दोहा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
दोहा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 20 जनवरी 2025

गंगा कुंभ प्रयाग [ दोहा ]

 013/2025

              

[कुंभ,प्रयाग,त्रिवेणी,संक्रांति,गंगा]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                  सब में एक

मन  पापी   तन  दानवी, कैसा कुंभ - नहान।

मानवता  जिनकी  मरी, रहे  ध्वजा वे   तान।।

कुंभ   नहाए   स्वर्ग   में,  बना रहे   वे   ठौर।

अश्व-लीद जिनके  यहाँ,बिके बनी  सिरमौर।।


जिनके  मन  में  मानवी,भावों का शुभ  गेह।

पग-पग  वहीं  प्रयाग  है, है निस्सार   सुदेह।।

ब्रज हो या कि प्रयाग हो,हो काशी शुभ धाम।

धन्य  वही  उर  मानवी,जिसमें बसते   राम।।


सरस्वती    गंगा  त्रयी, यमुना  तन के   बीच।

इड़ा    सुषुम्ना  पिंगला, सदा त्रिवेणी  सींच।।

देह  त्रिवेणी नित्य  ही, मानव की यह जान।

श्वास- श्वास  में जो बसी,मूढ़ मनुज पहचान।।


मन का सूरज नित्य ही,दिखलाए सुख शांति।

जान  न  पाए  आदमी, यही पुण्य संक्रांति।।

क्षण आए संक्रांति का, बदले काल  दुकाल।

चमके सूर्य प्रकाश ले,झुके तिमिर का  भाल।।


इड़ा   पिंगला   देह में ,  गंगा -यमुना     धार।

मध्य   सुषुम्ना की बहे,अविरत नित्य  प्रसार।।

गंगा सुरसरि   पावनी, पावन तीर्थ    प्रयाग।

करता वही नहान शुभ, जिसके खुलते भाग।।


                    एक में सब

गंगा   कुंभ   प्रयाग  के,  पावन तीनों   नाम।

नर  तन  में  संक्रांति  का, यही त्रिवेणी धाम।।


शुभमस्तु !


15.01.2025●1.15 आ०मा०(रात्रि)


                      ●●●

सोमवार, 30 दिसंबर 2024

मानव-जीवन ओस-सा [ दोहा ]

 578/2024

   

[धुंध,धुआँ, कुहासा,ओस,उजास]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्

                  सब में एक

जिनके मन मष्तिष्क में,सघन धुंध - संभार।

वे मानें  कब  देश  को, मिला  शुभद उपहार।।

धुंध हटे  तब  ज्ञान का,फैले जगत   प्रकाश।

दृष्टि  स्वच्छ  हो  दिव्यता,करे तमस का नाश।।


धुआँ-धुआँ  हर  ओर  है, भटक रहे जन  राह।

फिर भी इच्छित लक्ष्य की,मन में अटकी  चाह।।

जहाँ  धुआँ उठता  मिले, वहीं मिलेगी   आग।

नहीं  समझना  धूम  को, श्वेत उमड़ता   झाग।।


पौष-माघ  के   शीत में, सजल कुहासा आम।

राही  भटकें  राह  में, अटक  रहे सब   काम।।

उदित   किरण मार्तण्ड की,गया कुहासा  दूर।

अग-जग में प्रसरित हुआ,दिव्य भानु  का नूर।।


पल्लव  दल  गोधूम  के,चमक रहे कण ओस।

लगता  मुक्ता  सोहते, दस-दस बीसों   कोस।।

मानव-जीवन  ओस-सा,कब ढुलके अनजान।

हवा चले किस ओर की,तनिक नहीं पहचान।।


जब तक हृदय उजास में,तब तक बसता ज्ञान।

मानवता  मरती  नहीं,  सद्य शुभगतर   ध्यान।।

उषा -रश्मि समुदित हुई,विकसित दिव्य उजास।

कलरव  में द्विज  लीन हैं, करते सुमन  सुहास।।


                 एक में सब

धुंध   धुआँ कण  ओस से,बढ़े कुहासा खूब।

ज्यों-ज्यों दिव्य उजास हो,मखमल लगती दूब।।


शुभमस्तु!


