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शनिवार, 17 अप्रैल 2021

न देश - भाव में पगे 🇮🇳 [ अनंग शेखर ]

 

विधान:१.चार चरण।

          २.दो चरण समतुकांत।

                ३.लघु गुरु की १६ आवृत्ति

 ४.१२ पर यति।

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✍️ शब्दकार ©

🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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चलो चलें बढ़े चलें, सु -काज ही सदा फलें,

रुकें नहीं झुकें नहीं,निराश भाव क्यों जगें।

न राह ही कुराह हो,अमेल की न  चाह  हो,

कहें  सही सुनें सही,सभी कहीं  शुभं  लगे।।


पिता सदा सुपूज्य हों,सुमात भी सुसेव्य हों,

न मान भूमि पै  कहीं,यही यहाँ  शिवं सगे।

सुवेश  देह    धारते,  सुवेश मान      मारते।

विभा न प्यार  सी बही, न देश भाव में पगे।।


🪴 शुभमस्तु !


१७.०४.२०२१◆१२.१५पतनम मार्तण्डस्य।

बुधवार, 14 अप्रैल 2021

सु - वेद पंथ ही वरो! 📒 [ अनंग शेखर]

 

विधान:१.चार चरण।

        २.दो चरण सम तुकांत।

        ३.लघु गुरु की १६आवृत्ति।

        ४. १२ पर यति।

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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अखंड  देश  के लिए,जला शुभं  सदा दिये,

पुकारती सु-भारती, विकास देश का करो।

न जाति रंग भेद हो,न हो घृणा न  छेद  हो,

सँवारिए  सुधारिए , सुगंध  ही सदा  धरो।।


सु- पूजनीय   जो सदा, सु आदरेय   संपदा,

नहीं  न  मान  तोड़ना, सनेह मान  से भरो।

महान काम -काज हों,प्रकाशवान  साज हों,

न नेह  पाथ   छोड़ना,सु-वेद पंथ  ही  वरो।।


🪴 शुभमस्तु !


१४.०४.२०२१◆१०.४५पतनम मार्तण्डस्य।

सरोज नाम क्यों रखा! 🌷 [ अनंग शेखर]

 

विधान:१.चार चरण।

        २.दो चरण सम तुकांत।

        ३.लघु गुरु की १६आवृत्ति।

        ४. १२ पर यति।

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सरोज नाम क्यों रखा,न स्वाद पंक का चखा

न नाम ही कुनाम  हो,प्रपंच क्यों  पसारिये।

सुभाषिणी  सितार  है,सुगंध का   विचार   है,

सितार को  प्रणाम हो,प्रभात में  सितारिये।।


सुधारना स्वदेश को, विचारना न    वेश  को,

सु-काज की ध्वजा चढ़े,प्रकाश को निहारिये।

जिंदादिली  न पाप  है,सुधार शून्य  शाप   है,

न  तेजवान चाम  हो,नहीं ,नहीं  न   हारिये।।


🪴 शुभमस्तु !


१३.०४.२०२१◆८.००पतनम मार्तण्डस्य।

अबेर पास आइए!🎊 [ अनंग शेखर ]

 

विधान-  १.चार चरण। 

२.दो चरण सम तुकांत।

३. लघु गुरु की 16 आवृत्ति।

४.12 पर यति।कि

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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अबीर  है गुलाल है, सु-रंग का  जमाल  है,

सुहासिनी  सुहोलिका,अबाध झूम गाइए।

ब्रजांगना  गली-गली, श्याम पास  में   चली,

न भींगती सु-चोलिका, सुदाम ढूँढ़  लाइए।।


मिले न कान्ह पास में,बुझी रही सु - आस में,

जनी  बनी  प्रहेलिका, विराग क्यों   बुताइए।

बता न दोष क्या किया,जता न रोष यों दिया

सरोष  रोति  राधिका,  अबेर पास आइए।।


🪴 शुभमस्तु !


१३.०४.२०२१◆ २.४५ पतनम मार्तण्डस्य।

अनीति भीति शान है ! 🙈 [ अनंग शेखर ]

 

विधान-  १.चार चरण। 

२.दो चरण सम तुकांत।

३. लघु गुरु की 16 आवृत्ति।

४.12 पर यति।

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सुराज  का  सवाल है,कुराज ही   बबाल  है,

न  जानता  न  मानता,तना हुआ  वितान  है।

यहाँ वहाँ सभी दुखी, कहाँ यहाँ सभी  सुखी,

अमीर  पीठ  ठोंकता, पड़ा वही  उतान  है।।


गली - गली कली मली,बचा यहाँ बली छली,

कुभाष बाण भौंकता, बचा नहीं  विधान है।

निरोग  कौन  है  यहाँ, विरोध ही  यहाँ  वहाँ,

ग़ुबार कौन रोकता, अनीति भीति शान  है।।


🪴 शुभमस्तु !


१३.०४.२०२१◆ २.१५ पतनम मार्तण्डस्य।

रुको नहीं !थको नहीं!! 🏃🏻‍♀️ [ छंद:अनंग शेखर ]

  

विधान-  १.चार चरण। 

२.दो चरण सम तुकांत।

३. लघु गुरु की 16 आवृत्ति।

४.12 पर यति।

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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रुको नहीं थको नहीं ,न दोष को मढ़ो कहीं,

अबाध पंथ ही चलें, उदास   हो  न   बाबरे!

सगा न साथ  मीत है,सही  न बंधु   प्रीत   है,

सुकाज  ही सदा  फलें, लगा न घात रावरे !!


चला मही   बढ़ा वही,सुनाम की   धरा  गही,

अहं - नशा   मिटा  चलें,रहें न शेष  घाव  रे।

न तोड़ फूल की कली,न झूम तू गली -गली,

न नारि नारि को छलें, डुबा न बीच नाव रे।।


🪴 शुभमस्तु !


१३.०४.२०२१◆ १२.१५ पतनम मार्तण्डस्य।


सोमवार, 12 अप्रैल 2021

कुमार -सी कुमारियाँ [ अनंग शेखर ]

 

विधान-  १.चार चरण। 

२.दो चरण सम तुकांत।

३. लघु गुरु की 16 आवृत्ति।

४.12 पर यति।

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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कराल   काल    आ   गया,

नहीं    रही     दया    मया,

विकास    जाल   रूप   है,

प्रणाम   है       मिलावटी।


अनीति     नीति    है   बनी,

कुरीति   रीति -   सी   तनी,

कुबंध     नंग     भूप     है,

सुधार      है       बनावटी।


उगे     यहाँ    बबूल     हैं,

समूल    लोग    शूल    हैं,

न शेष   आज    कूप    हैं,

विराटता     कटी -  मिटी।


सुभाषिणी     न    नारियाँ,

कुमार -    सी    कुमारियाँ,

विकार     ईति     व्यूप   है,

कुधारणा   सटी -    सटी।।


🪴 शुभमस्तु !


१२.०४.२०२१◆ ६.३० पतनम मार्तण्डस्य।

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...