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सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

अब देखो ये 'इज्जतघर' [ सायली ]


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✍️ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सबने

देखे हैं

गाँवों में बने 

'इज्जतघर' कितने

मजबूत।


सजी

हुई    है

दुकान 'इज्जतघर' में

किसान बना 

लाला।


उपले

लकड़ी ईंधन

बढ़ा   रहे   शोभा

'इज्जतघर' की

आज।


खरीदें

आज  कुरकुरे,

गुड़, दाल,  सब्जी,

'इज्जतघर' बना 

दुकान।


'इज्जत'

जा   रही

आज  भी  बाहर

छोड़कर  अपना

'इज्जतघर'।


ओट

मूँज की

ढूँढ़ती  जा  रही

लेकर  लोटा 

हाथ।


मिली 

किसी को

आड़  मेंड़  की

बैठ गई 

निश्चिंत।


आया 

कोई राहगीर

उठ  खड़ी   हुई

लोक  लाज 

है।


पीलिया

ईंटें  चिनी

बघार  सीमेंट  का

शेष  सब

बालू।


गठबंधन

मुखिया सचिव

करते    हैं   जब

बनते   हैं

'इज्जतघर'।


खाएँ

वे  मलाई

दिखाते हैं भामाशाही,

बालू   से 

चिनाई।


खटिया

नहीं करती

खड़ी  वे   अब

नहाने  को

'इज्जतघर'।


  है

 बहुत आराम

बना  जब     से

अपना  'इज्जतघर'

सुघर।


नहीं 

भीगते अब

उपले,  ईंधन,लकड़ी,

'इज्जतघर' जो

है।


आदत

पुरानी है,

जाने   की   खेत,

छूटेगी कैसे

अपनी।


खाई 

है  कसम

हम  नहीं सुधरेंगे

बना  लो 

'इज्जतघर'।


दूकान

ईंधन  भंडार

स्नानागार  भी  है

किन्तु  नहीं

'इज्जतघर'।


है 

बहुत होशियार

आदमी   आगे -  आगे

पीछे  उसके

सरकार।


 था 

 उद्देश्य   एक

 बहुउद्देशीय बनाया  उसने

अपना 'इज्जतघर'

अनौखा।


वे

डाल-डाल

ये   पात  - पात

क्या  करेगी

सरकार?


दिमाग

रखते हैं

हम गाँव वाले

देखो अब

'इज्जतघर'।


💐 शुभमस्तु!


05.10.2020 ◆11.30 पूर्वाह्न।


सोमवार, 7 अक्टूबर 2019

रावणीय प्लास्टिक बनाम प्लास्टिकीय रावण [ विधा : सायली ]


♾●★●♾●★●♾●★◆

पॉलीथिन
दूर        करो
ख़ूब फोड़ो पटाखे ,
इससे   सुधरेगा 
पर्यावरण ?

कम्पनियाँ
जिंदा   रहीं ,
प्रदूषण का रावण
मरेगा   नहीं
प्लास्टिक।

काम 
सब  विरोधाभासी 
करता  है    प्रशासन ,
जिंदा    हैं
जनक ।

न 
रहेगा  बाँस
न बजेगी बाँसुरी,
बाँस - वन
मिटाओ।

निरीह
दुकानदारों को
व्यर्थ    में       मत 
सता         मारो 
उबारो।

विकल्प 
पहले            हो ,
संकल्प    बाद      में
प्लास्टिक - पलायन 
से।

पटाख़े
ख़ूब  फोड़ो
सारी - सारी रात,
सुधरेगा  इससे
पड़ौसी।

चीनी
बिना मिठास
आएगी   नहीं  'शुभम',
ख़ूब  ख़रीदो
आतिशबाजियां।

आया 
विजयदशमी पर्व,
पुतलों को  जलाओ,
कालिख़    को
छिपाओ।

रावण 
जिंदा  है ,
जिंदा  हैं  राम-
जब  हमारे 
यहाँ।

रावण 
गली -गली 
सरेराह घूमते हैं,
राम कहाँ 
इतने ?

