327/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सूर्य वंश चन्द्र वंश
उन्हीं के मनुज अंश
जातिभेद मूढ़ता।
सभी करें चार कर्म
लगे नहीं कभी शर्म
फिर भी संग्राम है
मानवता एक धर्म
यही सार एक मर्म
अलग -अलग नाम है
सोए हो कब तक यों
तानोगे अपनी भौं
भौंकना है रूढ़ता।
एक रूप एक रंग
करते हो उसे तंग
बेहतर हैं खग ढोर
श्रेष्ठता हो कर्म की
नहीं रंग चर्म की
विनाश की ये हिलोर
डी एन ए सभी एक
खोया हुआ विवेक
मगज भरी कूढ़ता।
लगता नहीं आदमी
सोचना ये लाजमी
पुनर्विचार कर
आज स्वेच्छाचारिता
नृत्यलीन तारिका
ज्ञान का प्रमाण भर
अहं का विनाश हो
नहीं आसपास हो
पतन पथ आरूढ़ता।
शुभमस्तु !
02.07.2025● 4.15 प०मा०
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