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©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सावन आया सावन आया।
बादल ने रिमझिम बरसाया।।
श्वेत श्याम घन नभ में गरजे।
धरती पर हरियाली सरजे।।
चम - चम बिजली चमक रही है।
सड़क गली में नदी बही है।।
नहीं दिखाई देते झूले।
कजरी और मल्हारें भूले।।
टर्र - टर्र मेढक टर्राएँ।
प्रिया मेढकी पास बुलाएँ।।
वीर बहूटी विदा हो गई।
नहीं गिजाई बची सुरमई।।
गए केंचुआ खाद बनाने।
कृत्रिमता का साज सजाने।।
सावन में राखी का बंधन।
करें भगिनि का सब अभिनंदन।।
हरियाली तीजें मनभाई।
नहीं सरोवर में अब काई।।
भर - भर चलें पनारे सारे।
दिखते नहीं गगन में तारे।।
झर - झर झर - झर बरसे पानी।
सावन की घनघोर कहानी।।
प्रमुदित सभी कृषक नर - नारी।
नाच रहे बालक दे तारी।।
खेतों में हल - बैल चलाएं।
बीज बो रहे फसल उगाएँ।।
ज्वार बाजरा मक्का बोते।
चादर तान चैन से सोते।।
शुभमस्तु !
13.07.2025 ●8.45प०मा०
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