24.12.2024●10.45 प०मा०

                     ●●●

सोमवार, 23 दिसंबर 2024

नेकी जाती साथ में [ दोहा ]

 570/2024

         

[अविश्वास,रामायण,विद्या,नेकी,कालचक्र]

©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

                 सब में एक

अविश्वास से भक्ति का,नहीं निकट  सम्बंध।

द्रवित  न  होते   देवता, देता मलय न   गंध।।

अविश्वास  उर  में बसे, विच्छेदित   हो  नेह।

कलहपूर्ण   गार्हस्थ्य   हो, खंडित होते   गेह।।


रामायण में  भक्ति  का, उमड़े सिंधु  समीर।

हनुमत  जैसे  भक्त  हैं,  लक्ष्मण-से रणधीर।।

रामायण का   देश  ये, राम पुरुष     आदर्श।

सीता  जैसी  संगिनी, सुथरा   विमल  विमर्श।।


विद्या की  शुभ   दायिनी,  मातु शारदा  नेक।

सदा  कृपा  उनकी  रहे,  जाग्रत  रहे विवेक।

विद्या जिनके  पास है, कला श्रेष्ठ   साहित्य।

सद्गुण   का  भंडार  हैं,प्रेम  सुधा आधिक्य।।


नेकी जाती    साथ   में, शेष  न जाए  साथ।

करते  जो   नेकी  नहीं,पीट  रहे निज   माथ।।

नेकी   में    ही   नाम है,    नेकी यश-भंडार।

करते  जो  नेकी  नहीं,  बहें   समय की   धार।।


कालचक्र  रुकता नहीं,गति उसकी अविराम।

हुआ न मानव एक भी, लिया समय  को थाम।।

कालचक्र    के   पाँव  से, पिसे  क्रूर      तैमूर।

शेष  न   भू  पर  अप्सरा, नहीं  एक भी    हूर।।


                   एक में सब

कालचक्र  नित  रौंदता, नेकी विद्या सर्व।

अविश्वास का अर्थ क्या,रामायण संदर्भ।।


शुभमस्तु!

18.12.2024●3.45आ०मा०

                   ●●●

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

चिंतन करना देश हित [ दोहा ]

 558/2024

          

         [चिंतन,देर,रेत,राह,चरण]

                  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                   सब में एक

चिंतन कर   ले  ईश का,हे नर मूढ़   अजान।

प्राण   पखेरू  जाएँगे,  उड़  ऊपर ले   मान।।

चिंतन करना  देश हित,जन -जन का कर्तव्य।

नहीं जानता एक भी,शुभद अशुभ भवितव्य।।


करना  हो  शुभ काज जो,करे न पल की देर।

पल-पल से जीवन बना,कब हो क्या  अंधेर।।

जीवन  में  पछता  रहे,  करते  समय  विनष्ट।

सोते  जगते  देर  से,  प्राप्त   करें वे    कष्ट।।


समय  मुष्टिका   में  भरी ,सुरसरिता की  रेत।

कण- कण  जाए  रीत सब,भरे भले बहु  खेत।।

उल्लंघन   मत रेत   का,   करना मानव   मूढ़।

सोच पड़े  यदि  आँख में, अनल यान  आरूढ़।।


राह  वही    उत्तम   सदा, प्राप्त  करे     गंतव्य।

चलना  नहीं  कुराह  में,लक्ष्य न मिलता भव्य।।

पता   न  हो यदि राह का, ज्ञात करें  सद  राह।

वृथा    सदा   भटकाव  है, पथ होता  अवगाह।।


युगल चरण पितु  मात के,संतति को वरदान।

जो   जितनी  सेवा  करे,  उतना  बने   महान।।

मित्र सुदामा- कृष्ण का,  कितना प्रेम   पुनीत।

चरण युगल  धो  मित्र के, करते याद   अतीत।।


                एक में सब 

चरण पड़े जो रेत में,  शुभद  न   लगती  राह।

चिंतन करके  देर तक,  शीतल करते    दाह।।


शुभमस्तु !


10.12.2024●10.45प०मा०

                    ●●●

मोबाइल से प्रेम [ दोहा ]

 556/2024 

            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चन्द्र रुके सूरज झुके,रुकें जगत के नेम।

रुके न कौशल दास  का, मोबाइल से  प्रेम।।

सब सोएँ वे जागते , मोबाइल के साथ।

ब्लू टूथ  ग्रीवा  में पड़ा,नहीं मुबाइल हाथ।।


खाते पीते राह में, चलने पर अविराम।

मोबाइल चलता रहे,रुकें जगत के काम।।

बात जरूरी जब करें, मोबाइल है व्यस्त।

क्या झख मारें बात की,मन हो जाता त्रस्त।।


सबको   ही   घंटे  मिले,गिने हुए चौबीस।

मोबाइल  को   चाहिए , घंटे  कुल इक्कीस।।

दुर्लभ  प्राणी देश में,   मोबाइल के भक्त।

एक ओर  मोबाल है,उधर जगत अनुरक्त।।


बातें हैं बस  काम  की,एक एक बस एक।

बाकी  लफ़्फ़ाजी  सभी,बकते फिरें अनेक।।

दो  पल भर की बात को,तान रबर- सा तान।

कौशल  दास महंत की,  एक  यही  पहचान।।


सार -  सार  आता  नहीं, मात्र बतंगड़ खेल।

कौशलजी से सीख लो,बिन बोगी की रेल।।

कौशल  कम्बल  एक है,लिपटा ग्रीवा   बीच।

मोबाइल   हैरान   है, लगता  काल नगीच।।


'शुभम्'  धन्य  वे लोग हैं, मोबाइल के  दास।

कौशल   से  दीक्षा   ग्रहण,करें बारहों मास।।


शुभमस्तु !


