१
आज करवा चौथ
भाए ना सौत
दोनों के बीच में।
२
तू मेरा चाँद
मैं तेरी चाँद
मध्य जगमग है चाँदनी।
३
निर्जला व्रत
अटल मेरा सत
आजीवन रातदिन।
४
पाँवों में लाल लाल
अधरों का हास लाल
माँग भरी सिंदूरी।
५
दीर्घायु की कामना
प्रणय मम पावना
सात -सात जन्म तक।
६
आशा और विश्वास दृढ़
एक से एक बढ़
हम दोनों के बीच में।
७
प्रीतम ही उपहार मम
जीवन का सार मम
जन्मांतर का संग है।
८
मैं पति का शृंगार
मैं उसके अनुसार
यह सद गार्हस्थ है।
९
बंधन नहीं प्यार है
न ओछा विचार है
मेरी बगिया का माली वह।
१०
एक व्रत एक पूजा
कोई और नहीं दूजा
मेरे आसमां का चाँद वह।
११
मेरी एक धारा है
पति ही किनारा है
आब और आबरू।
१२
पति मेरी स्वाति है
पपीहा मेरी जाति है
जीवन -आराधना।
१३
आसमां का चाँद वह
धरती का चाँद यह
जगमगाती मैं चाँदनी।
१४
साध्य मैं पति साधना
क्यों किसे फिर बांधना?
पूरक हैं एक दूजे के लिए।
१५
पति -पत्नी से संसार है
गार्हस्थ ही उपहार है
सृष्टि-संचालन के हेतु ही।
शुभमस्तु!
✍©रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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