रविवार, 3 अप्रैल 2022

नव देवी स्वरूप आराधना [ दोहा ]


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✍️ शब्दकार ©

🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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माँ शैलपुत्री

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नौ  देवी   में  प्रथम है ,शैलसुता   का   रूप।

करें जगत -कल्याण माँ,गिरें न जन भवकूप।

हेमवती    वृषवाहिनी,  दाएँ हाथ     त्रिशूल।

हमें बचा माँ पाप से, कमल वाम कर फूल।।


माँ ब्रह्मचारिणी

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तप -आचरणी मात का,करते हैं  हम ध्यान।

देती हैं माँ सिद्धियाँ, तप, वैराग्य - निधान।।

ब्रह्मचारिणी  मात से,मिलता सत   आचार।

संयम  देतीं  भक्त को,देतीं 'शुभम'   उबार।।


माँ चंद्रघंटा

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अर्द्ध  चंद्र  आकार  का, सोहे घंटा    भाल।

सिंहवाहिनी  दशभुजा, चंद्र घंट  सुविशाल।।

माँ महिषासुरमर्दिनी, कर  दुष्टों  का   नाश।

कहलातीं चंदघंटिका, करें मुक्त   भवपाश।।


माँ कूष्मांडा

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कुसुम सदृश मुस्कान की,माँ कूष्मांडा  नेक।

अष्ट  भुजाएँ धारिणी, दें यश ,आयु,विवेक।।

पूरा ही ब्रह्मांड ये,  धर  निज गर्भ    महान।

देतीं  शुभ आरोग्य  माँ, कूष्मांडा   वरदान।।


माँ स्कंदमाता

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माता  सुत  स्कन्द की,सबल भुजाएँ   चार।

कमलासन  पर सोहतीं,खुलें मोक्ष के द्वार।।

यशस्विनी   स्कंद   माँ, गोद लिए     स्कंद।

कमल सुशोभित हाथ में,स्मिति मुख मकरंद


माँ कात्यायनी

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कात्यायन ऋषि के यहाँ,लिया सुता अवतार

कहलाईं  कात्यायनी, सुघर भुजाएँ  चार।।

सिंहवाहिनी  दे रहीं, चार -चार    पुरुषार्थ।

देवी  दानवघातिनी,   शुभदात्री   परमार्थ।।


माँ कालरात्रि

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कालरात्रि  माँ  सातवीं,चार भुजा दृग तीन।

असुरनाशिनी  रौद्रिणी,गर्दभ पर  आसीन।।

संहारक माँ  कालिका, राक्षस, भूत, पिशाच।

ऊर्जा सभी नकार की,नित्य जलाती आँच।।


माँ महागौरी

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श्वेत वर्ण भूषण  सभी,श्वेत वस्त्र  तन धार।

महागौरि  माता वही,सबल भुजाएँ    चार।।

सुखदात्री  अघनाशिनी,है न असंभव  काज।

जो न करे संभव सभी,सुख सौभाग्य सुसाज


माँ सिद्धिदात्री

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कमल पुष्प पर सोहतीं, सिद्धिदात्री माँ नाम।

अष्टसिद्धि की दायिनी,करता 'शुभम' प्रणाम

शिवजी ने जब तप किया,भारी तीव्र कठोर।

आधे  नारीश्वर  बने,सिद्धि गही    पुरजोर।।


🪴 शुभमस्तु !


०२.०४.२०२२◆८.००पत नम मार्तण्डस्य।


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[6:08 am, 03/04/2022] DR  BHAGWAT SWAROOP: 🌻 वासंतिक नवरात्र 🌻

            [ दोहा - गीतिका ]

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✍️ शब्दकार ©

🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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वासंतिक नवरात्र का, 'शुभम' सुहृद उपहार।

दुर्गा  माँ  को  पूजता,  हर  हिंदू    परिवार।।


जगदंबा नव रूप में, करतीं जन - कल्याण,

करे  हृदय  से साधना,नौ दिन यह   संसार।


माँ देतीं  वैराग्य, तप, बुद्धि , ज्ञान -  भंडार,

संयम की नव चेतना, निज पावन  आचार।


माँ दुष्टों का नाश कर,करतीं अभय  प्रदान,

रहें न अघ के ओघ भी,देतीं अपना  प्यार।


आयु,मान,आरोग्य निधि, माता के वरदान,

कहीं भुजाएँ आठ दस,कहीं भुजाएँ  चार।


सिंहवाहिनी दे रहीं,  चार -चार   पुरुषार्थ,

देवी दानव  घातिनी, शुभदात्री प्रति    वार।


कर माँ की आराधना,विनसे भूत,  पिशाच,

ऊर्जा  मिले सकार की,रहे न शेष   नकार।


माता  गौरी  के  लिए, है न असंभव  काज,

सब कुछ वे संभव करें, मिटते हृदय विकार।


अष्ट सिद्धि माँ ही करें,निज साधक को दान,

'शुभम'साधना कर रहा,खुले नवम सिर द्वार।


🪴 शुभमस्तु !


०३.०४.२०२२◆५.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।


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