अगर एक काम नहीं करेगी ,तो दूसरी से हो जाएगा। यदि एक का नेटवर्क गड़बड़ायेगा तो दूसरी से आश बांधी जा सकती है। उद्देश्य एकमात्र ये कि काम बाधित नहीं होना चाहिए। बात भी सही है। जब देश में मोबाइल की शुरुआत हुई थी, उस समय एक सिम के मोबाइल ही हुआ करते थे। काम भी चलता था एक ही से। पर अब तो दो-दो क्या तीन -तीन भी मिल जाती हैं। कई-कई सेट भी कम पड़ जाते हैं। ज़रूरत जितनी भी बढ़ा ली जाएं, हमेशा कम ही पड़ती हैं। जीवन की घड़ियाँ निश्चित हैं, इच्छाओं का अंत नहीं है। जीवन को परिभाषित कर दे, ऐसा कोई संत नहीं है।।
बचपन में कभी अलीबाबा और चालीस चोर नामक कहानी में सिम शब्द पहली बार पढ़ा और सुना था , वह भी अकेली सिम नहीं, डबल सिम ही थी। सिम सिम खुल जा ,कहते ही गुफा का द्वार खुलता और सिम सिम बन्द हो जा कहते ही बंद हो जाता। कहानी लिखने वाले ने सिम की खोज सैकड़ों वर्ष पहले ही कर दी थी। हम कहते हैं कि ये विज्ञान की आधुनिक खोज है। जी नहीं , कहानी चाहे काल्पनिक हो या यथार्थ पर सिम की खोज तो तभी हो गई थी। हमारे लेखक औऱ सहित्यविद कितने दूरदृष्टा थे, कितने बड़े भविष्यवक्ता थे -इससे स्पष्ट हो जाता है।
इसी सिम थ्योरी को ध्यान में रखते हुए यदि हमारे विद्वान न्यायाधीशों की टीम ने जब अपना फैसला सुना दिया और एक के साथ एक ही नहीं कितनी/कितने भी रखने की छूट प्रदान कर दी, तो यह भी इस डबल सिम थ्योरी पर आधारित ही प्रतीत होता है। इसकी प्रेरणा भी शायद यहीं से ली गई होगी। जिसके तहत दकियानूसी प्रथा को समाप्त कर दिया गया। धारा - 497 को रद्दी के टोकरे के हवाले कर दिया गया। अब कोई भी विवाहित पुरूष पत्नी के अतिरिक्त भी अन्य सहेलियों के संग संग कर सकता है और समानाधिकार की धारा के अनुसार अपने समान अधिकार का "सदुपयोग?" भी कर सकता है। यही स्थिति स्त्रियों के लिए भी उतनी ही अधिक प्रभावकारी है, जितनी पुरुष के लिए। अर्थात पति के साथ साथ उसके अतिरिक्त सिम उपयोग करने का समान अधिकार प्राप्त है। एक ही सेट में जैसे कई सिम सुशोभित होते हैं , वैसे ही एक ही घर रूपी सेट में कितने भी सिम रूपी नर नारी बाकायदा क़ानूनन एक जायज तरीके से सेट हों तो किसी को भी कोर्ट रूपी सर्विष सेंटर पर जाने की ज़रूरत नहीं होगी। यदि कोई भी शख्स ऐसा महसूस करता या करती है, तो उसकी याचिका प्रथम दृष्टया खारिज़ कर दी जाएगी।
अलीबाबा से आज तक की सिम की यह विकास यात्रा चोंकाने वाली जरूर लगती है। पर पुराने सहित्य के पन्ने तो पलटिए जहाँ साहित्य, विज्ञान, समाज विज्ञान और विधि शास्त्र सब एक ही घाट पर पानी पी रहे हैं। परम्परा, चरित्र, अपराध बोध, नैतिकता सब सड़ी-गली गलीज चीजें बनकर रह गए हैं। अब इन सबका महत्व समाप्त हो
गया है। और सबसे बड़े मजे की बात ये कि हमारे अमेरिकन माइंडेड ब्रेन ने सब मौन और सहज भाव से स्वीकार कर लिया है। सर्वत्र शांति है, क्या कानून की दहशत है,?क्या देश का इतना अधिक नैतिक पतन हो चुका है?इसलिए। या हमारा समाज ही ऐसा हो गया है /हो रहा है इसलिए? ये बहुत सारे प्रश्नः हैं जो दिलो -दिमाग को कुरेदते ही हैं। ये डबल सिम थ्योरी भविष्य को कहाँ ले जाएगी। कहा नहीं जा सकता। हाँ , इतना अवश्य है कि
व्यभिचार को अब शब्द कोष से खत्म करने का क़ानूनन अधिकार प्राप्त हो गया है। जब देश और समाज में व्यभिचार कुछ है ही नहीं , तो क्या शब्दकोश कोई मुर्दों का अजायब घर थोड़े ही है, जो उसमें फॉर्मेल्डिहायड डाल कर प्रिजर्व किया जाएगा?
