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शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

बलिदान [सोरठा]

 433/2025


           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


हुआ    देश   आजाद,  वीरों  के बलिदान   से।

करते   हैं   हम  याद, सदा  सजल सम्मान  से।।

दुखद न हो परिणाम,कभी त्याग बलिदान  का।

अमर   उन्हीं के   नाम,  करते हैं जो देश   हित।।


बनकर     पहरेदार,  सीमा  पर सैनिक   डटे।

अरि पर करें प्रहार,हिचक नहीं बलिदान से।।

पीड़ित   धीर   जवान, महा  भयंकर  शीत से।

कहता   देश   महान, उनके ही बलिदान  से।।


पत्नी   भी   माँ -बाप,  सैनिक की संतान  हैं।

झेल   रहे   नित   ताप,डरें  नहीं बलिदान से।।

नमन  आरती  आप,  आओ वीरों की   करें।।

नहीं त्याग की   माप, करते  हैं बलिदान जो।।


पाल  रहे  संतान,  अपना सुख बलिदान  कर।

कर उनका गुणगान,धन्य -धन्य जननी-जनक।।

करता सुख बलिदान,छात्र पढ़े जब पाठ को।

मिलता सुख सम्मान,वही चमकता भानु -सा।।


करता जो बलिदान, मूल्य नहीं घटता कभी।

पीढ़ी बने महान, उसी  सरणि  के पंथ   पर।।

है   अमूल्य बलिदान,जीवन  के हर   क्षेत्र  में।

कोई  मनुज  सुजान,चुकता करे न मूल्य को।।


गाएँ   गाथा   आज,आओ हम बलिदान  की।

सफल हुए सब काज,किए महातप त्याग जो।।


शुभमस्तु !


14.08.2025●9.45 आ०मा०

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गुरुवार, 7 अगस्त 2025

निर्मल [ सोरठा ]

 411/ 2025


        

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


हो न जगत में  पाप, निर्मल  मन हो आदमी।

नहीं  सताए  ताप,अच्छे   ही   सब काम हों।

खिलते  नहीं सरोज,निर्मल सलिल तड़ाग में।

सावन  या  आसोज, पंक सदा अनिवार्य  है।।


निर्मल कितने लोग,चला खोजने धरणि में।

मिला स्वयं में रोग,निज ग्रीवा में झाँकता।।

करे जगत में काम, मन -मंदिर निर्मल बना।

दिखें  हृदय  में राम, सब  ही लगते देवता।।


जातक निर्मल एक,शिशु अबोध होता भले।

तजे न बुद्धि विवेक, कपट  पाप से दूर  हो।

जगे  न मन में पाप,निर्मल हों यदि भाव तो।

दे   न  उसे संताप, माता- भगिनी ही  दिखे।।


रहते  एक    न  शेष,  झगड़े-झंझट लेश  भी।

निर्मल तन-मन वेश,मन होता यदि जीव का।।

रहता   सदा  निवास,निर्मल मन में देव   का।

कलुष   भरा  हो  खास, दानव होता  आदमी।।


सुता-वधू    को   सास, एक   तराजू में  रखें।

कलह न हो गृह -वास,निर्मल हों उर भाव जो।।

निर्मल हों यदि तत्त्व,फल सब्जी या अन्न  में।

बरसे   अमृत  सत्त्व,  रोग  न  आए गेह   में।।


भर  लें  निज  संसार, आओ निर्मल भाव से।

करता 'शुभम्' विचार,पाप ताप सब नष्ट हों।।

शुभमस्तु !


07.08.2025●5.00 प०मा०

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गुरुवार, 31 जुलाई 2025

चंदन [ सोरठा ]

 384/2025


              


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चंदन  शुभदागार, शीतलता  सद गंध   का।

