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✍️ शब्दकार ©
🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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माँ शैलपुत्री
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नौ देवी में प्रथम है ,शैलसुता का रूप।
करें जगत -कल्याण माँ,गिरें न जन भवकूप।
हेमवती वृषवाहिनी, दाएँ हाथ त्रिशूल।
हमें बचा माँ पाप से, कमल वाम कर फूल।।
माँ ब्रह्मचारिणी
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तप -आचरणी मात का,करते हैं हम ध्यान।
देती हैं माँ सिद्धियाँ, तप, वैराग्य - निधान।।
ब्रह्मचारिणी मात से,मिलता सत आचार।
संयम देतीं भक्त को,देतीं 'शुभम' उबार।।
माँ चंद्रघंटा
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अर्द्ध चंद्र आकार का, सोहे घंटा भाल।
सिंहवाहिनी दशभुजा, चंद्र घंट सुविशाल।।
माँ महिषासुरमर्दिनी, कर दुष्टों का नाश।
कहलातीं चंदघंटिका, करें मुक्त भवपाश।।
माँ कूष्मांडा
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कुसुम सदृश मुस्कान की,माँ कूष्मांडा नेक।
अष्ट भुजाएँ धारिणी, दें यश ,आयु,विवेक।।
पूरा ही ब्रह्मांड ये, धर निज गर्भ महान।
देतीं शुभ आरोग्य माँ, कूष्मांडा वरदान।।
माँ स्कंदमाता
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माता सुत स्कन्द की,सबल भुजाएँ चार।
कमलासन पर सोहतीं,खुलें मोक्ष के द्वार।।
यशस्विनी स्कंद माँ, गोद लिए स्कंद।
कमल सुशोभित हाथ में,स्मिति मुख मकरंद
माँ कात्यायनी
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कात्यायन ऋषि के यहाँ,लिया सुता अवतार
कहलाईं कात्यायनी, सुघर भुजाएँ चार।।
सिंहवाहिनी दे रहीं, चार -चार पुरुषार्थ।
देवी दानवघातिनी, शुभदात्री परमार्थ।।
माँ कालरात्रि
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कालरात्रि माँ सातवीं,चार भुजा दृग तीन।
असुरनाशिनी रौद्रिणी,गर्दभ पर आसीन।।
संहारक माँ कालिका, राक्षस, भूत, पिशाच।
ऊर्जा सभी नकार की,नित्य जलाती आँच।।
माँ महागौरी
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श्वेत वर्ण भूषण सभी,श्वेत वस्त्र तन धार।
महागौरि माता वही,सबल भुजाएँ चार।।
सुखदात्री अघनाशिनी,है न असंभव काज।
जो न करे संभव सभी,सुख सौभाग्य सुसाज
माँ सिद्धिदात्री
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कमल पुष्प पर सोहतीं, सिद्धिदात्री माँ नाम।
अष्टसिद्धि की दायिनी,करता 'शुभम' प्रणाम
शिवजी ने जब तप किया,भारी तीव्र कठोर।
आधे नारीश्वर बने,सिद्धि गही पुरजोर।।
🪴 शुभमस्तु !
०२.०४.२०२२◆८.००पत नम मार्तण्डस्य।
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[6:08 am, 03/04/2022] DR BHAGWAT SWAROOP: 🌻 वासंतिक नवरात्र 🌻
[ दोहा - गीतिका ]
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✍️ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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वासंतिक नवरात्र का, 'शुभम' सुहृद उपहार।
दुर्गा माँ को पूजता, हर हिंदू परिवार।।
जगदंबा नव रूप में, करतीं जन - कल्याण,
करे हृदय से साधना,नौ दिन यह संसार।
माँ देतीं वैराग्य, तप, बुद्धि , ज्ञान - भंडार,
संयम की नव चेतना, निज पावन आचार।
माँ दुष्टों का नाश कर,करतीं अभय प्रदान,
रहें न अघ के ओघ भी,देतीं अपना प्यार।
आयु,मान,आरोग्य निधि, माता के वरदान,
कहीं भुजाएँ आठ दस,कहीं भुजाएँ चार।
सिंहवाहिनी दे रहीं, चार -चार पुरुषार्थ,
देवी दानव घातिनी, शुभदात्री प्रति वार।
कर माँ की आराधना,विनसे भूत, पिशाच,
ऊर्जा मिले सकार की,रहे न शेष नकार।
माता गौरी के लिए, है न असंभव काज,
सब कुछ वे संभव करें, मिटते हृदय विकार।
अष्ट सिद्धि माँ ही करें,निज साधक को दान,
'शुभम'साधना कर रहा,खुले नवम सिर द्वार।
🪴 शुभमस्तु !
०३.०४.२०२२◆५.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।
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