10.12.2024 ●3.30 प०मा०

                    ●●●

रविवार, 2 जून 2024

मेरा मौनव्रत [ दोहा ]

 252/2024

              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मौनव्रती  विख्यात मैं,  करता  व्रत प्रति  मास।

तीन शतक  बनते  सदा, मत समझें उपहास।।

नहीं   कैमरों   को सजा,  करता   मैं व्रत    मौन।

टीबी   या  अखबार  में,  जान सका है   कौन??


बारह   मासी   मौन  व्रत, का  है पावन   भाव।

घर   वाले  भी  जानते,  मुझे  मौन का    चाव।।

नहीं    हिमालय    चाहिए, या    कोई  एकांत।

दिनचर्या   मम   मौनव्रत,   मानें  मत अरिहंत ।।


नौ  से  प्रातः  पांच  तक, रहता  मैं नित  मौन।

दिन  में  घण्टे  चार  - छः, मौन रहूँ निज भौन।।

दिनचर्या    का  अंग  है,  मेरा  यह व्रत   मौन।। 

अब  ज्ञापित  करना  वृथा,मधुर या कि हो लौन।।


मुझे    न   कोई   होड़  है,करता  नहीं  प्रचार।

मौन   वाक   का  मौन  व्रत, कहने से  बेकार।।

वीणावादिनि   का   हुआ, मुझे  सूक्ष्म  आदेश।

पुत्र   मौनव्रत  व्यक्त   कर, धरे  बिना  नव वेश।।


तथाकथित की  बात  क्या,छींकें खाँसें  नित्य।

अखबारों   में   जा    छपे, बतलायें औचित्य।।

जैसे  लेते    साँस    नित, वैसे   ही व्रत   मौन।

शक्ति  बढ़ाता भक्ति की, चले श्वास का पौन।।


'शुभम्' शयन  में  मौन  रह,करता कवि  संधान।

बात  नहीं  करता  कभी,कविता हित  अनुपान।।


शुभमस्तु !


02.06.2024●2.00आ०मा०

                     ●●●

गुरुवार, 30 मई 2024

तपे नौतपा ग्रीष्म [ दोहा ]

 248/2024

              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


लाज करें तिय जेठ की,मुख अवगुंठन ढाँप।

लगे    नौतपा  आग  के,बरस  रहे  हैं साँप।।

लगें  थपेड़े   आग    के , मुरझाए  दो गाल।

आँख  मिलाए कौन अब, सूरज से तत्काल।।


धरती  पर  पड़ते  नहीं, बिना उपानह  पाँव।

नीम  तले  की छाँव भी,  माँग रही है छाँव।।

चैन   मिले  घर   में   नहीं, ढूँढ़ें  बाहर छाँव।

ढोर  लिए  अपने सभी, वट  तरु नीचे गाँव।।


अवा  सरिस  धरती हुई,तवा  सदृश है रेत।

उठें  बगूले  वात   के,तप करते सब खेत।।

बिस्तर  चादर  सब तपें,तपें आग-सी देह।

दूर - दूर तक  है  नहीं,  बरसे  नभ से मेह।।


क्षिति नभ पावक तत्त्व त्रय,चौथा चटुल समीर।

पंचम  जल भी खौलता, तापित सभी अधीर।।

बिना  तपे   नव ताप में,  होती  धरा न   शुद्ध।

ज्ञान  तभी  मिलता  सही, कहते सत्य प्रबुद्ध।।


षड ऋतुओं में ग्रीष्म ही,शोधक हैं दो मास।

कीट आदि सब नष्ट हों, दृढ़ है यह विश्वास।।

तपसी  ज्ञानी  तप  करें, तप  से ज्ञानी  बुद्ध।

धरती  तपती  मास दो, रविकर से कर युद्ध।।


ऋतु है भीष्म निदाघ की,तप का ही आधार।

'शुभम्' मनुज जितना तपे,आता पूर्ण निखार।।


शुभमस्तु !


