सोमवार, 31 अगस्त 2020

पिल्ला [ बालगीत]

 

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✍ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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लाला   जी  ने  पिल्ला  पाला।

लंबे    भूरे    बालों     वाला।।


रोज   सैर   को पिल्ला जाता।

तनकर चलता शान दिखाता।

पट्टा   गले  पड़ा   रँग   वाला।

लाल जी  ने  पिल्ला  पाला।।


कुत्ते   गली   मोहल्ले    वाले।

देख  भौंकते     भूरे    काले।।

पिल्ला  वह   जंजीरों  वाला।

लाला जी  ने   पिल्ला  पाला।।


बिस्कुट,ब्रेड  ,दूध   वह पीता।

नहलाती  नित  बाला  नीता।।

महके  साबुन   वीनस वाला।

लाला जी  ने  पिल्ला  पाला।।


सावधान    पिल्ले  से  रहना ।

काटे पिल्ला फिर मत कहना।

लिखा  गेट  पर   मोटा काला।

लालाजी  ने  पिल्ला  पाला।।


लाला जी   के  सँग में  सोता।

कम्बल ही  वह  ओढ़े होता।।

पिल्ला है वह किस्मत वाला।

लाला  जी ने  पिल्ला  पाला।।


💐 शभमस्तु !


31.08.2020 ◆7.45अप.



धरती पर गुरु दिव्य हैं! [ कूण्डलिया ]

  

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                     -1-

सतगुरु हैं भगवान सम,पाएँ शुभ आशीष।

डाल -डाल पर कूदते,बने रहे नर - कीश।।

बने रहे नर -कीश, नहीं मानव बन   पाते।

उछल-कूद में लीन, धौंस देते खुखियाते।।

शुभं यौनि पहचान,नहीं कर इतनी खुरुखुरु।

साँचे  को  ही छान, उतारे सरिता  सतगुरु।।


                     -2-

धरती पर गुरु दिव्य हैं,कहाँ दिव्यता  शेष!

माटी को कंचन करें,मानव के शुभ  वेष।।

मानव  के  शुभ वेष, उन्हें पहचानें    ज्ञानी।

करने  को उद्धार ,हृदय में जिसने    ठानी।।

'शुभम'करें गुरु खोज,वृथा ही दुनिया मरती।

खा -पी मिलते  धूल, भार ही ढोती   धरती।।


                       -3-

अनगढ़ माटी मनुज की,गुरु ही सिरजनहार।

जिस  साँचे में ढाल दें,मिले वही   आकार।।

मिले वही आकार, न मटकी चिलम  बनाते।

गढ़ते  डंडा मार, दनुज मानव बन    जाते।।

'शुभं'ब्रह्म का रूप,सजाते सिख को बढ़चढ़।

देते दिव्य स्वरूप,मनुज की माटी अनगढ़।।


                        -4-

माटी को जीवन मिले,गुरु जब मिले महान।

ठोंक - पीट आकार दे, तपा अवा -  अज्ञान।

तपा  अवा अज्ञान, लाल ज्यों गागर   होती।

टन- टन बजती खूब, ज्ञान के दाने    बोती।।

'शुभम' नहीं  गुरु आम,नहीं है मेधा  नाटी।

गुरु न मिलें खग कीर,करे गुरु कंचन माटी।।


                        -5-

सागर  में  नैया पड़ी,  पड़े  भँवर के  कूप।

लहरें  ऊँची  उठ रहीं,  बड़ा भयंकर रूप।।

बड़ा भयंकर रूप,बचाए गुरु ही   जीवन।

करते  वही   उपाय,  प्रदाता  वे संजीवन ।।

शुभं कृपाकण एक,हुआ जो सुलभ उजागर।

हुआ  क्षणों में पार,बना गोखुर-सा सागर।।


💐शुभमस्तु !


31.08.2020◆1.45अप.

श्री गुरवे नमः [ दोहा ]


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✍ शब्दकार©

🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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श्रीचरण  गुरवे नमः, सादर नमन  प्रणाम।

कृपा शिष्य पर कीजिए,पल पलआठों याम।


इष्टमार्ग  पर मैं  चलूँ,  दिख लाओ पथ ईश।

चरण युगल वन्दन करूँ,झुका दंडवत शीश।


तिमिर हटा अज्ञान का,दें गुरु ज्ञान प्रकाश।

अंतर का सूरज उगे, हो  जाए तम   नाश।।


अनगढ़ माटी है 'शुभम',गुरु ही सिरजनहार।

जिस  साँचे में  ढाल दें, मिले वही  आकार।।


ज्ञान- नेत्र मम बंद हैं,गुरु कर परस  महान।

माटी को  जीवन मिले,मिले देह को जान।।


प्रभु-पद मंजिल दूर है,करें शांति शुभ पात।

दिव्यज्योति गुरु की मिले, मिटे अँधरी रात।


'गु'ही अँधेरा जीव का,गुरु का 'रु'ही प्रकाश।

है अंनत महिमा'शुभं,क्षण में हो तम नाश।


धरती पर गुरु दिव्य हैं,कहाँ दिव्यता शेष!

माटी को कंचन करें,मानव के शुभ   वेष।।


गुरुप्रसाद जिसको मिला, जीवन होता धन्य।

जग-वन में भटका करे,मानव तन में वन्य।।


सतगुरु को पहचान कर,पाएँ गुरु आशीष।

डाल-डाल पर कूदते,बने रहे नर  - कीश।।


भवसागर  से पार जो,करता है गुरु  साँच।

शुभं तपाता शिष्य को,विमल ज्ञान की आँच।


💐 शुभमस्तु !


31.08.2020●12.15अपराह्न।


राधा सुमिरन जाप [ दोहा ]


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✍ शब्दकार©

🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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राधा  सुमिरन जाप  से ,रहे न बाधा  एक।

श्याम स्वयं आते वहाँ, साधें काज अनेक।।


राधा! राधा!! नित जपें,जय श्री  राधेश्याम।

ब्रजरज लगा ललाट पर,बनते बिगड़े काम।।


जहाँ  बसें  राधा  सखी, वहाँ विराजें श्याम।

राधा जी के   चरण युग,तीरथ राज ललाम।।


बसो  हमारी  साँस में,श्रीराधे घनश्याम।

रमा  रमापति  आप ही,सुंदर सीताराम।।


रसना मम  राधे  जपो ,जपो श्याम का नाम।

चिंताएँ   हरते   सभी,  बनते सारे   काम।।


जिस रसना ने श्याम का,जपा न प्यारा नाम।

राधे  जो जपता नहीं,मिले नहीं  हरि  धाम।।


एक  प्राण  दो देह हैं, श्री हरि राधेश्याम।

शिक्षा  देते नेह की,निधिवन में ब्रजधाम।।


लीलाधारी  श्याम की,लीला नित्य   ललाम।

राधे  बिना  न हो सकें,सुमधुर सुंदर   काम।।


राधे   रानी  उर   बसो ,  बसो हमारे   धाम।

नहीं भूलना  साथ में, लाना कान्हा   श्याम।।


भाग्यवान नर जीव है, जन्म लिया ब्रजधाम।

पुण्यधरा  वह  धन्य  है ,विचरे राधे   श्याम।।


राधे   बिन  आधे रहें, जब मेरे घन    श्याम।

'शुभम'नहीं राधे बिना,जीवन वृथा अकाम।।


💐 शुभमस्तु  !


30.08.2020◆9.45अपराह्न।

शनिवार, 29 अगस्त 2020

ग़ज़ल

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✍ शब्दकार©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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जब से भए कुतवाल जी सैंयाँ।

महल  बन  गई  सड़ी मढ़ैया।।


बीसों    अँगुली   घी  में उनकी,

घी  में    गाड़ी    मुड़ी  कढैया।


कौन   करेगा    हिम्मत  उनसे,

वे मुहाल   की   बड़ी लड़इया।


जो  वे   चाहे    नियम  वही है,

अखबारों   में   बढ़ी   बढ़इया।


 भूत      भागते    हैं   डंडे   से,

पार      उतारे    तड़ी    करैया।


वर्दी    की    ताकत   पहचानो,

कहती    है    मुड़चढ़ी लुगैया।


उतरेगा  जिस दिन ये छिलका,

'शुभम' न आए  मढ़ी   बचैया।।


💐  शभमस्तु !


29.08.2020 ◆5.30अप.

हरा सिंघाड़ा [ बालगीत ]

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✍ शब्दकार@

📗 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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जल  में  उगता  टेड़ा -आड़ा।

कहते मुझको सभी सिंघाड़ा।


टेढ़ी -    मेढ़ी     मेरी   सूरत।

हरे   रंग    की   सुंदर  मूरत।।

तालाबों    में    झंडा   गाड़ा।

कहते मुझको सभी सिंघाड़ा।


तालाबों    में  लता   पसरती।

ढँककर चादर जल पर घिरती

फलता तब आता जब जाड़ा।

कहते मुझको सभी सिंघाड़ा।


सूखे   फल  से बनता  आटा।

अन्न नहीं ,फल  में  मैं छाँटा।।

व्रताहार का   फल  मैं  ताड़ा।

कहते मुझको सभी सिंघाड़ा।


वात ,रक्त   के  दोष   हटाता।

देकर शक्ति  त्रिदोष नसाता।।

'शुभम' सरोवर  बजा नगाड़ा।

कहते मुझको सभी सिंघाड़ा।


💐 शुभमस्तु !


