शनिवार, 5 जुलाई 2025

बालक [ कुंडलिया ]

 329/2025

           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

       

                        -1-

होते  हैं  सब  एक  दिन,बालक अति  नादान।

अनजाने    भोले     भले,   करते अनुसंधान।।

करते     अनुसंधान,   जानना    चाहें  दुनिया।

मात-पिता के प्राण,अलग ही उनका  गुनिया।।

'शुभम्' अलग ही सोच,अलग ही खाते  गोते।

कठिन कभी हो लोच,विविध रँग बालक होते।।


                         -2-

बालक हैं ये आज के,कल का सफल भविष्य।

समिधा   खोजें   कर्म  की,देंगे नवल हविष्य।।

देंगे  नवल   हविष्य, देश   की प्रगति  कराएँ।

ज्ञान  और  विज्ञान,  देश  का  ध्वज  फहराएं।।

'शुभम्'   हमें   है  आश,बनें भारत के   पालक।

होगा  प्रबल  उजास, करें  अधुनातन  बालक।।


                         -3-

पहले   से  अब हैं  कहाँ, बालक  वे नादान।

उनकी   बुद्धि  कुशाग्र  है,काट रहे हैं  कान।।

काट रहे  हैं  कान, बड़ों के क्या अब  कहना।

बने   हुए  हैं    पुत्र, देश  का अनुपम  गहना।।

'शुभम्'  विश्व  में नाम,उच्च नहले पर   दहले।

समझें    मत   नादान,  नहीं  वे भोले  पहले।।


                         -4-

बनना  है  माँ- बाप  को, संतति  का आदर्श।

बालक  अनुकृतियाँ  बनें, करें गगन संस्पर्श।।

करें  गगन  संस्पर्श, कर्म का ध्वज फहराएं।

करें   जगत   में  नाम, विश्व में नाम कमाएँ।।

'शुभम्'  बनाएँ   लीक, जगाना जाग्रत रहना।

पावन  परम  प्रतीक, नवल मानक है बनना।।


                         -5-

बालक   जिज्ञासा  करें,  करना  नहीं  निराश।

बढ़े   ज्ञान  सीखें  नया, मिले सुखद विश्वास।

मिले सुखद विश्वास, प्रगति  की खुलती राहें।

स्वावलंब     आधार,    खोलता   भावी   बाँहें।।

'शुभम्' खुलें  भंडार, भाग्य के हों संचालक।

उर  में   भरें  उजास, भाग्यशाली  हैं  बालक।।


शुभमस्तु !


04.07.2025●8.00 आ०मा०

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