सोमवार, 4 अप्रैल 2022

सजल 🌳


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समांत : इयाँ।

पदांत: अपदान्त।

मात्राभार :26.

मात्रा पतन:शून्य।

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 ✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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फल-भार से झुकने लगीं आम्रतरु की डालियाँ

कौन जाने गा रहा या दे रहा पिक  गालियाँ


ऋतुराज का स्वागत करें सद पवन ये कह रहा

भृङ्ग गुंजन कर रहे हैं आ रही हैं तितलियाँ


रात दिन बेचैन रहती विरहिणी निज सेज में

द्वार पर आ-आ चिढ़ातीं मदभरी मतवालियाँ


देह में लगने लगी है तप्त करती  आग-सी

बंध से निर्बंध क्यों हैं कसमसाती चोलियाँ


'शुभम' बूढ़े पीपलों के होठ रोली  हो  गए

खाल हरियाने लगी है बज उठी हैं तालियाँ


🪴 शुभमस्तु !


४.०४.२०२२◆९.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।


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