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सोमवार, 18 अगस्त 2025

कृष्ण कन्हैया [ चौपाई ]


441/2025


               

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कृष्ण    कन्हैया     वेणु     बजैया।

नंद यशोमति    की   छवि    छैया।।

जन्म अष्टमी  का     दिन   आया।

घर-घर   में    शुभ  पर्व   मनाया।।


राधा   के   प्रिय    कृष्ण   कन्हैया।

रँभा   रही     है    कजरी     गैया।

कब  वन  में    तुम   ले   जाओगे।

माँ       यशुदा    को     हर्षाओगे।।


माखन   की   तुम   करते   चोरी।

फिर  भी   करें     प्रतीक्षा   गोरी।।

डाँट   लगा     देती    है     मैया।

नटखट  प्यारे   कृष्ण    कन्हैया।।


सखा    मनसुखा  और  सुदामा।

याद करें   गोपी    ब्रज    वामा।।

भगिनि    सुभद्रा   के  प्रिय भैया।

फिर-फिर आओ  कृष्ण कन्हैया।।


लीलाधारी       दानव        हंता।

करते      मानव    सेवा    संता।।

पार     लगाते    हैं     प्रभु   नैया।

हुए  धन्य  हम   कृष्ण    कन्हैया।।


ले  अवतार    धन्य   माँ   कीन्ही।

मातु    देवकी   कृपा    अचीन्ही।

बलदाऊ      के      छोटे    भैया।

वासुदेव   प्रभु   कृष्ण   कन्हैया।।


'शुभम्'  भूमि  ब्रज की  जन्माया।

कृपा   तुम्हारी     ममता    छाया।।

लेतीं     माता     नित्य     बलैया।

कृपा करो    हे कृष्ण     कन्हैया।।


शुभमस्तु !


18.08.2025●2.00प०मा०

                    ●●●


सोमवार, 14 जुलाई 2025

सावन [ चौपाई ]

 339/ 3025

      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सावन     आया     सावन     आया।

बादल  ने      रिमझिम    बरसाया।।

श्वेत  श्याम   घन    नभ  में   गरजे।

धरती    पर     हरियाली     सरजे।।


चम - चम  बिजली  चमक  रही है।

सड़क    गली   में   नदी  बही   है।।

नहीं       दिखाई        देते     झूले।

कजरी    और     मल्हारें      भूले।।


टर्र    -   टर्र        मेढक      टर्राएँ।

प्रिया  मेढकी      पास     बुलाएँ।।

वीर बहूटी    विदा        हो      गई।

नहीं     गिजाई      बची    सुरमई।।


गए     केंचुआ      खाद     बनाने।

कृत्रिमता का      साज     सजाने।।

सावन    में      राखी  का    बंधन।

करें  भगिनि  का सब   अभिनंदन।।


हरियाली        तीजें        मनभाई।

नहीं  सरोवर     में    अब    काई।।

भर - भर    चलें      पनारे     सारे।

दिखते   नहीं     गगन    में    तारे।।


झर - झर  झर -  झर   बरसे  पानी।

सावन     की    घनघोर    कहानी।।

प्रमुदित  सभी   कृषक नर -  नारी।

नाच   रहे     बालक     दे    तारी।।


खेतों    में     हल -   बैल    चलाएं।

बीज    बो    रहे   फसल  उगाएँ।।

ज्वार    बाजरा     मक्का     बोते।

चादर  तान    चैन      से     सोते।।


शुभमस्तु !


13.07.2025 ●8.45प०मा०

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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

संगम [ चौपाई ]

 089/2025

                 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


संगम  -  घाट       नहाओ   भाई।

धुले  पाप      की      मैली     काई।।

जो    नर  संगम -  घाट     नहाते।

पल में  पाप   शमन    कर    जाते।।


गंगा  - यमुना     मिलतीं    सरिता।

पाप  नाशिनी   पुण्य    सु भरिता।।

भर-  भर    ट्रेन   बसों    में   जाते।

संगम से जल    भर कर  लाते।।


पुण्य     हजारों     जो    करते   हैं।

वे क्यों     पुण्य  और    भरते  हैं??

पुण्यवान   क्यों     नहा    रहे    हैं।

संगम  में  सब   पाप    बहे   हैं??


है  संगम    प्रयाग     में     सुंदर।

बन  जाता  क्या   पाप     पुरंदर??