लंका 
सोने   की ,
इतना  बुरा  सोना ,
फिर  क्यों 
कामना ?

आग 
लगा दी
सोने  की  लंका ,
जल उठी 
प्रलयंकारी।

आराम 
नहीं   है 
रामों  को  कभी,
रावण भक्तों
 से।
( 'रावण - भक्तों  से ' अथवा 'रावण , भक्तों से ' भी )

रक्तबीज
रावण   का 
बोया   है   बीज ,
कितना   भी
जलाइए!

साधन
मनोरंजन   का
बन   गया   रावण,
बच्चों   का 
खिलौना ।

खेलते 
बड़े  भी
जलाकर  रावण,
खुश   होते
सभी।

राख
रावण  के
पुतलों   की  बची,
अगले   वर्ष
पुनरुद्भवन।

💐 शुभमस्तु  !
✍रचयिता ©
⛳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम '

www.hinddhanush.blogspot.in

06अक्टूबर 2019 , 12.15 अपराह्न।

शनिवार, 20 जुलाई 2019

जल -चेतना [विधा:सायली]

पनघट
सूने -  सूने
क्या करती पनिहारिन
कूप  सूखते
सारे।

 भीड़
बढ़  गई
नल  पर भारी
क्या  करती
बेचारी।

दोहन
जल  का
बहा  रहा  तू
वृथा  क्यों
पानी।

लम्बी
लगी कतारें
डिब्बे बर्तन लेकर
नर  - नारी
आए।

समझें
 नीर महत्ता
प्यासा पत्ता -पत्ता
जल - संकट
भीषण।

सुधरो
हे  मानव!
जल -  चेतना  न
आई  तुझको
तरसेगा।

सावन
सूखे - सूखे
बिन पानी  सब
प्यासी - भूखी
जनता।

गौरैया
निज नीड़
न  बरसा  पानी
प्यासी -प्यासी
मरती।

सरसी
सर सारे
बिना सलिल सब
लीन प्रतीक्षा
हारे।

आँख
दिखाए बादल
डाँटें गरज -गरज
बिजली तड़पाए
गुस्साए।

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
💦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

सायली की सायली [विधा : सायली]

'सायली'
नई विधा
काव्य की लोकप्रिय
विशाल  इंगले
जनक।

शब्द
दो शब्द
तीसरी में तीन
पुनः दो
शब्द।

मात्र
नौ शब्द
शब्द आधारित विधा
काव्य की
मराठी।

पँक्तियाँ
मात्र पाँच
कुल शब्द नौ
अद्भुत विधा
'सायली'।

पंक्क्ति
प्रत्येक पूर्ण
हाइकु की तरह
वाक्य तोड़
मत।

पढ़िए
ऊपर से
नीचे की ओर
अथवा विपरीत
क्रम।

बनाइए
हिंदी समृद्ध
'सायली' लिखें 'शुभम'
प्रयोग नवीन
कीजिए।

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

गुरुवार, 18 जुलाई 2019

पावस -छवियाँ [छन्द-सायली]

आया
सावन झूम
झर - झर बरसा
बादल धूसर
गरजा।

विरहिन
करे प्रतीक्षा
कब आएँ प्रिय
शान्ति मिले
तब।

लेती
प्रबल झकोरे
बहती सजल हवा
हर  ओर
सुहानी।

खेत
बाग वन
जल  से  पूरित
बरसे बादल।
रिमझिम।

बोले
मोर पपीहा
कोयल का मादक
स्वर गूँजा
मधुरिम।

सरिता
ताल - तलैया
भर -   भर बहते
तोड़ कगारें
रहते।

झींगुर
झनकारें रात
इशारे करते ऐसे
होता सन्नाटा
अद्भुत

पटबीजना
चमकते बहु
इधर उधर नित
रौशन करते
रजनी।

कहें
मोर से
चार मोरनी आकर
तुम नाचो
प्रियतम।

छवि
पावस की
सतरंगी मनभावन पावन
रंग बदलती
'शुभम'।

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...