[ताल,नदी,पोखर,झील,झरने]
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🪸 सब में एक 🪸
जल-आशय में दीखता, तल वह होता ताल
गड़हा निर्मल नीर का,बतलाता निज हाल।।
पायल बजती पाँव में,बजती सुमधुर ताल।
मन मेरा वश में करे,गजगामिनि की चाल।।
क्षीणकाय गंगा नदी,पतली - पतली धार।
मंथर-मंथर नाचती,पाने को निधि प्यार।।
तपता जेठ निदाघ में,हुए शर्म से लाल।
नदी लजाती-सी बढ़ी,सूख गए हैं ताल।।
आती ऋतु बरसात की,उछले मेढक मीत।
पोखर में टर्रा रहे, चाल चले विपरीत।।
पोखर में गोते लगा, खेलें बाल किशोर।
चढ़े भैंस की पीठ पर,उठतीं सलिल हिलोर।
नैन- झील की माप का,हुआ नहीं अनुमान।
डूब गया आकंठ मैं,कामिनि तुझे न भान।।
मानसरोवर - झील में, मुक्ता रखें सहेज।
हंस उड़े जब शून्य में,करे काम तव तेज।।
अविरत झरने झर रहे, पर्वत श्रेणी स्रोत।
नाव नहीं चलती वहाँ, चले न कोई पोत।।
झरने की जलधार का,देख नया शुभ रूप।
शुभं प्रकृति में जा रमा, अद्भुत दृश्य अनूप।
🪸 एक में सब 🪸
ताल,नदी,पोखर सभी,
सूख रहे जल स्रोत।
झील और झरने कहें,
कुपित निदाघी पोत।।
🪴 शुभमस्तु !
२७.०४.२०२२◆५.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।
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