29.08.2020◆4.45 अपराह्न।

गोभी का फूल [ बालगीत ]

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✍ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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मैं  गोभी  का  फूल  निराला।

रंग  दूध - सा  है   मतवाला।।


मुझे  शिकायत  सबसे भारी।

काट,बना   खाते नर - नारी।।

नहीं  बनाता   कोई    माला।

मैं  गोभी  का  फूल निराला।।


पूजा  में  जन   मुझे  न लेते।

उचित कभी सम्मान न देते।।

नहीं  चढ़ाते  कभी  शिवाला।

मैं  गोभी का फूल  निराला।।


गेंदा,    जुही,    चमेली  छोटे।

तगड़े  भी  हम  सबसे  मोटे।।

डाल दिया किस्मत पर ताला।

मैं  गोभी का  फूल  निराला।।


नहीं      बनाते      वन्दनवारें।

कभी नहीं    लटकाते   द्वारे।।

नेता जी  के  गले   न  डाला।

मैं  गोभी  का  फूल निराला।।


कोई   नहीं    बाग  में  बोता।

झूठ   बड़प्पन  पर मैं  रोता।।

लगता  ज्यों   साँचे में ढाला।

मैं  गोभी का  फूल निराला।।


पात,गाँठ   गोभी  तुम आओ।

गोभीपन  का धर्म निभाओ।।

करें आज हम मिल हड़ताला।

मैं  गोभी का  फूल  निराला।।


ये  जन  हमको 'फूल' बनाते।

कहते फूल ,पका  खा जाते।।

मंदिर से भी  देश - निकाला।

मैं  गोभी का  फूल निराला।।

 

💐 शुभमस्तु !


29.08.2020◆2.00 अप.

गुरु-महिमा [ दोहा ]

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✍ शब्दकार©

☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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-1-

 गु का अर्थ है तम घना,रु का ज्योति प्रकाश

गुरु ही ज्ञान प्रकाश है,करता जो तम नाश।।


-2-

गुरुवर   के आशीष   से,  होते सारे    काम।

मिले सफ़लता हर घड़ी,जग में चमके नाम।।


-3-

गुरु-वंदन गुरु का नमन,देता है    वरदान।

विद्या बल धी वृद्धि हो,मिलता है जग नाम।


-4-

गुरु-चरणों की भक्ति से,राम हुए  भगवान।

रावण दानव बन गया,कर शिवजी अपमान।


-5-

आरुणि उद्दालक हुआ,पा गुरु का आशीष।

धौम्य कृपा पूरी मिली,चरण युगल नत शीश


-6-

शिक्षालय  में दे  रहा,शिक्षा 'शिक्षक'  नाम।

आचरणों से सीख दे,वह 'आचार्य' ललाम।।


-7-

वर्णाश्रम  के धर्म  से,  देते 'कुलगुरु'  सीख।

संस्कार  के ज्ञान से, कहें न उसको  भीख।।


-8-

'दीक्षागुरु'  निज  मंत्र से, दीक्षा दें  भरपूर।

परंपरा के  पंथ पर, अध्यातम का     नूर।।


-9-

गुरु  का भारी अर्थ  है,सबसे भारी    ज्ञान।

ज्ञानी गुरु निज शिष्य को,करता 'शुभं'महान।


-10-

हर द्विजाति का अग्नि गुरु,स्त्रीगुरु पति जान

अतिथि सभीका गुरु सुनें विप्र वर्ण का मान


-11-

है अंनत  गुरु-महत्ता,  महिमा करें   बखान।

मानव  को  निर्मित करे,है वह श्रेष्ठ  महान।।


💐 शुभमस्तु !


29.08.2020◆8.00पूर्वाह्न

शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

पता नहीं क्यों? [ व्यंग्य ]

 

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 ✍शब्दकार © 

 🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम' 

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               कहा जाता है कि हमारे यहाँ चोंसठ कलाएँ होती हैं।उनमें से मुझे कितनी आती हैं,यह भी रहस्य की बात है।हाँ, इतना अवश्य है कि मुझे एक कला तो बिल्कुल ही नहीं आती ,और वह है झूठे ही किसी को खुश करना ।अब यह भी पता नहीं कि यह उन 64 कलाओं में सम्मिलित है भी या नहीं है।भले ही यह उनमें सम्मिलित न हो , पर मैं तो इसे कला ही मानता हूँ।कला मानने का भी एक कारण है कि इस कला के बलबूते लोग बड़े -बड़े असाध्य कार्य सिद्ध कर लेते हैं और मैं वहाँ पर असफ़ल हो जाता हूँ। इतना अवश्य है कि मैं अपनी इस असफलता से भी असंतुष्ट नहीं हूँ।इस असफलता से भी मुझे प्रसन्नता ही होती है ।प्रसन्नता इसलिए होती है कि मुझे बाँस - बल्लियों के सहारे सत्य को पाने की बात तो दूर ,मैं उसे छूना भी पसंद नहीं करता। 

          लोग येन -केन-प्रकारेण अपना उल्लू सीधा कर लेने में अपनी विशेष चतुराई मानते हैं।पर मुझे इन सारी कलाओं को सीखने या उनमें कुशलता हासिल करने की कोई ललक नहीं है।भले ही कोई कुछ भी कहे , पर मुझे अपने रास्ते पर चलने में ही आनंद आता है। इसलिए मैं कभी भी 'शॉर्टकट' अपनाने में अपनी लेशमात्र भी रुचि नहीं रखता। भले ही पीछे रह लूँगा ,पर खरगोश की तरह दौड़ लगाना मेरी आत्मा को कभी भी स्वीकार नहीं है , न था और न भविष्य में होगा। कोई मुझे कछुआ कहे या कुछ और ! मुझे क्या ? मुझे तो इस कहावत में पूरा-पूरा विश्वास है कि 'हाथी अपनी राह चलते चले जाते हैं और कुत्ते भौंकते रह जाते हैं।' जिनका काम ही भौंकने का हो , उनसे अपेक्षा भी क्या की जा सकती है! उनकी सर्वशक्ति और अभिव्यक्ति का माध्यम ही एक मात्र भौंकना है।

             कुछ लोगों को ठकुरसुहाती में बहुत आनन्द आता है। मुझे न तो किसी के साथ ठकुर सुहाती करना पसंद है और न ही मैं किसी के साथ ऐसा कर पाता हूँ। लोग हैं कि मतलब निकालने के लिए गधे को भी अपना बाप बनाने में नहीं चूकते।बस , अपना उल्लू सीधा होना चाहिए। बाद में भले ही उसे जूतों के हार से सम्मानित क्यों न करना पड़े! 

                देखा यह भी जा रहा है कि साहित्यिक मंचों पर आभासी संसार में इतने मस्त हो गए हैं कि उन्होंने समीक्षा के कुछ फॉर्मूले गढ़ लिए हैं।कुछ उदाहरण नजरे-ख़िदमत पेश किए जाते हैं। जैसे : 

 १.'वाह! वाह!! क्या कहने ! आपने तो कलम ही तोड़ दी।'

 २.'ग़ज़ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब् क्या बात है ! ' 

 ३.'बहुत खूब! आनन्द आ गया !!' 

 ४.' अरे !वाह ,आपने तो मेरे मन की बात ही छीन ली!! 

  ५.' आप भी क्या कमाल करते हैं! 

' ६.'बहुत बढ़िया !'  

७.'बहुत खूब!' 

 ८.'अति उत्तम सृजन!' 

 ९.'मौलिकता में कोई आपका सानी नहीं'! 

 १०.'बेजोड़!उम्दा !दमदार ! जानदार! शानदार!' आदि -आदि । यह एक रेडीमेड समीक्षा की आदर्श बानगी है , जिससे सामने वाला ग्लैड होकर फ्लैट हो जाये।

          इस प्रकार बिना लेख या कविता पढ़े हुए समीक्षा के कुछ लाभ हैं तो कुछ हानियाँ भी हैं। पहले लाभ की बात ही कर ली जाए। लाभ ये है कि जिसकी रचना की समीक्षा में झूठे कसीदे काढ़े गए हैं , उसका उत्साह वर्द्धन होता है औऱ वह अपने को एक बड़ा लेखक , कवि , महाकवि या शायर समझने लगता है। यदि वह थोड़ा -सा भी समझदार हुआ तो जान जाता है कि कोरा मक्खन लगाया जा रहा है। यदि वह समझदार नहीं हुआ (मैं किसी को मूर्ख क्यों कहूँ?) तो फूलकर कुप्पा हो जाता है और अपने अन्य इष्ट -मित्रों में प्रचार करने लग जाता है। हो सकता है कि इस झूठी प्रशंसा से ही वह महाकवि बन जाए! झूठी प्रशंसा से हानि ये है कि उसमें विश्वास कर लेने पर उसके विकास पर पूर्ण विराम का डंडा लग जाता है।

