324/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
उगते ही सूरज के
आशा फिर जाग उठी।
दूर हटा काला तम
गान करे झेंपुलिया
जाग गए पंछी सब
भजन करे पिड़कुलिया
प्राची में लगता है
भाषा अनुराग उठी।
सूखा है एक पेड़
झाड़ों के बीच खड़ा
फुनगी पर बैठा खग
ज्योतिर्मय रूप बड़ा
धीरे-धीरे पूरब को
तमसा भी भाग उठी।
बहती है हवा सहज
हिलती हैं डाली सब
उजला है अंबर भी
सोते हैं तारे अब
बोल पड़ा उल्लू भी
देखो यह आग उठी।
शुभमस्तु !
30.06.2025 ●11.30 प०मा०
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