29.05.2024●6.30आ०मा०

                   ●●●

बुधवार, 13 दिसंबर 2023

बधाई ● [ दोहा ]

 531/2023

                      

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

● ©शब्दकार

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

कर्म    सदा  ऐसे   करें,   मिले बधाई   नित्य।

सदा शुभद परिणाम हों,चमके ज्यों  आदित्य।।

विजय केतु फहरा रहा,धवल कीर्ति  का  पुंज।

सभी  बधाई   दे रहे, ज्यों मंदिर    में     गुंज।।


सबके   मन   में    हर्ष   का, उमड़ा पारावार।

मधुर   बधाई   गूँजती, नगर - नगर  हर  द्वार।।

सफल  परीक्षा   में  हुए, हर्षित  हैं हम   मीत।

हृदय    बधाई  दे   रहा,  देख तुम्हारी   जीत।।


नव  परिणीता  को  मिलीं, सहस बधाई  खूब।

खुशियाँ  घर   में छा  गईं,  ज्यों हरियाली   दूब।।

नए   वर्ष   का   आगमन, सबको  हो   शुभकार।

हृदय बधाई - मग्न  है,ले   लो बिना    विचार।।


हम  भी  साझेदार हैं, तव खुशियों के    मीत।

हृदय  बधाई  दे   रहा,  चुनकर शब्द पुनीत।।

स्वीकारें   उद्गार   ये,   उर   की  वाणी   मौन।

 अनहद पावन नाद  से, सजल बधाई  पौन।।


आया   था  संसार  में , मिलीं बधाई    भव्य। 

मात-पिता  को  पौरजन, पुष्पगुच्छ दे  नव्य।।

हर्ष सफलता की घड़ी, जब आती शुभकार।

सुखद बधाई शब्द से,मिलता तब  उपहार।।


हृदय- मिलन होता तभी,खुले सफलता - द्वार।

शब्द  बधाई  के  सुनें,श्रुतियाँ बार    हजार।।


●शुभमस्तु !


12.12.2023●9.00प०मा०

                  ●●●●●

बुधवार, 6 दिसंबर 2023

मार्गशीर्ष हेमंत ऋतु ● [ दोहा ]

 522/2023

 

[मार्गशीर्ष,हेमंत,अदरक,चाय,रजाई]

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

● ©शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

      ●  सब में एक ●

श्रीकृष्ण-प्रिय मास है,मार्गशीर्ष शुभ मीत।

सब  पापों  से मुक्ति  को,गाएँ प्रभु के गीत।।

मार्गशीर्ष  पावन   बड़ा, गीता में   भगवान।

वास   यहीं   मेरा   रहे ,  कहते कृपानिधान।।


ऋतु आई हेमंत की,कार्तिक अगहन   मास।

पावनता इसमें भरी,स्वर्णिम सजल उजास।।

रोचक ऋतु हेमंत की,हिम का होता  अंत।

ग्रीष्म न पावस सोहती,शोभित नहीं  वसंत।।


शीतलता   बढ़ने  लगी, अदरक  लें   भरपूर।

प्रतिरोधक   क्षमता   बढ़े, सूजन मितली  दूर।।

अदरक  का  गुण है यही, रक्त - शर्करा  न्यून।

करता  पाचन ठीक ये, बढ़ती शक्ति  इम्यून।।


चीन   देश  से  विश्व में, फैल गई ये  चाय। 

स्वागत घर - घर चाय  से,उत्तम एक उपाय।।

नींद,दाँत,दिल  की  करे,सदा हानि ये चाय। 

सभी जानते तथ्य ये,फिर भी करें न   बाय।।


हुआ  आगमन शीत का,थर-थर काँपे  गात।

निकल रजाई आ  गई,  देती उसको  मात।।

कठिन  शीत  उपचार का,साधन सुंदर एक।

सभी  रजाई ओढ़ते, बिस्तर में ले    टेक।।


           ● एक में सब ●

मार्गशीर्ष हेमंत ऋतु,ले अदरक की चाय।

ओढ़ रजाई बैठ  जा,कितना श्रेष्ठ    उपाय।।


●शुभमस्तु !


06.12.2023●7.00आ०मा०

बुधवार, 25 अक्टूबर 2023

चुहल चंद्रिका-चाँद की ● [ दोहा ]

 466/2023


[चाँद,चकोर,चंद्रिका,चंद्रमुखी,शरद]

