मंगलवार, 4 सितंबर 2018

बहुआयामी श्रीकृष्ण

तुम पूरब भी
पश्चिम भी,
उत्तर भी 
दक्षिण भी,
बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी
अखिल विश्व में तुम्हीं एक नामी,
एक ओर रास
गोपी -ग्वालों संग हास,
कहीं माखन की चोरी
कहीं राधा संग होरी,
उधर गम्भीर गीता -ज्ञान
युद्ध में दीर्घ शंखनाद।

बाहर से दृश्य भोगी
अंदर से अदृश्य योगी,
 इन्द्रिय -दमन के विरोधी
नव -ज्ञान  शोधी,
न प्रेम से दूरी 
न नारी  से दूरी,
एक ध्रुव स्थित योग
दूसरे ध्रुव अमित भोग,
प्रत्येक रंग स्वीकार
प्रकाश या  अंधकार,
करुणा के सागर भी
ब्रज के नटनागर भी,
अहिंसा भी युध्द भी
योगेश्वर भी प्रबुद्ध भी।

विरोधाभासों के पुंज, 
याद आती हैं करील कुंज,
गोपी -ग्वाल संग गोचारण
श्रीदामा सुदामा संघ विचरण,
निर्वस्त्र न नहाने का संदेश
चीरहरण यमुना पे करते ब्रजेश।

विपरीत तत्त्वों का समाहार
जीवन औऱ मृत्यु भी साकार,
भादों की निशीथ  लिया अवतार
निराकार का कान्हा रूप साकार,
अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र,
समर्पित चरणों में दो तुलसी पत्र।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 
की
हार्दिक शुभकामनाएं

💐शुभमस्तु !

✍🏼रचियता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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