शनिवार, 16 अप्रैल 2022

नशा [अतुकांतिका ]

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ .भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सुना ही नहीं ,

देखा भी है,

नशे में उन्मत्त

अंग्रेज़ी बोलने लगता है,

भले ही एक भी दिन 

कालेज क्या

मदरसे में भी नहीं गया हो,

हिंदी भी नहीं पढ़ी हो

पर बोलता है अंग्रेज़ी ही।


संभवतः

 नशा और अंग्रेज़ी का

कोई निकट का नाता है,

आवश्यक नहीं कि

नशा शराब का ही हो,

वह धन का बल का

विद्या का अविद्या का

कोई भी हो सकता है!


नशा शराब में नहीं

आदमी की

 सख्सियत में होता है,

 वरना बोतल 

स्वयं नाच उठती,

भंग ,नहीं करती

 भंग किसी की चेतना,

वह तो आदमी ही

भंग में निहंग 

बना बैठा है,

एक नाग फन का

दंश है,

तो दूसरा बिच्छू का

अंश है।


नशा नाश के

अत्यंत निकट है,

अपने ही अहं में

बड़ा विकट है,

उसे तो बस

अपनी ही बात की

एक रट  है,

उसे मिलनी चाहिए

सटासट है,

चाहे बिके परात

चाहे बिके घट है!


नशे के रँग में

जो फँसा है,

जैसे मकड़ा

अपने बनाए जाल में

स्वयं ही टंगा है,

उसी में मस्त है,

नशे से ही 'स्वस्थ' है,

सारी दुनिया एक ओर,

नशेबाज दूसरी ओर,

भले उससे कोई त्रस्त हो

नशेबाज  अपने में

मस्त है।


🪴शुभमस्तु !

१५.०४.२०२२◆१.००

पतनम मार्तण्डस्य।

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