शनिवार, 5 जुलाई 2025

भागवत कथा की पात्रता [आलेख]

 330/2025


©लेखक

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

 इटावा के भागवत कथा प्रकरण ने एक नए विवाद को जन्म दिया है कि भागवत कथा का पाठ कौन व्यक्ति कर सकता है? इस संदर्भ में अनेक लोगों और विद्वानों के द्वारा अपने - अपने मत दिए जा रहे हैं। इस सम्बंध में मुझे भी कुछ कहना है। भागवत भगवान श्रीकृष्ण का एक पावन महा पुराण है। जिस प्रकार तन और मन की शुद्धता के साथ किसी भी मनुष्य को भगवान का नाम स्मरण करने की पात्रता है,ठीक उसी प्रकार से बिना किसी वर्ण या जाति का विचार किए हुए भागवत कथा वाचन का अधिकार भी प्रत्येक मनुष्य का है। जाति और वर्ण से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है।महर्षि वेद व्यास (जो स्वयं एक ब्राह्मण नहीं थे) के मुखारविंद से जब भागवत पुराण लिखा और कहा जा सकता है,तो जो व्यक्ति अपने आचरण, चरित्र और भाषा शैली से शुद्ध है ,उसे भी भागवत कथा वाचन का अधिकार है। 

  वर्तमान में ऐसे अनेक कथा वाचक हैं,जिन्होंने भागवत कथा को भांडों की नौटंकी बना कर रख दिया है। जो पर्दे के पीछे सुरा और सामिष आहार का सेवन करते हैं,उन्हें इसका अधिकार कदापि नहीं होना चाहिए। देखा यह जा रहा है कि भागवताचार्य स्वयं अशिष्ट शब्दावली का प्रयोग करते हैं और अन्य लोगों पर दोषारोपण करते हैं। उनके द्वारा महिलाओं से फूहड़ नृत्य कराए जा रहे हैं।वे अपने आचरण ,चरित्र और व्यवहार से शुद्ध नहीं हैं। ऐसे लोगों को भागवताचार्य होने का कोई अधिकार नहीं है। उनका समाज के द्वारा बहिष्कार होना चाहिए।

 भागवत कथा पाठन- पठन के लिए कोई जाति विशेष का निर्धारण नहीं है।मन ,वचन, कर्म और आचरण से शुद्धता ही इसका सही मानक है। प्रश्न यह उत्प्रन्न होता है कि भागवताचार्य की परीक्षा कैसे हो। व्यवहारिक रूप में इसकी ऐसी कोई समिति बनाया जाना न तो आसान है और सर्व साधारण द्वारा स्वीकार्य ही।वर्ण और जाति भेद से रहित विद्वत मंडल ही यह सुनिश्चित कर सकता है कि पात्र कौन है। दूध में पानी मिलाकर बेचने से जिस तरह कोई किसी को रोक नहीं पाया ,वैसे ही भागवत पढ़ने की आजादी कैसे समाप्त की जा सकती हैं। समाज अपने ढंग से चलता है, वह किसी बनी हुई पटरी पर चलने के लिए बाध्य नहीं है।वैसे ही हर उस कथावाचक को भी अपने गले में झाँककर देख लेना अनिवार्य है कि उसमें कितनी पात्रता है। 

 आज भागवत करवाना और करना एक धंधे का रूप ले चुका है। धंधे को चरित्र से जोड़ने पर चरित्र धंधे का स्पीडब्रेकर बन जाता है। ऐसा भी कोई व्यक्ति है जो अपने को चरित्र हीन कहे !यह किसी से छिपा नहीं है कि सात दिन की अवधि पूरी होने के बाद कथावाचक नोटों की पोटली बांधकर अपनी बड़ी- सी कार में फुर्र हो लेते हैं। मिली हुई भेंटें यजमान और कथावाचक में बंदरबांट कर ली जाती हैं।भागवत का इतना सा ही मंतव्य दिखाई दे रहा है।फिर कोई वाचक क्यों अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार कर कथावाचन बन्द करेगा ? क्या वह किसी वैध पात्रता की जाँच को मान्य करेगा ?इसलिए इस दिशा में आत्मसुधार की आवश्यकता है न कि कोई संसद बनाने की बात की जाए।बनाई गई संसद स्वयं में कितनी पवित्र है,इसका क्या मानक है। वहाँ भी ज्ञान से अधिक वर्णवाद और जातिवाद का अतिक्रमण होगा और अवश्य होगा। क्योंकि यह समाज ही इन व्यवस्थाओं का चहेता है।जहां वेदनीति काम नहीं आती, वहाँ लोकनीति ही सफल होती है। इस क्षेत्र में भी वेदनीति एक कोने में रखी रहेगी और लोकनीति ही काम आएगी। जो यजमान जिससे चाहेगा ,उससे भागवत कराएगा ,किसी संसद के मानक का वहाँ कोई मूल्य नही होगा। कोई नियम बनाना जितना आसान ,है उतना उसे व्यावहारिक रूप देना सहज नहीं है। 

 शुभमस्तु ! 

