शनिवार, 16 अप्रैल 2022

उम्मीद [अतुकान्तिका ]

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️शब्दकार ©

🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

उम्मीद की धुरी पर

टिका हुआ संसार,

सब कुछ

शुभ ही होगा,

अनुकूल होगा समय,

सभी हमारे अनुकूल होंगे,

और हम भी 

सबके अनुकूल हों;

ये भावना ही

भवितव्य को

सुखकर बनाती,

लक्ष्य तक पहुँचाती,

प्रशस्त करती हुई

हमारा आगामी पथ,

जीवन का रथ।


मन के हारने से

हार ही होनी है,

नई -नई मंजिल पर

चलने की नई फसल

बोनी है,

इसलिए मन को

अशक्त नहीं बनने देना,

हमारा मनोबल ही है

हमारी मजबूत सेना,

जीवन की परीक्षा में

हमें हर सवाल का

जवाब आता है,

यही हौसला तो

हमें निरंतर आगे

बढ़ाता है,

जिसे उम्मीद कहें

अथवा आशा,

सैनिक का मनोबल

उसे दुश्मन पर

विजयी

बनाता है,

यों तो 

जो सूरज उदयाचल पर

प्रातः तेज चमकता है,

वही संध्या को

अस्ताचल पर जाता है,

पुनः वही प्रातः

नया उजाला

फैलाता है,

उसी उज्ज्वलता की

 कामना में जियें,

उम्मीद का अमृत

'शुभम' नित पिएं।


🪴 शुभमस्तु !


१६.०४.२०२२◆२.४५ 

पतनम  मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...