           आज के समय में एक बात और देखी जा रही है कि लोगों की छपास की उत्कंठा की तृप्ति के लिए अधकचरी, बिना व्याकरण , छंद के नियमों की मनमानी से धज्जियाँ उड़ाने वाली,अशुद्ध वर्तनीधारी रचनाओं को छापकर उनके बड़े कवि /कवयित्री होने के अहंकार को सुलगाया जा रहा है। अपने उस छपे हुए के स्क्रीनशॉट लेकर वे अपने सारे रिश्तेदारों , मित्रों , मंचों पर मंदिर के प्रसाद की तरह बाँटते नज़र आ रहे हैं।वे यह भले ही नहीं जानें कि इस बृहत साहित्य -सागर में उनका मूल्य एक घोंघे के बराबर भी नहीं है। 

            चापलूसी भरी समीक्षा ,अंधी समीक्षा या बिना पढ़े हुए 'फ़ार्मूलीय समीक्षा' - साहित्य को कहाँ ले जा रही है; सभी जानते हैं।कभी - कभी ऐसी रचनाओं से भी साबका पड़ता है जिसे समीक्षक तो क्या खुद लिखने वाला भी नहीं जानता कि उसने क्या लिखा है , किसके लिए लिखा है औऱ क्यों लिखा है। जो किसी के भी पल्ले न पड़े, वह सर्वश्रेष्ठ साहित्य! वह किसका हित साधक बनेगा, ईश्वर ही जाने। खुद जाने या खुदा जाने, वाली कहावत यहाँ चरितार्थ होती दिखती है।

                   पता नहीं क्यों ,आज की दुनिया की दौड़ में सम्मिलत होना मेरे अधिकार -क्षेत्र से बाहर की बात है। चाटुकारिता की चटनी बनाना और चाटना मेरी रसना के स्वाद से बाहर हो गए हैं।इसलिए किसी को खिला भी नहीं पाता।दोष बताने पर लोग नाराज होते हैं, पर क्या किया जाए?मैं उन्हें भी मक्खन नहीं लगा पाता । जबकि मैं यह भी जानता हूँ कि 'मक्खन खाने से बेहतर मक्खन लगाना ही होता है।' देखते नहीं मक्खन लगाने वाले कहाँ से कहाँ पहुँच गए ! और मैं वहीं का वहीं, गणेश परिक्रमा कर रहा हूँ। समाज , राजनीति,धर्म सेवा,समाज सेवा, साहित्य -सेवा,देश-सेवा :किसी भी बाने में घुस जाइए, बस मक्खन चाहिए।फिर क्या मुफ़्त का चंदन, घिस मेरे नंदन! 

 

💐 शुभमस्तु ! 

 28.08.2020◆3.30अपराह्न।

गुरुवार, 27 अगस्त 2020

मन्मय [अतुकान्तिका]

 

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✍ शब्दकार©

❤️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सुनता है मानव

कहीं भी

संगीत की धुन

सुमधुर,

गाना हो 

या बजाना 

कर्ण-मुखर,

शब्द उठते

करते गुंजन

नव स्वर:

' हो जाता है

मानव तन्मय।'


-यह कथन

नहीं लगता 

समुचित ,

लगता है

हो जाता है

मानव 

भ्रमित शंकित।


तन के भीतर

निवसित है

सुंदर मन,

गुण ग्राहक,

लेता हर आनन्द

काव्य के छंद बन्ध।


तन नहीं 

मन ही है,

वह भोक्ता,

वे आनन्द क्षण,

तन का क्या?

वह तो है

बस मन का दर्पण!

करता है तन को

जो -जो अर्पण,

कर देता मन 

उसका तर्पण,

सहज स्वीकरण!


नहीं होता 

मानव तन्मय ,

वह होता मात्र 

सहज मन्मय!

मन्मय !!

मन्मय !!!

'शुभम ' मन्मय!


💐 शुभमस्तु !


27.08.2020 ◆4.00अप

बुधवार, 26 अगस्त 2020

आलू ही आलू [ कुण्डलिया]

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✍ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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-1-

आलू ही नित खाइए,छोड़ करेला,   प्याज।

सब्जी राजा का करें,कुछ तो मित्र लिहाज 

कुछ  तो मित्र लिहाज,तोरई, भिंडी छोड़ो।

बैंगन,    कद्दू त्याग ,नेह  आलू से     जोड़ो।।

छोड़ो  लौकी - मोह, नहीं है आलू     चालू।

'शुभम' लुढ़कता गोल,रोज ही खाओ आलू।।


-2-

सूखा, गीला,  रसभरा, आलू है    उपहार।

आलूदम के स्वाद से,परिचित हर परिवार।।

परिचित  हर  परिवार ,लगाए टोपी  भाता।

भून  आग  पर  खूब,नमक मिर्ची से खाता।।

'शुभम' समोसे चार,न रखते तुमको  भूखा।

छीलो , काटो मीत, उदर सरकाओ   सूखा।।


-3-

चौड़ी चार  कचौड़ियाँ,भर आलू नमकीन।

गरम  मसाले, मिर्च भी,कर देते  हैं  पीन।।

कर  देते  हैं  पीन,चटपटी चटनी  न्यारी।

टपके मुँह से लार, मिटाती नींद खुमारी।।

'शुभम' सराहे स्वाद,नगर के मौड़ा-मौड़ी।

गरम कचौड़ी देख,गोल फूली औ' चौड़ी।।


-4-

आलू की टिकिया गरम, लल चाए नर -नार।

मटर  और छोले भरे , खाएँ सजा - सँवार।।

खाएँ    सजा - सँवार,चाटते चटनी    दोने।

आँसू   टपके  चार, भले वे लगते    रोने।।

'शुभम' चाटते जाएँ,जले रसना या   तालू।

सी-सी करती जीभ,खा रहे टिकिया आलू।।


-5-

आलू   खाना  चाहते , आओ सिरसागंज।

नई -नई किस्में मिलें,कृषक कर रहे बंज।।

कृषक  कर रहे बंज,देश में सारे    जाता।

माया नागर मीत, यहाँ का आलू  खाता। 

'शुभम'सराहें लोग,स्वाद भर रसना तालू।

लें चटखारे रोज़, यहाँ का खा-खा आलू। 


💐 शुभमस्तु !


26.08.2020 ◆1.00अपराह्न।

माँ की भाषा :हिंदी [ बालगीत ]

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✍ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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माँ की  भाषा  अपनी  हिंदी।

पढ़ें,  लिखें , बोलें हम हिंदी।।


बोल   तोतले     हमने  बोले।

माँ  ही  तो उसमें  रस घोले।।

भारत   के   माथे  की  बिंदी।

माँ  की भाषा अपनी  हिंदी।।


हँसना, रोना ,  गाना  अपना।

हिंदी  में   देखें   हम सपना।।

साँस -साँस में  बसती हिंदी।

माँ  की भाषा  अपनी हिंदी।।


हिंदी    मस्तक   वाली भाषा।

इस पर टिकी हमारी  आशा।

नहीं करो   हिंदी   की  चिंदी।

माँ  की भाषा  अपनी हिंदी।।


मौसी  को  माता  मत मानो।

सबसे ऊपर माँ   को जानो।।

आम,खास ,सबकी है हिन्दी।

माँ की भाषा  अपनी  हिंदी।।


हिंदी  फागुन   हिंदी  सावन।

दिपावलि  होली मनभावन।।

हवा   वसंती    चैती    हिंदी।

माँ की भाषा अपनी  हिंदी।।


हिंदी हमको  अति  मनभाई।

किसे न हिंदी  कहो  सुहाई।।

'शुभम' माधुरी न्यारी हिंदी।

माँ  की भाषा अपनी हिंदी।।


💐 शुभमस्तु !


26.08.2020◆9.15पूर्वाह्न।

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

धरती के शृंगार वृक्ष हैं! [कुंडलिया]

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✍ शब्दकार©

🌳🌴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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-1-

धरती   के  शृंगार  हैं,  पौधे  इस   संसार।

जन जीवन अस्तित्व को,देते हैं सत सार। 

देते  हैं  सत सार, बनाए हैं वन  उपवन।

पौधे, बेलें, फूल,स्वर्ग में भी वन  नंदन।।

'शुभं'प्राण बिन वायु,सृष्टि मानव की मरती। 

तरु - पौधों  से पूर्ण ,रहे  मेरी ये   धरती।।


-2-

धरती  पर  पौधे  खड़े,मृदा जकड़ती  मूल।

पोषकता बहती नहीं,नहीं बिखरती धूल।।

नहीं  बिखरती   धूल,धरा की रक्षा   होती।

सोना  उगलें   खेत,चना, गेहूँ के    मोती।।

'शुभम 'रोपिए पौध,ज्योति नयनों में भरती।

हरियाली  भरपूर, करें   मानव ये  धरती।।


-3-

धरती  पर पौधे न हों,जीवन का  हो  नाश।

बिना अन्न,फल,दूध के,मानव की हो लाश।।

मानव की हो लाश,नहीं ऑक्सीजन  होगी।

पशु- पक्षी  से हीन,  बनेंगे सारे    रोगी।।

'शुभम' न काटें  पेड़,न छोड़ें खेती   परती।

हरा-भरा  हो देश,  शस्य से श्यामल  धरती।।


-4-

धरती  माता  के  लिए, मानव है   शृंगार।

प्राणवायु का नाश कर,करता कुलिश प्रहार।

करता कुलिश प्रहार,पेड़ नित काट रहा है।

पावन पादप हेत,जगत - सम्राट  कहा है।।

'शुभम'सृजन का द्वार,खोलती सुंदर करती।

भारत  का  गलहार, हरी पेड़ों से   धरती।।


-5-

धरती  के  रक्षक बनें,भक्षक बनें  न  मीत।

पादप  से ही प्राण हैं, चलें न उलटी  रीत।।

चलें न उलटी रीत,न दोहन जल का करना।

रोपें  पौधे चार,  अन्यथा पड़ना  भरना।।

 शुभं सुलभ जलवायु,जिंदगी इनसे सरती।

जन्मभूमि से त्राण,वही माँ पावन धरती।।


💐 शुभमस्तु !


