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✍️ शब्दकार ©
🪸 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्
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भाभी के आनंद का ,हरण करे जो नारि।
ननद उसे कहते सभी,रहना सभी सँभारि।।
आनंदित करना नहीं, किसी ननद का काम।
भावज की कमियाँ लखे, नरक बनाए धाम।
भैया से चुगली करे, ढूँढ़े भावज - दोष।
कच्चा हो यदि कान का,करे तिया पर रोष।।
ननदें नित तकरार का,घर में कारण एक।
भाभी वह बड़भागिनी,जिसकी ननदी नेक।।
मात, पिता, भ्राता सभी, करते हैं विश्वास।
सुता भूमिका ननद की,बन बैठी जब सास।।
समझे ननदी आपको,सबसे ही मतिमान।
भावज कचरा बाहरी, काटे ननदी कान।।
ननदी जिस घर में बनी,संचालिका प्रधान।
घर विनाश की राह में,गाता रौरव - गान।।
नारी ,नारी के लिए, क्यों है आरी मीत।
भरें पुरुष के कान दो,चाहें अपनी जीत।।
दिखलाती अभिजात्यता,नारी निज उत्कृष्ट।
घर में ठाने रार को,ननदी अति पथभ्रष्ट।।
चूल्हे - माटी के सभी,सत्य सभी ये बात।
घर- घर में जो रार है, ननदी कारण जात।।
नारी - नारी के लिए, क्यों बनती विषबेल।
भाई का घर रौंदती, खेल रही बहु खेल।।
🪴 शुभमस्तु !
२६.०४.२०२२◆७.४५आरोहणं मार्तण्डस्य।
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