संग सुखी  संसार, महके  तन -मन आपका।।

यद्यपि    विष आगार,लिपटे रहें भुजंग   भी।

रहे     निर्मलाकार,  चंदन   को व्यापे   नहीं।।


प्रसरित    परम सुगंध,चंदन चर्चित देह   की।

महके  तन - मन कंध,करे परस जो हाथ से।।

करता   चिंता   दूर, चंदन मन को शांति  दे।

सदगंधी  भरपूर,   हरे   त्वचा-सूजन  सभी।।


भक्त   हजारों  लाख,  चंदन की माला   जपें।

बढ़े  भक्त  की शाख, निकट करे जगदीश के।।

शुचि  चंदन  भरपूर, औषधीय  गुण से   भरा।

करे रोग  को दूर,  दोषों   का उपचार     कर।।


लाता   चंदन   नूर,त्वचा - कांति में वृद्धि  कर।

दृढ़ता  को  कर दूर, नहीं  वर्ण फीका    पड़े।।

चन्दन   है   उपचार,  चिंता  और तनाव   का।

तन - मन में सुख सार,ध्यान योग की साधना।।


शीतल    चंदन    तेल,  निद्रा  में  आराम    दे।

समझ    नहीं  ये   खेल,  आयुर्वेदी  ने   कहा।।

लें   पानी    के  संग, किंचित  चंदन चूर्ण  को।

न हो   रोग की   जंग, फंगल  हमला  रोक दे।।


हरता  सकल  तनाव, शीश - वेदना दूर  कर।

चंदन श्रेष्ठ  प्रभाव, नस - नस  को विश्राम दे।।


शुभमस्तु !


31.07.2025●11.45आ०मा०

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शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

सुधार [ सोरठा ]

 346/2025


                         


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अपना स्वयं सुधार,आवश्यक सबको यहाँ।

मनुज     पूर्णताकार,  कौन  यहाँ संसार   में।।

पहले सुधरे व्यक्ति, करना  देश - सुधार तो।

मिलती है शुभ शक्ति,सब सुधरें तो देश को।।


करना    देश -सुधार,  नेता चीखें मंच   पर।

बने   ईश -अवतार,निज सुधार में लीन   वे।।

मात -  पिता   का धर्म,संतति के निर्माण  में।

करके   शोभन   कर्म, कर लें आत्म-सुधार वे।।


करते    हैं   सब लोग,बातें बहुत सुधार   की।

फैलाते   बहु  रोग,  नहीं   गले  निज झाँकते।।

सबका   पूर्ण    सुधार,करने से ही हो    सके।

जैसे   सलिल   फुहार,  थोथी बातें व्यर्थ   हैं।।


कोई     कभी  सुधार, भाषण से होता  नहीं।

फिर   पूरा  संसार,  पहले आत्म-सुधार   हो।।

पहले   करके  देख,  कथनी से करनी  बड़ी।

करे  न  मीन न  मेख,तब ही सर्व सुधार   हो।।


बड़बोलापन     आम, पर उपदेशी जगत   है।

करे    न  शोभन  काम,कैसे व्यक्ति-सुधार हो।।

बड़े   न  बोले  बोल ,हम सुधरें सुधरे   जगत।

रहें  हृदय को  खोल,  तोलें  तुला सुधार  की।।


साबुन   रगड़   अबाध,धोना पड़ता वस्त्र  को।

पूर्ण व्यक्ति की साध,त्यों सुधार हो व्यक्ति का।।


शुभमस्तु !


17.07.2025●7.30 आ०मा०

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शुक्रवार, 27 जून 2025

गरिमा [सोरठा]

 279/ 2025

            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मानव देव समान,गरिमा है यदि रूप की।

लात चलाए तान, गर्दभ  गोरे  चाम का।।

करके खोटे काम,मत गरिमा को लाँघिये।

जग में हो बदनाम,जो सूरज पर थूकता।।


गरिमा  सीमा  नेक,  गरिमा का ही मान   है।

रखना पूर्ण विवेक,गरिमा को मत त्यागिए।।

कर्मों  से  ही  साध, कर्मों   से गरिमा  गिरे।

करना  कर्म  अबाध, कर्म   श्रेष्ठ  है विश्व में।।


गरिमा   का सब खेल,सोनम या मुस्कान  हो।

उन्हें  पतित  कर जेल,कर्मों ने पहुँचा  दिया।।

रखना है नित ध्यान, मात-पिता की नाक का।

तानें  विशद  वितान,गरिमा  घटे  न लेश  भी।।


चमके  जग  में नाम,श्रेष्ठ  कर्म गरिमा   बनें।

करें  न  खोटे   काम, सदा  बनाए ही   रखें।।

गरिमा  का रख ध्यान,सैनिक सीमा पर  डटे।

छोड़ें   तीर-कमान,  अरि  आए जो पास में।।


गरिमा    की  मर्याद, धर्म  सनातन ने   रखी।

यद्यपि   हैं फौलाद,  हिंसक पर हिंसा   नहीं।।

रखी न  गरिमा लेश,नाक नहीं अपनी  बची।

बदल -बदल कर वेश,मिले न मानव रूप में।।


सर्वोपरि  शुभ  काम,गरिमा  सदा स्वदेश की।

करके  नमन   प्रणाम,  सदा बनाए ही   रखें।।



शुभमस्तु !


