526/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
दर्पणों से
लड़ रहा है आदमी
क्या कीजिए ?
इधर दर्पण
उधर दर्पण
चतुर्दिक दर्पण महल है,
दृश्य
चारों ओर तू ही
कौन जो तुझसे सबल है!
तोड़ता है
हाथ अपने आप ही
क्या कीजिए ?
एक बीहड़
अंदरूनी
एक बीहड़ बाहरी भी,
तू बँधा
बिन शृंखला के
सिर सजी है गागरी भी,
दोष औरों पर
लगाता रात - दिन
क्या कीजिए ?
आँधियाँ
अंतर सुनामी
नित्य प्रति की बात है,
हारकर भी
चाहता क्या हारना
पा रहा नित घात है,
दूसरों को दुःख
दे - देकर सताए
क्या कीजिए ?
19.11.2024●2.00प०मा०
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