लाख  करोड़ों       खूब     नहाएँ।

पाप     घटा    घर   वापस  आएँ।।


मैले   वस्त्र     सभी     हैं     धोते।

पाप    घटाते     देह       भिगोते।।

संगम  भारत का   अघ  शामी।

साधु    संत    नेता     जन कामी।।


संत     अघोरी         नागा    जाते।

संगम  जा    अचरज दिखलाते।।

संन्यासी     धर     चीवर      पीले।

नित्य  नहाते        शिष्य   सजीले।।


संगम    की   शुचि  शोभन महिमा।

व्यक्ति     बढ़ाए     अपनी   गरिमा।।

न   हो    मनों  से   संगम   मन  का।

क्या   होता   है   धोकर    तन   का।।


शुभमस्तु !


16.02.2025●8.00 प०मा०

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सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

बसंत [ चौपाई ]

 070/2025

                      


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बीता     माघ     मास     फगुनाया।

जड़ - चेतन      बसंत      गहराया।।

गेंदा    पाटल        महके     क्यारी।

ऋतु   बसंत की   है  अति   प्यारी।।


सुमन  खिले  अलि दल   बहु  झूले।

पतझड़    के    उठ   रहे     बगूले।।

फूल  - फूल पर     तितली    जाती।

ऋतु  बसंत  की  अति   मनभाती।।


पीली  -  पीली       सरसों    फूली।

उड़ने     लगी    राह     में    धूली।।

टेसू      खिले  लाल    रँग     वाले।

सेमल  के    हैं     सुमन    निराले।।


बजे    गाँव    में     ढोल     नगाड़े।

कामदेव  के  ध्वज     बहु    ठाड़े।।

गाएँ       फाग     गीत      जोगीरा।

धरे  वियोगिनि  हृदय    न    धीरा।।


कोयल की ध्वनि   अति   मनभाई।

गूँज   उठे    सब    वन   अमराई।।

मेहो - मेहो          सारँग      नाचें।

वन - उपवन    में    भरें   कुलाँचें।।


चना  - मटर    खेतों    में    झूमें।

गंदुम   लहर - लहर  नभ    चूमें।।

नर-नारी       मन    में     हर्षाते।

तन- मन में    रति  भाव लजाते।।


नव  बसंत  की    महिमा  न्यारी।

विकसित हैं तरु लतिका क्यारी।।

'शुभम्'  हृदय  में  कविता जागी।

मातु     शारदा   का    अनुरागी।।


शुभमस्तु !


09.02.2025●11.00प०मा०

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बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

भ्रमर [ चौपाई ]

 057/2025

                       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


ऋतु   वसंत  की  अति   मनभाई।

हुई  शीत  की     सुखद    विदाई।।

फूल - फूल    पर    भ्रमर    झूमते।

नवल   अधखिली   कली    चूमते।।


गेंदा     खिले     महकते     पाटल।

भ्रमर दलों    के    उमड़े    बादल।।

सरसों   मटर   खेत    में      नाचे।

खोल  ग्रन्थ   ज्यों   मन्मथ   बाँचे।।


बैठा  भ्रमर    कमल   के     ऊपर।

मद  में  झूमा    नवरस     छू कर।।

रंग  -  बिरंगीं     तितली       आईं।

नव सुगंध     कलियाँ      मुस्काईं।।


मोर    नाचते      छत    के    ऊपर।

भ्रमर  करें    क्रीड़ा    नित   भूपर।।

तरुणी- तरुण    कामरस       राँचे।

बरगद  पीपल     भरें       कुलाँचे।।


ऋतुओं  के      राजा     मधु  आए।

पेड़ों ने    नव      साज      सजाए।।

भ्रमरी - भ्रमर   गा      रहे     लोरी।

चली   गुजरिया   धरे        कमोरी।।


फागुन  आया      खेलें       होली।

लगा   भाल पर    चंदन -   रोली।।

कोयल ने  नव      राग     सुनाया।

अमराई      में     खेल     रचाया।।


'शुभम्'  भ्रमर की     झूमे   टोली।

देवर-भाभी        खेलें       होली।।

जीजाजी    से      साली     बोली।

करो  न  हमसे  यों  न    ठिठोली।।


शुभमस्तु !


