ए पूर्णिमा के चाँद 
     तू चारु  भी चंचल भी
    शरद के श्री गणेश का
    आनन्द भी
    अति  शांत मौन
    अमंद भी
     जल थल अम्बर में 
     छाया प्रकाश
    प्रकृति के पत्र-पत्र पर
    प्रसरित उजास
    मानों अधरों पर
   निखरा नव मूक हास,
   चाँदनी भी साथ -साथ
   तेरे  पारित: आस पास।
  चाँदनी बिना चाँद क्या !
  चाँद बिना नहिं चाँदनी
  परस्पर  का प्रणय उज्ज्वल
   सीमा नहीं बांधनी ,    
  क्वार की क्वारी चाँदनी
  करती - सी मनुहार तव
  प्रणय  में अनुरक्त प्रिया
  चाहत नहीं  कोई हो रव,
निश्छल निर्मल धवल  चाँदनी
अविकल अविरल चन्द्र रश्मियां
पूरक एक दूजे के दोनों
शरमाती मदमाती  रम्या।
💐शुभमस्तु !
✍🏼© रचयिता 
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
 
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