रविवार, 21 अक्तूबर 2018

मी टू ! मी टू !! मी टू !!!

मी टू !      मी टू !!    मी टू !!!
किस  किस को  कोर्ट घसीटू।

तब था वसन्त  अब पतझड़
क्यों   कीचड़   उधर  पछीटू?

 खरबूजा    गिरे     छुरी   पर 
उस  छुरी  पे   दोष   मढ़ी दूँ?

 या   छुरी     गिरे    खरबूजा 
फिर भी   मैं ही    कटनी   हूँ।

हर    हाल    कटे    खरबूजा 
फिर   क्यों  बिंदास बनी  हूँ?

 ये     पुरुष    परुषतावाचक 
मैं    कोमल  कांत    कली हूँ।

एक  हाथ   न   बजती  ताली
ये बात  न    क्यों   समझी हूँ?

क्या  दूँगी  प्रमाण  साक्षी  में
क्या तथ्य   जुटा   सकती हूँ?

सहमति   थी   या जबरन था 
कैसे  क्यों  कह  सकती   हूँ? 

सबला   हूँ  तो  क्या   उनको 
झूठे    फँसवा    सकती   हूँ?

बिंदास   बोल   की    चिनगी
सर्वस्व    जला   सकती    हूँ?

डाले     अतीत     पर   परदा 
अब  तक  न भुला सकती हूँ?

मैं     शील     लाज की    सीमा 
पल भर में   जला    सकती  हूँ?

सोचूँ     सोचूँ        फिर   सोचूँ 
तब  "शुभम" बना सकती हूँ।

💐 शुभमस्तु !

✍🏼©रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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