02.02.2025●8.30प०मा०

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शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

ह्वाट्सएप का कुनबा [ चौपाई]

 355/2024

        

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


व्हाट्सएप    का   कुनबा   भारी।

काम न   आए    भीड़   हमारी।। 

भरी   भीड़  में      सभी  अकेले।

लदे  ठेल    पर    मानो     केले।।


हों   बीमार    न    कोई   आता।

सह अनुभूति  न   रोगी   पाता।।

शब्दों    का    संदेश   खोखला।

कैसा   ये      इंसान     दोगला।।


बातों   के     मीठे   न    बतासे।

जुगनू  से  होते     न    उजासे।।

है   अभाव   में      कोई  जीता।

भेजे    कोई     नहीं    पपीता।।


मुखपोथी  पर  कुछ    मरते   हैं।

मिट्ठू   मियां  बने     फिरते    हैं।।

इंस्टाग्रामी       कॉलोनी     का।

हाल वही है    मुखपोथी - सा।।


आभासी   दुनिया      में    जीते।

निरे   खोखले     मानुस    रीते।।

समझाने  से समझ   न    आए।

सच्ची  राह  कौन     दिखलाए।।


जैसे      गए      सावनी    झूले।

व्हाट्सएप  में  त्यों  नर    भूले।।

ज्यों  निदाघ   के  धुंध    बगूले।

आसमान  को  जाकर    छूले।।


'शुभम् ' लौट   धरती  पर आओ।

व्हाट्सएप  से  मोह     हटाओ।।

है   कठोर   यथार्थ   की   धरती।

नाव  न पार  मनुज   की करती।।


शुभमस्तु !


15.08.2024●4.00प०मा०

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बुधवार, 12 जून 2024

छुट्टियाँ [चौपाई]

 256/2024

              


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चलो    छुट्टियाँ    वहाँ     मनाएँ।

जहाँ  शांति से   हम  रह   पाएँ।।

गर्मी   हुई    तेज    अति   भारी।

यात्रा    की     अपनी    लाचारी।


किसे  छुट्टियाँ   सदा   न  भातीं।

करता श्रम  उसको  ललचातीं।।

पढ़ने   वाले   या   किसान   हों।

सीमा  पर   लड़ते  जवान    हों।।


करें      नौकरी      या    मजदूरी।

मिलें    छुट्टियाँ   उनको      पूरी।।

तन थकता तो  मन   भी थकता।

अनथक  कैसे   मग   में चलता।।


 गर्म    मशीनें     भी    हो   जाती।

श्रम   क्षमता    उनकी   मुरझाती।।

उन्हें  रोक  कर    शीतल   करना।

थकन मशीनी  को  नित    हरना।।


श्रम   क्षमता    छुट्टियाँ   बढ़ातीं।

नई  चेतना    तन    में     लातीं।।

कर्मशील    कोई    भी   कितना।

सभी  थकित हों करता जितना।।


मेले     ब्याह    पर्व    हैं    आते।

किसे नहीं वे     खूब     रिझाते।।

इसी      बहाने     छुट्टी       लेते।

काम  सभी   हम   निबटा   देते।।


'शुभम्'   चलो     छुट्टियाँ   कराएँ।

मात -  पिता   सँग      घूमें  आएँ।।

खेलें -  कूदें      मौज       मनाएँ।

नैनीताल     घूम      कर    आएँ।।


शुभमस्तु !


03.06.2024●10.45आ०मा०

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मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

विरह [ चौपाई ]

 194/2024

                   

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मिलन - विरह  ने   प्रीति   सजाई।

जीवन  की  कलिका     मुस्काई।।

प्रियतम  से  जब     संगम   होता।

खिलता  जीवन  का  नव   सोता।।


नर -  नारी का   विरह    कसौटी।

सुख समृद्धि   की    वर्षा  लौटी।।

पति - पत्नी या  मित्र  सखा  हो।

विरह  जाँचता  कौन   सगा   हो।।


भगिनी - विरह   बंधु   का  परखे।

रक्षाबंधन     में   वह       निरखे।।

आती     भैया      दूज    निराली।

देती  भगिनि   प्रेम   रस   प्याली।।


भक्त  - विरह    में  ईश  कलपते।

बिना भक्त प्रभु  जी  कब   रहते।।

विरह  भक्ति  की   शक्ति   बढ़ाए।

कठिन परीक्षा  में    सुख   पाए।।


मात -  पिता  का घर जब त्यागे।

भाग्य  लाड़ली    के   हैं    जागे।।

जग  की  है  ये   रीति    निराली।

पिए   विरह की   पीड़ा  -प्याली।।


जग  से   दूर      आत्मा     जाए।

दुसह  विरह   दुख   हमें सताए।।

परम   सत्य  सब    कोई    जाने।

फिर भी करे    नकार   न   माने।।


'शुभम्' प्रात  संध्या का मिलना।

है   संयोग    सुखदता    भरना।।

दिवस  शर्वरी  मिलन   विरह हैं।

युगल ईश के  शुभ   विग्रह   हैं।।


शुभमस्तु !