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

            ● सब में एक●

चुहल चंद्रिका चाँद की,हुई रात भर आज।

अलग हुए वे भोर में,दिखलाती वह नाज।।

शरद-पूर्णिमा की निशा,चाँद कहे आ पास।

मेरी प्रेमिल चंद्रिका,मत हो तनिक उदास।।


रहा रात भर देखता,शशि को विहग चकोर।

तृप्त हुआ सुख से भरा,आया सुहृद सु-भोर।।

ज्ञान-याचना शिष्य की,ज्यों शशि चटुल चकोर

भरी निशा में जोहता,गुरु-मुख   साधक घोर।।


चाँद बिना नव चन्द्रिका,आती लेश न पास।

लिपटी रहती अंग से,तथ्य न ये   उपहास।।

शशि पति की अर्धांगिनी,विमल चंद्रिका धौत।

रहती नित निर्द्वन्द्व ही,अशुभ नहीं  है   सौत।।


चंद्रमुखी   तुम   दूर से,लगती  सदा   नवीन।

देखा जब मुख पास से,लगा दीन अति छीन।।

चंद्रमुखी तुम रूप से,उर ज्यों शिला  समान।

उपमा ये   झूठी  लगी,निर्जल स्वर्ण-वितान।।


शरद सुनहरी  शान से,सरसाई  चहुँ ओर।

सुखद  चाँदनी रात है,मनभाया  शुभ भोर।।

किसे शरद भाए नहीं,नर, नारी,  खग,ढोर।

लतिकाएँ हैं झूमतीं, मीन  भरें   हिलकोर।।


          ● एक में सब ●

शरद- चाँद नव चंद्रिका,चंद्रमुखी अनुहारि।

खग चकोर मुख जोहता,मानो दिया उबारि।।


●शुभमस्तु !


25.10.2023◆8.45आ०मा०

बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

नव अंकुर है बालिका ● [ दोहा ]

 449/2023

           

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

नव अंकुर है बालिका,सृजक सृष्टि का बीज।

विधना की शुभ देन है,मन में देख   पसीज।।


भरे उजाला बालिका,माँ,पति घर   उजियार।

सदा लुटाती अंक से,नित नारी  बन   प्यार।।


शिक्षा का  दीपक  सदा,देता नवल  प्रकाश।

मीत बालिका को पढ़ा,करती तम का नाश।।


फुलवारी है बालिका, महकाती  नित फूल।

देख - रेख  पूरी  रहे, ये  मत जाना   भूल।।


बालक हो या बालिका,सबका उचित महत्त्व।

बढ़ती  सारी सृष्टि ये,बीज रूप    दो   तत्त्व।।


पहली गुरु माँ बालिका,नारी या   नर  एक।

शिक्षित होना चाहिए,सद्गुण भरे   अनेक।।


नहीं बालिका की करें, समुचित जो परिवार।

देख-रेख ज्यों आम की,कीड़े पड़ें   हजार।।


चरितवान नारी बने, कुलदीपक  नर  एक।

पढ़ें  बालिका-बाल  भी,पाएँ ज्ञान   अनेक।।


नर - नारी   से सृष्टि का,चलता है   संसार।

भूल न जाना बालिका,शिक्षालय का द्वार।।


केवल बालक से नहीं,बनता सृष्टि   स्वरूप।

सदा बालिका धारिणी,बीज सृजन का यूप।।


बनें वीर - वीरांगना,बाल -  बालिका   सर्व।

प्रेरक   शिक्षा  चाहिए ,साहस जगे    सगर्व।।


● शुभमस्तु !


11.10.2023◆5.30आ०मा०

शनिवार, 26 अगस्त 2023

चंद्रयान-3 :सफल 'विक्रम' 'प्रज्ञान' ● [ दोहा ]

 373/2023

 

●© शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●


धरती   माँ  के  पूत ने,खूब मचाई   धूम।

चंद्रयान से  दौड़कर, चाँद लिया  है  चूम।।

'विक्रम' राखी ले गया,बाँधी मामा    हाथ।

जय विज्ञानी देश के,विजय तिरंगा  साथ।।


'विक्रम'  लैंडर  धारकर,रोवर को    'प्रज्ञान'।

'इसरो' के   नेतृत्व   में, करता कार्य  महान।।

 'इसरो' - वैज्ञानिक सभी,धन्य किया यह देश।

बना शुभद इतिहास है,जग में काम  सु -वेश।।


अमर  तिरंगा गाड़कर,किया विश्व में  नाम।

जय- जय हो  विज्ञान की,बना चंद्रमा  धाम।।

तिथि तेईस अगस्त की,दिन शुभ है बुधवार।

भू माँ की राखी बँधी, खुले प्रगति  के  द्वार।।


चंद्रयान-थ्री  के  लिए, हम  हैं बड़े    कृतज्ञ।

चौथा  भारत  देश है, पूर्ण करे जो     यज्ञ।।

धन्य  श्रेष्ठ  विज्ञान   को,नमन विज्ञ    विद्वान।

जिनके हाथों हो सका, सफल पूर्ण अभियान।।


सोमनाथ -  नेतृत्व   से, मिला सोम  को व्योम।

टीम धन्य उनकी सभी, सफल  हुआ  है होम।।

श्रेय मिला इस देश को,श्रम का सुफल अपूर्व।

'शुभम्' गर्व से उच्च सिर, अमर  धरा की दूर्व।।


शोध  नए   'प्रज्ञान'   से ,होंगे सोच  - विचार।

करें विश्व -कल्याण हम,मानव को  उपहार।।


जय विज्ञान! जय वैज्ञानिक!! जय हिंद!!!

●शुभमस्तु !


