शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

ज्ञान [सोरठा]

 335/2025

      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 भरें     ज्ञान -  भंडार ,  वीणावादिनि  शारदा।

सहज शब्द साभार,'शुभम्' लिखे माँ सोरठा।।

जैसे  शूकर   श्वान,  ज्ञान  बिना नर शून्य है।

बनता  मनुज महान,महिमा महती ज्ञान की।।


उसका  है  क्या  मोल,ज्ञान नहीं व्यवहार में।

लगा  ज्ञान  को  तोल,उचित यही उपकार में।।

आता   है  तब  काम, ज्ञान  भरा  है  ग्रंथ   में।

करता उसे   प्रणाम, जब  मानव उपयोग  से।।


समाधान   है  व्यर्थ, ज्ञान - ग्रंथि खोले   बिना।

सक्षम 'शुभम्'  समर्थ, ज्ञानी  ही होते   सदा।।

समय  पड़े  ले  काम, ज्ञान -कोष पूरित  रहे।

सदा  चमकता   नाम, ज्ञानी जन का  विश्व में।।


अलग-अलग है ज्ञान,मनुज-मनुज सब एक-से।

करके   अनुसंधान,   ज्ञान   बढ़ाएं आप  भी।।

कृषक    और  मजदूर,  नेता  अधिकारी   बड़े।

महाबली  नर  शूर,  ज्ञान  सभी का भिन्न  है।।


बढ़ता  है  तब  ज्ञान, ज्ञानी  की संगति  करें।

बने  न  मनुज  महान,संगति करते मूढ़ की।।

अलग-अलग है ज्ञान,पशु-पक्षी मानव सभी।

बनते   वही   प्रमान,   कर्मों से पहचानते।।


बढ़े  ज्ञान  की  धार,  करें ज्ञान की साधना।

कोष  सभी  साभार,ग्रंथ  मनुज  बहु कर्म हैं।।


शुभमस्तु!


10.07.2025●6.30आ०मा०

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