05.07.2025●8.45आ०मा०

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बालक [ कुंडलिया ]

 329/2025

           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

       

                        -1-

होते  हैं  सब  एक  दिन,बालक अति  नादान।

अनजाने    भोले     भले,   करते अनुसंधान।।

करते     अनुसंधान,   जानना    चाहें  दुनिया।

मात-पिता के प्राण,अलग ही उनका  गुनिया।।

'शुभम्' अलग ही सोच,अलग ही खाते  गोते।

कठिन कभी हो लोच,विविध रँग बालक होते।।


                         -2-

बालक हैं ये आज के,कल का सफल भविष्य।

समिधा   खोजें   कर्म  की,देंगे नवल हविष्य।।

देंगे  नवल   हविष्य, देश   की प्रगति  कराएँ।

ज्ञान  और  विज्ञान,  देश  का  ध्वज  फहराएं।।

'शुभम्'   हमें   है  आश,बनें भारत के   पालक।

होगा  प्रबल  उजास, करें  अधुनातन  बालक।।


                         -3-

पहले   से  अब हैं  कहाँ, बालक  वे नादान।

उनकी   बुद्धि  कुशाग्र  है,काट रहे हैं  कान।।

काट रहे  हैं  कान, बड़ों के क्या अब  कहना।

बने   हुए  हैं    पुत्र, देश  का अनुपम  गहना।।

'शुभम्'  विश्व  में नाम,उच्च नहले पर   दहले।

समझें    मत   नादान,  नहीं  वे भोले  पहले।।


                         -4-

बनना  है  माँ- बाप  को, संतति  का आदर्श।

बालक  अनुकृतियाँ  बनें, करें गगन संस्पर्श।।

करें  गगन  संस्पर्श, कर्म का ध्वज फहराएं।

करें   जगत   में  नाम, विश्व में नाम कमाएँ।।

'शुभम्'  बनाएँ   लीक, जगाना जाग्रत रहना।

पावन  परम  प्रतीक, नवल मानक है बनना।।


                         -5-

बालक   जिज्ञासा  करें,  करना  नहीं  निराश।

बढ़े   ज्ञान  सीखें  नया, मिले सुखद विश्वास।

मिले सुखद विश्वास, प्रगति  की खुलती राहें।

स्वावलंब     आधार,    खोलता   भावी   बाँहें।।

'शुभम्' खुलें  भंडार, भाग्य के हों संचालक।

उर  में   भरें  उजास, भाग्यशाली  हैं  बालक।।


शुभमस्तु !


04.07.2025●8.00 आ०मा०

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दर्पण और आदमी [ अतुकांतिका ]

 328/2025


           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


दर्पण देखा

सजे -संवरे 

पर सुधरे नहीं,

साहित्य भी क्या करता

दर्पण बना रहा

सुधरना तो

आदमी को ही था,

दर्पण की अपनी भूमिका है

वह करवा नहीं सकता।


दर्पण निर्जीव,

आदमी सजीव 

बुद्धिमान भी!

पर वाह री बुद्धिमानी

धरी की धरी रह गई।

साहित्य किस काम आया?


दर्पण की किरचें

उतने ही बिंब,

वे किस काम के?

दर्पण भी उसीका

उसी से दर्पण,

पर किसको अर्पण!


आदमी अपनी मति

दर्पण अपनी गति

कोई तालमेल नहीं

विरोधाभास ही लगा

आदमी नहीं  है

किसी का भी सगा,

सर्वत्र दगा ही दगा।


पूरक हैं वे दोनों

दर्पण और आदमी,

पर व्यवहारिकता में

एक पूरब दूसरा पश्चिम,

धूल थी चेहरे पर

दर्पण को तौलियाता रहा।


शुभमस्तु !


03.07.2025●9.00प०मा०

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जातिभेद मूढ़ता [ नवगीत ]

 327/2025

            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सूर्य वंश चन्द्र वंश

उन्हीं के मनुज अंश

जातिभेद मूढ़ता।


सभी करें चार कर्म

लगे नहीं कभी शर्म

फिर भी संग्राम है

मानवता एक धर्म

यही सार एक मर्म

अलग -अलग नाम है

सोए हो कब तक यों

तानोगे अपनी भौं

भौंकना है रूढ़ता।


एक रूप एक रंग

करते हो उसे तंग

बेहतर हैं खग ढोर

श्रेष्ठता हो कर्म की

नहीं रंग चर्म की

विनाश की ये हिलोर

डी एन ए सभी एक

खोया हुआ विवेक

मगज भरी कूढ़ता।


लगता नहीं आदमी

सोचना ये लाजमी

पुनर्विचार कर

आज स्वेच्छाचारिता

नृत्यलीन तारिका

ज्ञान का प्रमाण भर

अहं का विनाश हो

नहीं आसपास हो

पतन पथ आरूढ़ता।


शुभमस्तु !