29.04.2024●11.45आ०मा०

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शनिवार, 16 मार्च 2024

दिशा [ चौपाई ]

 92/2024

                

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


दिशा  - दिशा  की  बात    निराली।

वन    मैदान     कहीं      हरियाली।।

पूरब    पश्चिम      दक्षिण    सागर।

उत्तर  दिशि   मम   देश    उजागर।।


उत्तर  दिशा     हिमालय     अपना।

रक्षक   स्वर्ण   शृंग   नित   तपना।।

बहतीं    जिससे     सुरसरि    धारा।

यमुनोत्री     का     वहीं    किनारा।।


चार  धाम     हैं     दिशा -  दिशा में।

लगतीं     मोहक     सुबहें     शामें।।

पूर्व    दिशा     से     सूरज   उगता।

पश्चिम   में  वह   जाकर   छिपता।।


पूरब  से      जन    पश्चिम     जाते।

रोजी - रोटी         सभी     कमाते।।

उत्तर   से     दक्षिण    जन    जाएं।

उन्नति   के   अवसर    जब   पाएँ।।


उगती  पौध   किसी    भी   क्यारी।

महके  अन्य     दिशा    फुलवारी।।

दिशा -   दिशा   मधुमक्खी  जातीं।

छत्ते  पर     रस    ले   जा   पातीं।।


प्रगति   न   देता    एक    ठिकाना।

दिशा - दिशा   में    पड़ता   जाना।।

जहाँ   बसें     वह   देश     हमारा।

उसी  दिशा    में  मिले    किनारा।।


'शुभम् '   न    खूँटा     गाड़े    बैठें।

अपने  मन     में   तनें    न    ऐंठें ।।

दिशा   कौन सी   शुभ   बन जाए।

अवसर   उचित अगर   मिल पाए।।


शुभमस्तु !


11.03.2024●10.45आ०मा०

बुधवार, 29 नवंबर 2023

भूख ● [ चौपाई ]

 509/2023

                 

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●© शब्दकार

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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भूख  उदर  की  सदा  सताए।

जंतु भूमि, नभ, जल जन्माए।।

अलग भूख जो जन्मी  काया।

जगती में  व्यापी  नित माया।।


कवि को मानस -भूख सताती।

असमय समय देख कब पाती।।

पकड़ लेखनी लिखता कविता।

नहीं जहाँ पर   पहुँचे   सविता।।


नेता  सब   कुरसी    के  भूखे।

ऊपर   चिकने   अंदर   रूखे।।

सत्तासन   की  भूख  निराली।

मिले  रसों की   मीठी  डाली।।


शिक्षा  की शुचि भूख जगाता।

मानव  वह शिक्षक कहलाता।।

जो समाज शिक्षा  का  भूखा।

जीवन  जीता कभी न रूखा।।


भूख  देह  की   संतति    लाती।

तन मन को उपकृत कर जाती।।

वंश -  वृद्धि   के   गाछ  उगाए।

भूख  देह की   क्या न   कराए??


विविध  भूख  के   रूप  बनाए।

बनते  हैं   मानव    के    साए।।

बिना  भूख  क्या जीवन कोई!

भूखी  देह  न सुख  से   सोई।।


भूखा    रहे  न   भू   पर  कोई।

आँख न कोई  दुख   से   रोई।।

'शुभम्' चलें  हम भूख मिटाएँ।

भूखे  मनुज  नहीं   सो   पाएँ।।


●शुभमस्तु !


