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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

मन मोर भयौ मथुरा बिंदरावन🎊 [ कुन्दलता सवैया ]

 95/2023


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✍️ शब्दकार ©

💞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

रँग लाल गुलाल उड़े ब्रज में,

             डफ ढोल धमाधम बाजत वादन।

चुनरी पट ओढ़ि चली तरुणी,

            चलती पिचकारिहु धार सनासन।।

पथ कान्ह मिले गहि बाँह लई,

                लिपटाय लई तर अंग मनावन।

चलि कुंजनु खेल करें रस के,

             मन मोर भयौ मथुरा बिंदरावन।।


                        -2-

रस चूसि करै खिलवाड़ अली,

        कलिकावलि नाचाति झूमि रिझावति।

तितली उत रंग - बिरंग भई,

             रस केलि करै रँग ही बरसावति।।

मधु चाटि पराग  लिए  उड़ती,

           मधुमाखिहु फूलनु से रस लावति।

सरसों अलसी सिहराइ रहीं,

          नचि  मौनहि वादन गीत सुनावति।।


                        -3-

कसि तंग भई मम चोलि सखी,

         ऋतुराज सताइ रहौ भरि फागन।

पिय भूलि गयौ कहुँ पंथ दई,

            हिय चैन नहीं बरसें दृग सावन।।

अलि फूल निहारि उठै हिय में,

        अति पीर न औषधि टीस नसावन।

पिक कूकि रही तरसाइ मुई,

            वन फूलि पलास करै हिय दाहन।।


                        -4-

सब आम रहे इतराइ सखी,

         झुकि बौरत-बौरत कूकि रिझावत।

पतझार भयौ   तरु  पीपर पै,

            कचनार कली विहँसें  शरमावत।।

अपने - अपने  बदले  कपड़े,

           दल लाल गुलाल भए  तरु गावत।

तरुणी मटकाइ चले पथ पै,

          करि नैन सँकेतनु पास बुलावत।।


                        -5-

नित काम विदेह अधीर करै,

            नव ओप भरें तरुणी तन फागन।

नत सीस भयौ पुरुषारथ है,  

          रँग रूप नयौ  नर को दृग दामन।।

बतराइ  रहे   अनबोलत  वे ,

              मधु चाह बढ़ी रस रंग  दृढ़ावन।

लिपटाय सप्रेम लता चिपकी,

             निज अंक गहें तरु मौन रसालन।।


🪴 शुभमस्तु !


28.02.2023◆7.00पतनम मार्तण्डस्य।

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

नव गंदुम झूमि रहे मनभावन 🌾 [ कुन्दलता सवैया ]

 80/2023


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✍️ शब्दकार ©

🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

सजि बालि रहीं सब खेतनु में,

               नव गंदुम झूमि रहे मनभावन।

इत  आय  गयौ  रँग  राग भरे,

         वन फूलि पलास भए फिर फागन।।

मद यौवन कौ रिसि जाइ नहीं,

           मन राखि सदा अपनों तिय पावन।

नव  गंदुम  पेट  भरे  तन कौ,

           तन भूख नहीं सब दुःख नसावन।।


                         -2-

इत  गंदुम  पीत   पराग  उड़े,

           उत वात चलै पछुआ हर्षावति।

कटि को मटकाइ रिझाइ रही,

           हरिआभ दुकूल धरे मन भावति।।

धरि मौन चुमावति चूमति है,

           परिरंभण लीन भई हँसि गावति।

सब खेत हरे भरि बालिनु से,

            भरि दूध गई हिय कों ललचावति।।


                         -3-

मधुमास लगौ मन झूमि उठौ ,

           वन किंशुक नाचि उठे मनभावन।

नव पाटल फूलि गुलाल भए,

               नव गंदुम झूमि उठे  हरषावन।।

नर - नारि सु देह सकाम भरे,

             सब भूलि गए मन कौ अनुशासन।

कहँ  जाय छिपे घनश्याम हरी,

               रँग डारि करें हमरौ तन  पावन।।


                         -4-

कुहुकी पिक बाग रसलानु में,

           सब शाख गईं झुकि बौरि सचेतन।

रस चूसि रहे अलि फूलनु पै,

        अलसी कलशी धरि नाचि उठी वन।।

सरसों सरसाइ रही महकी,

             जनु चादर पीत रिझाइ रही मन।

उर आतुर धीर नहीं छिन को,

            सखि अंग अनंग जलावत आगन।।


                         -5-

टटकी कलियाँ वन-बागनु में ,

             भँवरे मद मत्त भए करि स्वागत।

लतिका लिपटी तरु -बाँहनु में,

                तरुनी उर भेद न मानुस पावत।

महुआ  महके    टपके  धरनी,

             रँग होलिहु खींचि अनंग बुलावत।

कहतीं ब्रज नारि न देह छुऔ,

             नटनागर भाव कुभाव सुहावत।।


*गंदुम = गेहूँ।


🪴 शुभमस्तु !


21.02.2023◆12.45 प.मा.

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...