26.06.2025●7.30 आ०मा०

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शनिवार, 19 अप्रैल 2025

समता [सोरठा]

 209/2025

                    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


समता का क्या अर्थ,धरणी अंबर की कभी।

तर्क करें जन व्यर्थ,अलग-अलग आकार हैं।।

किंतु विषम है धर्म,समता की चाहत बड़ी।

करें   बराबर  कर्म, अपनाएँ  सब धर्म  भी।।


सब  समता  से दूर,पंचांगुलियाँ हाथ  की।

लगी  हुईं  भरपूर,  अपने-अपने कर्म  में।।

सबकी एक समान,संभव है समता नहीं।

सब ही श्रेष्ठ महान,काम अँगूठा जो करे।।


समता का कुछ मान,नहीं धनिक से भिक्षु की।

धनिक   दे   रहा  दान, भीख  एक है   माँगता।।

उचित नहीं है मित्र,समता -समता की   रटन।

अलग - अलग  हों इत्र,पाटल और धतूर  के।।


उचित न एक समान,समता बालक वृद्ध की।

पुरुष   धनुष  तिय  बान,नर से नारी भिन्न   है।।

अलग -अलग है मोल,राजा हो या रंक  हो।

ढपली   के  सँग ढोल,समता में मत तोलिए।।


समता   वाली  बात, बहुत  सुहानी ही  लगे।

अँधियारी   हो  रात, दिन  में  तेज प्रकाश  है।।

कहता भले विधान,समता के अधिकार को।

सबका है सम मान?क्या यथार्थ व्यवहार में।।


समता  का  अधिकार,करने को मतदान   ही।

विषम  रूप  उपहार,वरना देश समाज  में।।


शुभमस्तु!


17.04.2025●3.45प०मा०

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गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

क्षमता [ सोरठा ]

 189/2025

                 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


करता  है  जो   काम,अपनी क्षमता जानकर।

मिलता शुभ  परिणाम,  विजयश्री उसको वरे।।

करें  असंभव  काज, जो  नर क्षमतावान हैं।

सफल नहीं कल आज,क्षमता जो भूले सभी।।


भूल गए  हनुमंत, अति क्षमता की बात को।

ऋक्षराज - से   संत ,याद  दिलाई शक्ति की।।

तन-मन  से  बलवान,क्षमता नित्य बढ़ाइए।

बनें न  मूस  समान,अरि आए जो सामने।।


करना  तभी प्रहार,अरि की क्षमता जान  लें।

तब ही हो उपचार,शक्ति प्रथम अर्जित करें।।

लड़ें  न   उससे  मित्र,क्षमता में जो शेर  हो।

दुर्बल देह  चरित्र, वह क्षमता  में  क्षीण  है।।


सक्रिय  हो  हनुमंत, क्षमता अपनी जानकर।

किया   दशानन  अंत, गए  सिंधु के पार   वे।।

फिर भी  लड़ता  पाक,  जान रहा क्षमता नहीं।

नित्य    कटाए  नाक,  भारत   से संघर्ष   में।।


गुप्त रखें पहचान,मन  की  क्षमता की  सदा।

बड़ा रखें निज मान,अवसर को मत चूकिए।।

रहें    सदा   ही दूर, बालि सदृश बलवान  हो।

बनें    वहाँ   मत शूर, क्षमता  है  दूनी   जहाँ।।


मित्र   उठाएँ   भार,  क्षमता  जितनी  देह  में।

निश्चित हो तव हार,वरना विजय न मिल सके।।


शुभमस्तु !


02.04.2025●9.30प०मा०

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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

बजी श्याम की बाँसुरी [सोरठा]

 122/2025

      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आए  गोपी-ग्वाल, बजी  श्याम  की बाँसुरी।

