शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2018

गढ़े हुए मुर्दे

गढ़े  हुए  मुर्दे  उखड़ने  लगे हैं,
पड़े हुए  थे पर्दे उघड़ने लगे हैं।

तब शर्म थी अब विदा हो गई है,
खुलेआम इक़रार  करने लगे हैं।

मजबूरी रही या चढ़नी थी मंज़िल,
चुपचाप थे अब   बिफरने  लगे हैं।

बड़ा आसान अब मर्द को फंसाना
जवानी के   तजुर्बे उभरने लगे हैं।

जानते हैं सुबूत अब मिलना नहीं है
दिल में जो आए कहने लगे हैं।

धुआँ जो उठा है तो रही आग होगी
हम मक़सद की माथापच्ची में लगे हैं।

जमाने के नए रंग अब रूबरू हैं,
कौन क्या कह दे हम डरने लगे हैं।

'मी टू' का मीटिंग से रिश्ता करीबी
बिंदास बोलों के खरबूजे पके हैं।

बुरे हादसे जो हुए थे  कभी कुछ,
बेलगाम" शुभम" अब दहने लगे हैं।।

💐शुभमस्तु!

✍🏼रचियता ©
डॉ.भगवत स्वरूप"शुभम"

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