02.07.2025● 4.15 प०मा०

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बुधवार, 2 जुलाई 2025

मानसून बरसें घने [ दोहा ]

 326 / 2025

    

[झील,सरोवर,मेघ,चातुर्मास,कछार]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                  सब में एक

मानसून  बरसें  घने, सड़कें  बनती झील।

छाए  बादल मेह के,गगन नहीं अब नील।।

प्रिये नयन की झील  में,डूब गया आकंठ।

मुझे उबारो शीघ्र ही ,बनूँ न जब तक संठ।।


भरे   सरोवर    अंबु   से,  टर्राते   हैं    भेक।

प्रेयसि के  आह्वान  में, त्यागें  सभी विवेक।।

खिले   सरोवर में बड़े,कमल पुष्प   रतनार।

अलि दल मँडराने  लगे, करें  सुमन से प्यार।।


मेघ सघन  आषाढ़ के, गरज रहे चहुँ   ओर।

उधर  वनों  में   टेरते,नाच -  नाच बहु   मोर।।

सुनी मेघ की  गर्जना,कंपित विरहिणि  देह।

दुबकी   गृह-एकांत  में,पास नहीं पति - नेह।।


ध्यान  करें  निज  इष्ट का,  पावन चातुर्मास।

शयन   लीन   हरि धाम  में,लेते पुण्य  प्रवास।।

गणों सहित शिव जी करें,संचालन शुचि सृष्टि।

आए    चातुर्मास  जब, करें   नेह की   वृष्टि।।


अति   उपजाऊ  भूमि है, कहते जिसे  कछार ।

हरे - भरे  तरुवर   खड़े,  छाया  घनी   सवार।।

अमराई    मनभावनी, सरि - कछार के  बीच।

झूले   पड़ते  बाग में,   एक   न  गाँव  नगीच।।


                   एक में सब

बादल  चातुर्मास  के, झील सरोवर    ताल।

करते  धन्य  कछार को, बरस मेघ   संजाल।।


शुभमस्तु !


02.07.2025● 6.30 आ०मा०

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मंगलवार, 1 जुलाई 2025

खुदगर्ज़ दुनिया [ नवगीत ]

 325/2025


   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


किसी को किसी की

चिंता न चर्चा

देखी है हमने

खुदगर्ज़ दुनिया।



अकेला ही आया

अकेला ही जाना

किसी को किसी की

खबर भी नहीं है

ये मेरा ये तेरा

सभी कर रहे हैं

अपना कहें जिसको

जग में कहीं है?

आया जो टेशन

उतर वे गए सब

मुड़कर के पीछे

न देखेगी दुनिया।


शिकवा भी क्यों हो

राहें अलग हैं

चले जा रहे हैं

मुसाफ़िर अकेले

बुरा या भला

जो मिलता है तेरा

कहते यही सब

न मतलब के धेले

पैसे से चिपका है

इंसान सारा

पैसे के परित:

भ्रमती है दुनिया।


मिथ्या है माया की

गठरी ये भारी

अकेले -अकेले

उठानी है सबको

सहारा भी देना

न मंजूर इनको

फिसल जब पड़ोगे

पुकारोगे रब को

न कोई सफ़र में

हमदम तुम्हारा

जीती या मरती है

भुगती है दुनिया।


शुभमस्तु !


01.07.2025●12.15 आ०मा०(रात्रि)

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उगते ही सूरज के [ गीत ]

 324/2025

           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


उगते ही सूरज के

आशा फिर जाग उठी।


दूर हटा काला तम

गान  करे   झेंपुलिया

जाग गए पंछी सब

भजन करे पिड़कुलिया

प्राची में लगता है

भाषा अनुराग उठी।


सूखा है एक पेड़

झाड़ों के बीच खड़ा

फुनगी पर बैठा खग

 ज्योतिर्मय रूप बड़ा

धीरे-धीरे पूरब को

तमसा भी भाग उठी।


बहती है हवा सहज

हिलती हैं डाली सब

उजला है अंबर भी

सोते हैं तारे अब

बोल पड़ा उल्लू भी

देखो यह आग उठी।


शुभमस्तु !


30.06.2025 ●11.30 प०मा०

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किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...