करती  हुई  धमाल,  गाय रँभाने लग   गईं।।

नाचें  गोपी  ग्वाल, जीव-जंतु  सब मुग्ध हैं।

देते   तरुवर    ताल, हरे  बाँस  की बाँसुरी।।


हरी बाँसुरी नित्य,बजती जब घनश्याम की।

रुक   जाते   आदित्य,  गौ  माताएँ नाचतीं।।

जग  जाते  मम  भाग,  जो  होती मैं बाँसुरी।

सोया   सुघर    सुहाग , सौतन  मेरी बन गई।।


हे  कान्हा  बरजोर,  पहले  मेरी  बात  सुन।

करे   कान  में  शोर,  दूँगी  तुझको बाँसुरी।।

चले  आ रहे  श्याम, कटि में खोंसी बाँसुरी।

जपते  राधा  नाम, आज  अनमने-से  लगे।।


राधा  ने जब आज,छिपा  चुनरिया में    रखी।

बिगड़ा  है  सुर-साज, हरी  बाँसुरी श्याम की।।

सुनी  बाँसुरी  टेर,छोड़ दिए गृह-काज    सब।

करें न  किंचित  देर,विह्वल हैं अति गोपियाँ।।


मधुर    बाँसुरी   टेर,   मंत्रमुग्ध  हो  सुन   रहे।

तनिक न करें अबेर,जीव जंतु मृग तरु सभी।।

सुनें     बाँसुरी  नाद,  नारद  वीणा रोक  कर।

दूर   करे   अवसाद,  तन्मय   हो तल्लीन   हैं।।


जहाँ   बाँसुरी  नाद, धन्य -धन्य ब्रजधाम है।

शेष  न  रहे   प्रमाद,   बाँधे  अपने मंत्र    में।।


शुभमस्तु!


27.02.2025●5.30आ०मा०

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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

सत्ता [सोरठा]

 084/2025

               


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


गया देश को भूल, सत्ता - मद में आदमी।

नाशी बुद्धि  समूल,कर्म-धर्म  करता नहीं।।

जन-सेवा  से  दूर, सत्ता के  भूखे सभी।

भावहीन  भरपूर,  चाहें  कंचन -कामिनी।।


गिरने   को   तैयार, सत्ता  पाने के    लिए।

करते       मरामार,   रेवड़ियाँ   भी बाँटते।।

किसे  न  मोहे  आज,सत्ता जैसी मोहनी।

छल-छद्मों के साज,करता पतन चरित्र का।।


कभी  न  चाहें त्याग,सत्ता को जो पा   गए।

खुले  हमारे  भाग, पत्थर लिखी लकीर है।।

कर्महीन  भी मूढ़,सत्ता  का  सुख    चाहते।

हो उलूक  आरूढ़, घर  अपने  भरते  सदा।।


रहे रात -दिन  चूस, सत्ता  -सुख के आम को।

काट रहे जन  मूस,जनता में बिल खोदकर।।

खट्टे   हैं   अंगूर,   मिली  नहीं सत्ता   जिसे।

करता क्या   मजबूर, गरियाता दिन-रात  है।।


सत्ता -सुख    इस  देश,वोटों का आधार   है।

बदल-बदल  रँग - वेश, घूम रहे जन देश में।।

जनता दुखी अपार,सता  रहे  सत्ता   मिली।

करते    मरामार,    नेता -   मंत्री   देश   के।।


खिलें सदा  ही  फूल, सत्ता  के  उद्यान   में।

जनता  सारी  भूल,भरते  आप तिजोरियाँ।।


शुभमस्तु!


13.02.2025●8.45आ०मा०

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गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

तीरथराज प्रयाग [सोरठा]

 064/2025

            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


तीरथराज  प्रयाग, गंगा यमुना सरस्वती।

जाग सके तो जाग,मात-पिता के चरण में।।

यमुना जी ही  भक्ति, गंगा जी ही ज्ञान हैं।

यह प्रयाग की शक्ति,सरस्वती ही कर्म हैं।।


संगम में  अवगाह,सबकी  एकल चाह  है।

सुरसरि भरे प्रवाह,फल है कुंभ प्रयाग का।।

नेह भक्ति का मेल,मानव की समता जहाँ।

रही एकता  खेल, है  प्रयाग  के कुंभ  में।।


अनुपम मानव भक्ति,प्रेम दया ममता यहाँ।

जीवन से  अनुरक्ति,पावन कुंभ प्रयाग  में।।

सकल विविधता रंग,सहिष्णुता का संग है।

देख जगत  है दंग, पावन भूमि प्रयाग  की।।


ज्ञान   भक्ति  सह  कर्म, मानवीय सद्धर्म हैं।

संस्कृतिकता  मर्म, उमड़े  कुंभ प्रयाग   में।।

मजहब यहाँ अनेक, भारत अपना एक  है।

सदा  एकता  टेक,  है  प्रयाग  ज्यों संतरा।।


आराधन     समवेत,  सेवा   संगति साधना।

ज्ञान भक्ति  का  हेत, अपने   कुंभ प्रयाग में।।

जीवन है  अनमोल,हृदय  द्वार को खोलिए।

तन   प्रयाग  में तोल,  हर-हर  गंगे बोलिए।।


भाषा विविध प्रकार,भिन्न भले सब जातियाँ।

समता   का   संचार, पावन  कुंभ प्रयाग  में।।

शुभमस्तु !


