मंगलवार, 10 जून 2025

सिर पर घड़े बालटी टंकी [ गीत ]

 255/2025

    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सिर पर घड़े  बालटी टंकी रखे

चले जाते दुर्गम पथ पर।


जलाभाव से पीड़ित जनता

जल के बिना न जीवन चलता

करता मानव अति जल दोहन

आप स्वयं अपने को छलता

बूँद -बूँद को तरस रहा है 

किल्लत बढ़ती है सबके घर।


बच्चे माँ का हाथ थाम कर

जल आशय के निकट जा रहे

पहने पगतल में पदचल वे

पथरीले पथ उन्हें  भा रहे

मजबूरी क्या कुछ न कराए

बालक बूढ़े बहु  नारी नर।


मिले जहाँ भी पानी किंचित

नदिया ताल पोखरे कोई

भटक रहे हैं वे वन पथ में

आँखें अश्रु भरे हैं रोई

'शुभम्' महत्ता जानो जल की

बूँद-बूँद को भटके दर-दर।


शुभमस्तु !


10.06.2025● 6.15 आ०मा०

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सभी न होते मनुज भले [ गीतिका ]

 254/2025

     

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सभी   न   होते     मनुज   भले।

भले -  भले    ही    गए    छले।।


फसलें      उगतीं     खेतों     में,

नहीं     उगाते      हैं      गमले।


पत्नी    बैठी       चिंता     लीन,

पति  लौटे    नहिं    साँझ   ढले।


बुरे   कर्म     का       दुष्परिणाम,

कहे      हवन     में     हाथ जले।


भारत    ऐसा      देश      विमूढ़,

आस्तीन      में      साँप     पले।


देशद्रोह        जो        यहाँ    करे,

नहीं      छोड़ना     शेष       गले।


'शुभम्  खून    का    बदला  खून,

कुचलें  अरि    को    पाँव    तले।


शुभमस्तु !


08.06.2025●10.45प0मा0

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फसलें उगतीं खेतों में [ सजल ]

 253/2025

             

समांत        : अले

पदांत         : अपदांत

मात्राभार     : 14

मात्रा पतन    : शून्य


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सभी   न   होते     मनुज   भले।

भले -  भले    ही    गए    छले।।


फसलें      उगतीं     खेतों     में।

नहीं     उगाते      हैं      गमले।।


पत्नी    बैठी       चिंता     लीन।

पति  लौटे    नहिं    साँझ   ढले।।


बुरे   कर्म     का       दुष्परिणाम।

कहे      हवन     में     हाथ जले।।


भारत    ऐसा      देश      विमूढ़।

आस्तीन      में      साँप     पले।।


देशद्रोह        जन       यहाँ    करे।

नहीं      छोड़ना     शेष       गले।।


'शुभम्  खून    का    बदला  खून।

कुचलें  अरि    को    पाँव    तले।।


शुभमस्तु !


08.06.2025●10.45प0मा0

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पर्यावरण की चिंता [ अतुकांतिका ]

 252/2025

               


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


लगा गालियों का धुँआर

पर्यावरण की चिंता है,

सूख रहे हैं बेचारे 

पेड़ रोपने के लिए

स्वयं काटते-

कटवाते

दूसरों से अपेक्षा है।


पौधा लगाया,

मुस्कराए,

फोटो भी खिंचवाया,

अखबार में छपाया,

पर अगले दिन

बकरी चर गई,

ऐसी ही है आज

पर्यावरण रक्षा ।


पौधा लगाया,

पानी कौन दे?

देखभाल कौन करे?

निराई गुड़ाई

ट्री गार्ड की गड़ाई

कोई और कर ले,

उनका लक्ष्य पूरा हुआ।


उपदेशों का शर्बत

ज्ञान का जलजीरा

हर नुक्कड़ पर तैयार है,

जितना चाहो पीओ

कोई शुल्क नहीं।


तपती हुई जेठ की धरती

वे पौधे रोपे जा रहे हैं

रहें तो रहें

मरें तो मर जाएँ ,

उनका उद्देश्य पूरा हुआ

अखबार में नाम सहित

फोटो भी छप ही गया,

यही देशभक्ति है।


शुभमस्तु !


