325/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
किसी को किसी की
चिंता न चर्चा
देखी है हमने
खुदगर्ज़ दुनिया।
अकेला ही आया
अकेला ही जाना
किसी को किसी की
खबर भी नहीं है
ये मेरा ये तेरा
सभी कर रहे हैं
अपना कहें जिसको
जग में कहीं है?
आया जो टेशन
उतर वे गए सब
मुड़कर के पीछे
न देखेगी दुनिया।
शिकवा भी क्यों हो
राहें अलग हैं
चले जा रहे हैं
मुसाफ़िर अकेले
बुरा या भला
जो मिलता है तेरा
कहते यही सब
न मतलब के धेले
पैसे से चिपका है
इंसान सारा
पैसे के परित:
भ्रमती है दुनिया।
मिथ्या है माया की
गठरी ये भारी
अकेले -अकेले
उठानी है सबको
सहारा भी देना
न मंजूर इनको
फिसल जब पड़ोगे
पुकारोगे रब को
न कोई सफ़र में
हमदम तुम्हारा
जीती या मरती है
भुगती है दुनिया।
शुभमस्तु !
01.07.2025●12.15 आ०मा०(रात्रि)
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