05.02.2025●11.15प०मा०

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गुरुवार, 30 जनवरी 2025

हादसा [ सोरठा ]

 053/2025

                    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


टूटे तब जंजीर,कड़ियाँ जब कमजोर हों।

रखे न मानव धीर,हो सकता है हादसा।।

धारण करना धीर,पहला लक्षण धर्म का।

कहे मनुज मैं मीर,हो जाता जब हादसा।।


मनुज अन्य की ओर,दोषारोपण कर रहे।

बिल में खोजें चोर,हुआ हादसा घाट पर।।

देता जो अंजाम,क्षमा नहीं उसको कभी।

लुटे-मिटे नर धाम,अघटित है जो हादसा।।


संभव है क्या मीत,पैसे से प्रतिकार क्या?

समय हुआ विपरीत,रोक न पाए हादसा।।

कारण होते लोग, होता  है  जब हादसा।

बन जाते  हैं रोग,त्वरा दिखाते स्वार्थ  की।।


रक्षक   हैं   श्रीमान, सावधानियाँ ही सदा।

चाहे  कुंभ-नहान,  हो न  हादसा देश में।।

हुआ हादसा  एक,  महाकुंभ   के   पर्व में।

पकड़ रहे जन टेक,रूढ़िवादिता की सदा।।


भरा हुआ अविवेक,जन का एक कुकृत्य ही।

नहीं  भाव  उर नेक,बने हादसा भी   वही।।

बुरा हादसा एक , मौनी  मावस को   हुआ।

घायल मनुज अनेक,हुए हताहत लोग भी।।


भरे हृदय कुविचार,मानव सभी न नेक हैं।

ढूँढ़ें कहाँ विकार, होता   है  जब हादसा।।


शुभमस्तु !

30.01.2025●2.15प०मा०

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गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

ज्ञान ● [ सोरठा ]

 62/2024

                    

© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बंदर   जैसे   स्वाद, अदरक  का  जाने  नहीं।

ज्ञान न   उसको  नाद , जो  बहरा है कान से।।

रखे   घूमता  नित्य, ज्ञान - पोटली शीश  पर ।

क्या  किंचित  औचित्य, सदुपयोग जाने  नहीं।।


रखें   हृदय  में   धीर,  ज्ञान-पंथ  दुर्लभ   बड़ा।

चल  पाते    बस  वीर, दोधारी  तलवार     ये।।

धारण     करें   सुपात्र,  ज्ञान सिंहनी-दुग्ध    है।

ग्रहण    करेगा    मात्र, सोने  से निर्मित   वही।।


नारिकेल  फल   एक,बंदर  लुढ़काता    फिरे।

मानस  शेष  विवेक, ज्ञान नहीं उसको 'शुभम्'।।

नहीं  ज्ञान - आधार,  तन  पर धारित  वस्त्र का।

करके  देख   विचार,ज्ञान जीव का तत्त्व  है।।


करते   नहीं   बखान,  ज्ञानी अंतर-ज्ञान   का ।

ज्ञानी  की  पहचान,  समय पड़े तो काम   ले।।

नहीं   ज्ञान - पहचान, गाल बजाने से   कभी।

कभी न बढ़ता मान,ध्वनि -विस्तारक  यंत्र का।।


लेशमात्र  भी  ज्ञान,  भोंपू   में  अपना   नहीं।

उसका  करता   दान, वक्ता  जो  भी बोलता।।

दें उसको गुरु ज्ञान, प्रथम शिष्य पहचान  कर।

मिटता ज्ञान -निधान, मिलता अगर कुपात्र को।।


दें   विद्या का दान, संतति  की रुचि जानकर।

अनचाहा  नव  ज्ञान, बल से कभी न दीजिए।।


●शुभमस्तु !


15.02.024●9.00आ०मा०

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2024

पथिक ● [ सोरठा ]

 045/2024

                

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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चलता  रह अविराम,पथिक पंथ में पग   बढ़ा।