27.11.2023●12.30प०मा०

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सोमवार, 20 नवंबर 2023

शब्द ● [ चौपाई ]

 496/2023

                     

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● © शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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अक्षर  - अक्षर   ब्रह्म  समाया।

शब्द -शब्द में प्रभु  की माया।।

शब्दसहित  मानव   की भाषा।

संकेतक उर  की  अभिलाषा।।


मानव ,  ढोर ,  पखेरू    सारे।

शब्दसहित  तन भू पर   धारे।।

शब्द  हृदय  के   भाव  बताए।

धी  में  उगे    विचार   जताए।।


शिशु  अबोध  माँ  ने जन्माया।

शब्द प्रकृति से  लेकर  आया।।

रुदन शब्द नव शिशु की भाषा।

बतलाती  मन की अभिलाषा।।


बाग - बाग  कोयलिया  बोले।

मधुर शब्द -रस श्रुति में घोले।।

काँव -काँव के शब्द   न भाते।

रँभा-रँभा पशु कुछ कह जाते।।


शब्द कुकड़ कूँ किसे न भाए।

ताम्रचूड़   नित   हमें  जगाए।।

गौरैया   की    चूँ -चूँ    बोली ।

कानों में रस - गोली   घोली।।


देवालय      में     घंटे     बजते।

फर-फर कर ध्वज ऊपर सजते।।

विद्यालय   में    पढ़ने     जाएँ।

घंटा - शब्द   हमें    मन   भाएँ।।


शब्दों  का  कवि   शब्दकार है।

करता  कविता    तदाधार  है।।

'शुभम्' शब्द की महिमा   गाए।

नहीं  किसे   चौपाई      भाए।।


●शुभमस्तु !


20.11.2023◆8.45 आ०मा०

मंगलवार, 25 जुलाई 2023

कठिनाई ● [ चौपाई ]

 321/2023

          

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● © शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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नाव नई हो या कि पुरानी।

आती सबको नहीं चलानी।।

बड़ी -बड़ी आतीं कठिनाई।

होते   साहस   धैर्य   सहाई।।


चलते -चलते  अनुभव आते।

कभी सफल-असफल हो जाते।।

कठिनाई  से   मत  घबराना।

धी विवेक   से  बढ़ते  जाना।।


जोश रहे पर होश न खोना।

अपने पथ में शूल  न बोना।।

तभी  दूर  होती   कठिनाई।

कर्मठता  की   महिमा गाई।।


यौवन अनुभव- शून्य वृथा है।

असफलता की यही कथा है।

कठिनाई अनुभव   से  जाती।

कर्मशील के   पास न आती।।


बचपन में   दायित्व   न होते।

कठिनाई   के   बीज न बोते।।

ज्यों -ज्यों यौवन आता जाता।

कठिनाई का  ताप  सताता।।


वृद्ध जनों   की   यही महत्ता।

घर भर की समरस हो सत्ता।।

पल   में   दूर   करें   कठनाई।

उन्हें   पूँछते    करें   मिताई।।


'शुभम्' दीप   सब वृद्ध हमारे।

तम में   बनते    सदा सहारे।।

पास न   आने   दें  कठिनाई।

दिवस-निशा या जून जुलाई।।


●शुभमस्तु !


24.07.2023◆11.45आ०मा०

मंगलवार, 18 जुलाई 2023

आरती श्रीटमटा नंद ● [ चौपाई ]

 308/2023

     

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● ©शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जय  -   जय       टमटानंद  हमारे।

