334/2025
[ मेघावरी,पतवार,तटबंध,घाट,धारावती]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
मंद-मंद मेघावरी, उड़े मरुत के संग।
रवि किरणों का लोप है,श्याम श्वेत नभ रंग।।
देख - देख मेघावरी,छोड़ रहे बक ध्यान।
प्रमुदित हो नभ में उड़े,छेड़ रहे स्वर तान।।
केवट ले पतवार को, चले नाव के पास।
देख नदी में बाढ़ को,जगी हृदय में आस।।
भक्ति - भाव पतवार है, करे जगत से पार।
पल भर उसे न छोड़ना, यदि डूबो मँझधार।।
बाढ़ - नियंत्रण के लिए, सुदृढ़ कर तटबंध।
लगा प्रशासन देश का,समझे क्या मतिअंध!!
सुदृढ़ हों तटबंध तो, रुके बाढ़ का वेग।
जन-धन की क्यों हानि हो,रुके विनाशक तेग।।
घाट - घाट का पी रही, पानी नारी आज।
बड़े - बड़ों के काटतीं, कान करें बहु काज।।
लगी घाट पर नाव तो,करने को सरि पार।
मुदित हुईं नर - नारियाँ, केवट का आभार।।
सरि गंगा धारावती, करती जन उद्धार।
अभिसिंचन भू का करे, द्रवित दिव्य उपहार।।
धारावती प्रवाह हो,जनगण मन का आज।
होगा जग उपकार ही,सजा विविध रँग साज।।
एक में सब
सरि गंगा धारावती, लिए घाट पतवार।
नभ में सित मेघावरी ,दृढ़ तटबंध अपार।।
शुभमस्तु !
09.07.2025●7.15 आ०मा०
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