223/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
तवा गरम है
चलो सेंक लें
अपनी -अपनी रोटी,
लगते हाथ
बहुत कम मौके
उन्हें भुनाएँ आओ,
घड़ियाली दो आँसू
भरकर हमदर्दी दिखलाओ
पहले वोट
देश है पीछे
यही सोच है अपनी,
दल बंदी के
दलदल में जा
कुर्सी की माला जपनी।
नेता हैं हम
नहीं सुधारक
हमें देश से क्या लेना,
पहलगाम के
घाव उभारें
क्या शासन क्या सेना,
राजनीति
अपनी चमकाएं
खण्ड- खण्ड में बाँटें,
इतिहासों को गरियाएँ
सरकारों को डाँटे।
हवा और ही
इधर बह रही
खिचड़ी अलग पकाएँ,
जिनके पति
परलोक सिधारे
उनको गले लगाएँ,
किसी बुरे में
भला ढूंढ़ना
हमें खूब है आता,
सद्गुण में भी
दाग खोजना
नहीं हमें शर्माता।
शुभमस्तु !
01.05.2025●10.30 आ.मा.
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