05.06.2025●1.000प0मा0

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हैं कृतघ्न जो देश के [ दोहा गीतिका]

 251/2025

           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


हैं कृतघ्न जो देश में,  कभी  न करते   मान।

निष्ठा    श्रद्धा    शून्य  वे, मूढ़  क्रूर नादान।।


एक जाति  या धर्म  के, जासूसी कर  नित्य,

घूमें   पाकिस्तान   में,  छिपा  गूढ़ पहचान।


घर   के  भेदी  देश  को,लूट रहे कुछ   आज,

ज्योति   अँधेरी  हो गई,  दानिश की  दीवान।


पहलगाम     के    रक्त   का, लेना है प्रतिशोध,

चुन-चुन  कर अरि   मारने,सैनिक वीर  महान।


खाते   वे   इस  देश  का, दफ़न इसी  में  रोज,

तिल  भर   निष्ठा   हीन  वे,देशद्रोह की  खान।


अन्न   दवा  सब   मुफ़्त  में, इन्हें चाहिए  मीत,

पर   निष्ठा   के   नाम पर, करें पाक गुणगान।


'शुभम्'  मिलें सौ  योनियाँ,मच्छर वृश्चिक नाग,

कसम   उन्हें   निष्ठा  नहीं, जैसे वायु   अपान।


शुभमस्तु !


04.06.2025●1.30प0मा0

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ज्योति अँधेरी हो गई [सजल]

 250/2025

           

समांत        : आन

पदांत         :अपदांत

मात्राभार     :24    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


हैं कृतघ्न जो देश में,  कभी  न करते   मान।

निष्ठा    श्रद्धा    शून्य  वे, मूढ़  क्रूर नादान।।


एक जाति  या धर्म  के, जासूसी कर  नित्य।

घूमें   पाकिस्तान   में,  छिपा  गूढ़ पहचान।।


घर   के  भेदी  देश  को,लूट रहे कुछ   आज।

ज्योति   अँधेरी  हो गई,  दानिश की  दीवान ।।


पहलगाम     के    रक्त   का, लेना है प्रतिशोध।

चुन-चुन  कर अरि   मारने,सैनिक वीर  महान।।


खाते   वे   इस  देश  का, दफ़न इसी  में  रोज।

तिल  भर   निष्ठा   हीन  वे,देशद्रोह की  खान।।


अन्न   दवा  सब   मुफ़्त  में, इन्हें चाहिए  मीत।

पर   निष्ठा   के   नाम पर, करें पाक गुणगान।।


'शुभम्'  मिलें सौ  योनियाँ,मच्छर वृश्चिक नाग।

कसम   उन्हें   निष्ठा  नहीं, जैसे वायु   अपान।।


शुभमस्तु !


04.06.2025●1.30प0मा0

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बुधवार, 4 जून 2025

दुनिया से क्यों मोह लगाऊँ [ नवगीत ]

 249/2025

    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कभी -कभी  लगता है मुझको

दुनिया से क्यों मोह लगाऊँ!


शांति   सभी   को प्रिय लगती है

कौन शांत है मुझे बताओ

खटे हुए सब दिवस निशा भर

सच क्या है सच-सच समझाओ

बैठूँ बंद करूँ दरवाजे

और खिड़कियाँ भी उढ़काऊँ।


सब अपने हित जिए जा रहे

कौन स्वार्थ से परे आदमी

मिलती खुशी कष्ट देने में

अपना सुख ही हुआ लाजमी

सौ - सौ काम करो उनके तो

एक न करूँ नहीं मैं भाऊँ।


बेटा  नहीं  पिता को पूछे

पत्नी नहीं चाहती पति को

धन पैसे की डोर बँधी है

प्रेयसि चाहे धन की रति को

ताबीजों में नुचती दाढ़ी

और नहीं अब मैं नुचवाऊँ।


मीठे बोल बोलकर सारे

अपना काम निकाल रहे हैं

समझ रहे हैं सबको पागल

नेहिल डोरे  डाल रहे हैं

झूठे सब सम्बंध जगत के

एकल रहूँ सर्व सुख पाऊँ।


 मानो या मत मानो मेरी

उपदेशक मैं  नहीं तुम्हारा

अपनी तो छोटी -सी दुनिया

हम न किसी के कौन हमारा

'शुभम्' ईश ही अपना है बस

गीत श्याम - राधा के गाऊँ।


शुभमस्तु !


04.06.2025● 11.15 आ0मा0

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किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...