25.08.2020◆7.30अपराह्न।


प्रकृति [ हाइकु ]

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✍शब्दकार©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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कटते वन

घटते जलकण

लोपित घन।


सूखा सावन

पुरवा सन -सन

भारी है मन।


उड़ते कण

रज भरी नयन

बिखरे तृण।


मम सदन

रिक्त बिन सजन

कैसा दर्पण ?


नील गगन

नहीं नीर न घन

वृथा जतन।


मेरा यौवन

विरहानल बन

जलता तन।


होता कंपन

नहिं आए सजन

मेरा ये तन!


नीले जामुन

करते हैं पतन

मनभावन।


नील गगन

करता आलिंगन

धरा मगन।


हरी चादर

आती पहनकर

प्रमत्त मन।


💐 शुभमस्तु !


25.08.2020◆2.30 अपराह्न।

मोदक मेरा नाम [ बालगीत ]

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✍ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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लड्डू   मोदक    मेरा   नाम।

मैं  आता   पूजा   के  काम।।


श्याम  चने  से  मुझे   बनाते।

बेसन   पीला  पीस  सजाते।।

बूँदी   के  रँग   पीत   तमाम।

लड्डू   मोदक  मेरा  नाम ।।


मधुर   चासनी में  पकवाकर।

गोल-गोल आकार सजाकर।।

बन  जाता मैं   मोदक   राम।

लड्डू   मोदक   मेरा  नाम।।


मोदक  प्रिय गणेश की पूजा।

होती   मुझसे  और न  दूजा।।

मैं   प्रसाद    सेवक   श्रीराम।

लड्डू  मोदक    मेरा  नाम।।


लंबोदर  की   मूस   सवारी।

खाती मोदक जीभर भारी।।

देवालय   नगरी    या  ग्राम।

लड्डू  मोदक   मेरा  नाम।।


खाता चना  बना वह रहता।

स्वस्थ रहे संताप न सहता।।

मोदक का  मोदन सत्काम।

लड्डू  मोदक   मेरा  नाम।।


💐 शुभमस्तु !


04.08.2020 ◆8.20 अपराह्न।

तुम्हें नहीं देखा! [ गीत ]

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✍ शब्दकार©

🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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अनत बताया  तुमको जग ने।

तुम्हें  नहीं   देखा   है  हमने।।


सूरज   चाँद    बनाने   वाले।

तारों    को  चमकाने  वाले।।

जाना नहीं रूप  - रँग हमने।

तुम्हें   नहीं देखा    है हमने।।


ये   धरती    आकाश  बनाए।

आते -  जाते   श्वास  बनाए।।

सोते  में   दिखलाते    सपने।

तुम्हें  नहीं  देखा   है  हमने।।


शीतल हवा   बहाते  हो तुम।

जीवन सब धारण करते हम।

मोर ,पपीहा   उड़ते   सुगने।

तुम्हें  नहीं    देखा है  हमने।।


फल , सब्जी  बहु अन्न दिए हैं।

प्राणी खाकर सभी जिए हैं।।

मानव को  दी  ताकत तुमने।

तुम्हें   नहीं  देखा  है  हमने।।


कहाँ   बताओ   तुम रहते हो!

कभी नहीं कुछ भी कहते हो।

चौंकाया  है   प्रभु   के ढब ने।

तुम्हें  नहीं    देखा  है हमने।।


रात  अँधरी  दिवस  उजाला।

पशु -पंछी  संसार विशाला।।

शब्द नहीं बोला  इक रब ने।

तुम्हें   नहीं   देखा  है हमने।।


सरिता,सागर  , पर्वत  सारे।

रचना अपनी  तुम्हीं सँवारे।।

लगे रहो  तुम प्रभु को जपने।

तुम्हें   नहीं  देखा  है हमने।।


फूलों  को  तुम   ही  महकाते।

उपवन  में  पंछी गुण गाते।।

पता  नहीं बतलाया  तुमने।

तुम्हें  नहीं  देखा है हमने।।


💐 शुभमस्तु  !


24.08.2020◆5.30 अप.

रविवार, 23 अगस्त 2020

अँगूठी [ दोहा ]

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✍ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नाम अँगूठी रख दिया,रहा अँगूठा दूर।

अँगुली के सँग में रहूँ, दिखलाती मैं नूर।।


नहीं अँगूठा चाहता, फिर भी उसका नाम।

मुझे अँगूठी कह रहे,लोग करें बदनाम।।


प्यार मुझे अँगुली करें,मेरी प्यारी आठ।

अंदर ही घुसकर रहें ,ग्रह-मंत्रों के   पाठ।।


सोने  चाँदी    में गढ़ी, हीरा पन्ना   लाल।

नीलम या  पुखराज से,मुद्रा हुई निहाल। 


मुद्रा,  रिंग,अँगूठियाँ,रखे अनौखे  नाम।

ज्योतिष-भाषा कह रही,बड़े -बड़े हैं काम।।


मात्र प्रदर्शन के लिए, धारण करते लोग।

सच्ची  मुद्रा  यदि  रहे,  दूर भगाए रोग।।


काँच  नहीं  धारण  करो,नहीं करेगा   लाभ।

मुद्रा असली चाहिए,अति गुणकारी आभ।।


तिलक  लगाने के लिए,बचे अँगूठा राम।

नहीं  अँगूठी  ले सके, मुक्के का आराम।।


दो  हाथों  में मात्र  ये,दो अंगुष्ठ ललाम।

अँगुली की जड़ में बसे,करते अपने काम।।


नहीं अँगूठी का मिला, थोड़ा-सा भी प्यार।

आठों अँगुली  मोहतीं,  मुद्रा का आचार।।


'शुभम'अँगूठी प्यार की,होती शुभ पहचान।

प्रेमी पहनाते इसे,अमर-प्रेम की शान।।


💐 शुभमस्तु !


23.08.2020 ◆9.15अप.

प्रथमेश्वर वरप्रद नमन! [ दोहा ]

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✍ शब्दकार©

🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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-1-

गौरीशंकर सुवन को, वंदन सौ - सौ   बार।

करूँ दंडवत नमन मैं, खोलें कृपा-किवार।।


-2-

प्रथम पूज्य प्रभु गज वदन विघ्नेश्वर गणनाथ

आया प्रभुजी द्वार मैं,शुभम झुकाता  माथ।


-3-

श्रीगणेश संकट हरें, संकट मोचक  आप।

पुण्यकार्य में निरत हों,करें नहीं हम पाप।।


-4-

निर्मल धी  मेरी करें,नीर क्षीर का   ज्ञान।

बुद्धिविधाता आप हो,गौरी सुत भगवान।।


-5-

शुभगुणकानन सिद्धि प्रिय,तरुणशुभं विघ्नेश

विघ्न नाश मेरे करें, मिटें सदन  के   क्लेश।।


-6-

प्रथमेश्वर वरप्रद नमन,विकट विनायक नाथ।

एकदंत रक्षा करें, विनत 'शुभम' का  माथ।।


-7-

एकाक्षर गजकर्ण प्रभु,अलम पता शिवपूत।

हस्तिवदन हे देवव्रत, महिमा सदा  अकूत।।


-8-

मृत्युंजय गणपति अनघ, लंबोदर  भवनाथ।

सदा कृपा प्रभु कीजिए, रहे शीश तव हाथ।।


-9-

नाथ  चतुर्भुज  अकृता, मंगल मूर्ति   महान।

'शुभम' लेखनी थाम कर,दे दें प्रभु वरदान।।


-10-

मूषकवाहन आइए,मोदक प्रिय  अवनीश।

भूपति मोदक पाइए,'शुभम' नवाता शीश।।


-11-

शशिवर्णी हे शांभवी,सुमुख सिद्ध  प्रियरूप।

शुभगुणकानन रुद्रप्रिय,सर्वात्मन सु स्वरूप।

.........................................

अलमपता=जिसका कोई भी विनाश नहीं कर सके।


अकृता=जिसकी सवारी मूषक हो।

.........................................


💐 शुभमस्तु !


22.08.2020◆12.15 पूर्वाह्न।

शनिवार, 22 अगस्त 2020

साँच बात रुचती नहीं! [ दोहा ग़ज़ल ]

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✍ शब्दकार ©

डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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साँच बात रुचती नहीं,लगती नीम कुनैन।

झूठे-मीठे विष भरे,भावें जन को बैन।।


बिना  पढ़े  पूरी  कथा,वाह! वाह!! की टेर,

अपना  राग अलापते, काला मन   बेचैन।


करो प्रशंसा झूठ की,खिलते अधर  गुलाब,

सीसा  घुलता कान  में, मुँह से गिरता  फैन।


चाटुकारिता की चिलम, गुड़-गुड़ करते लोग,

सच  का साहस  है नहीं,डरते हैं  दिन रैन।


कड़वा  थू-थू  कर  रहे, निगलें दूध   मलाइ,

झूठी  बातें  दे  रहीं,दिल   को साँचा   चैन।


सच  सूरज -सा  तप्त  है,  झूठ झपट्टेमार,

लप-लप रस टपका रही, रसना प्यासी है न?


