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✍️ शब्दकार ©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नहीं शर्त का संबल होता,
सुंदर सहज समर्पण होता,
दूर -दूर तक स्वार्थ नहीं है,
खुलता वहाँ समर्पण -सोता।1।
जहाँ समर्पण प्रणय वहाँ है,
देशभक्त का स्वर्ग वहाँ है,
मैत्री- भाव समर्पण शोभन,
मात्र दान का भाव जहाँ है।2।
स्वार्थ भरा मानव का मन है,
लेने का ही सभी जतन है,
सौदेबाजी, नहीं समर्पण,
लालच लिप्त मनुज का तन है।3।
स्वयं समर्पण करके जानें,
मन की शांति सभी पहचानें,
देने में जो सुख मिलता है,
वहीं स्वर्ग है मानव मानें।4।
सीमा पर सैनिक प्रहरी है,
मापहीन श्रद्धा गहरी है,
कितना बड़ा समर्पण उनका,
पुण्य -मूल नित सदा हरी है।5।
🪴 शुभमस्तु !
१५.०४.२०२२◆११ .१५ आरोहणं मार्तण्डस्य।
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