255/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सिर पर घड़े बालटी टंकी रखे
चले जाते दुर्गम पथ पर।
जलाभाव से पीड़ित जनता
जल के बिना न जीवन चलता
करता मानव अति जल दोहन
आप स्वयं अपने को छलता
बूँद -बूँद को तरस रहा है
किल्लत बढ़ती है सबके घर।
बच्चे माँ का हाथ थाम कर
जल आशय के निकट जा रहे
पहने पगतल में पदचल वे
पथरीले पथ उन्हें भा रहे
मजबूरी क्या कुछ न कराए
बालक बूढ़े बहु नारी नर।
मिले जहाँ भी पानी किंचित
नदिया ताल पोखरे कोई
भटक रहे हैं वे वन पथ में
आँखें अश्रु भरे हैं रोई
'शुभम्' महत्ता जानो जल की
बूँद-बूँद को भटके दर-दर।
शुभमस्तु !
10.06.2025● 6.15 आ०मा०
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