रग पर रक्खा हाथ जो,चीख उठे कर शोर,

सहलाया थोड़ा'शुभम', कितनी प्यारी भैंन।


💐 शुभमस्तु !


22.08.2020◆7.00 अप.

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

बाँटो और राज्य करो ! [ व्यंग्य ]

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 ✍लेखक© 🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम' 
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     जैसे -जैसे हम अति आधुनिक होते गए,बाँटने की की नीति के विशेषज्ञ बन गए ।यद्यपि इसका श्रीगणेश बहुत पहले ही सुशिक्षिता, अर्ध शिक्षिता,और अब तो अशिक्षिता नव वधुओं के पति गृह - प्रवेश के साथ ही हो गया था।आपको अच्छी तरह से स्मरण होगा कि इस देश में एक समय ऐसा भी था, जब एक ही छत के नीचे माता- पिता, चार पुत्र और उनकी बहुएँ , एक ही चूल्हे पर सिकी और एक ही दाल या सब्जी से सुखपूर्वक , बिना किसी शिकायत ,बिना कोई गृह- कलह के आनन्द पूर्वक गृहस्थी पालती -पोषती थीं। लेकिन अब वे बातें और संस्कृतियाँ इतिहास की बातें हो गई हैं। आज की नई पीढ़ी के दूल्हे-दुलहनें इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते, विश्वास करना तो कोसों दूर की बात है।आज तो सुहाग- रात को ही पति के पेट में दुल्हन के द्वारा अपने सास -ससुर या देवर जेठों से अलग अपना चूल्हा अलग ही गरमाने का बीज बो दिया जाता है।दूल्हा बेचारा मजबूर और असहाय -सा बना हुआ धीरे -धीरे ,डरते -काँपते यह बात अपने माँ-बाप के कान में डालता है , उनके सामने अपने बहू -बेटे का कष्ट देखा नहीं जाता ,और एक छत के नीचे दो -दो ,फिर तीन -तीन , चार -चार चूल्हे सुलगने लगते हैं। माँ-बाप अपनी औलाद को किसी तरह दुःखी नहीं देखना चाहते ,इसलिए उनकी हर इच्छा पूरी करना अपना धर्म समझते हैं। नतीजा - सारा परिवार टूट जाता है। 

     जब एक परिवार के माँ-बाप और उनकी प्यारी औलाद मिलकर नहीं रह सकती ,तो एक समाज , धर्म और जाति के लोग मिलकर एक कैसे रह सकते हैं ? छुआछूत, ऊँच-नीच, सवर्ण-अवर्ण ,तो हमारी आदर्श महान भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। हम अपने अहंकार में टुकड़े -टुकड़े हो जाना , मर -खप जाना श्रेयष्कर मानने वाले सिद्धान्तवादी लोग हैं।चाहे हमारा विनाश हो जाये ,पर परस्पर मानव मात्र को एक मानना हमारी अस्मिता के विरुद्ध है।अपने को बड़ा सिद्ध करने के लिए हमारे पास अनेक तर्क हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथों के श्लोकबद्ध प्रमाण हैं। विदेशी आक्रांताओं से भले की कुचल दिए गए हों ,पर कहावत गलत सिद्ध नहीं होने देंगे कि:' रस्सी जल गई पर बल नहीं गए।' टुकड़े -टुकड़े होकर नष्ट हो जाना स्वीकार है ,पर एक धर्म और वर्ग के लोग यदि एक हो गए तो नाक नहीं नीची हो जाएगी? 

    देश ,समाज ,जाति ,धर्म को बाँटने का काम कोई निरक्षर और गँवार लोग नहीं कर रहे।यह काम बड़े -बड़े प्रबुद्ध कहे जाने वाले, नेता गण,औऱ ऊँची -ऊँची चौकियों पर चढ़कर भाषण करने वाले लोग ही कर रहे हैं। तो उन बेचारी बहुओं का ही क्या दोष ,जिन्होंने अपने अति सुख की तलाश में अपने सुख से ही तलाक ले लिया और गृहस्थी की लाश ढोनी पड़ रही है। 

    सम्मान तो पैसे और पद का ही है ,वरना कौन किसको पूछता है!यारी ,दोस्ती, नैतिकता सब पैसे की खूंटी से टाँगे हुए हैं।जहाँ पैसा है ,वहीं सम्मान भी है।एकता , संगठन, अखंडता ,प्रेम , मानवता , सद्धर्म, दया , सहानुभूति :ये सब बातें किताबों में अच्छी लगती हैं।ये इतिहास बन चुकी बातें हैं ।अपने अहंकार में टूट - टूटकर भले ही चट्टान से बालू बन जाएं ,पर बांटना औऱ क्रमशः टुकड़े -टुकड़े हो जाना स्वीकार है। कोरे हिंदुत्व के अहंकार में जीने से कोई लाभ नहीं होने वाला।कुर्सी और वोटों की खातिर देश को जातियों में बाँटना किसका काम है ,यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। देश में छोट-बड़ाई का भूत सवार होना किसका काम है , सब जानते हैं। अंधभक्तों की चमड़े की आँखों पर ही नहीं हया और विवेक की आँखों पर वेल्डिंग हो चुकी है। 

    भीड़ और भेड़ :आज परस्पर पर्याय हैं। आज का हर आम आदमी इनमें से एक नहीं ,दोनों है। वही भेड़ और वही भीड़ बढ़ा रहा है। नक्कारखाने में तूती की आवाज सुनता ही कौन है? बहुमत तो भेड़ों का ही है , जो चाहें तो गधे को गद्दी पर बिठा दें।उन्हें पता है कि उन्हें बाँटा ,तोड़ा जा रहा है। पर उनका तो ब्रेनवाश पहले ही।कर दिया गया है। चिंतन की शक्ति पहले ही ख़त्म कर दी गई है। अब उनसे जो चाहो, सो काम लिया जा सकता है। लिया भी जा रहा है। मानव की मानसिकता का इतना अधिक दिवालियापन कभी नहीं देखा गया।इसलिए बटते रहो , कटते रहो ,लुटते रहो, पिटते रहो ,घटते रहो, क्योंकि अपनी बुद्धि तो भेड़ पथ के लिए दान ही कर दी है। 

     'बाँटो और राज्य करो' :का अमर पवित्र सिद्धान्त हमें धरोहर में हासिल हुआ है।इस सिद्धान्त का बिना किसी हीलो -हुज्जत , बाइज्जत पालन करना इस देश की संस्कृति का अभिन्न अंग है। इसलिए लकीर के फकीर बने हुए ,इसी पथ पर अग्रसर होना ही धर्म बन गया है।यह काम पहले एक मौसम विशेष में होता था,(जैसे मेढ़क केवल बरसात में ही टर - टराते थे)लेकिन अब बारहों मास ,पाँचों साल मौसम बना रहता है। मानसून का मौसम बनाना तो अब बायें हाथ का खेल है। अब जाति, धर्म ,मज़हब, वर्ण, आरक्षण , अवर्ण -सवर्ण, एस सी ,एसटी ,ओबोसी अनेक नामों से बारहों मास चलाया जाता है। डर है कि कहीं लोग भुला न दें, भूल न जाएँ।इसलिए रावण के दस सिरों को बारहों मास उगाकर उसकी फसल तैयार की जाती है। बाँटकर राज्य करने की पवित्र धरोहर को हमारे वर्तमान -'महापुरुष' जिंदा रखे हुए हैं। 

 💐 शुभमस्तु ! 
 21.08.2020 ◆6.50 अप.

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुफ़्त का चंदन! [ कुण्डलिया ]

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✍ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                      -1-

कपड़े पहने  स्वयं के,रोटी मिली न  भीख।

मिलें भीख में पुस्तकें,है विचित्र यह सीख।।

है विचित्र यह सीख,भेंट कविजी कर जाएँ।

हर्रा लगे  न हींग, जेब  की, मौज   मनाएँ।।

'शुभम' चतुर हैं लोग, नहीं पैसे के  लफड़े।

दिखलाते  हैं ऐंठ,पहन वे बगबग  कपड़े।।


                      -2-

चंदन मिलता  मुफ़्त का,घिस ले  मेरे  यार।

महका ले निज देह को,रगड़ो खूब लिलार।।

रगड़ो  खूब लिलार, लगाने में क्या  जाता?

