे   रैन।

पत्थर  पे   भी   सुखद  सवेरा है,
निज  कर्मों का  सदा  उजेरा  है।5
ये दुनिया....

मखमल  में   कंकड़    चुभते  हैं,
कहीं कंकड़   मखमल   बनते हैं।

 नव किरणों  संग उठ    जाना है,
कोई अपना कोई न   बिराना  है।

कहीं  कुहरा   सघन   अँधेरा  है,
सूरज  का    सुफल    सवेरा है।6

ये      दुनिया       रैनबसेरा    है,
कुछ   तेरा     है    ना     मेरा है।

💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

दुनिया एक बगीचा है

ये    दुनिया    एक    बगीचा   है,
वक़्त  ने    क्षणों    से  सींचा  है।

कहीं फूल   खिले  कहीं  जंगल है,
कहीं  शूल   चुभे    कहीं मंगल है।

कहीं   सरिता  हैं कहीं   सागर हैं,
कहीं झरना कुदरत का आगर है।

ऊँचे    पर्वत    कहीं    नीचा   है,
सब     सुंदरता    ने      सींचा है।
ये दुनिया...

युग   बीते   सदियाँ    बीत  गईं,
पल-पल  कर   गागर   रीत गई।

जो  रीता    है    भर   जाना   है,
याद    आना   है   बिसराना   है।

कहीं  दरियाँ   कहीं   गलीचा  है,
कोई तट पर  कोई अधबिचा  है।
ये दुनिया ....

नभ  सूरज    चाँद   सितारे    हैं,
भू  गिरि    सर  सरिता    नारे हैं।

सागर   की   महिमा   है   जहान,
इससे   वंचित    है   कौन   जान!

मंदिर    मस्जिद   और   गीता  है,
 हर पल   अतीत    ही जीता   है।
ये दुनिया...

नर   युवती    युवा   कुमारी    है,
महकी   इनसे     जग  क्यारी है।

नित  ध्वंश सृजन  का खेल चले,
और भंग जुड़न   का  मेल  चले।

मानव तन धर कोई पशु  चीता है,
खर तो खर  ही     धी - रीता   है।
ये दुनिया....

चूहे -बिल्ली    का     खेल   यहाँ,
शूलों-फूलों   का       मेल    यहाँ।

मानव  - दानव   की  जंग   नित्य,
हारता  झूठ       जीतता    सत्य।

"शुभम"  बागबां की  नीति प्रीति,
दिन- रात   बहकती   राजनीति।

ये दुनिया   एक     बगीचा     है,
वक्त  ने   क्षणों      से   सींचा है।

💐शुभमस्तु!

©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

दुनिया एक बाज़ार है-2

ये   दुनिया   एक   बाज़ार   है ,
बस  पैसे  की    दरकार     है।

कुछ भी खरीदना  सरल बड़ा,
सबके दिमाग में  स्वर्ण   चढ़ा।

सोना ही  जीवन   मानव  का,
पहचान  नहीं  है  दानव   का।

यहाँ    बिकती  भी   सरकार है,
नित  वोटर    से   खिलवार   है।
ये दुनिया ....

सौ करोड़   में   बिके   विधायक,
आम आदमी  क्या किस लायक।

दो    कौड़ी      का     इंसान    है,
बस    नेता     यहाँ       महान है।

लगता       गुंडा        दरबार    है,
इंसां   का   इंसां      आहार     है।
ये दुनिया ....

नैतिकता    का      मोल     नहीं ,
नंगेपन  पर   कोई   खोल   नहीं।

मानवता  कराह रही    दिन -दिन,
जी रही  ज़िंदगी  दिन गिन- गिन।

आदमी     बना      हथियार    है,
शोषण   का   खुला   दुआर   है।
ये दुनिया ....

शिक्षा   की    खुली     दुकानें   हैं,
जहाँ  नियम - मूल्य   मनमाने हैं।

मज़बूरी  का   फ़ायदा  उठा   रहे,
सम्बन्धों   को   यूँ ही   भुना  रहे।

ज़िंदगी    छात्र    की   ख़्वार   है,
पढ़ना-लिखना    भी    भार    है।
ये दुनिया ....

सबसे     सस्ता      इंसान     है ,
सस्ती  उससे    भी   जान     है।

बस  जय   जवान   का नारा   है,
सारा     किसान      बेचारा    है।

अन्यायों   की       भरमार      है,
सब   जगह  गूढ़    भृष्टाचार   है।
ये दुनिया....

जबरदस्त     की      लाठी     है,
हेकड़ी    दुष्टता        हावी     है।

बाबाओं  की अज़ब    कहानी है,
जब उठी  पूँछ   तब    जानी  है।

सुरा- सुंदरी   का      सागर    है,
बाबा    उनका   नटनागर      है।

बस   पैसा   पैसा      पैसा     है,
कोई क्या जाने   वह   कैसा   है?

कलयुग का "शुभम" चमत्कार है,
विलासिता - तृप्त      संसार   है।

ये दुनिया     एक     बाज़ार   है,
बस   पैसे   की     सरकार    है।

💐शुभमस्तु!
"©✍🏼 डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

दुनिया एक बाज़ार है

ये  दुनिया  एक  बाज़ार   है,
हर  खरीदार   लाचार      है।

शिक्षा    बिकती   है नोटों से,
लोकतंत्र    भी    वोटों     से।

शिक्षक का मूल्य नहीं  कोई,
उसकी  तो किस्मत ही  सोई।

छात्रों    का   शुल्क  उधार है,
कैसे     होगा      उद्धार    है?
ये दुनिया.......

