शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

चातक की टेक [अतुकांतिका]

 337/2025

                 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


स्वाभिमान चातक- सा

मिलता है भला कहाँ!

पतित हो जाते जन

कठिन है निभाना टेक।


पीता नहीं गंगा जल

चातक की है टेक एक

पीना है स्वाति जल

त्यागे क्यों निज विवेक?


 धैर्य और प्रतीक्षा का

एक ही निदर्शन है

पिउ -पिउ की रटन लगाए

खग वह पपीहा।


पीना है बिंदु वही

बरसे जो स्वाति से

इसी की पुकार है

मेघों से प्यार है।


प्रेरक है 

गुरु भी वह

सीखना है तो सीख ले

चातक की पुकार से

चरित्र निर्माण कर।


शुभमस्तु !


10.07.2025●6.45प०मा०

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