अपना नहीं छदाम,मुफ़्त में सब कुछ पाता।।

'शुभम'बाँध ले खोर,मुफ़्त का घी  तू  नंदन।

चोरी का गुड़  ईख,महकता ज़्यादा  चंदन।।


                      -3-

रोटी  कपड़ा  माँगना,लगता है  अपमान।

सब्जी,चावल, दूध,घी,सब अपना सामान।।

सब अपना सामान,माँगकर पोथी  पढ़ते।

चाह रहे  हैं  भेंट, कहानी  मन में   गढ़ते।।

'शुभम' माँगते भीख,नाक हो जाती   छोटी।

बने  भिखारी  दीन,न  माँगे कपड़े   रोटी।।

                    

                       -4-

पोथी  आती मुफ़्त में, उनकी छोटी   सोच।

लेखन तो आसान है ,चिंतन में है   लोच।।

चिंतन   में है  लोच, भेंट  में दे  दे    कोई।

नहीं  ज्ञान का मोल, समझते दाल   रसोई।।

'शुभम' लालची लोग,बुद्धि की  पिंडी भोथी।

बिना  मोल का झोल,मुफ़्त में चाहें   पोथी।।


                      -5-

अपनी वस्तु अमोल है,कवि रचना बेमोल।

अपनी तोलें कनक सी,पोथी माटी - तोल।।

पोथी  माटी-तोल ,माँगते  हया   न  आए।

कटती अपनी नाक,माँगनी यदि पड़  जाए।।

'शुभम' रोटियाँ, दाल, धोतियाँ,साड़ी,कछनी।

मिलें   ग्रंथ   बेमोल,  बचाते नाकें   अपनी।।


💐 शुभमस्तु !


20.08.2020◆4.00अप.

ये सभ्य लोग! [ गीत ]

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✍ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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कपड़े   नहीं    माँगकर  पहने, 

नहीं      माँगकर    खाते  हैं।

वे  सम्मानित  भद्र  पुरुष  हैं,

सभ्य    लोग   कहलाते  हैं।।


उन्हें  भिखारी मत कहना जी,

नहीं    माँगते   भीख   कभी।

जनसेवी    वे   देशभक्त   भी,

उन्हें    पूजते   लोग    सभी।।

किंतु नहीं पढ़ सकते क्रयकर,

माँग    पुस्तकें      लाते    हैं।

कपड़े  नहीं   माँगकर  पहने,

नहीं    माँगकर    खाते    हैं।।


मंचों    पर   भाषण करते हैं,

ऊँची  -    ऊँची     बोली  में।

शिक्षा    देते   हैं   बच्चों  को,

भेंट    माँगते     झोली   में।।

पर कवियों से आस लगाते,

क्यों न  काव्य  बँटवाते  हैं?

कपड़े  नहीं  माँगकर पहने,

नहीं    माँगकर   खाते   हैं।।


अपनी   शिक्षा   बेच   रहे  वे,

बच्चों   का   पालन     करने।

सब्जी,    रोटी   नहीं   माँगते,

लगे   उदर    घर   का भरने।।

पुस्तक छपतीं  बिना राशि के,

समझ    यही    वे   पाते  हैं।

कपड़े  नहीं  माँगकर  पहने,

नहीं      माँगकर    खाते हैं।।


मोटर,  गाड़ी ,  एसी , बंगला,

सब   पैसे    से     आती  हैं।

पत्नी  की    साड़ी, सलवारें,

पैसे    से     बन   पाती  हैं।।

पर मन में है  आस  एक ही,

मुफ़्त   न   पुस्तक   पाते हैं।

कपड़े  नहीं  माँगकर  पहने,

नहीं   माँगकर    खाते   हैं।।


भीख   माँगनी    है तो  माँगो,

रोटी ,   चावल ,दाल    सभी।

दानवीर   तो     दे   ही  देंगे,

भरें   कटोरे    रिक्त     तभी।।

'शुभम'पुस्तकें क्रयकर पढ़ना,

समझ    नहीं    वे   पाते  हैं।

कपड़े  नहीं  माँगकर  पहने,

नहीं   माँगकर   खाते    हैं।।


💐 शुभमस्तु !


20.08.2020 ◆12.05 अप.

नमन! [ अतुकान्तिका ]

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✍ शब्दकार ©

🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नमी है जहाँ 

अंकुरण भी वहाँ,

बीज का वपन

सार्थक है जतन ,

दूर होती है तपन,

फूल-फलते सपन,

उस पावन नमी को

नमन ।


नम और नम्र

जब होता है मन,

तभी करता

मानव भी नमन,

जहाँ होता 

अंतर गुप्त अहं का

शमन,

नहीं करते जो जतन,

नहीं करते वे नमन।


नम नहीं

नमी भी नहीं,

बस यही 

कमी रही,

तन गया 

रुक्ष तन,

नहीं करता नमन।


शुष्क सरवर अगर,

कौन आएगा 

तट पर,

नारी न नर,

पशु या पक्षिवर,

वांछित है वहाँ, 

नम ,नमी नीर वर।


नम मन से ही

हो सका है

नमन ,

नहीं औपचारिकता,

मिथ्या नहीं

ये कथन।


हटाएँ प्रथम

नमी की कमी,

न समझें 

बस हमीं!

बस हमीं!!

बस हमीं !!!

मत घेरें

ये मन,

बनायें मत तमी!


जागरण,

सदाचरण ,

देशभक्ति ,

गुरुभक्ति ,

को सदा ही नमन,

शत -शत नमन।।


💐 शुभमस्तु !


20.08.2020◆10.45पूर्वाह्न।

बुधवार, 19 अगस्त 2020

नहीं चाहिए शांति किसी को [ गीत ]

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✍ शब्दकार ©

🌳 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे           लाख      हज़ार।

कोई   चाहे     सोना -  चाँदी,

महल  -      दुमहले    चार।।


मंदिर    में    जा   बेटा  माँगे,

धन     की    गठरी     भारी।

वांछित  उसे   नौकरी अच्छी,

सुंदर    तन     की     नारी।।

भक्ति नहीं  माँगी  प्रभुजी से,

माँगे             धन   -  भंडार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे     लाख   -       हजार।।


सेवा  नहीं   पिता  की करता,

माँ   से       नेह    नहीं    है।

गुरु से आँख बचाकर निकले,

उसको    नरक     यहीं    है।।

फूटी   कौड़ी    दान न करता,

चाहे        स्वर्ण         अपार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे   लाख    -       हज़ार।।


जीवों    की   हिंसा करता है ,

रोचक   माँसाहार        लगे।

बना   विभीषण जो सोदर का, 

बने    विधर्मी     सभी  सगे।।

प्रतिमा  तोड़ चर्च को धाया,

बना           धर्म  -     गद्दार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे        लाख  -    हज़ार।।


जीवन   में उपकार किसी का,

करना   कभी     नहीं  आया।

निज शेखी ताकत है जिसकी,

बात -   बात   में   गरमाया।।

मानव-देह वृथा उस नर की,

जीवन      है     यह    क्षार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे      लाख  -      हजार।।


अन्य जाति का अन्न न खाए,

नहीं     पिए       वह   पानी।

निकला    मुर्गी   के  पीछे से ,

खा      जाए     नर   प्रानी।।

पत्नी   का    सम्मान नहीं है ,

वेश्या     के     घर      प्यार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे       लाख  -    हज़ार।।


जाति -पाँति से सना हुआ है,

वसन         बगबगे      धारे।

माला - कंठी    दिखा रहा है ,

ज्यों     नर    कीड़े     सारे।।

सुरा-   सुंदरी   के आँचल में,

मिलती       शांति     अपार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे      लाख     -   हज़ार।।


देशभक्ति   का  ओढ़ लबादा,

ठगता       करे       दलाली।

अंधभक्त    नेता   का बनता,

धन    की     शोभा  काली।।

'शुभम'   ढोंग  में ढोंगी रमते,

कहता        हूँ       धिक्कार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे   लाख   -       हज़ार।।


💐 शुभमस्तु !


19.08.2020◆6.15 अप.

सोमवार, 17 अगस्त 2020

अंडा शाकाहार नहीं है! [ बालगीत ]

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✍ शब्दकार©

🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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अंडा    शाकाहार    नहीं  है।

जीवन  का  आधार  नहीं है।।


प्रभु ने क्या कुछ नहीं बनाया!

अन्न, दूध, फल,मेवा  आया।।

इनकी  तुलना  कहीं  नहीं है।

अंडा    शाकाहार  नहीं    है।।


अंडे      बीमारी     दे   जाते।

फिर भी  मानव  अंडे खाते।।

स्वाद  जीभ का ठीक नहीं है।

अंडा  शाकाहार    नहीं   है।।


है  अखाद्य   मुर्गी का  अंडा।

दिल्ली मुंबई  शहर भटिंडा।।

हिंसा  मानव-धर्म    नहीं  है।

अंडा    शाकाहार   नहीं है।।


दाल ,दूध   तज  अंडा  खाते।

जीवन भर वे   नर पछताते।।

मानव  हिंसक  शेर  नहीं  है।

अंडा   शाकाहार    नहीं है।।


अंडे   से हम  तुम सब  आए।

माँ  के   अंडे  तुमने   खाए??

'शुभम' यही  आधार  नहीं है।

अंडा    शाकाहार   नहीं  है।।


💐शभमस्तु !


17.08.2020◆4.00अप.

अंडाहारी नर नहीं [दोहा ]

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✍ शब्दकार©

🌳 डॉ भगवत स्वरूप 'शुभम'

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-1-

अंडे में जब भ्रूण है,फ़िर क्यों शाकाहार?