24.08.2023◆3.45अरोहणम मार्तण्डस्य।

शनिवार, 22 जुलाई 2023

सावन ● [ दोहा ]

 313/2023

               

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●©शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

सावन की महिमा बड़ी,प्रकृति में  चहुँ ओर।

हरे-हरे   अंकुर  उगे,  नाच  रहे  वन   मोर।।

राखी   रक्षासूत्र   की ,लेकर भ्राता  -  धाम।

सावन में भगिनी चली,पावन भाव सकाम।।


सावन में  झूले नहीं,कजरी गीत   मल्हार।

वीरबहूटी   खो गईं, बचा न पहला  प्यार।।

सावन पावन  मास है,समझें मीत   सुजान।

खेत  जोतने जा रहे,देखो कृषक    महान।।


सावन  की  काली घटा, चपला चमके   मीत।

हिय में विरहिन काँपती,तन थर-थर ज्यों शीत

सावन को प्रिय श्रावणी,शुभ हरियाली  तीज।

नागपंचमी  नेह की,उर में तनिक    पसीज।।


सावन के  सत्कार  में, उमड़े मेघ     हजार।

चमके  चपला   साथ में, देती है   ललकार।।

सावन  आया लौटकर, आया नहीं  किसान।

बिना  जुती  धरती  पड़ी,करे बीज का दान।।


सावन    क्यों  सूखे   रहें, भीगें   कैसे   चीर।

जब तक प्रिय घर में नहीं,अँगना-हृदय अधीर।

सावन की सुषमा बढ़ी, हरियाली  चहुँ  ओर।

अम्बर में घन झूमते,दिखे न रवि  की   कोर।।


सावन सहज सुहावना, शुचिता  सद्य   सुरम्य।

सर-सर शीतल सलिल सर,शुभदा कृपा अनन्य


●शुभमस्तु !


19.07.2023◆7.15आ०मा०

गुरुवार, 13 जुलाई 2023

काँवड़ ● [दोहा]

 302/2023

       

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●© शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

मन की काँवड़ शुद्ध कर,ढोता क्या  है   बाँस!

अंतर में शिव- वास है,मिटा वहाँ   की  फांस।।

त्रेतायुग   की   बात  है,रावण था    शिवभक्त।

काँवड़ पावन नीर ले,शिवलिंग कर अभिषिक्त।


काँवड़  जल से कंठ का,करने विष-उपचार।।

परशुराम   रावण सभी,लाए थे   शिव   द्वार।।

गंगाजल  लाते  सभी, शिव के भक्त    अनेक।

शिवलिंग के अभिषेक में, काँवड़ भरे   हरेक।।


सच्ची  श्रद्धा - भक्ति  से,लाते काँवड़    लोग।

नग्न  पाँव   बढ़ते   रहें, करें न कोई    भोग।।

काँवड़-यात्रा   में  सदा,करें नियम   उपवास।

पात्र  मृत्तिका के नहीं,छूते शिव  -  विश्वास।।


काँवड़ - यात्रा से सभी,धुल जाते    हैं     पाप।

मनोकामना  पूर्ण  हो,जान लीजिए    आप।।

काँवड़ -यात्रा हो रही, श्रावण का शुभ मास।

पहले  चौदह  दिन करें, तप से  करते आस।।


काँवड़ -यात्रा में कभी,करते नशा   न   माँस।

तामस का परित्याग हो,शुद्ध चले  तव  साँस।।

काँवड़ -  यात्रा   में   नहीं, करते    भू-स्पर्श।

काँवड़   कंधे  पर रहे,शिव का  करे   विमर्श।।


बम -बम   भोले   बोलिए, काँवड़  कंधे धार।

पावन  गंगाजल    भरे,होगा  तब     उद्धार।।


●शुभमस्तु !


12.07.2023◆3.00प०मा०

बुधवार, 28 जून 2023

जलधर ● [दोहा ]

 276/2023

      

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

● © शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

जलधर उमड़े व्योम में,ज्यों मम उर में भाव।

हरी-भरी  धरती  हुई, मिटे तपन  के  घाव।।

सावन भादों में लगी,जलधर झड़ी  अपार।

हर्षित हैं नर-नारि सब,जड़- चेतन  संसार।।


काले जलधर झूमते,ज्यों काले गज  व्योम।

दिनकर भी दिखते नहीं, नहीं चमकते  सोम।।

जलधर जल धारण किए, आए आँगन द्वार।

कृषक मुदित आभार में,है प्रसन्न     संसार।।


पहले पावस मास में,खिलते थे   जो   रंग।

अब जलधर  बरसा रहे,नहीं केंचुआ  संग।।

वीर बहूटी अब नहीं,दिखती सावन   मास।

भेक  नहीं  टर्रा रहे,जलधर का   उपवास।।


जलधर देखे   व्योम में,हुई कोकिला   मौन।

पीउ-पीउ की रट कहाँ,सुनता है अब कौन??