अरुण   वसन   तुम  तन पर धारे।।

सब्जी   से   फल   तुम  बन छाए।

आम  -   खास   ने    गले  लगाए।।


हरा    मुकुट   तव  शुभ सिर सोहे।

जो    देखे      उसके     मन  मोहे।।

गोलमटोल     रूप      तुम  धारी।

हुए   वजन    में   अब तुम भारी।।


आरति       करति    तोरई   माई।

मंडी       में      तव     है  प्रभुताई।

आलू        बैंगन      तुम्हें    मनावें।

जो      अपने    घर  वापस  आवें।।


करें       सेव        तुम्हरी   सेवकाई।

हाथ         जोड़ते      लोग - लुगाई।।

टमटानंद           मना       पखवारा।

धारण     मौन   किया  अति भारा।।


पेंदी      बिना     रूप -  रँग भोला।

ऊपर     नीचे      से     तुम गोला।।

उच्चासन     तुमने     निज कीन्हा।

अब     तक  पद हमने कब चीन्हा।।


सब्जी      के   घर    तुम जन्माये।

फलघर    शोभा     तुम्हीं बढ़ाये।।

तुम्हें    देख    सब्जी   जल जाए।

क्यों  तुम  अस   उच्चासन  पाए।।


बैंगन      गोभी       घिया  करेला।

ठेले        पर        इतराता   केला।।

सेवों     के       सँग     सेवा  पाते।

आलू      देख        तुम्हें  ललचाते।।


साधु   वेश    धर    तुम  हो छाए।

मुँह   में     पानी     भर - भर आए।।

फ्रिज़    को    छोड़   तिजोरी  पाई।

अनन्नास       दे         रहे    बधाई।।


तुम्हें    किसी     ने    अगर  सताया।

अब   तक      तुमने    नहीं बताया।।

सन्यासी         का        वेश   बनाया।

हर      ग्रहणी   के    मन को भाया।।


लॉकर        में    रखती    हैं  सासें।

बहू      माँगतीं    सविनय    माँ  से।।

तब      सासू     जी  खोल तिजोरी।

देतीं       छोटा     खण्ड  न   भोरी।।


अब    सलाद   में  तुम कब आते।

तुम्हें         देख        संतरे    डराते।।

ऐसा      पद      सबको    दे धाता।

धन्य         तुम्हारी      टमटा माता।।


आरति     'शुभम्'    तुम्हारी  गाए।

जो       पूजे       उच्चासन   पाए।।

टमटा   जी       के     दर्शन    पाता।

धन्य - धन्य      नर   वह  हो जाता।।


●शुभमस्तु !


14.07.2023◆3.45 आ०मा०

बुधवार, 28 जून 2023

तरुणाई ● [चौपाई]

 273/2023

            

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●© शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बचपन विदा मिली तरुणाई।

सावन को   बयार   पुरवाई।।

खेल - खिलौने   छोड़े   सारे।

लगे  चमकने  दृग   में  तारे।।


आँखों   में   छाई  हरियाली।

फूली तन की डाली - डाली।।

तरुणाई    के   खेल  निराले।

 भाग्यवान के   खुलते ताले।।


खेल  अनौखे   तरुणाई   के।

दिखा रहा   है   निपुनाई के।।

काम-कामिनी  में   जा  डूबा।

नहीं  एक पल  मानव ऊबा।।


क्या नारी क्या नर -  तरुणाई।

ज्यों कलगी पर  बाली आई।।

महक उठे तन - मन भी सारे।

लगते संतति  उसको  प्यारे।।


तरुणाई   के   मद   में  भूला।

देह और मन दिखता  फूला।।

आँधी   से  जाकर   टकराता।

तूफानों   के   गीत   सुनाता।।


सरिता की   धारा   को उलटे।

नहीं लक्ष्य  से  पीछे   पलटे।।

सैनिक बनकर  देश  बचाता।

तरुण वही सच्चा कहलाता।।


'शुभम्' नहीं   खोएँ  तरुणाई।

युग ने  यौवन- महिमा गाई।।

थिरता नहीं   जगत  में कोई।

मुरझाती   हर   माला   पोई।।


●शुभमस्तु !


26.06.2023◆4.00आ०मा०

सोमवार, 19 जून 2023

शब्दों में क्यों पिता समाए ● [ चौपाई ]

 265/2023


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●© शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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शब्दों  में  क्यों  पिता समाए।

कोई  तो   यह  बात  बताए।।

पिता  बिना  जीवन क्या मेरा।

अंश  भानु  का   पुत्र  सवेरा।।


नहीं  पिता  को जिसने जाना।

कहाँ ईश को  उसने   माना??

अंश  पिता संतति  है   अंशी।

जिससे  बजती जीवन-वंशी।।


महाकाव्य   हैं   पिता  हमारे।

पितु कारण हम कार्य तुम्हारे।।

बिना पिता यह जीवन रीता।

एक - एक पल उनसे बीता।।


पिता  आप अवनी पर लाए।

खेले  - कूदे    मोद   मनाए।।

बचपन ,यौवन ,जरा  हमारी।

सदा समर्पित  सादर  सारी।।


मात -पिता  से घर कहलाया।

पाकर सुत नव मन बहलाया।

अँगुली पकड़ सिखाते चलना।

गिर जाने पर फिर से उठना।।


गुरु आदर्श  पिताजी  - माता।

भगवत नित तुमको है ध्याता।

ईश्वर   को   देखा   है     मैंने।

पिता   सिखाते   थामे   डैने।।


समझें   तो   घर  - घर   में ईश्वर। 

पिता-जननि नित 'शुभम्'धीर धर।

चरणों  में    शुभ   अर्घ्य   तुम्हारे ।

पथ   प्रशस्ति   दें    पिता हमारे।।


●शुभमस्तु !