जग   में   चमके   नाम,शीघ्र  मिले गंतव्य  भी।।


मंजिल   सबकी   एक, सबकी राहें   भिन्न  हैं।

मत खो बुद्धि विवेक,पथिक चला चल धैर्य से।।


पथिक   चले  जो राह,पथ में आते मोड़   भी।

क्या  मन  की  सत चाह,चौराहे पर   सोच  ले।।


चलता रहता नित्य,जीव-पथिक बहु यौनि में।

यात्रा  का   औचित्य,  चालक  तेरे कर्म   हैं।।


समझ न मंजिल मीत,पथ में बहुत पड़ाव  हैं।

मिले न जब तक जीत,पथिक बने चलते रहो।।


यात्रारत    है   जीव,मानव की इस देह    से।

भक्ति मिलाए पीव,पथिक श्रेष्ठ इस  यौनि  में।।


पावनतम   गंतव्य,  मानुस  की शुचि   देह  का।

शुभतम हो मंतव्य,पथिक चले यदि ज्ञान से।।


मिले  न  मंजिल  नेक,पथिक भटकते राह में।

त्याग  पूर्ण  अविवेक,इन्द्रिय दस से   जान  ले।।


सदृश  किंतु  है जीव,नर - नारी तो नाम  हैं।

एक सभी का पीव,पथिक-पंथ बदला रहे।।


अलग गाड़ियाँ रेल,पथिक पंथ में चल रहे।

कोई  चले  धकेल, कोई   उतरा बीच  में।।


हुआ किसी से मेल,मिले पथिक बहु राह में।

मैला  मैल-कुचेल, फूटी  आँख न सोहता।।


●शुभमस्तु !

01.02.2024●1.00प०मा०

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शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

योजना● [ सोरठा ]

 548/2023

          

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●© शब्दकार

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बनी योजना  एक, सफल कसौटी आपकी।

कर्म  करे  सविवेक, लहराती ऊपर  ध्वजा।।

चले नहीं   संसार, बिना   योजना बद्ध  हो।

प्रसरित  जगदाकार, प्रकृति योजनाकार है।।


बना   योजना  नेक,कर्ता सबका एक    है।

करे कर्म सविवेक, ध्वंश  और निर्माण  के।।

जब चाहें  प्रभु राम, पत्र  एक हिलता  तभी।

क्या उत्तर क्या वाम,क्या है उनकी योजना।।


एक   योजना   नेक, मातु  शारदा की  बनी।

भगवत का सविवेक,'शुभम्' नाम प्रख्यात हो।।

करते  जो   सम्पन्न, बना  योजना काम  को।

मन भी रहे न खिन्न,मिले सफलता  शीघ्र  ही।।


करते हैं जो  काम, पहले   सोच - विचार   कर।

मिलता  अति आराम, सफल योजना हो तभी।।

बना   योजना   आप, दिवस ,मास या वर्ष  की।

नहीं  मिले  संताप, तदनुकूल  उस पर  चलें।।


बिगड़ें  उनके  काम, बिना  योजना  के   चलें।

नष्ट समय  सह  दाम,मनमानी अनुचित  सदा।।

चलती   है  सरकार,  बना  योजना देश    की।

बढ़ता    करोबार,   बजट  बनाते  वर्ष   का।।


करें    बुद्धि -उपयोग, बुद्धिमान मानव   सभी।

तन- मन  रहे निरोग, चलें योजना को  बना।।


●शुभमस्तु !

21.12.2023●12.30प०मा०

शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023

विश्वास ● [ सोरठा ]

 523/2023

         

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● © शब्दकार 

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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टिका  हुआ  संसार, एकमात्र विश्वास   पर ।

होता  बंटाधार,  मर   जाए  विश्वास  यदि।।

मत सबका विश्वास,दुनिया में करना  कभी।

कर मत सबसे  आस,ठगी दगाबाजी  भरी।।


फिरते हैं  ठग  चोर, घोंट गला विश्वास  का।

चोर  मचाए  शोर,नीयत  में अति खोट   है।।

उचित नहीं वह मित्र,विष भरता विश्वास में।

देखें  मात्र  चरित्र,चित्र नहीं मुख भी   नहीं।।


मात्र एक विश्वास, पति-पत्नी के बीच में।

वरना  जग - उपहास,सुदृढ़ नींव बनता सदा।।

सुदृढ़  होती   डोर,  माला   में विश्वास  की।

माला  नित   कमजोर, निर्बल डोरी से रहे।।


यदि  हो  दृढ़ विश्वास, मित्र-मित्र  संबंध में।

जले  सूखती घास,पल भर को यदि भंग हो।।

दृढ़ विश्वास अपार, शिक्षक-सिख में चाहिए।

करता सिख - उद्धार, पाते हैं सम्मान   गुरु।।


आपस का विश्वास, एक बार यदि भंग हो।

करती  विपदा  ग्रास, जोड़े  से जुड़ती  नहीं।।

सहता   पंकज  भार, भौंरे का विश्वास  कर।

नहीं  मानता  हार, मधुरस  उसको सौंपता।।


जहाँ  न हो विश्वास, 'शुभम्'न रिश्ता जोड़िए।

दुख में अशुभ हुलास,फाँस न मिश्री में भली।।


●शुभमस्तु !