ले दलबल जलधर चले, बरसाने  जलधार।

प्यासी अवनी को करें,दे -दे अपना    प्यार।।


बाँहों  में   अपनी    भरे, आए जलधर  श्याम।

आलिंगित धरणी खिली,प्रमुदित ललित ललाम

बिजली    कौंधी    शून्य में,  तड़पे    बारंबार।

जलधर करते गर्जना, बरसा कर    जलधार।।


विरहिन प्यासी नेह की,आए अभी न श्याम।

जलधर वाणी जब सुनी,बेकल   राधा वाम।।


●शुभमस्तु !


28.06.2023◆10.30आ०मा०

बुधवार, 7 जून 2023

सच्चाई ही परिधान है ● [दोहा ]

 243/2023


[सच्चाई, परिधान ,बदनाम, आहत, यात्रा ]

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

            ● सब में एक ●

सच्चाई से मोड़ मुख,मिले न मन को  धीर।

जिनके  उर निर्मल सदा,बनते भक्त कबीर।।

मिथ्या एक बचाव को,सौ-सौ मिथ्या  बोल।

छिपती सच्चाई नहीं,होती 'शुभम्'अमोल।।


हे नर!अपनी देह धर, बगुले-से  परिधान।

हंस  नहीं   होगा  कभी,झूठी तेरी   शान।।

चटक-मटक परिधान की,देगी तुझे न मान।

मँडराते  भौरें   सदा, करने को मधु - पान।।


बद अच्छा बदनाम से,कर ले मीत विचार।

लगी चरित पर कालिमा,धुले न बार हजार।।

कर्मों  से   ही  नाम  है, कर्मों से   बदनाम।

कर्म सदा शुभ कीजिए,बना देह को धाम।।


कर्म कभी हो भूल से,यदि निकृष्ट  हे  मीत।

पावन मन आहत रहे,गा न सके सद गीत।।

सत्कर्मों   से   मन  सदा,होता निर्मल  मीत।

आहत वह होता नहीं, चले न जो विपरीत।।


जीवन- यात्रा  में मिलें, छोटे  बड़े   पड़ाव।

चरैवेति  के  मंत्र  से,  चले पंथ भर   चाव।।

आते  पथ में मोड़ भी, यात्रा में  हर ओर।

जीवन सीधा पथ नहीं, मिलते कागा मोर।।

            

             ● एक में सब ●

सच्चाई     परिधान है, 

                        करे न नर बदनाम।

आहत मन करती नहीं,

                    यात्रा - पथ अविराम।।


●शुभमस्तु !


07.06.2023◆5.00आ०मा०


बुधवार, 17 मई 2023

वसुधा नहीं कुटुंब ये ● [ दोहा ]

 209/2023


●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

● शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

'विश्व एक परिवार है', झूठी लगती   बात।

नहीं सुरक्षित आदमी,हो जाए यदि  रात।।

पति -पत्नी संतान में,सिकुड़े अब परिवार।

नेह नहीं जन और से,करके देख  विचार।।


आई  दुलहिन  गेह में,छोड़ दिए  पितु-मात।

मानव  बदतर   ढोर  से,हुए बिराने   तात।।

स्वार्थ लीन नर-नारि हैं,रुचता भोग विलास।

त्याग दिए माता-पिता,यद्यपि हो  उपहास।।


प्रौढ़ाश्रम बतला रहे, कहाँ विश्व   परिवार।

संतति के उपहास  से,घर के बंद    दुआर।।

वसुधा नहीं कुटुंब ये,मनुज भेड़िया   एक।

नर-नर का आहार है,खोया सत्य   विवेक।।


झूठे  वे   आदर्श   हैं,  नहीं  राम    आदर्श।

लखन विभीषण हो गया,करता नहीं विमर्श।

पैर  वधूटी   के   पड़े,  आँगन  में    दीवार।

आते  ही  सीधी   खड़ी, पुत्र मूढ़    लाचार।।


जब तक पुत्र कुमार था,पिता-जननि से नेह।

टूट  गया  जब   आ  गई,नई ब्याहुली   गेह।।

नारी  की  ही  देन  है,  प्रौढ़ाश्रम   इस   देश।

'शुभं'सत्य कटु है यही,बदला गृह  - परिवेश।


●शुभमस्तु !