19.06.2023◆11.00आ०मा०

बुधवार, 14 जून 2023

अमृत - कलश ● [ चौपाई ]

 255/2023

        

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● ©शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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अमृत - कलश   चाहते  सारे।

देव,  दनुज,  मानव    बेचारे।।

नहीं  चाह   से अमृत मिलता।

सुमन स्वेदश्रम से ही खिलता।।


अमृत-कलश देह-श्रम लाता।

शुचि विवेक से मानव पाता।।

जो आया   उसको   है जाना।

छद्म अमरता से क्या पाना??


कर्म  भाग्य   का  है निर्माता।

यों ही  भाग्य न   देता दाता।।

स्वेद -बिंदु से    सींचें  जीवन।

मिले अमरता का सुंदर धन।।


छप्पर फाड़ नहीं धन मिलता।

दिखा न मन की तू चंचलता।।

अमृत - कलश वही नर पाए।

श्रमज वारि जो धरणि बहाए।।


मन-मोदक   सपने में खाए।

बार -बार   वह नर पछताए।।

परजीवी   परधन की चाहत।

करती है तन मन को आहत।।


अमृत-कलश सहज क्यों पाए!

छाले पड़ें    बुद्धि तप जाए।।

मानव-जीवन कठिन कहानी।

नित्य   नई   है   नहीं पुरानी।।


'शुभम्' कलश  अमृत का पाया।

माँ वाणी पद शीश झुकाया।।

परमानंद   मातु   की    सेवा।

देती है   अमृत   भर    मेवा।।



● शुभमस्तु !


12.06.2023◆8.45आ.मा.

गुरुवार, 18 मई 2023

माँ बनाम सास ● [चौपाई ]

 215/2023


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●शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सबकी  माँ  जब  इतनी प्यारी। 

बनी सास  क्यों तेज कटारी??

सास    कहाँ   बनती हैं सारी?

सब  बहुओं  की   वे बीमारी।।


बहू  सास जब  बनकर आती।

अपना  असली  रंग दिखाती।।

उसे सास   ने   बहुत   सताया।

शुभ दिन सास बना दिखलाया।।


उसे   सास   ने   रंग   दिखाए।

बहुओं पर चुन-चुन आजमाए।।

सास आज है  विगत वधूटी।

लगता   था तब किस्मत फ़ूटी।।


अब   वह  वही सूत्र अपनाए।

प्रिय सुत को गुलाम बतलाए।

सास -झुंड पनघट पर आया।

किस्सा चुगली का रँग लाया।


पुत्रवधू   की    चुगली  भाए।

सुनने में रस   कितना आए!!

देवी - सी   है   अपनी    बेटी।

बहू लगे   किस्मत  की हेटी।।


माँ बहना सब  साँसें बनती ।

तब पूछो   कैसे   वे  तनती!!

सास -  बहू  दो  बिच्छू पाले।

छेड़ न   छत्ते   बर्रों    वाले।।


सासों का आयात   कहाँ से?

करते हैं किस लोक जहाँ से?

माँ तो माँ है   सबकी  प्यारी।

क्यों हर सास बहू की ख्वारी?


●शुभमस्तु !


17.05.2023◆9.15प०मा०

गुरुवार, 11 मई 2023

भटकता हुआ बचपन● [ चौपाई ]

 190/2023


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●शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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आज भटकता  बचपन देखा।

कैसा ये   विधना  का लेखा।।

रखे   पीठ   पर  भारी  बोरी।

जाता बालक  करे  न  चोरी।।


तन पर फ़टे वसन वह  धारे।

कैसे अपना  भाग्य   सँवारे!!

पढ़ने की  वय   बोझा   ढोए।

कैसे  नींद  शांति की  सोए??


कर  एकत्र   बोतलें    खाली।

भर   बोरी  में  पीछे   डाली।।

बेच    बोतलें      पैसा    पाए।

भूख  उदर की  तभी बुझाए।।


भूखे  होंगे   पितुवर   जननी।

इसकी भी तो चिंता  करनी।।

कैसे  अपना   भाग्य   बनाए!