रसना के रस  के लिए,देते तर्क  हज़ार।।


-2-

लवण सोडियमअधिक है,बढ़े रक्त का चाप।

हृदय  रोग इससे बने,अंडा इनका  बाप।।

-3-

लकवा, पथरी,कुष्ठ भी,अंडे से हैं जात।

कर्कट,गुर्दा,शुगर की,बीमारी का घात।।


-4-

अंडा खुजली-स्रोत है,कहते जिसको खाज।

माँसाहारी  जीव को, खाते हैं नर    आज।।

-5-

पीली जर्दी अंड की, कोलेस्ट्रॉल का स्रोत।

डीडीटी इसमें रहे,बुझती जीवन  - जोत।।।


-6-

दालें,  सोयाबीन    में,  प्रचुर स्रोत  प्रोटीन।

अंडे  से गुणवर सदा,शुभम न हो   बेदीन ।।


-7-

बालक अंडे खा रहे,रुकता बुद्धि विकास 

देह वृद्धि उनकी रुके,अंडे से तज आस।।


-8-

खाद्य नहीं अंडा कभी,रसना का व्यभिचार।

विज्ञानी  सब  कह रहे, आते  क्रूर  विचार।।


 -9-

 अंडा  खाते लोग जो, हो जाते  अश्लील।

दूषित उनके चरित हों,हों हिंसारत भील।।


-10-

अंडाहारी  नर नहीं,धर  मानव का  रूप।

तानाशाही में लगे, पतित क्रूरता - कूप।।


-11-

अंडा पूर्ण अखाद्य है, कहता मानव -धर्म।

खाओ  अपने अंग ही, छूकर देखो  मर्म।।


💐 शुभमस्तु !


17.08.2020 ◆ 11.30 पूर्वाह्न।

स्नेह की महिमा [ दोहा ]

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✍ शब्दकार ©

🏕️  डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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प्रथम स्नेह माँ का मिला,बाद पिता का नेह।

गुरुजन परिजन के नयन,भरे नेह के मेह।।


शिष्यों को गुरुनेह का,है पूरा अधिकार।

सूखे पादप नेह बिन,जल ही मूलाधार।।


स्नेह दूध से जब मिला,कह लाया नवनीत।

करे पुष्टि मस्तिष्क की,हुई ज्ञान की जीत।।


जामन देकर  दूध में,जमा  दही अभिराम।

मंथन कर तब तक्र का,स्नेह मिला बहुकाम


पेरी सरसों नेह को,कोल्हू में दी डाल।

गाढ़े पीले स्नेह का,देखो 'शुभम'कमाल।।


सबके सिर मस्तिष्क में,भरा स्नेह धी मूल।

मज्जा से हर अस्थि में , बनें रक्त के फूल।।


पिल्ला भी हर श्वान का,जाने स्नेह दुलार।

दौड़ा आता पास में,यदि बोलो पुचकार।।


खाने से उत्तम सदा,स्नेह लगा पर-देह।

चापलूस चमचा कहे,दुनिया निस्संदेह।।


नेताजी की देह पर,लगा स्नेह नवनीत।

चमचम चमके चर्म भी,बन जाएंगे मीत।।


मर्दन करते स्नेह का,जब हो तन में रोग।

पीड़ाहारी  नेह से, होते  जन नीरोग।।


महिमा मानव नेह की,छाई जगत अपार।

शुभ सकार होता सदा,हरता विपुल विकार।


  💐शुभमस्तु!


15.06.2020 10.30 पूर्वाह्न।

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

बरसात [ अतुकान्तिका ]

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✍ शब्दकार©

🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सावन-भादों की

झर -झर झरती

बुँदियों की बरसात,

साँझ से प्रात

बुझाती प्यास

निरन्तर पावस वास।


नाचते पौधे

सघन लताएँ,

जीव, जंतु ,पशु, पक्षी,

समतल सरिताएँ

रिमझिम -रिमझिम,

बदरा नभ में छाएँ,

ले धरती को

अपने श्यामल

बाहुपाश में

सजल आश में

करते मन भर तृप्ति

आनन्द उछाह में।


भरते ताल- तलैया 

खेती, कर्षित धरती,

नाले -नाली

भर -भर चलती,

छतें - पनारे

आँगन , छप्पर ,द्वारे,

वर्षा से 

हर्षित सारे।


देख रहा था 

कृषक गगन की ओर,

हर्ष में नाच रहा है,

भरकर भाव हिलोर,

खेलते बालक

नंग -धड़ंग

नहाते ,हँसते

और हँसाते,

आते -जाते 

धूम मचाते 

तनिक नहीं शरमाते।


कागज़ की नावें

बही जा रहीं,

जल तल पर

लहरातीं बल खातीं

टोली नव किशोर की

मस्ती में गाती,

इतराती इठलाती

आओ वर्षा में

खूब नहाएँ,

हर्षाएं।


वीर बहूटी

लाल- लाल शर्मातीं

चलती -फिरतीं मख़मल

खेत मेंड़ पर

आती- जाती,

सुस्त केंचुये

रेंग रहे हैं,

गोबर लिपे आँगन

गलियों में,

गिजाई दूब घास

मौथे के झाड़ों पर

कर रही चढ़ाई।


दादुर करते 

टर्र -टर्र 

रजनी भर

बुलाते दादरी प्रिया को

आ जाओ पास हमारे

खुश करो और

खुश तुम भी हो लो 

भले मत बोलो।


झींगुर की झंकार

चीरती निशा -अँधेरा

शान्त हो गई 

हुआ सवेरा 

जल के तल पर

तैरते दादुरी के

काले अंडे बच्चे

मछली से नन्हे भेक।


बरसती है 

पावस की जलधार,

जल रहा तन

प्रोषितपतिका का,

नागिन -सी 

डंसती शैया,

उर में उछाह,

निरन्तर भरती आह,

नहीं आए प्रियतम,

है अभी  अधूरी चाह।


उधर चहकीं  चिड़ियाँ

'शुभम'हो गया सवेरा,

गया अँधेरा

सरोवर में

हो रही अभी भी

अनवरत बरसात

रात से अब तक

झर -झर-झर।


💐 शुभमस्तु !


13.08.2020 ◆1.30  अपराह्न।

गाय की पूँछ [ दोहा गज़ल ]

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✍ शब्दकार©

🌳 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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बँधी गाय की पूँछ से,सकल सियासत आज।

वैतरणी  को पार कर, पहना देती   ताज।।


गौमाता  गौ  माँ जपा,पय पी देता   छोड़,

फ़सल चराये और की, करे मंच चढ़ नाज।।


गायों   को   चारा   नहीं,  गौ शालाएँ   सून,

सड़कों पर भटकी फिरें,भक्त करें सुखसाज।


अभिनय  करते भक्तजन, गो-सेवा का रोज़,

ख़बर छपें अख़बार में,छपने की है खाज।


दुर्घटनाएँ   हो रहीं,सड़कों पर गौ - मौत,

घड़ियाली आँसू बहें, राज नीति का राज़।


कटतीं   गायें  आड़ में , बाहर धर्म  प्रचार,

मानव  दानव  हो गया,  गिद्ध झपट्टेबाज।


गोरस पर लिख पोथियाँ,खाते वे  गोमांस,

कलयुग है द्वापर नहीं,क्यों न गिरेगी गाज।


धेनु  चरैया   कृष्ण  की, वंशी करे न  गूँज,

पालक घालक हो गए,छीनी छाजन छाज।


लिपट  गाय  के सींग  से,नेता कुर्सी  प्राप्त,

'शुभम'न छोड़ें गाय को,चला न जाए ताज।


💐 शुभमस्तु !


13.08.2020◆11.40पूर्वाह्न।

बुधवार, 12 अगस्त 2020

कृष्ण कन्हैया वंशी वारे ◆ [ गीत ]◆

  

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✍ शब्दकार©

🐂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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कृष्ण   कन्हैया    वंशी   वारे।

अँगुली   चक्र   सुदर्शन धारे।।


धेनु     चरैया    हे   गोपाला!

भटकें   गैयाँ बिन  गोशाला।।

मानव नहीं  आज   रखवारे।

कृष्ण   कन्हैया   वंशी वारे।।


पीकर दूध   सड़क पर छोड़ें।

गौमाता    से    नाता   तोड़ें।।

गाय -भक्ति के अभिनय वारे।

कृष्ण  कन्हैया    वंशी  वारे।।


चरतीं  फसलें  मिले न चारा।

कृषक रखाते  फसलें  हारा।।

बने सभी  हैं   विवश  बिचारे।

कृष्ण  कन्हैया    वंशी  वारे।।


दुर्घटना  सड़कों    पर  होतीं।

जहाँ - तहाँ जाकर गौ सोतीं।।

खाते   काट -  काट   हत्यारे।

कृष्ण   कन्हैया   वंशी  वारे।।


गो -सेवा  का अभिनय होता।

गोधन नौ  -  नौ  आँसू रोता।।

कहाँ   प्रशासन   के रखवारे?

कृष्ण  कन्हैया   वंशी   वारे।।


द्वापर  नहीं आज कलयुग है।

मात्र दिखावे   का नाटक है।।

अखबारों   ने    बादर   फारे।

कृष्ण   कन्हैया   वंशी  वारे।।


आओ   श्याम  बचाओ  गायें।

दिखावटी  जन  की माताएँ।।

'शुभम'जोड़ कर विनय उचारे

कृष्ण  कन्हैया   वंशी   वारे।।


💐 शुभमस्तु !


12.08.2020 ◆12.15अप.