💐शुभमस्तु !
✍🏼©लेखक
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
बचपन में कभी अलीबाबा और चालीस चोर नामक कहानी में सिम शब्द पहली बार पढ़ा और सुना था , वह भी अकेली सिम नहीं, डबल सिम ही थी। सिम सिम खुल जा ,कहते ही गुफा का द्वार खुलता और सिम सिम बन्द हो जा कहते ही बंद हो जाता। कहानी लिखने वाले ने सिम की खोज सैकड़ों वर्ष पहले ही कर दी थी। हम कहते हैं कि ये विज्ञान की आधुनिक खोज है। जी नहीं , कहानी चाहे काल्पनिक हो या यथार्थ पर सिम की खोज तो तभी हो गई थी। हमारे लेखक औऱ सहित्यविद कितने दूरदृष्टा थे, कितने बड़े भविष्यवक्ता थे -इससे स्पष्ट हो जाता है।
इसी सिम थ्योरी को ध्यान में रखते हुए यदि हमारे विद्वान न्यायाधीशों की टीम ने जब अपना फैसला सुना दिया और एक के साथ एक ही नहीं कितनी/कितने भी रखने की छूट प्रदान कर दी, तो यह भी इस डबल सिम थ्योरी पर आधारित ही प्रतीत होता है। इसकी प्रेरणा भी शायद यहीं से ली गई होगी। जिसके तहत दकियानूसी प्रथा को समाप्त कर दिया गया। धारा - 497 को रद्दी के टोकरे के हवाले कर दिया गया। अब कोई भी विवाहित पुरूष पत्नी के अतिरिक्त भी अन्य सहेलियों के संग संग कर सकता है और समानाधिकार की धारा के अनुसार अपने समान अधिकार का "सदुपयोग?" भी कर सकता है। यही स्थिति स्त्रियों के लिए भी उतनी ही अधिक प्रभावकारी है, जितनी पुरुष के लिए। अर्थात पति के साथ साथ उसके अतिरिक्त सिम उपयोग करने का समान अधिकार प्राप्त है। एक ही सेट में जैसे कई सिम सुशोभित होते हैं , वैसे ही एक ही घर रूपी सेट में कितने भी सिम रूपी नर नारी बाकायदा क़ानूनन एक जायज तरीके से सेट हों तो किसी को भी कोर्ट रूपी सर्विष सेंटर पर जाने की ज़रूरत नहीं होगी। यदि कोई भी शख्स ऐसा महसूस करता या करती है, तो उसकी याचिका प्रथम दृष्टया खारिज़ कर दी जाएगी।
अलीबाबा से आज तक की सिम की यह विकास यात्रा चोंकाने वाली जरूर लगती है। पर पुराने सहित्य के पन्ने तो पलटिए जहाँ साहित्य, विज्ञान, समाज विज्ञान और विधि शास्त्र सब एक ही घाट पर पानी पी रहे हैं। परम्परा, चरित्र, अपराध बोध, नैतिकता सब सड़ी-गली गलीज चीजें बनकर रह गए हैं। अब इन सबका महत्व समाप्त हो
गया है। और सबसे बड़े मजे की बात ये कि हमारे अमेरिकन माइंडेड ब्रेन ने सब मौन और सहज भाव से स्वीकार कर लिया है। सर्वत्र शांति है, क्या कानून की दहशत है,?क्या देश का इतना अधिक नैतिक पतन हो चुका है?इसलिए। या हमारा समाज ही ऐसा हो गया है /हो रहा है इसलिए? ये बहुत सारे प्रश्नः हैं जो दिलो -दिमाग को कुरेदते ही हैं। ये डबल सिम थ्योरी भविष्य को कहाँ ले जाएगी। कहा नहीं जा सकता। हाँ , इतना अवश्य है कि
व्यभिचार को अब शब्द कोष से खत्म करने का क़ानूनन अधिकार प्राप्त हो गया है। जब देश और समाज में व्यभिचार कुछ है ही नहीं , तो क्या शब्दकोश कोई मुर्दों का अजायब घर थोड़े ही है, जो उसमें फॉर्मेल्डिहायड डाल कर प्रिजर्व किया जाएगा?
💐शुभमस्तु !
✍🏼©लेखक
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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