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शुक्रवार, 30 जून 2023

आगे राजा पीछे रानी● [ बालगीत ]

 283/2023

 

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●©शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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आगे   राजा      पीछे    रानी।

चली  आ रही   यही कहानी।


मधु -  माधव  वसंत मदमाता।  

ऋतुओं का राजा  आ  छाता।।

शीत न   गरमी     बरसे  पानी।

आगे     राजा   पीछे    रानी।।


खिलते फूल हँसीं सब कलियाँ।

करें     तितलियाँ भी रँगरलियाँ।।

पुष्प -   पराग     लुटाए  दानी।

आगे       राजा      पीछे   रानी।।


जेठ - अषाढ़   लुएँ   हों भारी।

तपन   घाम  की   फैले  सारी।।

आँधी  में   उड़   जाती  छानी।

आगे     राजा     पीछे     रानी।।


तपे  निदाघ    जेठ  में   बेढब।

कष्ट झेलते जड़  - चेतन तब।।

बड़े -  बड़ों   की  मरती  नानी।

आगे      राजा       पीछे   रानी।।


सावन  भादों  पावस  आती।

झरतीं बुँदियाँ भर औलाती।।

खूब  बरसता है तब    पानी।

आगे   राजा     पीछे   रानी।।


'शुभम्' तभी सब हर्षित होते।

लगा लगा    पानी   में  गोते।।

सुखी हो   रहे    सारे    प्रानी।

आगे   राजा    पीछे    रानी।।


●शुभमस्तु !


30.06.2023◆2.45प०मा०

बुधवार, 7 दिसंबर 2022

शीतकाल सौगातें लाया 🥜 [बालगीत ]

 513/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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शीतकाल     सौगातें   लाया।

ठंडी  ऋतु का मौसम भाया।।


छोटे  दिन   की   लंबी    रातें।

अगियाने   पर    होतीं  बातें।।

गरम   रजाई    ने    गरमाया।

शीतकाल    सौगातें   लाया।।


गज़क तिलकुटी हमको भाती

मूँगफली  भी  खूब  सुहाती।।

लड्डू  भी  माँ   से  बनवाया।

शीतकाल    सौगातें   लाया।।


साग  चने  सरसों  का  भाता।

मक्का  और   बाजरा आता।।

बार  -  बार  खाया ललचाया।

शीतकाल   सौगातें    लाया।।


गरम  पकौड़ी के क्या कहने?

तीखी  मिर्च  न  पाते  सहने।।

मीठा  गरम  दूध  अति भाया।

शीतकाल  सौगातें     लाया।।


ऊनी   कंबल  की    गरमाई।।

स्वेटर,  मोजे ,  टोपी    भाई।।

गीत  'शुभम्'  ने  हमें सुनाया।

शीतकाल     सौगातें   लाया।।


🪴शुभमस्तु!


06.12.2022◆7.45 प.मा.

जाड़ा!जाड़ा!! जाड़ा!जाड़ा!!🔥 [बालगीत ]

 512/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जाड़ा!   जाड़ा!!     जाड़ा! जाड़ा!!

गई        दिवाली        झंडा   गाड़ा।।


गर्मी       वर्षा         विदा    हो    गए।

आँधी    पानी       कहीं     खो   गए।।

बोला       कुकड़ूँ         खोले   बाड़ा।

जाड़ा !    जाड़ा!!      जाड़ा! जाड़ा!!


कहते        सब     उसको  जड़काला।

जाड़े     का     यह       काल निराला।।

पीते           बाबा   -    दादी     काढ़ा।

जाड़ा !    जाड़ा!!     जाड़ा! जाड़ा!!


तनी           दूधिया       चादर  भारी।

दिखते        वाहन         नहीं सवारी।।

पीता       दूध        भैंस    का पाड़ा।

जाड़ा !      जाड़ा !!    जाड़ा !जाड़ा!!


कम्बल         शॉल     रजाई  आए।

ढँककर      देह         सभी  गरमाए।।

गिलहरियों        ने        बोरा  फाड़ा।

जाड़ा!     जाड़ा!!     जाड़ा! जाड़ा!!


घर  -  घर      बुने     जा    रहे स्वेटर।

बंधे     कान    से     कसकर मफ़लर।।

खाते         मीठी      गज़क , सिंघाड़ा।।

जाड़ा !     जाड़ा !!     जाड़ा !जाड़ा!!


🪴शुभमस्तु!


06.12.2022◆7.00प.मा.


मंगलवार, 22 नवंबर 2022

हमने दो खरहे पाले 🐇 [ बालगीत ]

 490/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🐇 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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हमने   घर   दो  खरहे   पाले।

दोनों   हैं   वे   गोरे  -  काले।।


नर   खरहा   फुर्तीला   भारी।

खाता  हरी  -  हरी तरकारी।।

धमा  -  चौकड़ी   करने वाले।

हमने  घर  दो   खरहे  पाले।।


मादा  रहती   घर   में   ऊपर।

नर आता झट   नीचे   भूपर।।

करते  करतब   बड़े   निराले।

हमने घर दो   खरहे    पाले।।


जन्माए  मादा     ने   शावक।

गोरे - काले   दोनों    मेलक।।

कोई  उनको  हाथ   उठा  ले।

हमने घर दो    खरहे   पाले।।


एक  दिवस टट्टर  से  गिरकर।

घायल हुआ नाक में   भूपर।।

हे   ईश्वर !  तू   उसे   बचा ले।

हमने   घर   दो  खरहे पाले।।


दूध  रुई  में   भिगो  पिलाया।

लगा वॉलिनी   हाथ उठाया।।

मादा   देती    घास   निवाले।

हमने  घर   दो   खरहे पाले।।


'शुभम्' ईश सुनते हैं विनती।

जोड़ी खरहा की भी जपती।।

चंगे   खेल    उठे    मतवाले।

हमने  घर दो   खरहे  पाले।।


🪴 शुभमस्तु!


22.11.2022◆11.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...