मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

मी टू [Mee Too] अग्नियान

   मी टू कोई अभियान नहीं, अग्नियान है। जिसमें नारी स्वयं चिल्ला  चिल्ला कर कह रही है कि अमुक पुरुष ने उसके साथ इतने वर्ष पहले वह वह कृत्य किया था , जो  एक पति- पत्नी के मध्य होता है। उस वक्त उन्हें तरक्की की सीढ़ियां चढ़नी थीं, इसलिए मुँह नहीं खुला और साहस आया है कि सहज स्वीकृति का ढोल पीट पीटकर उदघोष किया जा रहा है।अब क्या उल्लू सीधा हो गया। काम निकल गया। बहादुरी दिखाने का अच्छा मौका है। दिखा लो। वैसे भी हमारे महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरित मानस में  सोलहवीं सदी में लिख दिया है:

नारि स्वभाव सत्य कवि कहहीं।
अवगुण आठ सदा उर रहहीं।।
साहस अनृत चपलता माया।
भय अविवेक अशौच अदाया।।

नारी में साहस तो पुरुष की अपेक्षा अधिक है ही। इसलिए उनमें आज साहस का जागरण कुछ अधिक ही हो गया है। अनृत का अर्थ अन+ऋत' जो ऋत नहीं अर्थात झूठ । चपलता और माया (जो नहीं है, वही माया है। मा=नहीं, या= जो) अर्थात वह भी झूठ ही हुआ। सचाई तो है ही नहीं कहीं। उधर अविवेक भी आग में घृत के समान अर्थात क्या कहें क्या न कहें उसको सोचने समझने की सामर्थ्य से शून्यता। आदि आदि। दस बीस तीस वर्ष के बाद ये आग के वाहन यानी यान पर सवार होकर चलना कोई बहुत बुद्धिमता पूर्ण निर्णय नहीं कहा जा सकता।
   पश्चिम की नकल और अंधानुकरण पर जहां किसी भी स्त्री को कितने भी पुरुष साथी बदलने की आज़ादी है। वहाँ सुबह से शाम तक विवाह और तलाक दोनों सम्भव है। उन देशों के लोगों की नकल पर इतनी बोल्डनेस परिवार, समाज,राष्ट्र, धर्म, संस्कृति और सभ्यता सबके लिए महा घातक प्रयास है। जिस स्त्री को अपने पति, परिवार ,धर्म और समाज के विवेक का ध्यान होगा , वह कभी भी ऐसी बोल्ड स्वीकृति नहीं देगी। जो नारियाँ
इसके विपरीत चरित्र की स्वामिनी हैं, वे ही कोर्ट से न्याय की तलाश औऱ अपने साहस की दुंदुभी बजाती नज़र आ रही हैं। किसी पुरुष के ऊपर कीचड़ उछालने से हो सकता है ,उनका कुछ भला हो रहा हो।
   सहमति और जबरदस्ती में बहुत बड़ा अंतर है। अब कैसे सिद्ध किया जाए कि सहमति से हुआ या बलपूर्वक। यदि सहमति से  हुआ तो कोई गुनाह नहीं, वैसे वही आज माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पत्नी के किसी परपुरुष से सहमति के आधार पर सहज यौन संबंधों को जायज , बाकायदा धारा 497 को समाप्त करते हुए  वैध बना दिया है। अब तो स्त्री के लिए भाड़ में जाए पति औऱ परिवार, अब तो वह वही कर सकेगी जो वह चाहेगी। इसमें उसकी राह में कोई पति, बच्चे, सास,ससुर, रिश्तेदार नहीं कह सकते कि बहू तू ऐसा क्यों कर रही है।
   एक तो करेला फिर  नीम चढ़ा  इधर विवाहेतर यौन संबंधों को स्वेच्छाचारिता की बलिवेदी पर होम किया गया , और अनैतिक सम्बन्ध क़ानूनन जायज़ करार दिए गए। और दूसरी ओर नारी के अविवेकी माया शील साहस ने उसे चपलता की हदें पार करने की हिम्मत दे दी। सिक्के का दूसरा पहलू ये है कि जिस साहस की बात आज कुछ नारियों में उभरी है, काश वही साहस कुछ या अधिकांश पुरुषों में आ जायँ, तब क्या होगा। वे भी कहने लगें कि मेरे ऐसे अवैध संबंध फलां फलां स्त्रियों के साथ हुआ करते थे। तब क्या देश और समाज में आग नहीं लग जाएगी? लोग अपनी पत्नियों को घर से बाहर का रास्ता दिखाने लगेंगे। तलाक के मामलों से कोर्ट भर जाएंगे।उनकी बेटियां  औऱ बेटे अपने पिता से नफ़रत करने लगेंगे। अच्छा आप ऐसे थे? आप चरित्र कितना गंदा है।आपको जीने का अधिकार नहीं है। आदि आदि। पर पुरुष का विवेक इस सबको स्वीकार करने की अनुमति
नहीं देता। उसे अपने परिवार , समाज और मर्यादा की फिक्र है। आज भी भारतीय  पुरुष की नैतिकता उतनी नहीं गिरी है। धारा 497 की अकाल मौत ने तो सारी नैतिकता की धज्जियां ही उड़ा के रख दीं हैं। अब क्या है?
आदमी को कुत्ता, बिल्ली, सुअर, गधा, घोड़ा की श्रेणी में खड़ा कर दिया गया है। कुछ भी करो, किसी के साथ करो, कहीं भी करो। कोई बैरियर नहीं, कोई स्पीड ब्रेकर नहीं। अनैतिकता औऱ पाशविकता की गाड़ी बेरोक टोक कहीं भी ले जा सकते हैं। पुरुष भी स्त्री भी। नो लाइसेंस नो सर्टिफिकेट, नो करेक्टर, नो चेकर, नो इंस्पेक्टर। न समाज के विरोध की चिंता न पति या पत्नी के विरोध का कोई अर्थ। कुछ भी करो न पाप न अपराध।
न कानून डर न पुलिस का खौफ़। ऐसी स्वचेच्छाचार आज़ादी फिर कहाँ मिलेगी।
   इन दोनों अग्नियानो में हमारी सरकार कम दोषी नहीं है। इस नैतिक पतन का सारा श्रेय सरकार का ही है। वह मौन धारण किए बैठी है। शर्माधीश और धर्माधिकारी मौन स्वीकृति दे रहे हैं। कहीं कोई आवाज नही। साई बाबा के विरोध में बोलने वाले कहाँ चले गए? धर्म में विष वपन करने वाले आस्था पर पत्थर प्रहारी अब चुपचाप कानों में तेल डालें बैठे हैं। कहाँ चली गई उनकी नैतिकता औऱ वेद पुराणों की दुहाई। सारे कुओं में भाँग घोल दी गई है। जिससे विद्वान न्यायाधीश भी अछूते नहीं हैं। अन्यथा ऐसे विनाशकारी निर्णय, देने और देश की मर्यादा, संस्कृति, सभ्यता, नैतिकता औऱ धर्म को नष्ट करने की इज्जाजत किसी  को भी नहीं है। किसी को भी नहीं है।

💐 शुभमस्तु !

✍🏼लेखक ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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