221/2025
[आँधी, तूफान,ओले, झंझावात,भँवर]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
प्रबल वेग आँधी चले, कभी वज्र आघात।
चैत्र और वैशाख में,असमय हो बरसात।।
अमराई में बीनते, जन आँधी के आम।
मध्य दुपहरी में झुकी, सघन साँवली शाम।।
पहलगाम आतंक का, बना विषम तूफान।
रक्त बहा सुख शांति में, मिटते नहीं निशान।।
पल भर के तूफान का, कैसे सहे विनाश।
अनहोनी जब हो गई, सारा देश निराश।।
मूँड़ मुड़ाये जब गिरें, ओले कृषक हताश।
विपदा के आघात से,मिट जाए उर आश।।
असमय मेघों से गिरे, ओले हुआ प्रभात।
आशाओं पर क्यों हुआ, प्रभु का वज्राघात।।
जीवन झंझावात का,विकट जटिल आयाम।
कब आँधी तूफान हो, कब प्रभात से शाम।।
करके प्रबल प्रयास भी, रुके न झंझावात।
सबको ही सहना पड़े, ओला मेघ प्रपात।।
जीवन - नैया जा पड़े,गहन भँवर के बीच।
तिनका भी पर्याप्त है, मिलता अगर नगीच।।
भँवर भाग्य का मापना,सदा असंभव बात।
पड़े निपटना आपको, जीवन का जलजात।।
एक में सब
आँधी झंझावात हो,ओले या तूफान।
भँवर पड़ें तो जूझिये,तभी बचेगी जान।।
शुभमस्तु !
30.04.2025● 5.00आ०मा०
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