07.12.2023●12.45प०मा०

शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

धैर्य ● [ सोरठा ]

 501/2023

                     

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जब हो विपदा  काल, धैर्य नहीं निज खोइए।

फैलाती  निज जाल,अनुचित सदा अधीरता।।

संतति   पाले   कोख, धैर्य धरे जननी   सदा।

तब मिलता शुभ मोख,झेले नौ-नौ मास वह।।


वही   परीक्षा - काल, आती  है जब  आपदा।

संतति हो तब   ढाल, धैर्य, धर्म, नारी,  सखा।।

छोटे -  बड़े    पड़ाव,   जीवन  में  आते   सदा।

डूब   न   पाती  नाव,  धैर्य  बँधाते मित्रगण।।


होता  लाल  निराश, माँ के आँचल में   छिपा।

छोड़  न   बेटे  आश,धैर्य   बँधाती अंक  ले।।

उचित न बहुत अधीर,उचित न अति का धैर्य भी।

अति का भला न नीर,अति की भली न  धूप है।।


प्रथम  धैर्य  को  जान,दस लक्षण हैं   धर्म  के।

अन्य पाँच भी मान, क्षमा,शौच, धी, सत्य  सह।।

जब  असार    संसार ,   जाता कोई   छोड़कर।

करके  बुद्धि - विचार,विवश सभी  हैं  धैर्य  को।।


प्रथम  सबल   पहचान, धर्मीजन का  धैर्य   ही।

करते जन गुणगान,निज  पथ से विचलित नहीं।।

मानव   की  सत  राह, असफलताएँ   रोकतीं।

मिटा   पंथ    की  दाह,  वहाँ धैर्य बल   सौंपता।।


रुकें   न   पल को   एक,  देता धैर्य जबाव  जो।

त्याग न 'शुभम्'विवेक,सत पथ पर चलते  रहें।।


●शुभमस्तु !


23.11.2023● 9.00आरोहणम्

मार्तण्डस्य।

शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

कवि बनाता उत्साह से● [ सोरठा ]

 490/2023


 

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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गिर - गिर बार अनेक,चींटी चढ़े पहाड़  पर।

खोती  नहीं  विवेक, जिंदादिल उत्साह  से।।


हार - जीत है नित्य,मानव -जीवन खेल  है।

जीवन का औचित्य,बढ़ता चल उत्साह से।।


बनता वृद्ध सु-गात,यद्यपि बढ़ती आयु   से।

देता  वय   को  मात, बना  रहे उत्साह   तो।।


होता   क्या   उत्साह, नेताजी  से सीखिए।

मिटे न   कुरसी - चाह,बार - बार वे   हारते।।


मरे   नहीं   उत्साह,  चोरों  से भी सीख   लें।

बढ़ती  जाती   चाह,बार -बार जा जेल  में।।


पुनः- पुनः  कर  भूल, कवि  बनता उत्साह  से।

लिखता आम  बबूल, पाटल  सह कचनार भी।।


कहलाता   उत्साह, यौवन  उसका नाम   है।

नित  बढ़ने  की  चाह, मरे  नहीं जिंदादिली।।


भर  के  जोश  अपार, सीमा  पर सैनिक  खड़े।

खुलते    बंद    द्वार,  रग - रग   में उत्साह   है।।


देती  है  नित  ज्ञान, असफलता से सीख  लें।

घटे  न   तेरा   मान,  बढ़ता  चल उत्साह    से।।


बढ़े   न   आगे   पैर,  मरते  ही  उत्साह   के।

तभी   तुम्हारी   ख़ैर, जिंदादिल रहना   सदा।।


जिसमें    हो    उत्साह,  पाता है मंजिल  वही।

मरी न  मन की चाह, कच्छप जीता  दौड़   में।।


●शुभमस्तु !


16.11.2023●12.30पतनम मार्तण्डस्य।

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गुरुवार, 2 नवंबर 2023

भूल ● [ सोरठा ]

 476/2023

             

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◆© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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और न गुरु की भूल,सेवा जननी तात की।

सर्व सफलता मूल,इनकी सेवा  में  छिपा।।


क्षमा माँग लें आप,हो जाए यदि  भूल  तो।

कर लें पश्चाताप,मानव का यह  धर्म   है।।


बैठे हैं यदि आप,रखे हाथ पर हाथ   जो।

रहें  बैठकर ताप,  होगी  एक न भूल जी।।


होती   भी हैं  भूल,कर्म करे तो   व्यक्ति  से।

रहता  मत्त  समूल,बिल में जो अजगर पड़ा।।


यदि मानें ये बात ,  शिक्षक होती भूल भी।

नहीं ,  करें  फिर घात,अज्ञानी नर   मानते।।


चलना   कैसे मीत,भूल सिखाती   राह  पर।

वहीं विजय  का गीत,भूलों से जो  सीख ले।।


पुनः न होती भूल,भूल -भूल कर  राह में।

कहते जिसे  उसूल,भूल नहीं जाना  उसे।।


उसे न कहते भूल,जान-बूझ कर  जो  करे।

होता  सदा अमूल,यह अक्षम्य अपराध  है।।


की भारत की खोज,कोलंबस ने   भूल   से।

फलित न होता रोज,नियम न ऐसा मीत ये।।


हो जाती  है भूल ,कभी - कभी विद्वान  से।

मिलें  निदर्शक मूल, क्षेत्र बड़ा विज्ञान  का।।


संतति  बढ़ती  नित्य,भूल भरा  संसार  ये।

सिद्ध करें औचित्य,चाह नहीं मन में बसी।।


●शुभमस्तु !


