शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

चातक [कुंडलिया]

 336/2025


                   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

चातक  की हठसाधना,  का न जगत में जोड़।

पीता  केवल   स्वाति जल,कौन करेगा   होड़।।

कौन    करेगा    होड़, न पीता सुरसरि   गंगा।

लेता   है   मुख   मोड़,  प्रतिज्ञा  कर हो   चंगा।।

'शुभम्' मनुज को सीख, यही दे करें न पातक।

लें उससे कुछ ज्ञान, कहा जाता खग   चातक।।


                         -2-

रसना  को  रटना  यही, पिए  स्वाति जल  बूँद।

और नहीं  जल  चाहिए,  रटे   नयन निज मूँद।।

रटे   नयन  निज  मूँद, एकटक ध्यान   लगाए।

देख   रहा  नभ    ओर,  प्रतिज्ञा  पूर्ण   कराए।।

'शुभम्'    वही  है   श्रेष्ठ, करे जो पूरा   सपना।

प्रेरक    चातक   नेक, नियंत्रण  में  है   रसना।।


                         -3-

बादल से  याचन करे,  पिउ-पिउ पुण्य  पुकार।

मानसून   के   बादलो, तुमसे  मुझको   प्यार।।

तुमसे  मुझको  प्यार, एक प्रण सदा निभाऊं।

धरती   का  जल  पान,कभी करने क्यों जाऊँ।।

'शुभम्'  यही विश्वास,आज का मत होना कल।

मैं   चातक खग एक,नेह करता प्रिय   बादल।।


                         -4-

चातक  को  गुरु मानिए, प्रण  की लेना सीख।

फैला   सबके  सामने ,  नहीं   माँगना   भीख।।

नहीं  माँगना    भीख,  पात्र  ही भरता   झोली।

होती  है  पर्याप्त ,  नेह   की अरुणिम    रोली।।

'शुभम्'    प्रतिज्ञा   हेतु,  नहीं करना है  पातक।

प्रेरक   गुरु   सारंग,  जगत  में कहते   चातक।।


                        -5-

शिक्षा  देता  एक  ही, स्वाभिमान रख  मित्र।

नाशवान    नर  देह   है,केवल  अमर  चरित्र।।

केवल अमर चरित्र, सदा  छवि सुघर  बनाना।

करें    पीढ़ियाँ   याद, कर्म का  धर्म निभाना।।

'शुभम्'  श्रेष्ठ  सारंग, माँगता लेश  न  भिक्षा।

देख - देख  हो  दंग,जगत  खग देता  शिक्षा।।


शुभमस्तु !


10.07.2025● 6.15प०मा०

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