योग योगेश्वर श्रीकृष्ण [ अतुकान्तिका ]

 

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✍ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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पुण्यात्मा

वे जनक -जननी,

जन्म लेते 

गृह जिनके

पुण्यात्मा सदात्मा

महान आत्मा।


आत्मा ही 

धारती है देह,

किसी भी 

मानव के गेह,

नहीं है

तनिक भी संदेह,

अथवा यौनि से

वह जन्म देती 

पशु ,पक्षी,

जल ,थल नभचर 

रूप में सदेह।


अंशी परमात्मा

अंश है आत्मा,

ज्यों सागर की

एक नन्हीं बूँद,

अपरिमेय व्यापकता,

परब्रह्म,

सीमित जीव की 

जैविकता ,

मात्र एक भ्रम,

चौरासी लाख यौनियों में

चलता हुआ अटूट क्रम,

कहाँ ब्रह्म!

कहाँ  एक तुच्छ भ्रम?


परमात्मा 

नर रूप में

करते रहे लीला ,

मात्र अभिनय ,

आयौनिज होते सदा,

प्रकट ही होते

मनुज -शिशु रूप में।


श्रीकृष्ण का

यह जन्म नहीं ,

अवतार है ,

प्राकट्योत्सव का

उपहार है!

धरा के पाप का

उपसंहार है।


निमित्त बनते

जनक -जननी

वसुदेव -देवकी,

पालती माता यशोदा,

नंदराय भी,

लीला उन्हीं की

वही जानें।

आदमी तो 

आदमी वत

आदमी के साँचे में

ही ढालें, 

ईश्वर परमात्मा को

मानव बना लें!

और जन्म दें

माँ देवकी के गर्भ से,

अनभिज्ञ हैं जो

परम सत्ता के 

गूढ़ मर्म से।


जन्माष्टमी नहीं

 यह कृष्ण की,

श्रीकृष्ण अवतारोत्सव

प्राकट्योत्सव है,

यह परमात्मा

श्रीविष्णु जी के ,

धर्म की संस्थापना,

पापियों से मुक्ति,

संतों की भक्ति,

भक्तों की अनुरक्ति,

हैं श्रीकृष्ण 

योग योगेश्वर श्रीकृष्ण ।


💐 शुभमस्तु  !


12.08.2020 ◆11.50 पूर्वाह्न।

श्रीकृष्ण अवतारोत्सव [ कुण्डलिया ]


★★★★★★★★★★★★★★★★

✍ शब्दकार©

🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

★★★★★★★★★★★★★★★★

-1-

काली  आधी रात थी, भादों  का  शुभ माह।

कृष्ण पक्षकी अष्टमी,रोहिणि नखत उछाह।।

रोहिणि नखत उछाह, देवकी चिंतित   भारी।

यह  अष्टम संतान,जनक भी बड़े  दुखारी।।

प्रभु की कृपा अपार,  खुले ताले बिन ताली।

सोए   पहरेदार,  कैद  अब  रही  न काली।


-2-

देरी पल की की नहीं,जागा जनक विवेक।

शिशु को ढँकके सूप में,काज किया है नेक।

काज किया है नेक,विष्णु निज रूप दिखाया

चक्र  सुदर्शन देख, डरी काँपी वह    जाया।।

रखा श्याम शिशु रूप, विराजी शांति घनेरी।

'शुभम' चले  वसुदेव, नंद के ग्राम  न  देरी।।


-3-

यमुना में थी बाढ़अति,उफ़न रहा जल तेज।

भँवर भयंकर पड़ रहे,लहर सनसनीखेज़।।

लहर  सनसनीखेज ,  किनारे टूटे      सारे।

घुसे  सरित  वसुदेव,  बाढ़  के बारे  - न्यारे।।

'शुभम'बरसते मेघ,न भीगें शिशु नव किशना

शेषनाग की छाँव, मंद गति बहती यमुना।।


-4-

आए  यमुना  पार पितु , शीश उठाए सूप।

कान्हा क्रीड़ा में मगन, लीला धारी रूप।।

लीलाधारी   रूप , नंद  के   ग्राम पधारे।

घन निशीथ के बाद,पहुँचकर यशुदा द्वारे।।

सोई   थीं  नंदरानि , देखती सपने   भाए।

'शुभम' सुलाया पास,सुता ले मथुरा    आए।


-5-

माता ने देखा सुबह,खेल रहा शिशु एक।

अंक लगाया नेह से,कृपा ईश की  नेक।।

कृपा ईश की नेक,हुई जो सुत घर आया।

दिया नंद संदेश, हर्ष  उर  नहीं समाया ।।

शुभं फैलता मोद,कृपा की बड़ी विधाता।

नाचे यशुदा खूब,कान्ह की धात्री  माता।।


💐 शुभमस्तु !


11.08.2020 ◆7.45

सोमवार, 10 अगस्त 2020

आशा जीवन ज्योति [दोहा]

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✍ शब्दकार©

🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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आशा  में  जीवंतता, का  होता  संचार।

दृढ़ होता संकल्प जो, बनता नव संसार।।


किरणें  आशा  की नई, हरती हैं  हर  रोग।

करें निराशा दूर हम,बनते सुखद सुयोग।।


आया  नर संसार  में,  दे सबको   उपहार।

पशु पंछी भी जानते,कहते जिसको प्यार।।


प्यार  सभी को  चाहिए, फेंकें उर   से   द्वेष।

आशा  का संकल्प  लें,बनें  न मानव   मेष।।


हम  तुम जन्मे प्यार से,जन्मा सब  संसार।

जीव, जंतु,पौधे,लता,सार एक ही   प्यार।।


आशा  मरते   ही मरा,  कोई भी     इंसान।

आशा जीवन-ज्योति है,आन मान औ'शान।


जीवन  में  फटके नहीं, कभी निराशा  पास।

आशा हरती नयन से,मत हो 'शुभम'निराश।।


अंधा  होता  प्यार है,कहते  हैं सब   लोग।

नयन विवेकी खोल ले,बने अन्यथा रोग।।


सेमल   जैसा  फूल  है, सकल दृष्ट  संसार।

झूले आश निराश के,झूल झूल नर क्षार।।


संकल्पों की डोर से,पकड़ गहें  शुभ पंथ।

पीछे मुड़ मत देखना,पढ़ें प्यार  के   ग्रंथ।।


सबसे गंदी मत्स्य है,मानव की यह जात।

मानव नर को खा रहा,शुभं प्यार की मात।


शुभमस्तु !


10.08.2020◆2.30अप.

रविवार, 9 अगस्त 2020

लिया कॄष्ण अवतार [ दोहा ग़ज़ल]

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✍ शब्दकार©

🛕 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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 भाद्र कृष्ण शुभअष्टमी,लिया कृष्णअवतार।

पाप भार से मुक्त कर,देंगे जन -जन तार।।


काली आधी रात थी,नभ में काले मेघ,

पत्ता तक हिलता नहीं, सोए पहरेदार।


ताले   कारागार   के, स्वतः खुले आश्चर्य,

कृपा हुई है ईश की, खुले सहज सब द्वार।


चिंतित थीं माँ देवकी,सोच रहे वसुदेव,

चक्र सुदर्शन देखकर,उर में हर्ष अपार।


माँ को भय से भीत लख,हुए कान्ह शिशुरूप

आँचल में क्रीड़ा करें,लिया रूप नरधार।


रक्षा करने पुत्र की,जनक न किया विलम्ब,

लिटा सूप में चल पड़े,गोकुल यमुना  पार।


कालिंदी  में बाढ़ थी, स्वतः उतरता  नीर,

शेषनाग  ने छाँव कर, यमुना दिए उतार।


मित्र  नंद के  गेह में , जाकर यसुदा  पास,

कन्या  उनकी  अंक  ले, पहुँचे कारागार।


भोर हुआ लाली खिली,यसुदा नंद समोद,

लाला कान्हा आ गया, ब्रज में हर्ष अपार।


'शुभम' पापमोचन करें,हनें पूतना  कंस,

ब्रज रखवाला खेलता,छाई सुखद बहार।


💐 शुभमस्तु !


09.08.2020◆10.15 पूर्वाह्न।

शनिवार, 8 अगस्त 2020

श्रीकृष्णावतार [ सायली ]

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✍ शब्दकार ©

🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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लेंगे 

अवतार विष्णु

श्रीकृष्ण रूप में 

भादों  तिथि

अष्टमी।


लाल

जसुदा के

आएंगे मथुरा से

नगरी गोकुल 

में।


निशीथ

सघन श्याम

तिथि अष्टमी की

माह भादों 

कृष्णावतार।


ताले

खुल गए

कारागार के स्वतः

प्रकट हुए 

श्रीकृष्ण।


माँ 

देवकी चिंतित

जनक वसुदेव भी

बचाएँ कैसे 

सुत।


पहरेदार

सभी सोए

खुले ताले स्वतः

मिला मार्ग

निर्भय।


लिटाया

सूप में

शिशु कृष्ण को

वसुदेव ने 

तुरत।


चढ़ी

यमुना नदी

भयंकर बाढ़ आई

घटा पानी

तुरत।


बरसती

घनघोर थी 

जल की धार

छाँव की

शेषनाग।


पार्श्व 

यसुदा की

लिटाया 

कृष्ण को

चले लेकर

सुता।


💐 शुभमस्तु !


08.08.2020 ◆7.45 अप.

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...