02.11.2023◆11.00आ०मा०

शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

माटी मेरे देश की ● [ सोरठा ]

 360/2023

   

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● ©शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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चंदन   और  अबीर,  माटी मेरे    देश    की।

जन्मे  सूर ,कबीर, कालिदास, तुलसी   यहाँ।।

करता  गौरव - गान,लगा भाल  अपने 'शुभम्'।

मेरी     है    पहचान ,  माटी मेरे   देश    की।।


देती    गेहूँ,    धान,   माटी  मेरे    देश    की।

कनक रजत की खान,पोषण देती रात -दिन।।

हुआ   देश   आजाद,  वीरों के  बलिदान   से।

आती   पल-पल  याद, माटी मेरे   देश    की।।


अविरल   भरे   सुगंध, माटी मेरे  देश की।

पास  न आती  धुंध,  शुद्ध करे पर्यावरण।।

गेंदा,  चंपा  , फूल,  जूही, पाटल,   मोगरा।

वायु  करे  अनुकूल,  माटी मेरे देश    की।।


जिसमें   लेकर  जन्म,माटी मेरे   देश  की।

मिला  कर्म  से मन्म,धन्य भाग  मेरा   हुआ।।

मिटा पाप  का भार,राम-कृष्ण अवतार  से।

करती  जन - उद्धार, माटी मेरे देश  की।।


लिए   तिरंगा   हाथ,  माटी  मेरे  देश   की।

रक्षा  हित निज  पाथ, बलिदानी  बढ़ते  गए।।

बहुविध  नव  विज्ञान,जन्माती सहित्य   को।

अभिकल्पना  महान, माटी मेरे    देश   की।।


भरती   रंग   विचित्र, माटी  मेरे   देश  की।

बन जाता है मित्र,  आता परदेशी   यहाँ।।


*मन्म = मान।


●शुभमस्तु !


17.08.2023◆12.45प०मा०

गुरुवार, 8 जून 2023

ग्रीष्म - भोर के मंत्र● [ सोरठा ]

 247/2023


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● शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्

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ग्रीष्म   जेठ आषाढ़, हरियाली  अच्छी लगे।

टप -टप बूँद प्रगाढ़, स्वेद बरसता  देह   से।।

रवि  बरसाए  तेज, मौन धरा प्यासी   पड़ी।

तप को रखो सहेज,ग्रीष्म कहे दो माह को।।


बैठे जन,खग,ढोर, वट की शीतल छाँव में।

अकुलाए  हैं मोर,ग्रीष्म ताप यौवन   चढ़ा।।

मेघ  नहीं आकाश, रातें लंबी दिवस   लघु।

मिले सलिल की आश,कैसे तपती ग्रीष्म में।।


जेठ ग्रीष्म की धूप,छन-छन छानी से  छने।

सूखे हैं जल  कूप, पानी भी मिलता  नहीं।।

ग्रीष्म-भोर में  मंत्र, पीपल-पल्लव  बाँचते।

कोई  नहीं स्वतंत्र, उछल गिलहरी  बोलती।।


करता  ग्रीष्म प्रपंच,आतप जेठ अषाढ़ का।

सजा हुआ  नभ-मंच,आँधी पानी  धुंध से।।

जाती थी  तिय राह,अवगुंठन को  छोड़कर।

ग्रीष्म बदलता चाह, लाज लगी है जेठ की।।


खूब  लगाती  लोट, तप्त रेत में  जा  नहा।

ग्रीष्म शिंशुपा ओट,गौरैया चिचिया  रही।।

मिले नहीं सत ज्ञान,बिना साधना  में  तपे।

जल -घन का संधान,ग्रीष्म तपे ये साधना।।


निर्भर हैं हे  मीत, ऋतुएँ पाँचों ग्रीष्म  पर।

मधु ,पावस संगीत,शरद,शिशिर,हेमंत सब।।


●शुभमस्तु !


08.06.2023◆10.00आ०मा०

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...