333/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अंबर से
झर - झर -झर झरते
जल कण मेघ- बहार।
भर -भर अँजुरी
क्रीड़ा करती
नवयुवती ब्रजबाला
अरुण चूड़ियाँ
मौन धरे हैं
लगा हुआ ज्यों ताला
आती याद न
मधुर रागिनी
सावन मेघ मल्हार।
निश्चित है यह
हर्षित होगी
मन में उठे हिलोर
खूब नहाए
बाहर जाकर
होता हृदय विभोर
पर समाज के
बंधन रोकें
देते उसे नकार।
हरियाली का
नया समा है
देख नयन सरसाते
खेत बाग वन
हरे भरे हैं
किसे नहीं वे भाते
बुला रहे हैं
भीतर प्रीतम
उमड़ उठा है प्यार।
शुभमस्तु !
08.07.2025●8.45आ०मा०
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