जब बचपन यों ही चुक जाए।


'शुभम्'  न  जीवन  ऐसा  देना।

पड़े  नाव  बचपन   से   खेना।।

जुड़ी   कर्म   से   जीवन- रेखा।

किसने किसकी लिपि को देखा।।


●शुभमस्तु !


08.05.2023◆7.15 आ.मा.


सोमवार, 17 अप्रैल 2023

पुरुष 🧘🏻‍♂️ [ चौपाई ]

 171/2023

 

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✍️ शब्दकार ©

🧘🏻‍♂️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कोमल  और   परुष  से सारी।

बनी सर्जना   प्रभु की न्यारी।।

पुरुष परुष  कोमल  है नारी।

बनी जगत की महिमा प्यारी।


पहले  परम  पुरुष ही आया।

बनी   बाद  में नारी -  काया।।

कहता  है  जग    सुंदर  नारी।

नारी  नर    से   होती  भारी।।


धन-ऋण का यह खेल रचाया।

जीव- जंतु सबको ही भाया।।

अंबर   पुरुष   धरा  है  नारी।

खिले सृष्टि संतति नित जारी।।


कामदेव   रति   रूप   सुहाए।

आकर्षित   हो   सृष्टि रचाए।।

जलचर थलचर नभचर नाना ।

परम पुरुष के विविध विधाना।।


गाड़ी   के   पहिए  नर -नारी।

संग   पुरुष   पत्नी   संचारी।।

दाता पुरुष ग्रहण वह करती।

करती तृप्त स्वयं तिय तरती।।


कम - ज्यादा की बुरी लड़ाई।

लड़े परस्पर   कलह   बढ़ाई।।

'शुभम्'एक पग चले न गाड़ी।

नारी पुरुष बिना  वह ठाड़ी।।


🪴शुभमस्तु !


17.04.2023◆5.15प०मा०

मंगलवार, 11 अप्रैल 2023

पैसा 💰 [ चौपाई ]

 162/2023

    

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✍️ शब्दकार ©

💰 डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बहुविध  रूप   दिखाती माया।

एक रूप पैसा    की  काया।।

जगत-काज सब करता पैसा।

उसका चाल-ढाल ही  ऐसा।।


बालक   बूढ़े  नर   या   नारी। 

पैसा  अर्जन    की   बीमारी।।

सोते -  जगते     पैसा - पैसा।

पागल  हुआ  आदमी  ऐसा।।


दाल - भात,  भाजी या  रोटी।

जली-कटी या छोटी - मोटी।।

अन्न, दूध, फल   देता    पैसा।

सोना ,  चाँदी ,  गैया , भैंसा।।


देवालय  में     फूल    चढ़ाते।

गंध-दीप नित भक्त  जलाते।।

पैसा  बिना  प्रसाद    न पाएँ।

रिक्त हाथ वापस   घर जाएँ।।


कहे  पुजारी    धर  जा पैसा।

क्यों मैं सुनूँ  अपवचन वैसा।।

मुझे  दक्षिणा   अभी  चाहिए।

दक्षिण कर  से अभी लाइए।।


राजकीय  या    कोई     सेवा।

करने   वाला    चाभे   मेवा।।

जो दहेज के    भुक्खड़ भाई।

पैसा के   हित   बनें  कसाई।।


कसकर  पैसा  नोट पकड़ता।

शिशु मुट्ठी में त्वरित जकड़ता।

भले दुधमुँहे   बालक-  बाला।

माया ने   कस  फंदा  डाला।।


सन्यासी     सब   चीवरधारी।

लिए  कटोरा बने   भिखारी।।

पैसा  बिना  न भरता    गड्ढा।

हो जवान बालक या  बुड्ढा।।


चले न गृहस्थाश्रम   की गाड़ी।

पैसा   बिना    रहेगी   ठाड़ी।।

नेता , धन्ना    सेठ,  महाजन।

पैसा बिना न चलता जीवन।।


कोई मैल   हाथ  का कहता।

पाई पकड़  दाँत    से रहता।।

ढोंगी  जन  की  बातें  छोड़ो।

पैसे से   सब     नाता जोड़ो।।


पैसा की  है  बड़ी    कहानी।

नित्य  नई है न    हो पुरानी।।

'शुभम्' न चाहे  जो नर पैसा।

पाखंडी  झूठा    वह   ऐसा।।


🪴शुभमस्तु !


10.04.2023◆11.30आ०मा०

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...