मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

गागर की गरिमा [ बालकविता]

 ■●■●■◆■●■●■●■●■●■●

✍️ शब्दकार ©

💧 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■●■●■●■●■●■●■●■●■●

गर्मी   में  गागर   की  गरिमा।

कौन न जाने उसकी महिमा।


शीतल जल  सबको  है  देती।

प्यास देह की  वह  हर लेती।।


माटी  का   निर्माण  निराला।

बनते इससे कुल्हड़  प्याला।।


हँड़िया दिया सभी अति प्यारे।

नादें ,मटकीं   हैं सब   न्यारे।।


गागर का जल अति गुणकारी।

शीतलता   सुगंध   भी  न्यारी।।


कुम्भकार के श्रम का  सोना।

रूप   निराला   है अनहोना।।


आओ  माटी   को   अपनाएँ।

कृत्रिमता  को   दूर   भगाएँ।।


🪴शुभंमस्तु !


१२.०४.२०२२◆१.१५पतनम मर्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...