शिक्षक - भविष्य का ज्ञान नहीं,
कल  क्या होगा   ये भान   नहीं।

दो रोटी  की   खातिर   पिसता,
नित चॉक बोर्ड पर भी  घिसता।

फिर  भी   संशय   की   रार है,
कैसी   विचित्र      तक़रार   है।
ये दुनिया....

निजीकरण   की    निजता  में,
श्रम का शोषण  स्वयंप्रभुता में।

खाली    हो   तो   गड्ढे    खोदो,
बैनर बांधों   या   गो , गो,   गो।

कुछ  भी करने   को  लाचार है,
क्या  यही  प्रगति  का द्वार   है?
ये दुनिया ....

कोई  बना   रसोइया    बैठा है,
वेतन  शिक्षक    का  लेता   है।

सारा  दिन सेंके   रोटियाँ गरम,
मालिक  को थोड़ी नहीं शरम।

ये कैसा   कोई   सलाहकार  है ,
जीना शिक्षक   का    दुश्वार  है।
ये  दुनिया....

शिक्षक -आसन का मोल नहीं,
सम्मान नहीं     सहयोग  नहीं।

बस अहंकार  का    डंका   है,
तो  कब तक  जिंदा लंका  है?

क्या यही  गौरव    का द्वार  है !
जहां   खुली    शर्म-सलवार है?
ये दुनिया....

शिक्षा  का पतन   हुआ तब से,
बनिए के  हाथ   बिकी जब से।

बस नोट   छापने   का   धन्धा,
हो गया   आदमी   ये    अन्धा।

खुल  गया  भाड़   का  द्वार  है,
शिक्षा ,शिक्षक    की  हार    है।
ये दुनिया ....

सब कुछ बस   नोट  कमाना है,
कह रहा  रोज़ ये    जमाना   है।

सोए   सब   माता - पिता   पुत्र,
दुश्मन    को   माने   हुए  मित्र।

ये   युग   की    कैसी  मार    है,
जन -जन   जनता   बीमार   है!
ये दुनिया .....

हर जगह सियासत  का  तड़का,
बिगड़े लड़की या बिगड़े लड़का।

चौपट     राजा     अंधेर    नगर,
बस नोटों    वाला    जगर-मगर।

ये कैसा   "शुभम"   खुमार    है!
धन्धेखोरों   का      धमार     है।
ये   दुनिया   एक    बाजार    है,
हर   खरीदार        लाचार   है।

💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"


शब्दातीत माँ

तेरी  वेदना    का  मैं   वेद  हूँ
तेरी  साधना   का  मैं स्वेद  हूँ,
तू तपस्या है मेरी माँ त्याग की
तेरे   ध्यान का  मैं   ध्येय   हूँ।

तू  सिंधु  है   माँ   मैं  बिंदु  हूँ
तू   सूर्य   है    मैं      इंदु    हूँ
तू   धारिणी   तुझ    पर  धरा
तू पुष्प  है    मैं    सुंगन्ध   हूँ।

तू प्राणदात्री मैं लघु कण तेरा
तू  वृहत   मैं   नव  अणु तेरा
माँ   तू    मेरी      ब्रह्मांड   है
तू समय  है     मैं   क्षण तेरा।

तू   व्याप्त     है     संसार   में
तू   सृष्टि हैं     तेरा    प्यार  मैं
तेरे बिना जीवन -ज्योति  क्या
माँ    विद्युती   बस    तार   मैं।

महाकाव्य तू  मैं   लघु  शब्द हूँ
तुझे  जानूँ  क्या   निः शब्द   हूँ
तू  साहित्य -सागर    माँ    मेरी
शब्दातीत  तू  मैं   अशक्त    हूँ ।

तू  विज्ञान   है    मैं  तम    निरा
ज्योतिस्वरूपिणी  मैं  कन  तेरा
तुझसे प्रकाशित तन   मन   मेरे
जग   में     महत्तर    धन   मेरा।

कारण  तू   माँ    मैं    कार्   हूँ
मैं    अंश   स्नेहिल     सार   हूँ
माँ " शुभम"  तेरी स्मृति  अमर
तेरे    उदर   का     प्यार     हूँ।

💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

माँ को वन्दन

हे माँ !   तेरे  चरणों  में
नित   नत नत वन्दन है,
मैं  तो बस     माटी   हूँ
अम्मा   तू    चंदन    है।

तेरे  लहू  का हर  कण
मेरी  देह   में  रचा  बसा
उर आँखें  आत्मा  सब
तुझसे  ही   प्राण   ।

तू   तपसी     है   अम्मा
तेरे तप का   सार  हूँ  मैं
तेरे   अमृत   से  जीवित
वरना   निस्सार    हूँ  मैं।

तू    ही    मेरी     धरती
जीवन - ज्योति प्रदाता तू,
मैंने  तो    मात्र    लिया
सर्वश   दाता      माँ तू।

अस्तित्व  मेरा    तुझसे
है   गर्व    मुझे   इसका
सबकी  हो   ऐसी   माँ
सौभाग्य  मिले  इसका।

पीकर      अमृत     तेरा
पाया      मैंने      जीवन
जिसे दुग्ध  कहे   दुनिया
पोषित   मेरे   तन - मन।

माँ   से    निर्मित   चेतन
माँ तू      ही      परमेश्वर
बस   देखा   मैंने    तुझे
देखा  न   कभी    ईश्वर।

साक्षात  प्रकृति   तू   ही
प्रत्यक्ष     ईश    तू    ही
तेरा  आँचल  स्वर्ग   मेरा
सुख -शान्ति सरल तू ही।

किस  लोक  की वासी है
माँ   बहुत     उदासी   है
सद्बुद्धि      हमें     देना
 आत्मा  अविनाशी  है।

कामना     यही   माँ    है
जब तक  जीवन-जां  है
"शुभम"  कर्म  करूँ सारे
देह प्राण का साझा  है।

💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...