एक माता ने जन्म दिया है।
उसी मात का दूध पिया है।।
दूजी माता धरा जन्मभू।
लिया अंक निज धरणी मुझकूँ।।
मातृ तीसरी मेरी हिंदी।
भाषा बोली माँ की हिंदी।।
बोल तोतले जिस पल आये।
मात-पिता तन - मन हरषाये।।
' माँ 'का शब्द प्रथम उच्चारण।
माँ वाणी का वरद-प्रसारण।।
आता है तब रोता प्राणी।
कोई और नहीं होति वाणी।।
भूख -प्यास की भाषा रोदन।
रोने में भी है बहु मोदन।।
मासान्तर में आती वाणी।
बनती शिशु की नित कल्याणी।।
जब जाता है जग से प्राणी।
प्रथम टूट जाती है वाणी।।
करे विलम्ब आने में भाषा।
होती विदा प्रथम यम -पाशा।।
यह रहस्य सोचो निज मन से।
बोलो भाषा सुमधुर मुख से।।
भरी सत्यप्रियता से वाणी।
होती है जन -जन कल्याणी।।
बोलो बोल तोलकर अपने।
बिना ज़रूरत खोल न मुख ये।।
स्वर्ग - नरक ले जाती भाषा।
अमृत -गरल पिलाती भाषा।।
शब्द अमर हों निकले मुख से।
कहे गए जो तव सुख दुःख से।।
जैसे अमर कृष्ण की गीता।
मुख निसृत हर शब्द है जीता।।
मत कर मानव भाषा - दूषण।
वायु नीर सम वाणी प्रदूषण।।
तुम्हें कान से जो सुनना है।
क्या तुमको उससे कहना है??
वही कहो जो सुनना चाहो।
कुएँ में आवाज़ लगाओ।।
वाणी की प्रतिध्वनि आती है।
उर -कलिका खिल-बुझ जाती है।
यही सम्मान मातृभाषा का।
"शुभम" न आए तनिक निराशा।।
💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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