15.05.2023◆9.30आ०मा०

पक्षपात में न्याय नहीं ● [ दोहा ]

 208/2023


●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

पक्षपात होता जहाँ, मिलता वहाँ न न्याय।

नीति नियम हों ताक पर,बँटे उपानह चाय।।

नीर-क्षीर  जो  छाँटता,न्याय करे  सविवेक।

पक्षपात  करता  नहीं,  वही ईश-धी  नेक।।


वर्ण,जाति  के भेद  से,करते जो   अन्याय।

पक्षपात  से  वे बनें,  घृणा-पात्र  निरुपाय।।

पक्षपात  करता  नहीं, पाता नर  सम्मान।

हंस उसे कहते सभी, करता सत्य -विहान।।


जिनके  रग-रग में बहे,पक्षपात  का  खून।

नहीं अपेक्षा कीजिए,उनसे  कण भर चून।।

पक्षपात   होता  नहीं,मानव मूढ़  समाज।

धरती होती स्वर्ग-सी,गिरती कभी न गाज।।


कितने मूढ़ अयोग्य जन,पक्षपात  के हेत।

पाकर  सेवा  देश में,चरते खुलकर  खेत।।

पुल  टूटें  रोगी  मरें, शिक्षक भी  अज्ञान।

पक्षपात जिस देश में,कहता कौन महान??


नेता    में  वह   बीज  है, बोता  सारे   देश।

पक्षपात  की  फसल से, लहराए बक-वेश।।

जनक-जननि करते नहीं, पक्षपात सुत-संग।

होते   पूत    कपूत    भी,  भरे वासना-रंग।।


●शुभमस्तु !


15.05.2023◆9

आ०मा०


बुधवार, 12 अप्रैल 2023

कविता है शुचि साधना🪷 [ दोहा ]

 165/2023

 

■◆■◆■■◆■◆■◆■◆■◆■◆

✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

भावों  की  साकारता,है कविता   का   रूप।

दात्री   वीणावादिनी , बना रही  कवि   यूप।।

कविता  को मत जानिए,शब्दों  का  भंडार।

भाव,व्यंजना,छंद,रस,गति लय की चमकार।


कविता है शुचि साधना,करती जग कल्याण।

जन-जन,देश,समाज में,भरती है नित प्राण।

कविता-वाणी सत्य की,नहीं अनृत का काम

कविउर शांति प्रदायिका,चले न सतपथ वाम


कविता अर्जन का नहीं, साधन जानें आप।

ज्ञान-भानु चढ़ता रहे,मिटें जगत के ताप।।

सतत साधना कीजिए, नित्य निरंतर मीत।

कविता शुभकारी सदा,होता स्वयं  प्रतीत।।


कंचन कामिनि की करें,कविता से मतआश।

उर की निर्मलकारिणी,कविमानस का प्राश।

कविता मानव-मूल्य की,रक्षक सदा असीम।

पाप-ताप काटे सदा,तन-मन निवसित भीम।


होती गुरु,माँ की कृपा,कविता करता व्यक्ति।

माला महके शब्द की,मिले अपरिमित शक्ति

निंदा-रस लेना नहीं,कविता में क्या  काम!

नहीं विमुख हो सत्य से,कवि का होता नाम।


कविता  से   मन-देह  के,  होते दुर्गुण    दूर।

गंगावत  पावन  करे,पाप  अहं   को   चूर।।


🪴शुभमस्तु !


12.04.2023◆6.45आ०मा०

रविवार, 9 अप्रैल 2023

धीरज -धनधारी धनी 🩷 [ दोहा ]

 158/2023

 

■●■●■●■●■●■●■●■●■●

✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■●■●■●■●■●■●■●■●■●

धीरज- धनधारी    धनी, होते शांत   उदार।

आतुरता करते नहीं,पावन 'शुभम्' विचार।।

चुन-चुन शब्द सजाइए,शुचि रचना की माल।

आतुरता में भंग हो,छंद रसों   की   डाल।।


जननी  जनती जीव को,धीरज  धरे  महान।

आतुरता  करती नहीं,संतति   करे प्रदान।।

कवि -तापस की साधना,चलती धर के धीर।

आतुरता से अल्प दिन,बने न कवितावीर।।


आतुरता से  काम के,बिगड़ें  रूप   अनेक।

धरती धीरज धारिणी,गतिमय नित सविवेक।

आतुरता में  भूलता, सहज धैर्य  की चाल।

फूँक- फूँक पग जो रखे,उसका ऊँचा भाल।।


पढ़ - पढ़  ग्रंथ बढ़ाइए, शब्दकोष का ज्ञान।

अनुचित आतुरता'शुभम्',करिए अनुसंधान।

कहाँ करें किस शब्द का,सुंदर उचित प्रयोग।

आतुरता करना  नहीं,जान जलेबी - भोग।।


आतुरता में  जो   रहे, गिरे सप्त   सोपान।

कछुआ जीता दौड़ में ,हारा शशक अजान।।

आतुरता  में  भूलते,  रखा हुआ   सामान।

रोते   गाड़ी  में   चढ़े, छूट गया  धन - धान।।


🪴शुभमस्तु !


09.04.2023◆5.30 प०मा०


किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...