338/ 2025
[ कंगन,पायल,बिंदी,काजल,शृंगार]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
कोमल कलित कलाइयाँ, कंगन जोड़े चार।
आँगन में बजते कभी, कभी शयन गृह द्वार।।
कनक कलित कंगन बजें,नृत्य करे मन- मोर।
कामिनि की कमनीयता,बढ़ी दिवस निशि भोर।।
रुनक-झुनक पायल भरे, घर भर में संगीत।
लहर प्रेम की गूँजती, अर्धांगिनि की प्रीत।।
कोमल गोरे पाँव हैं, करे न पायल घाव।
पद धरणी पर जब पड़ें, छोड़े कांत प्रभाव।।
भुवन मोहिनी भाल पर, चमके बिंदी एक।
ज्ञानपुंज के मध्य में, जैसे सजा विवेक।।
महिमा बिंदी की बड़ी, हिंदी हो या नारि।
सुघर सजे सौंदर्य शुचि,सुषमा की अनुहारि।।
चमकें चंचल चक्षु दो,काजल की नव रेख।
जादू -सा उर पर करे, दर्पण में जा देख।।
लगा अलक्तक पाँव में, चमके बिंदी भाल।
नयनों में काजल करे, जादू -सा तत्काल।।
संस्कार सोलह सभी, सोलह सब शृंगार ।
कामिनि की कमनीयता,को करते कचनार।।
कोमल वाणी आचरण, सर्वश्रेष्ठ शृंगार।
नारी नर या मित्रता, कवि का यही विचार।।
एक में सब
पायल बिंदी सोहते, नारी तन- शृंगार ।
काजल कंगन से सदा, होता तन उजियार।
शुभमस्तु !
13.07.2025●9.00आ०मा०
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